Saturday 23 March 2024

आश्रिता- संजय

कहानी वही है।
आश्रिता- संजय

श्यामा केमिकल्स की दस मंजिली इमारत समुद्र के किनारे अपनी अनोखी शान में खड़ी इठला रही थी। दोपहरी ढल चुकी थी और सूरज की परछाईं पश्चिम आकाश से सागर के गम्भीर सीने में उतरने लगी थी। ढलते सूरज की पीली किरणें लहरों से आँख-मिचौनी खेलती हुई देखने वालों की आँखें चकाचौंध कर रही थीं, मानो सागर में लहरें नहीं सोने के चमकते टुकड़े तैर रहे हों। (उपन्यास अंश)

  लोकसभा चुनाव -2024 में मेरी नियुक्ति विद्यालय से चुनाव शाखा में 'स्वीप कार्यक्रम' अंतर्गत लगायी गयी है। पहला दिन था, कोई विशेष कार्य नहीं था और दूसरा दिन भी वैसा ही रहा। इन दो दिनों में मैंने लेखक 'संजय' का उपन्यास 'आश्रिता' पढा। यह एक परम्परागत चली आ रही कहानी है।
लेखक ने बहुत ही सरल शब्दों में अच्छे प्रस्तुतीकरण के साथ उपन्यास को पठनीय बना दिया है।

Tuesday 12 March 2024

सिकंदर की वापसी- कुमार कश्यप

सिकंदर फिर भारत में
सिकंदर की वापसी- कुमार कश्यप

केन्द्रीय गुप्तचर विभाग नई दिल्ली ।
शशांक चक्रवर्ती का मस्तिष्क ऑफिस में घुसते ही ठनका। मेज पर रखा प्रार्थना-पत्र हाथ बढाकर उठाते हुये दूसरे हाथ से घन्टी बजाई ।
चपरासी ने आकर सलाम बजाया ।
'बटलर को सूचना दो हमने तुरन्त बुलाया है ।'
'लेकिन श्रीमान!'
'क्या अभी तक ऑफिस में नहीं आये।' घड़ी देखते हुये चीफ शशांक चक्रवर्ती ने पूछा और पत्र खोलने लगे ।
'ऐसा नहीं। आये थे बटलर साहब। आपके हाथ में जो अर्जी है मेज पर पटक कर बोले- इस घुड़साल का गन्जा मालिक आ जाये तो बोल देना-महान बटलर युद्ध जीतने के लिये पलायन कर चुके हैं। छुट्टी की एप्लीकेशन में नौकरी छोड़ने का अल्टीमेटम भी रखा है... इस्तीफा । कह देना-दोनों में जो चीज पसन्द आये घसीट मारे । इतना कहा और आँधी तूफान की तरह फूट गये ।'
 यह प्रथम दृश्य है कुमार कश्यप जी द्वारा रचित उपन्यास 'सिकंदर की वापसी' का।

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...