Thursday 30 April 2020

304. COVID19@2020 - अमित नेहरा

Corona वायरस पर लिखी गयी किताब
COVID-19@2020- अमित नेहरा

अमित नेहरा जी पेशे से चिकित्सक हैं। उन्होंने covid-19 (कोरोना वायरस) को लेकर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आर्टिकल लिखे हैं, यह पुस्तक उन्हें आलेखों का संग्रह है।
यह आर्टिकल जहाँ एक तरफ Covid-19 के विषय में हमें जानकारी उपलब्ध करवाते हैं, वहीं covid-19 को लेकर फैली भ्रांतियों का तथ्यों सहित निवारण भी करते हैं।
 

       चाहे कोविड-19 का पता विश्व को वर्ष 2019 के अंतिम दिन ही चला हो मगर इसने अपना रौद्र रूप वर्ष 2020 की पहली तिमाही में ही दिखा दिया। इसी के चलते इस किताब का शीर्षक कोविड-19@2020 रखा गया।
केवल 20 से 60 नैनोमीटर तक के आकार वाले इस बेहद सूक्ष्म जीव की इस पुस्तक के लिखे जाने तक सारे संसार के किसी भी देश, कंपनी या वैज्ञानिक के पास कोई दवाई, इलाज या वैक्सीन नहीं थी। दुनिया के पास इस शैतान से बचने के लिए था तो वह था सिर्फ कोविड-19 से सम्बंधित डेटा (आंकड़े), केवल इसी डेटा के आधार पर इससे शुरुआती लड़ाई लड़ी गई। सम्पूर्ण मानवता को बचाने के लिए लड़ी गई इस लड़ाई में कहाँ-कहाँ, क्या-क्या तरीके अपनाए गए, उनमें से कितने सफल हुए, कितने धराशायी हुए, विश्व में कोविड-19 ने कहाँ-कहाँ विनाश किया, कहाँ-कहाँ के लोग इससे अपना बचाव करने में सफल रहे और इस पूरे प्रकरण के क्या परिणाम रहे इन सभी तथ्यों का आपको प्रामाणिक लेखा-जोखा इस पुस्तक कोविड-19@2020 में मिलेगा। 

Monday 27 April 2020

303. काला साया- अजिंक्य शर्मा

एक रहस्यमयी मर्डर मिस्ट्री
काला साया- अजिंक्य शर्मा

गिरिराज वर्मा शहर के नामी वकील थे। वकील होने के साथ ही वे बेहद संपन्न भी थे क्योंकि उनके पास पुरखों की छोड़ी गई अच्छी-खासी जायदाद भी थी और कुछ कम्पनियों के शेयर भी थे, जिनसे वे खूब मुनाफा कूटते थे। यानि पैसों की उनके पास कोई कमी नहीं थी। हिल रोड पर उनका एक घर था.......और इसी बीच गिरिराज वर्मा के हिल रोड स्थित घर में उनका कत्ल हो गया। गिरिराज वर्मा की लाश उनके घर के स्टडी रूम में उस रिवॉल्विंग चेयर पर पाई गई, जिस पर वो बैठा करते थे। रिवॉल्वर की गोली ने उनकी कनपटी में सुराख कर दिया था और रिवॉल्वर लाश के पास ही फर्श पर पड़ी मिली थी, जैसे हाथ से फिसल कर गिर पड़ी हो।
     जैसे जैसे इस कत्ल की खोजबीन‌ आगे बढी तो नये-नये तथ्य शामिल होते गये। कुछ लोगों के दावे बहुत ही अजीब थे तो कुछ लोग गिरीराज वर्मा के चरित्र पर संदेह करते थे। 


- एडवोकेट गिरिराज वर्मा समाज में बेहद प्रतिष्ठित, सम्मानित व्यक्ति के रूप में जाना जाता था। लोग उसके आदर्श चरित्र की मिसालें देते नहीं थकते थे।
- लेकिन जब एक रात उसी के घर में, बेहद रहस्यमयी ढंग से उसकी हत्या हो गई तो ऐसे-ऐसे चौंकाने वाले राज सामने आए कि लोग हैरान रह गए।
- कौन थी सनाया गौतम, गिरिराज वर्मा ने मरने से पहले-या यूं कहें कि मारे जाने से पहले-अपनी पूरी जायदाद जिसके नाम कर दी थी।
- क्या अधेड़ावस्था में एकाकी जीवन बिता रहे गिरिराज वर्मा को अपने जीवन में ‘चीनी कम’ लगने लगी थी, जिसके चलते उसने अपने सिद्धांतों से समझौता कर लिया था?
या वो ऐसी जहरीली नागिन के जाल में फंस गया था, जिसके जहर का कोई तोड़ नहीं था।
- या फिर गिरिराज वर्मा पर सचमुच किसी चुडै़ल का काला साया था?
जानने के लिए पढ़ें एक तेजरफ्तार मर्डर मिस्ट्री
'काला साया'


302. पार्टी स्टार्टेड नाओ- अजिंक्य शर्मा

छिप जाओ....क्योंकि मौत आ रही है।
पार्टी स्टार्टेड नाओ- अजिंक्य शर्मा,  स्लैशर थ्रिलर उपन्यास

     हिन्दी लोकप्रिय जासूसी साहित्य में ज्यादातर मर्डर मिस्ट्री लिखी गयी है। उससे अलग हटकर बहुत कम प्रयोग देखने को मिलते हैं। लेकिन अजिंक्य शर्मा जी का द्वितीय उपन्यास 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' पढा। यह एक अलग थीम 'स्लैशर' पर आधारित है।
          अब स्लैशर शब्द मेरे लिए भी नया था तो लेखक महोदय ने इस शब्द को स्पष्ट किया।
"जी गुरप्रीत भाई स्लैशर का अर्थ खून खराबे वाली घटना से सम्बन्धित होता है, हॉलीवुड में इस तरह की खून खराबें वाली फ़िल्में आईं थीं जिससे इसे एक जोनर ही माना जाने लगा. 'स्क्रीम', 'अर्बन लिजेंड', 'आई नो व्हाट यु दिड लास्ट समर' आदि हॉलीवुड की कुछ बहुत शानदार स्लैशर फ़िल्में हैं. ये मर्डर मिस्ट्री भी होती हैं पर खून खराबे की घटनाओं के कारण इन्हें स्लैशर फ़िल्में माना जाता है।" (पूरा साक्षात्कार देखें- साक्षात्कार अजिंक्य शर्मा)
        हालांकि मुझे वीभत्स घटनाओं वाले उपन्यास पसंद नहीं है। लेकिन यहाँ एक नये प्रयोग और लेखक के उपन्यास की चर्चा ही करते हैं।

छिप जाओ...क्योंकि मौत आ रही है!
दिल्ली से एक छोटे से शहर में रहने आई अविका ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी 'नॉन-हैपनिंग' जिन्दगी में अचानक ऐसा तूफान आ जायेगा, जिसके बारे में वो सपने में भी नहीं सोच सकती थी.
     21 साल पहले हुई हत्याओं की रहस्यमयी वारदात और उन्हें अंजाम देने वाले उस रहस्यमयी हत्यारे के प्रति वहां के युवाओं में क्रेज से अविका को लगने लगा, जैसे वो अचानक किसी रहस्यलोक में आ गयी हो.
और फिर शुरू हुआ हत्याओं का दिल दहला देने वाला सिलसिला...
सांसें थाम देने वाला एक बेहद तेजरफ्तार थ्रिलर
'पार्टी स्टार्टेड नाओ! -ए स्लैशर थ्रिलर'


उपन्यास का आरम्भ एक घटना से होता है।
      आखिरकार उसने वो कर ही दिया था, जिसका सपना वो जाने कब से देखता आ रहा था। 5 खून करना कोई आसान बात नहीं होती। वो भी इतनी बेरहमी के साथ...(उपन्यास अंश)
        इस घटना के इक्कीस साल बाद उपन्यास का आरम्भ होता है। अच्छा इक्कीस साल पहले असल में हुआ क्या था। पहले यह समझना जरूरी है। सिर्फ मेरे लिए ही नहीं आपके लिए भी और यही प्रश्न उपन्यास में भी उठता है
- तो एक अच्छा होस्ट होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं आपको 14 फरवरी 1999 की उस भयानक रात का किस्सा बताऊं, जब हमारा छोटा सा शहर उस भयानक घटना से दहल उठा था।''


301. मौत अब दूर नहीं- अजिंक्य शर्मा

अजिंक्य शर्मा जी का प्रथम उपन्यास
मौत अब दूर नहीं- अजिंक्य शर्मा, मर्डर मिस्ट्री


   हिन्दी लोकप्रिय जासूसी साहित्य में कुछ उपन्यास ऐसे भी नजर आते हैं जो प्रथम दृश्य से ही पाठक के मन में एक अदृश्य प्रभाव पैदा करते है और वह प्रभाव पाठक को पृष्ठ बदलने पर मजबूर कर देता है।
       ऐसा ही एक उपन्यास 'मौत अब दूर नहीं' पढने को मिला। ब्रजेश शर्मा जी जो 'अजिंक्य शर्मा' के उपनाम से उपन्यास लेखन करते हैं उनका (अजिंक्य शर्मा) यह प्रथम उपन्यास है और प्रथम उपन्यास में कहानी, भाषा -शैली, सस्पेंश -रोमांच के साथ जो शब्दों का जाल बिछाया है वह कहीं से भी महसूस नहीं होता की यह लेखक की प्रथम रचना है।

"कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,
मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले"

         उक्त पंक्तियाँ प्रसिद्ध शायर साहिर लुधियानवी की हैं। इन पंक्तियों को यहाँ लिखने का कारण यह है कि कुछ स्वयंनामधान्य लेखक यह कहते हैं की उन जैसा लेखन अब नहीं होगा, जासूसी साहित्य का भविष्य खत्म है, तो उनको अजिंक्य शर्मा के क्रमशः तीनों उपन्यास पढने चाहिए और जिन्होंने पढ लिये उनको पता है कि 'बेहतर कहने वाले और बेहतर सुनने वाले' कभी खत्म नहीं होते, एक से बढकर आते रहेंगे।
         मैंने अजिंक्य शर्मा जी के तीनों उपन्यास 'मौत अब दूर नहीं', 'पार्टी स्टार्टेड नाओ' और 'काला साया' पढे हैं और मैं कहता हूँ इस तरह की उत्कृष्ट रचना लोकप्रिय साहित्य में कम ही देखने को मिलती है। लेखक का भविष्य उज्ज्वल है।

      अब चर्चा करें 'मौत अब दूर नहीं' उपन्यास की। यह उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है। उपन्यास की कहानी आरम्भ होती है वैशाली नगर से।- वैशालीनगर पश्चिमी तटरेखा पर मुम्बई से करीब 100 किलोमीटर दूर समुद्र तट से लगा हुआ एक छोटा शहर था, जिसे केवल वैशाली नाम से भी जाना जाता था। ( उपन्यास अंश)
         कहानी दो बहनों सौम्या और लीना से आरम्भ होती है। सौम्या एक 'ब्लाइंड डेट' पर जाती है लेकिन संयोग कहें या दुर्योग वह उस लड़के से मिल नहीं पाती लेकिन वह किसी और के साथ काॅफी पीने बैठ जाती है। दूसरी तरफ वह 'ब्लाइंड डेट' पर आया वह अनजान व्यक्ति मौत का शिकार हो जाता है।
एक रेस्टोरेंट में हुए कत्ल के साथ शुरू हुआ खूनी सिलसिला...
एक अनजान शख्स, जिसे एक ‘ब्लाइंड डेट’ पर मार दिया जाता है...
एक शातिर और साइकोपैथ हत्यारा जो कत्ल करने के बाद हवा की तरह गायब हो जाता है...
और एक रहस्यमयी चीख...
( उपन्यास से)

- आखिर वह ब्लाइंड डेट क्या थी?
- सौम्या उस ब्लाइंड डेट पर क्यों आयी?
- सौम्या उस व्यक्ति से क्यों नहीं मिल पायी?
- उस व्यक्ति का कत्ल किसने किया?
- उस व्यक्ति का कत्ल क्यों हुआ?
- सौम्या किसके साथ काॅफी पीने बैठ गयी?
- वह रहस्यमय चीख किसकी थी?


Thursday 23 April 2020

300. कीकर और कमेड़ी- दीक्षा चौधरी

मार्मिक कहानियों का संग्रह
कीकर और कमेड़ी- दीक्षा चौधरी

    किंडल पर कहानी संग्रह सिखाई दिया 'कीकर और कमेड़ी' मुझे शीर्षक बहुत रोचक लगा और विशेष कर जब शब्द और कथानक राजस्थान की पृष्ठभूमि से संबंधित हो तो मेरी पढने की इच्छा बलवती हो जाती है।
      अगर यही शीर्षक 'फाख्ता और बबूल' होता या कुुछ और होता तो शायद मैं इस किताब की तरफ देखता तक न। जब किताब को देखा तो इसे पढने का द्वितीय कारण भी उपस्थित हो गया। वह कारण था लेखिका का मेरे गृह जिले श्री गंगानगर से होना। वह भी श्रीगंगानगर और रायसिंहनगर के मध्य आने वाले एक गांव तताररसर का होना। वह गांव जिसके सड़क दोनों तरफ से घूमती हुयी उसे अपने आगोश में समाने का अर्द्ध जतन करती सी प्रतीत होती है‌

  
चलो अब चर्चा करते है इस कहानी संग्रह की। इस संग्रह में कुल सात छोटी बड़ी कहानियाँ है जो विभिन्न रंगों को परिभाषित करती नजर आती हैं।
       इस संग्रह की प्रथम कहानी है 'मैं एक लेखक हूँ'। लेखक जो पात्रों का सृजनकर्ता होता है, लेखक संवदेनाओं और मानवीय भावों का वाहक होता है। क्या सच में लेखक ऐसे ही होते हैं। लेखक होना और संवेदनशील होना जब दो अलग-अलग पहलू बन जाये तब 'मैं एक लेखक हूँ' जैसे कहानी लिखी जाती है जो तथाकथित लेखकों को बेनकाब करती है।
ऐसी ही एक और कहानी है 'मैं जैकी हूँ'। यह कहानी भी दोहरे व्यक्तित्व का खेल खेलने वाले लोगों पर लिखी गयी एक सार्थक रचना है।
        "मुझे लगता है औरत कायनात की सबसे नायाब रचना है। मैं उसकी इस रचना के लिये हमेशा से शुक्रगुज़ार रहा हूँ और इसकी बहुत इज्ज़त भी करता हूँ… प्यार भी!"
ज्यादातर लोग शब्दो में ही औरत की इज्जत करते हैं और वास्तविक कुछ और होती है।

      कहानी संग्रह में दो बाते विशेष उभर कर सामने आती हैं। एक तो राजस्थान का वर्णन और दूसरा यौन संबंधों का चित्रण।
      अधिकांश पात्र कुछ यौन संबंधों की अधूरी प्यास या प्यार के चलते एक अजीब सी स्थिति के शिकार हैं‌। ऐसा लगता है उनके जीवन में जैसे रेगिस्तान उतर आया हो।
प्रेम की चाहत और एक समाज के डर से घिरी 'सीगल' कहानी की सलोनी भी यही कहती है -'जीवन न पहाड़ों सा है, न समन्दर सा। जीवन रेगिस्तान जैसा है; दोपहरों में तपते, आँधियों में बर्बाद होते रेगिस्तान जैसा।'
       राजस्थान निवासी होने के कारण लेखिका महोदया ने राजस्थान धरा को शब्दों के माध्यम से जिस तरह से व्यक्त किया है वह प्रशंसनीय है। एक और उदाहरण देखें कैसे राजस्थान की तेज धूप का वर्णन किया है- मई की दोपहर में रेगिस्तान भी किसी गुस्साए किशोर जैसा ही लगता है, मानो अपनी छुअन से ही दुनिया भस्म कर देना चाहता हो।
          वर्णन सिर्फ भौगोलिकता का ही नहीं वरण रिश्तों में आयी दरारों का भी है। मां-बाप अपने निजी कारणों से अलग हो जाते हैं और इसी स्थिति में बच्चे पर जो प्रभाव पड़ता है उसे कोई नहीं समझता। - माँ-बाप के बीच की खाई बच्चों का आसमान बन जाती है। उस आसमान में कभी वो आज़ाद महसूस करते हैं, कभी बेसहारा, तो कभी ख़ुद का एकदम शून्य होना। 

     'कीकर और कमेड़ी' इस संग्रह की वह कहानी है जिस पर इस कहानी संग्रह का नाम रखा गया। इस इंसान को जिसी न किसी का वह चाहे माता- पिता को पुत्र का हो, प्रेमी को प्रेमिका हो या फिर एक कीकर को कमेड़ी का। इस इंतजार और उसकी तड़प को वही महसूस कर सकता है।
इसी इंतजार जो कभी कीकर के नीचे बैठ कर बाबा करते थे,और इसी इंतजार को अब कथा नायक भुगत रहा है।
       क्या गया हुआ वापस लौट कर भी आता है। यह इंतजार बस इंतजार ही रहता है या कभी सफल भी होता है। इंतजार को व्यक्त करती एक और कहानी है 'लौटना एक मिथ है'।
         इस संग्रह की अंतिम कहानी है 'टिश्यू पेपर' जो मुझे बहुत हल्की सी कहानी लगी। प्रेम और फिर प्रेम की असफलता में डूबे व्यक्ति की कहानी है जो सिर्फ प्रेम ही चरित्र से भी डूबता नजर आता है।
      'ये भी जानती हूँ कि प्रेम में देह ज़रूरी नहीं' यह कथन है कहानी 'टिश्यू पेपर' हालांकि कहानियों में कहीं न कहीं प्रेम में देह नजर अवश्य आती है।
      इस संग्रह की सभी कहानियाँ मार्मिक है। मन को छू लेने वाली इन कगानियोतके लिए लेखिका महोदय को धन्यवाद।

        लेखिका महदोय की भाषा का पर अच्छी पकड़ है। कहानियों का जो वातावरण दर्शाया है जो सुक्तियां दी है वे अविस्मरणीय है।
उदाहरण देखें-
- बेशक़ हम सब अपने अपने जीवन के नायक ही होते हैं, बस महसूस होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- सुख सा विश्वासघाती और कोई नहीं।
- उम्र तो कैसे भी काटी जा सकती है, लेकिन असल में जीवन जीने की यही एकमात्र शर्त है- अपने प्रति, अपनी इच्छाओं के प्रति वफ़ादार होना।
- जिसे टूटकर चाहो और वो न मिल सके तो इंसान पूरी उम्र हर किसी में उस एक को ही ढूँढता रहता है। 

कहानी संग्रह- कीकर और कमेड़ी
लेखिका- दीक्षा चौधरी
प्रकाशन- ebook on kindle

किंडल लिंक-  कीकर और कमेड़ी

Wednesday 22 April 2020

299. पार्टी- महेन्द्र आर्य

एक अजनबी और एक कत्ल
पार्टी - महेन्द्र आर्य, मर्डर मिस्ट्री नाटक

मैं‌ अक्सर लोकप्रिय साहित्य में नया खोजता रहता हूँ। यह खोज कभी कभी कुछ नये प्रयोग भी सामने ला देती है। किंडल एप पर यही खोज एक नाटक को सामने लायी। नाटक छोटा है पर उसकी प्रथम विशेषता यह है की वह मर्डर मिस्ट्री युक्त है। मैंने पहली बार को नाटक पढा है जो किसी मर्डर पर आधारित है।
       यह कहानी एक परिवार की जहां एक छोटी सी पार्टी का आयोजन है। वहाँ एक अवांछित सदस्य भी आ जाता है और उसी पार्टी के दौरान घर के एक सदस्य की रहस्यम तरीके से मौत हो जाती है।
अन्फोर्चुनेटली ये पार्टी एक दुखद और कुछ हद तक भयानक स्थिति में पहुँच गयी है . हम सब को पुलिस का इंतजार भी करना पड़ेगा .
        पार्टी के दौरान एक सदस्य की मृत्यु सभी के लिए हैरत ली बात होती है और वहीं एक अजनबी का व्यवहार सभी को अचरज में डालने वाला होता है।
         एक तरफ एक मौत और दूसरी तरफ वह अजनबी।
आखिर वह अजनबी कौन है? यह भी सभी के लिए एक रहस्य होता है।
धीरे-धीरे एक-एक घटना से पर्दा उठता है और नाटक अपनी गति को प्राप्त होता है।

नाटक का घटनाक्रम बहुत छोटा है इसलिए ज्यादा चर्चा संभव नहीं है।
नाटक का एक संवाद जो मुझे बहुत अच्छा लगा यहाँ प्रस्तुत है।-  शराब अपने आप में एक बीमारी है . पीने वाला खुद नहीं जानता की कब वो ज्यादा पीने लगा ; और फिर उसके हाथ में कुछ नहीं रहता।
         इस नाटक में जो मुझे अच्छा नहीं लगा वह है एक तरफ घर में एक मौत हो गयी लेकिन लोगों को खाने की लगी।
- क्यों न थोड़ी देर के लिए हम सब इस सारी मुश्किल को भूल कर लिली के हाथ का बना खाना खाएं . पता नहीं इस के बाद हम सब को ऐसा मौका मिले या नहीं।
        नाटक बहुत रुचिकर है। घटनाक्रम तीव्रता से सम्पन्न होता है। आरम्भ से लेकर अंत से पूर्व तक रहस्य यथावत रहता है।

एक नाटक और वह भी मर्डर मिस्ट्री पर आधारित, ऐसा मैंने पहली बार पढा है। यह लघु नाटक रहस्य से परिपूर्ण है और पठनीय है।

नाटक- पार्टी           

लेखक- महेन्द्र आर्य
प्रकाशन तिथि- 25.04.2017
पृष्ठ- 50
फाॅर्मेट- ebook on kindle
किंडल लिंक-  
पार्टी- महेन्द्र आर्य

Monday 20 April 2020

298. मुर्दे की जान खतरे में- अनिल गर्ग

जासूस अनुज का कारनामा
मुर्दे की जान खतरे में- अनिल गर्ग, मर्डर मिस्ट्री उपन्यास

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के अन्तर्गत अपराध पर बहुत रोचक कहानियाँ लिखी गयी हैं। जिसमें मर्डर मिस्ट्री का एक अलग ही स्थान है।
      प्रस्तुत उपन्यास भी एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है और लेखक अनिल गर्ग जी का मेरे द्वारा पढा जाने वाला यह प्रथम उपन्यास है। किंडल पर लेखक के और भी उपन्यास उपलब्ध हैं।
      शहर के प्रसिद्ध व्यसायी बंसल के कत्ल से उपन्यास का आरम्भ होता है। - जिन बंसल साहब का क़त्ल हुआ था, उनका पूरा नाम अशोक बंसल था। दिल्ली शहर की नामीगिरामी हस्तियों में उनका नाम शुमार होता था। काफी बड़े उद्योगपति थे। मैंने सुना था कि कई स्कूल भी उनके दिल्ली जैसे शहर में चलते थे। (उपन्यास अंश)
पुलिस को शक सभी पर है पर किसी निर्णय तक नहीं पहुँच पाती तब उपन्यास में प्राइवेट डिटेक्टिव अनुज का प्रवेश होता है।

     "मै अनुज! एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ। मै जासूसी के उस दुर्लभ धंधे से ताल्लुक रखता हूँ जो भारत में दुर्लभ ही पाया जाता है। हमारे धंधे को कुछ चौहान जैसे पुलिसिये अपने काम।में रुकावट मानते है जबकि कुछ शर्मा जी जैसे लोग हमारे धंधे की कद्र करते है। एक बात और मै उस शक,धोखा,तलाक, पीछा वाली कैटगिरी का जासूस नही हूँ । आपका सेवक सिर्फ कत्ल जैसे जघन्य केस को ही सॉल्व करने में ज्यादा इंटरेस्ट रखता है।"

Sunday 19 April 2020

297. एक शाम तथा अन्य रचनाएँ

कुछ प्यार की कुछ संसार की...
एक शाम तथा अन्य रचनाएं- विकास नैनवाल

लघुकथाएंँ और काव्य रचनाएँ

     किंडल पर मित्र विकास नैनवाल जी का लघुकथाओं का एक छोटा सा संग्रह पढने को मिला। इस संग्रह की कथाएँ अलग-अलग समय लिखी होने के साथ-साथ अगल-अलग परिवेश को व्यक्त करनी है।

        प्यार, मनुष्य का स्वभाव, ......जैसे अन्य विषयों पर लिखी गयी ये रचनाएँ मन को छू जाती हैं और कहीं-कहीं हमें सोचने को विवश भी करती है। ऐसा ही एक प्रश्न 'फैसला' कथा में लेखक पाठकों से करता है- 'आप शशि हैं। आप ऐसे मौके पर क्या करते? शशि ने वही किया।'
'फैसला' कहानी मनुष्य के स्वार्थी मन की कहानी है जो दूसरे के कर्तव्य को सचेत करना चाहता है लेकिन स्वयं अपना कर्तव्य भूल जाता है। ऐसी ही एक और कहानी है 'चालान'।

Saturday 18 April 2020

296. तांत्रिक का बदला- राजीव श्रेष्ठ

जब प्रेतों ने बोला गाँव पर हमला...
तांत्रिक का बदला- राजीव श्रेष्ठ, हाॅरर उपन्यास

       पढने के क्रम में यह मेरी किंडल पर क्रमशः पांचवी हाॅरर रचना है। इस उपन्यास के विषय में कहूं तो यह बरसात के पश्चात चलने वाली शीतल हवा की तरह है।
इससे पूर्व में मनमोहन भाटिया जी का 'भूतिया हवेली', नितिन मिश्रा का 'रैना @ मिडनाइट', देवेन्द्र प्रसाद का 'खौफ...कदमों की आहट' और मिथिलेश गुप्ता का '11:59- दहशत का अगला पड़ाव' पढा ये चारों रचनाएँ सस्पेंश और हाॅरर से इतनी उलझी हुयी थी की दिमाग की नसें तक इनको पढकर सनसना रही थी। और फिर राजीव श्रेष्ठ का उपन्यास 'तांत्रिक का बदला' पढा तो इसने कुछ राहत प्रदान की।

           यह कहानी है तांत्रिक प्रसून की‌, एक सभ्य तांत्रिक जिसके बारे में लोग कहते हैं कि - कितना अच्छा और सच्चा इंसान है, एकदम भगवान के जैसा। मुझे तो इसमें ही साक्षात भगवान नजर आता है।
        प्रसून चाँऊ बाबा के पास एक मन्दिर में अस्थायी रूप से विश्राम कर रहा है लेकिन एक रात कुछ अजीब घटनाएं घटित होती है और न चाहते हुए भी प्रसून को उसमें शामिल होना पड़ता है।- प्रसून चुपचाप लेटा हुआ था, उसकी आँखों में नींद नहीं थी। जबकि वह गहरी नींद सो जाना चाहता था, बल्कि अब तो वह हमेशा के लिये सो जाना चाहता था। जाने क्यों जिन्दगी से यकायक ही उसका मोहभंग हो गया था, और वह इस जीवन से ऊब चुका था।    



295. 11:59- मिथिलेश गुप्ता

 जंगल, जहाँ से लोग गायब हो जाते थे...
11:59, मिथिलेश गुप्ता, हाॅरर उपन्यास

मिथिलेश गुप्ता जी का द्वितीय हाॅरर उपन्यास किंडल पर पढा यह एक रोमांचक उपन्यास है।
इस उपन्यास 
की कहानी  शुरू होती है पांच दोस्तों से - रुद्र और टीना, मेरे क्लासमेट रोनित, संजना और मैं यानि अभिमन्यु सिंह। (पृष्ठ संख्या..)
अभिमन्यु की जन्मदिन की पार्टी थी, और पांचों दोस्त पार्टी के लिए अपने अंकल के फार्म हाउस जा रहे थे। समय था रात के 10:30, और उन्हें फार्म हाउस जाने के लिए एक खतरनाक जंगल पार करना था। - वह अमावस की एक मनहूस काली रात थी। चारों तरफ घुप्प अंधेरा फैला हुआ था। घुप्प अंधेरों के बीच हमारी कार एक वीरान सड़क पर तेज़ी से दौड़ रही थी। जहाँ दूर-दूर तक सिवाए हमारे अलावा और कोई नज़र नहीं आ रहा था।
          फिर इसी जंगल से आरम्भ होती हैं कुछ दिल दहला देने वाली खतरनाक घटनाएं। एक के बाद एक घटती उन घटनाओं को समझना ही मुश्किल हो जाता है की आखिर क्या सत्य है और क्या असत्य, क्या वो सब वास्तविक है या फिर कोई भ्रम। लेकिन.......कई बार कुछ घटनाएँ इस तरह से घटती है कि उस से बच पाना मुश्किल होता है। आज की घटना भी कुछ ऐसी ही कहावत को हकीक़त में बदलने जा रही थी।
आखिर वह हकीकत क्या थी?
आखिर जंगल में ऐसा क्या था?
क्या वो दोस्त जंगल के मायाजाल से बाहर निकल पाये?

यह एक ऐसा रहस्य है जो आप उपन्यास पढकर ही जान सकते हैं। 




Friday 17 April 2020

294. खौफ- देवेन्द्र प्रसाद

नजदीक आ रही है खौफ के कदमों की आहट
खौफ- देवेन्द्र प्रसाद, हाॅरर कहानियाँ

इन दिनों किंडल पर हाॅरर कहानियाँ पढने का आनंद लिया जा रहा है। सम्पूर्ण देश में lockdown है, घर पर रहना है तो किताबें बहुत अच्छा साथ देती हैं।
        हालांकि मुझे हाॅरर रचनाएँ कम‌ पसंद हैं लेकिन अच्छी और तर्कसंगत हो तो पढी जा सकती है। इस क्षेत्र में नये प्रकाशक जैसलमेर से fly dreama publication का काम सराहनीय है। मैं क्रमशः fly dreamsकी यह तृतीय हाॅरर रचना पढ रहा हूँ। इससे पूर्व मनमोहन भाटिया जी की 'भूतिया हवेली' और नितिन‌ मिश्रा जी की 'रैना @ मिडनाइट' पढ चुका हूँ और इसके पश्चात सूरज पॉकेट बुक्स से प्रकाशित मिथिलेश गुप्ता जी की हाॅरर उपन्यास '11:59' पढूंगा‌।
       अब बात करे प्रस्तुत संग्रह की तो इसमें अधिकांश कहानियाँ पहाड़ी क्षेत्र की हैं शायद इसका कारण यह भी है की लेखक देवेन्द्र प्रसाद जी स्वयं उतराखण्ड के हैं, इसलिए कहानियों में उतराखण्ड और वहाँ के पहाडों का अच्छा चित्रण मिलता है।

    इंसानों की भीड़ भरी दुनिया में बसती हैं, कुछ ऐसी खौफनाक हकीकतें, जिनका सामना होने पर ज़िंदगी के मायने बदल जाते हैं। अमूमन, जब तक इंसान इन पारलौकिक शक्तियों से रूबरू नहीं होता, तब तक वह इन्हें नहीं मानता। जिन लोगों को इस प्रकार के डरावने अनुभव से गुज़रना पड़ता है, उनकी ज़िंदगी खौफ़ से भर जाती है।


इसी खौफ की कहानियाँ आपको इस किताब में पढने को मिलेगी।


Wednesday 15 April 2020

293. रैना@ मिडनाइट- नीतिन मिश्रा

रात में जागने वाले...
रैना @मिडनाइट- नितिन‌ मिश्रा, हाॅरर उपन्यास

“अंधविश्वास ने आज भी हमारे देश, हमारे समाज के एक बहुत बड़े हिस्से को, इस कदर अँधा कर रखा है कि उन लोगों की नज़रों को एक इंसान और जानवर में फर्क नहीं दिखाई देता।”, रैना की आवाज़ क्रोध और उत्तेजना से काँप रही थी।
       यह दृश्य है नितिन मिश्रा के उपन्यास 'रैना @ मिडनाइट' का। यह उपन्यास चार दोस्तों की कहानी है जो समाज में व्याप्त भूत-प्रेत के नाम पर फैले अंधविश्वास का खण्डन करने की जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियाँ उन्हे एक ऐसी जगह ले आती हैं जहाँ वे स्वयं नहीं समझ पाते की ये अंधविश्वास है या सत्य। और फिर एक के बाद ऐसी घटनाएं सामने आती हैं की पाठक हत्प्रभ रह जाता है। 


        लेखक महोदय ने जिस तरह से कहानी को बुना है वह बहुत गहरी और रोमांचक होती गयी है। दिमाग की नसों की सनसना देनी वाली यह कहानी अंत तक पाठक को स्वयं से चिपका कर रखती है और उसके बाद भी दिमाग में छायी रहती है।


292. भूतिया हवेली- मनमोहन भाटिया

भूतों की कहानियाँ
भूतिया हवेली- मनमोहन भाटिया, हाॅरर कहानी संग्रह
प्रस्तुत संग्रह में कुल छह कहानियों है जो अलग-अलग परिवेश पर आधारित हैं।
    कहानियाँ आपको एक अलग दुनियां में ले जायेगी जहाँ भूतों का एक अलग संसार है। जहाँ खतरनाक बिल्लियां हैं, राजस्थान का तपता रेगिस्तान है और उसमें घटित भयजनक किस्से हैं, तो कहीं पहाड़ के भूत भी हैं। अच्छे भूत हैं तो बुरे भूत भी हैं, काली-भूरी भूतियां बिल्लियां भी है। कुल मिलाकर कह सकते हैं की इस हाॅरर संग्रह में आपको विभिन्न रंग देखने को मिलेंगे।
इस संग्रह में कुल छह कहानियाँ है।
     भूत इस संग्रह की प्रथम कहानी है जो एक रहस्यम तरीके से मृत लड़की पर आधारित है।
वहीं द्वितीय कहानी एक 'अच्छे भूत' की है पर यह कहानी न होकर मात्र एक घटना प्रतीत होती है। हां अगर पात्रों के दृष्टिकोण से देखा जाये तो सिहरन पैदा करने वाली स्थिति का वर्णन सही है। 

291. देव भक्ति- राम पुजारी

धर्म के नाम पर फैली अंधभक्ति की कथा।
देव भक्ति- राम पुजारी


         सामाजिक उपन्यासकार राम पुजारी जी का तृतीय उपन्यास 'देव भक्ति- आस्था का खेल' किंडल पर पढने को मिला। समाज में व्याप्त धार्मिक भ्रष्टाचार पर लिखा गया यह उपन्यास हमें बहुत कुछ सिखाता है।
      कोरोना वायरस 'COVID-19' के चलते देश में Lockdown चल रहा है। विद्यालय बंद है और हम अपने घर में सुरक्षा की दृष्टि से बंद हैं। इस समय का सदुपयोग करने के लिए किंडल पर किताब पढने का विचार बनाया।
इस क्रम में सबसे पहले राम पुजारी जी का उपन्यास 'देव भक्ति- आस्था का खेल' पढा।

         मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज में बहुत से नियमों का पालन करना पड़ता है। वे चाहे सामाजिक हो, धार्मिक हो या वैधानिक। मनुष्य को समाज में रहते हुए मान-सम्मान, धर्म, समाजिक संबंध, नातेदारी जैसे विभिन्न घटकों का निर्वाह करना ही पड़ता है। कभी-कभी मनुष्य इस कर्तव्यों का निर्वाह करते-करते बहुत दूर निकल जाता है, जहाँ से लौटना भी मुश्किल हो जाता है। 


         'देव-भक्ति- आस्था का खेल' ऐसे ही युवावर्ग की कहानी है जो समाज के दवाब के चलते अपने सपनों का महल नहीं बना सकते।
         देव और भक्ति दोनों बचपन के साथी थे, साथ-साथ खेलते- पढते हुए बड़े हुए। फिर समाज, पाखण्ड और अतिआदर्शवाद के क्रूर हाथों के चलते ऐसे मजबूर हुये कि दोनों की जान पर बन आई। एक तरफ बचपन का मासूम प्यार था तो दूसरी तरफ झूठी शान, वासना, तिरस्कार, घृणा और अंधभक्ति।

Thursday 9 April 2020

290. आपका रसिया- ओमप्रकाश राय 'यायावर'

काव्या- किसलय की प्रेम कहानी
आपका रसिया- ओमप्रकाश राय 'यायावर'

'CORONA-19 वायरस' के चलते कुछ लेखक और प्रकाशक वर्ग ने पाठकों को विभिन्न प्लेटफॉर्म पर नि:शुल्क पुस्तकें उपलब्ध करवायी ताकी पाठकवर्ग आराम से घर भी बैठा रहे और साथ में उसका मनोरंजन भी होता रहे। इस प्रयास के लिए धन्यवाद।

    ओमप्रकाश राय 'यायावर' ने भी अपनी सद्यप्रकाशित उपन्यास 'आपका रसिया' की PDF पाठकवर्ग के लिए उपलब्ध करवायी।
'आपका रसिया' एक प्रेम कथा है, जो मार्मिकता और भावुकता के सागर में पाठक को डूबने पर विवश करती नजर आती है। लेकिन इस सागर की विशालता के कारण पाठक इस सागर में तैरता- तैरता उकता भी जाता है।
     यह कहानी है किसलय और काव्या की जो पहली बार एक ट्रेन में मिलते हैं। फिर फेसबुक पर मिलते हैं और फिर प्रत्यक्ष मिलते हैं और यह धीरे-धीरे मिलना कब प्यार में बदल जाता है पता ही नहीं चलता। और प्यार का अर्थ है त्याग और समर्पण।
कहानी जब प्यार की है तो यह है प्यार की परिभाषाएं और प्यार के किसलय- काव्या के संवाद भी पढने को मिलेंगे।
जहाँ कारण हो वहाँ भला प्यार कैसा, प्यार तो अकारण होता है, प्यार तो अकाल और असमय होता है, असंस्कृत होता है, अभय होता है- अलक्ष्य, असीम, अनंत:, अधीर, अदृश्य, अजर, नि:शब्द, निर्बंध, निर्वाध, निराकार, युगसृष्टा और लज्जा रहित होता है

काव्या- प्यार करना चाहिए या नहीं
किसलय- इसमें करने जैसी कोई बात नहीं होती, यह तो अलौकिक तत्व है, जो अपने आप प्रकट हो जाता है।....

उपन्यास पृष्ठ


289. कंकालों के बीच- वेदप्रकाश कांबोज

बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी
कंकालों के बीच- वेदप्रकाश कांबोज, उपन्यास


        लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में ऐसे बहुत कम उपन्यास लिखे गये हैं जो वास्तविक घटनाओं ने बहुत नजदीक हों। प्रस्तुत उपन्यास की घटनाएं और पात्र चाहे पूर्णतः काल्पनिक हैं लेकिन इस कहानी की जो पृष्ठभूमि है वह पूर्णतः सत्य है। लेखक महोदय ने जिस तरह से इन खूनी घटनाओं का वर्णन किया है वह रोगंटे खड़े करने में सक्षम है।
उपन्यास पढते वक्त बाग्लादेश के लोगों के साथ एक अपरिचित सी सहानुभूति जुड़ जाती है। उन अत्याचारों‌ को पढकर मन उदास हो उठता है‌।
        सत्ता का स्थायित्व बनाये रखने के लिए आदमी हैवान हो जाता है, उसके लिए आदमी के जीवन का कोई मूल्य नहीं रह जाता।
          उपन्यास का आरम्भ होता है अंतर्राष्ट्रीय अफराधी अलफांसे से।- अलफांसे का जीवन बहती नदी के समान था, तब तक बहते रहना जब तक सागर में विलीन होकर उसका अस्तित्व समाप्त न हो जाये।
अलफांसे के पास वाल्टर स्काट नाम का आदमी पहुंचता है और कहता है।
"वाल्टर स्काट आपकी सेवा में हाजिर है....।"
"मगर मैं....।"
"मिलने के लिए मना कर चुका था।"- अलफांसे की बात को स्वयं वाल्टर स्काट ने पूरा करते हुए कहा,-"लेकिन वाल्टर स्काट जिस आदमी से मिलना चाहता है, उससे मिल ही लेता है।"
......
"इस पैकेट में एक पुस्तक है, उसे पढ लीजिए।"
वाल्टर के इस प्रस्ताव पर अलफांसे विस्मित रह गया। उसने एक नजर वाल्टर की ओर देखा और फिर बोला,-"क्यों पढ लूं?"
उत्तर में वाल्टर ने अपनी जेब से सौ-सौ के डालर के नये नोटों की आधी गड्डी देते हुए कहा,-"क्योंकि इस काम के लिए मैं आपको पांच हजार डालर दे रहा हूँ। "
और भी विस्मय हुआ अलफांसे। एक पुस्तक पढने के पांच हजार डालर, कहीं यह आदमी पागल तो नहीं।
          वहीं दूसरी तरफ विजय और अशरफ को बांग्लादेश के सीक्रेट सर्विस कार्यालय में भी इसी प्रकार की किताब का सामना करना पड़ा।
         "......अब मेरा अनुरोध है कि इससे पहले कि आपको यहाँ आने का कारण बताया जाये,...आप इस पुस्तक को पढ लें। पुस्तक के दोनों उपलब्ध संस्करण आपके पास हैं। जिस भाषा में भी आप चाहे पढ लें।"
"क्या यह पुस्तक पढवाने के लिए ही हमें बुलाया गया है?"- विजय ने एक पुस्तक उठाते हुए कहा।
आखिर इस पुस्तक में ऐसा क्या था?, जिसके लिए अलफांसे और विजय जैसे लोगों की सिर्फ पुस्तक पढने के लिए मांग हो उठी।

कंकालों के बीच- वेदप्रकाश कांबोज

Monday 6 April 2020

288. आलपिन का खिलाड़ी- वेदप्रकाश शर्मा

जब विकास अपराधी बन गया....
आलपिन का खिलाड़ी- वेदप्रकाश शर्मा

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के प्रसिद्ध लेखक वेदप्रकाश शर्मा जी का आरम्भिक दौर का एक उपन्यास है 'आलपिन का खिलाड़ी'।

"अशरफ मैं आशा बोल रही हूँ।"
"अरे जल्दी बोलो,आदेश क्या है। मैं बहुत दिन से बोर हो रहा हूँ।"
"इस बार सारी बोरियत दूर हो जायेगी अशरफ, मुकाबला ऐसे व्यक्ति से है जिसे समाप्त करने में सिक्रेट सर्विस का प्रत्येक सदस्य ही नहीं बल्कि चीफ भी हिचकिचायेगा।" 


"कौन है वो महाशय?"
"हमार ही एक साथी।"
"कौन?"
"विकास"
"क्या"
"सच"






        ऐसी कौनसी परिस्थितियाँ पैदा हुयी जो स्वयं सीक्रेट सर्विस के सदस्य ही अपने साथी विकास की जान लेने पर आ गये।
बस यही से कहानी एक्शन आरोप हो जाता है और पाठक भी सोचता रह जाता है की आखिर यह कैसे हो गया।
         दूसरी तरफ विकास भी अजीब सी परिस्थितियों में फंसा होता है। जहाँ उसके चारों तरफ मौत है। एक ऐसे जाल में ऒंसा है जहाँ से निकलना मुश्किल है। - इस बार बहुत मजा आयेगा विकास, तुम मेरे जाल से निकल नहीं सकते इस बार खुद तुम अपराधी हो। तुम्हारे नाना ठाकुर साहब ने स्वयं आदेश दिया है कि तुम्हें देखते ही गोली मार दी जाये।

     तो क्या विकास मुजरिम बन गया? आखिर वह कौनसी सी परिस्थितियाँ रही होंगी जब विकास जैसा देशभक्त अपराधी बन गया। अब विकास क्या कहता है यह भी देख लीजिएगा- अब पूरी दुनिया मेरा मुजरिम वाला रूप देखेगी। अब दुनिया यह देखेगी कल तक का जासूस विकास मुजरिम बन कर क्या कर सकता है।
तो 'आलपिन का खिलाड़ी' उपन्यास की कहानी विकास के मुजरिम बन जाने की है। जहाँ सीक्रेट सर्विस, पुलिस और दुश्मन सब विकास की जान लेना चाहते हैं।-आजकल यहाँ विकास की कोई खास अच्छी नहीं है सर, सारे देश की पुलिस उसकी तलाश में है।

आखिर यह कैसे हो गया?
एक देशभक्त कैसे मुजरिम बन गया?
इसी रहस्य को समझने के लिए यह उपन्यास पढना होगा।

उपन्यास का आरम्भ बंदर धनुषटंकार से होता है। विजय-विकास का प्रिय धनुषटंकार। जो शरीर से चाहे बंदर है लेकिन‌ उसके अंदर मस्तिष्क एक मनुष्य का है। ( इसकी भी एक कहानी है)
धनुष्टंकार न सिर्फ साधारण बंदर बल्कि विकास जैसे खतरनाक लड़के का चेला था। लड़ने के हर पैंतरे में पूरी तरह माहिर।
उपन्यास में धनुषटंकार का किरदार उन फिल्मी बंदरों जैसा है जो मोटरसाइकिल और कार चलाते हैं, खैर....यहां भी धनुषंटकार यही कारनामें करता है।


आलपिन का खिलाड़ी-
उपन्यास का शीर्षक वास्तव में रोचक हथ पर उपन्यास में शीर्षक कोई विशेष महत्व नहीं रखता। अगर अतिरिक्त मेहनत की जाती तो आलपिन के और भी कारनामे दिखाये जा सकते थे।
'आपका बच्चा आलपिन का खिलाड़ी है गुरु।'

उपन्यास का कथानक सामान्य स्तर का है। एक छोटा सा रहस्य है वह है विकास का। इसके अतिरिक्त उपन्यास में एक्शन दृश्य (लडा़ई) बहुत ज्यादा हैं।
उपन्यास में एक सदस्य दो-दो फेसमास्क लगा कर घूमता है और किसी को पता तक नहीं चलता। ऐसा वेद जी के अन्य उपन्यासों में भी मिलता है।
हां, उपन्यास एक्शन के स्तर पर तो खैर निराश नहीं करेगा। बस एक बार बार इसलिए पढा जा सकता है की उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा जी का लिखा हुआ है।

उपन्यास- आलपिन का खिलाड़ी
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा

Saturday 4 April 2020

287. खून बरसेगा- परशुराम शर्मा

मिश्र के पिरामिडों में दफन रहस्य
खून बरसेगा- परशुराम शर्मा, हाॅरर

          हम पहुँच गये हैं परशुराम शर्मा जी द्वारा लिखित हाॅरर उपन्यास के तृतीय भाग पर। यह एक हाॅरर शृंखला है जो 'मरघट' और 'पिशाच' नामक पडाव पार करके मिश्र के पिरामिडो में 'खून बरसेगा' शीर्षक से पहुंची है।
        अगर आप इस कथा का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको यह तीन भागों में विभक्त शृंखला पढनी होगी, तभी आप इसका पूरा आनंद के पायेंगे।
        यह कहानी है डार्किकिंग नामक पिशाच की, जो मिश्र के पिरामिडो में दफन मम्मीयों के माध्यम से शक्ति प्राप्त कर सम्पूर्ण संसार पर शासन करना चाहता है।
रिकी, रामीज का आठवां जन्म था, इसलिए पिशाच योनि में आने के बाद उसने अपनी सुरक्षा के लिए रामीज के शरीर में आना उचित समझा।

         टाॅम विक्टर एक वह शख्स है जो डार्किकिंग को चुनौती देता है। लेकिन डार्ककिंग( रिकी या रामीज) से निपटना इतना आसान नहीं था। डार्ककिंग स्वयं कहता है- मैं कभी इस धरती से नहीं मिट सकता बेवकूफ क्योंकि मैं फिर ओन पिशाच हूँ। फिर ओन रुहों के देवता मेरे साथ हैं। मैं इस धरती पर आठवीं बार जन्मा था। ...."

क्या टाॅम विक्टर इस जंग में रामीज नामक पिशाच (डार्ककिंग) से जीत पाया। जहाँ रामीज के पास काली शक्तियां थी वहीं टाॅम विक्टर के पास उसका वफादार साथी जोजफ था- "मास्टर, हर बड़े आदमी की जंग के साथ उसके किसी न किसी सहयोगी का नाम लिखा जाता है। .....आप की लड़ाई धर्म की होगी और मेरी लड़ाई है, आपकी हिफाजत। आपके रास्ते में क ई आदमी रूकावट डाल सकते हैं, ऐसे आड़े वक्त के लिए मेरे हाथ हैं।"
           मिश्र के पिरामिडों में दफन अथाह दौलत के लिए पिशाच और मनुष्य में चली एक खूनी जंग। -धन का लोभ इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसके वह लिए वह वहशी बन जाता है, हत्यारा बन जाता है।
         रिकी/ डार्ककिंग/ रामीज/ पिशाच उस अथाह दौलत को प्राप्त करना चाहत था टाॅम विक्टर ( रिकी) जब उसके राह में आया तो टकराव होना ही था।
        जहाँ एक पिशाच था तो वहीं दूसरी तरफ एक पवित्र इंसान था।
जहाँ एक दौलत के लिए खून बहा सकता था वही दूसरा दौलत को परमार्थ में लगाना चाहता था।
      आखिर दोनों की टकर का परिणाम क्या रहा?

Thursday 2 April 2020

286. पिशाच- परशुराम शर्मा

डार्ककिंग -कहानी खून‌ पीने वाले पिशाच की
पिशाच- परशुराम शर्मा, हाॅरर उपन्यास (द्वितीय भाग)

        हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की एक धारा है 'हाॅरर' उपन्यासों की। इसी धारा में एक चर्चित लेखक हुए हैं परशुराम शर्मा। परशुराम शर्मा जी का तीन खण्डों में प्रकाशित हाॅरर उपन्यास के द्वितीय भाग के सम्बन्ध में मेरे विचार यहाँ प्रस्तुत है।
पिशाच उपन्यास परशुराम शर्मा जी के मरघट उपन्यास का द्वितीय भाग है और इस शृंखला का तृतीय और अंतिम भाग 'खून बरसेगा' शीर्षक से है।

"वह कौन था?"
"डार्ककिंग।"
"डार्ककिंग। यह नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना।"
"इस नाम को यू समझो वह पिशाचों का बादशाह है।"

      यह कहानी है डार्ककिंग की अर्थात् एक पिशाच की। अगर आपने मरघट उपन्यास पढा है तो आपको पता होगा की कौन, कैसे डार्ककिंग बना।
      इस भाग में डार्ककिंग का सामना होता है टाॅम विक्टर से। और यह उपन्यास डार्ककिंग और टाॅम विक्टर के परस्पर संघर्ष पर आधारित है।
        जब टाॅम विक्टर(विकी) को पता चलता है की डार्ककिंग दौलताबाद में है तो वह भी उस तरफ चल देता है।- विकी अकेला दौलताबाद के लिए रवाना हो गया। उसे विश्वास था कि बहुत जल्दी उसकी मुलाकात डार्ककिंग से होने वाली है। एक पिशाच से निपटने के लिए विकी पूरी तरह से तैयार होकर गया था।
विकी जा पहुंचता है दौलताबाद - दौलताबाद कोई बड़ा शहर नहीं था। साधारण सा मध्यम दर्जे का कस्बा था। इसी दौलताबाद में एक पुरानी हवेली है- चित्रगढी। इस उपन्यास का आगे का घटनाक्रम इसी जगह पर आधारित है।

      डार्ककिंग दस गर्भवती महिलाओं का खून पीना चाहता है। दस गर्भवती महिलाओं का खून पीने के पश्चात उसमें असीम ताकत आ जायेगी। टाॅम विक्टर उसके राह में खड़ा है।
उपन्यास में टाॅम विक्टर का भी आगमन एक रहस्यमयी घटना से होता है।- टाॅम विक्टर उस स्त्री के शव को छोड़कर उठ खड़ा हुआ। वह सचमुच मर चुकी थी। एक निर्दोष मासूम स्त्री, जिसे कि उसने माध्यम बनाया था, उसकी ही गलतियों से न सिर्फ मर चुकी थी, बल्कि पिशाच योनि में जा चुकी थी। 


      डार्ककिंग एक खतरनाक पिशाच है जिसकी प्यास खून से ही बुझती है। - जिस प्रकार एक शेर या चीता इंसानी रक्त चखने के बाद सिर्फ आदमखोर हो जाता है और दूसरे जानवरों का शिकार बंद कर देता है,वहीं स्थिति खून पीने वाले पिशाच की होती है।
       टाॅम विक्टर ये सब क्यों करता है। इसका उत्तर तो पहले भाग में ही पता चल जाता है फिर भी दो पंक्तियाँ प्रस्तुत है।
"जब वह मनुष्य योनि में था तो मेरा अच्छा मित्र था।"- विकी का गला भर आया,-"और मैं उसे इस योनि से मुक्त कराना चाहता हूँ।
तो क्या टाॅम विक्टर अपने दोस्त को पिशाच योनि से मुक्त करवा पाया?

       इस उपन्यास का कथानक दौलताबाद पर आधारित है सारा घटनाक्रम तृतीय पुरुष में चलता है। वहीं पहले उपन्यास का घटनाक्रम प्रथम पुरुष में था और घटनास्थल भी अलग था।
       उपन्यास में घटनाएं एक हद तक सनसनी वाली हैं। लेकिन मुझे उपन्यास की तुलना में कुछ कमतर है।- दीप के साथ जैसे रोशनी जलती है, उसी प्रकार पिशाच की आँखें खुली। वह सुंदर नक्काशी किये ताबूत में सोया था और रात का अन्धेरा फैलते ही जाग गया था। उसके शरीर ने अंगड़ाई ली और वह उठकर खड़ा हो गया। फिर उसने आकाश की तरफ मुँह उठाया। उसकी आँखें एक सुराख को देख रही थी, जिसमें से एक-दो सितारे झिलमिला नजर आ रहे थे।
उसके मुँह से विचित्र स्वर निकले। यह आवाज बड़ी डरावनी थी। आवाज के साथ दलदल से रूहें बाहर निकलने लगी। मृत रूहें तहखानें में मडराने लगी और बड़ी शान के साथ चलता पिशाच एक स्थान‌ पर जाकर खड़ा हुआ।


       उपन्यास में पढते वक्त कुछ प्रश्न थे जो पिछले उपन्यास में अधूरे रह गये थे। उम्मीद थी इस उपन्यास में उनका उत्तर नहीं मिला और तृतीय और अंतिम भाग में भी वे प्रश्न अधूरे ही रह गये।
      कुछ घटनाएं अनावश्यक विस्तार पैदा करती हैं जैसे चित्रगढी के शासकों का जीवन परिचय देना।
मेरे विचार से उपन्यास में बहुत ज्यादा संशोधन की आवश्यकता थी।

यह उपन्यास भी प्रथम भाग की तरह ही रोचक और डरावना है पर बहुत से वे प्रश्न जो प्रथम भाग में उठे थे इस भाग में उनका उत्तर नहीं मिलता। कहानी मूल कथ्य से अतिरिक्त कहीं और ही चलने लगती है, हालांकि कहानी में रोचकता यथावत है पर पाठक जिन प्रश्नों के उत्तर यहाँ ढूंढना चाहता है वे उसे नहीं मिलते। हां, कुछ नये प्रश्न अवश्य पैदा होते है लेकिन उनके उत्तर भी उपन्यास में कहीं नजर नहीं आते और उपन्यास अपने तृतीय भाग कि तरफ बढता है। पर याद रहे, द्वितीय भाग में पहले और दूसरे भाग की कहानी खत्म हो जाती है, ऐसा प्रतीत होता है। पर कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त....
        तो फिर उपन्यास के तृतीय भाग में कहानी किस ओर बढती है? यह तो खैर तृतीय भाग पढने पर ही पता चलेगा।
तो आओ चले तृतीय भाग 'खून बरसेगा' की ओर।

उपन्यास- पिशाच
लेखक- परशुराम शर्मा

प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स 
 प्रथम भाग मरघट का लिंक- मरघट- परशुराम शर्मा

Wednesday 1 April 2020

285. मरघट- परशुराम शर्मा

एक प्रेतात्मा की डरावनी कथा
मरघट- परशुराम शर्मा, हाॅरर उपन्यास

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में परशुराम शर्मा जी का नाम एक सितारे की तरह है। इनकी उपन्यास साहित्य को प्रदान अनमोल कृतिया हमेशा याद रहेगी। जहाँ परशुराम शर्मा जी ने सीरीज वाले उपन्यास लिखे, वहीं थ्रिलर और हाॅरर में भी प्रसिद्धि प्राप्त की।
       हाॅरर के क्षेत्र में 'अगिया बेताल' जैसे चर्चित कृति प्रदान करने वाले परशुराम शर्मा जी का एक और हाॅरर शृंखला का उपन्यास पढने को मिला। 'मरघट', 'पिशाच' और 'खून बरसेगा'। यह तीन भागों में लिखा गया एक बेहद चर्चित और डरावना उपन्यास है।
        उपन्यास की कहानी एक युवक पर आधारित है जो मृत्यु को प्राप्त हो चुका है लेकिन उसे स्वयं इस बात का पता नहीं है। - दुनिया का कौन सा डाक्टर मुझे मृत प्रमाणित कर सकता है? नही! मैं मरा नहीं, जीवित हूँ। ।
         कुछ परिस्थितियों के चलते वह युवक एक खतरनाक दुरात्मा के संपर्क में आता है और वहीं से वह नरभक्षी बन जाता है लेकिन उसे स्वयं भी इस बात का पता नहीं चलता।
खून अब मेरे मुँह में जा रहा था।
उफ! वह मृत शव था। यह मैं क्या कर रहा हूँ। मैं उसका खून पी रहा हूँ। वह छटपटा रहा है। फिर मैंने वही हथियार जिस्म के अन्य भागों पर भी लगाया। छाती से खून का फवारा सा निकला, जिसके कुछ छिंटे सामने की दीवार पर भी जा पड़े। फिर मेरा मुँह उस जगह पर टिक गया। दो- तीन वारों में ही मैंने उसका सारा गर्म रक्त निचोड़ लिया।

       राकेश अपनी प्रेयसी मालती के साथ मिश्र में अपने दोस्त के टाॅम विक्टर के पास जाना चाहता है। टाॅम विक्टर पारलौकिक शक्तियों का अच्छा ज्ञाता है। टाॅम विक्टर (विकी) और राकेश (रिकी) मिश्र के पिरामिडों से कुछ खोजना चाहते हैं।
उपन्यास में एक सेठ है जिसे लोग ब्लैक करना चाहते हैं।
साला सेठ पैसे देने से मना कर रहा था।"
"मैंने पहले ही कहा था कि उसे ब्लैकमेल करना आसान काम नहीं। कहीं वह उल्टा हमारा ही इन्तजाम‌ न करवा दे। पैसे में बड़ी ताकत होती है बाबा। अब तो चुपचाप किनारा कर लो।"
"चंदा किनारा नहीं करता बल्कि दूसरों को किनारे लगा देता है।"- चंदा हंसा।


एक डाक्टर जिसने एक युवक को मृत घोषित कर दिया पर वह युवक जीवित हो उठा।
"डाक्टर रविन घोष...उनका दावा था कि मरीज मर चुका है......अब आप ही बताईये; जो मरीज अब हंस बोल रहा है, उसे घोष ने मृत्य कैसे कह दिया....।"
     अपने समय का खतरनाक डाकू जो मरने के बाद भी स्त्री और धन के लिए लालायित रहता था। इसके लिए उसे जरूरत थी एक शरीर की।
"मेरा नाम शमशेर है। मैं‌ इसी दुनिया में जब जिंदा था तो भयंकर डाकू था। मैंने न जाने कितने लोगों को मौत के घाट उता दिया।....क्या तुझे मारकर तेरा छाया शरीर ले लू।"
      धीरे-धीरे उक्त सभी घटनाक्रम एक श्रेणी से जुड़ते चले जाते हैं और उपन्यास अपनी रफ्तार से आगे बढता है। जैसे-जैसे कहानी आगे बढती है वैसे-वैसे डरावनी घटनाएं सामने आती चली जाती हैं।
उपन्यास की कुछ घटनाएं वास्तव में बहुत डरावनी महसूस होती है।

       यह हाॅरर श्रेणी का बहुत अच्छा उपन्यास है।‌ अगर कुछ है तो यही की उपन्यास प्रथम पुरूष में‌ लिखा गया है, इसलिए सारी घटनाओं की जानकारी हमें नायक के माध्यम से ही पता चलती है।
इस उपन्यास के तीन पार्ट है। इसलिए तीनों पार्ट पढने से पहले कहानी के विषय में ज्यादा कुछ कहना उचित नहीं है।

उपन्यास- मरघट (प्रथम भाग)
लेखक- परशुराम शर्मा
प्रकाशन- सूरज पॉकेट बुक्स


1. मरघट
2. पिशाच- परशुराम शर्मा
3. खून बरसेगा

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...