Thursday 2 April 2020

286. पिशाच- परशुराम शर्मा

डार्ककिंग -कहानी खून‌ पीने वाले पिशाच की
पिशाच- परशुराम शर्मा, हाॅरर उपन्यास (द्वितीय भाग)

        हिन्दी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की एक धारा है 'हाॅरर' उपन्यासों की। इसी धारा में एक चर्चित लेखक हुए हैं परशुराम शर्मा। परशुराम शर्मा जी का तीन खण्डों में प्रकाशित हाॅरर उपन्यास के द्वितीय भाग के सम्बन्ध में मेरे विचार यहाँ प्रस्तुत है।
पिशाच उपन्यास परशुराम शर्मा जी के मरघट उपन्यास का द्वितीय भाग है और इस शृंखला का तृतीय और अंतिम भाग 'खून बरसेगा' शीर्षक से है।

"वह कौन था?"
"डार्ककिंग।"
"डार्ककिंग। यह नाम मैंने पहले कभी नहीं सुना।"
"इस नाम को यू समझो वह पिशाचों का बादशाह है।"

      यह कहानी है डार्ककिंग की अर्थात् एक पिशाच की। अगर आपने मरघट उपन्यास पढा है तो आपको पता होगा की कौन, कैसे डार्ककिंग बना।
      इस भाग में डार्ककिंग का सामना होता है टाॅम विक्टर से। और यह उपन्यास डार्ककिंग और टाॅम विक्टर के परस्पर संघर्ष पर आधारित है।
        जब टाॅम विक्टर(विकी) को पता चलता है की डार्ककिंग दौलताबाद में है तो वह भी उस तरफ चल देता है।- विकी अकेला दौलताबाद के लिए रवाना हो गया। उसे विश्वास था कि बहुत जल्दी उसकी मुलाकात डार्ककिंग से होने वाली है। एक पिशाच से निपटने के लिए विकी पूरी तरह से तैयार होकर गया था।
विकी जा पहुंचता है दौलताबाद - दौलताबाद कोई बड़ा शहर नहीं था। साधारण सा मध्यम दर्जे का कस्बा था। इसी दौलताबाद में एक पुरानी हवेली है- चित्रगढी। इस उपन्यास का आगे का घटनाक्रम इसी जगह पर आधारित है।

      डार्ककिंग दस गर्भवती महिलाओं का खून पीना चाहता है। दस गर्भवती महिलाओं का खून पीने के पश्चात उसमें असीम ताकत आ जायेगी। टाॅम विक्टर उसके राह में खड़ा है।
उपन्यास में टाॅम विक्टर का भी आगमन एक रहस्यमयी घटना से होता है।- टाॅम विक्टर उस स्त्री के शव को छोड़कर उठ खड़ा हुआ। वह सचमुच मर चुकी थी। एक निर्दोष मासूम स्त्री, जिसे कि उसने माध्यम बनाया था, उसकी ही गलतियों से न सिर्फ मर चुकी थी, बल्कि पिशाच योनि में जा चुकी थी। 


      डार्ककिंग एक खतरनाक पिशाच है जिसकी प्यास खून से ही बुझती है। - जिस प्रकार एक शेर या चीता इंसानी रक्त चखने के बाद सिर्फ आदमखोर हो जाता है और दूसरे जानवरों का शिकार बंद कर देता है,वहीं स्थिति खून पीने वाले पिशाच की होती है।
       टाॅम विक्टर ये सब क्यों करता है। इसका उत्तर तो पहले भाग में ही पता चल जाता है फिर भी दो पंक्तियाँ प्रस्तुत है।
"जब वह मनुष्य योनि में था तो मेरा अच्छा मित्र था।"- विकी का गला भर आया,-"और मैं उसे इस योनि से मुक्त कराना चाहता हूँ।
तो क्या टाॅम विक्टर अपने दोस्त को पिशाच योनि से मुक्त करवा पाया?

       इस उपन्यास का कथानक दौलताबाद पर आधारित है सारा घटनाक्रम तृतीय पुरुष में चलता है। वहीं पहले उपन्यास का घटनाक्रम प्रथम पुरुष में था और घटनास्थल भी अलग था।
       उपन्यास में घटनाएं एक हद तक सनसनी वाली हैं। लेकिन मुझे उपन्यास की तुलना में कुछ कमतर है।- दीप के साथ जैसे रोशनी जलती है, उसी प्रकार पिशाच की आँखें खुली। वह सुंदर नक्काशी किये ताबूत में सोया था और रात का अन्धेरा फैलते ही जाग गया था। उसके शरीर ने अंगड़ाई ली और वह उठकर खड़ा हो गया। फिर उसने आकाश की तरफ मुँह उठाया। उसकी आँखें एक सुराख को देख रही थी, जिसमें से एक-दो सितारे झिलमिला नजर आ रहे थे।
उसके मुँह से विचित्र स्वर निकले। यह आवाज बड़ी डरावनी थी। आवाज के साथ दलदल से रूहें बाहर निकलने लगी। मृत रूहें तहखानें में मडराने लगी और बड़ी शान के साथ चलता पिशाच एक स्थान‌ पर जाकर खड़ा हुआ।


       उपन्यास में पढते वक्त कुछ प्रश्न थे जो पिछले उपन्यास में अधूरे रह गये थे। उम्मीद थी इस उपन्यास में उनका उत्तर नहीं मिला और तृतीय और अंतिम भाग में भी वे प्रश्न अधूरे ही रह गये।
      कुछ घटनाएं अनावश्यक विस्तार पैदा करती हैं जैसे चित्रगढी के शासकों का जीवन परिचय देना।
मेरे विचार से उपन्यास में बहुत ज्यादा संशोधन की आवश्यकता थी।

यह उपन्यास भी प्रथम भाग की तरह ही रोचक और डरावना है पर बहुत से वे प्रश्न जो प्रथम भाग में उठे थे इस भाग में उनका उत्तर नहीं मिलता। कहानी मूल कथ्य से अतिरिक्त कहीं और ही चलने लगती है, हालांकि कहानी में रोचकता यथावत है पर पाठक जिन प्रश्नों के उत्तर यहाँ ढूंढना चाहता है वे उसे नहीं मिलते। हां, कुछ नये प्रश्न अवश्य पैदा होते है लेकिन उनके उत्तर भी उपन्यास में कहीं नजर नहीं आते और उपन्यास अपने तृतीय भाग कि तरफ बढता है। पर याद रहे, द्वितीय भाग में पहले और दूसरे भाग की कहानी खत्म हो जाती है, ऐसा प्रतीत होता है। पर कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त....
        तो फिर उपन्यास के तृतीय भाग में कहानी किस ओर बढती है? यह तो खैर तृतीय भाग पढने पर ही पता चलेगा।
तो आओ चले तृतीय भाग 'खून बरसेगा' की ओर।

उपन्यास- पिशाच
लेखक- परशुराम शर्मा

प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स 
 प्रथम भाग मरघट का लिंक- मरघट- परशुराम शर्मा

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