Thursday 9 April 2020

289. कंकालों के बीच- वेदप्रकाश कांबोज

बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष की कहानी
कंकालों के बीच- वेदप्रकाश कांबोज, उपन्यास


        लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में ऐसे बहुत कम उपन्यास लिखे गये हैं जो वास्तविक घटनाओं ने बहुत नजदीक हों। प्रस्तुत उपन्यास की घटनाएं और पात्र चाहे पूर्णतः काल्पनिक हैं लेकिन इस कहानी की जो पृष्ठभूमि है वह पूर्णतः सत्य है। लेखक महोदय ने जिस तरह से इन खूनी घटनाओं का वर्णन किया है वह रोगंटे खड़े करने में सक्षम है।
उपन्यास पढते वक्त बाग्लादेश के लोगों के साथ एक अपरिचित सी सहानुभूति जुड़ जाती है। उन अत्याचारों‌ को पढकर मन उदास हो उठता है‌।
        सत्ता का स्थायित्व बनाये रखने के लिए आदमी हैवान हो जाता है, उसके लिए आदमी के जीवन का कोई मूल्य नहीं रह जाता।
          उपन्यास का आरम्भ होता है अंतर्राष्ट्रीय अफराधी अलफांसे से।- अलफांसे का जीवन बहती नदी के समान था, तब तक बहते रहना जब तक सागर में विलीन होकर उसका अस्तित्व समाप्त न हो जाये।
अलफांसे के पास वाल्टर स्काट नाम का आदमी पहुंचता है और कहता है।
"वाल्टर स्काट आपकी सेवा में हाजिर है....।"
"मगर मैं....।"
"मिलने के लिए मना कर चुका था।"- अलफांसे की बात को स्वयं वाल्टर स्काट ने पूरा करते हुए कहा,-"लेकिन वाल्टर स्काट जिस आदमी से मिलना चाहता है, उससे मिल ही लेता है।"
......
"इस पैकेट में एक पुस्तक है, उसे पढ लीजिए।"
वाल्टर के इस प्रस्ताव पर अलफांसे विस्मित रह गया। उसने एक नजर वाल्टर की ओर देखा और फिर बोला,-"क्यों पढ लूं?"
उत्तर में वाल्टर ने अपनी जेब से सौ-सौ के डालर के नये नोटों की आधी गड्डी देते हुए कहा,-"क्योंकि इस काम के लिए मैं आपको पांच हजार डालर दे रहा हूँ। "
और भी विस्मय हुआ अलफांसे। एक पुस्तक पढने के पांच हजार डालर, कहीं यह आदमी पागल तो नहीं।
          वहीं दूसरी तरफ विजय और अशरफ को बांग्लादेश के सीक्रेट सर्विस कार्यालय में भी इसी प्रकार की किताब का सामना करना पड़ा।
         "......अब मेरा अनुरोध है कि इससे पहले कि आपको यहाँ आने का कारण बताया जाये,...आप इस पुस्तक को पढ लें। पुस्तक के दोनों उपलब्ध संस्करण आपके पास हैं। जिस भाषा में भी आप चाहे पढ लें।"
"क्या यह पुस्तक पढवाने के लिए ही हमें बुलाया गया है?"- विजय ने एक पुस्तक उठाते हुए कहा।
आखिर इस पुस्तक में ऐसा क्या था?, जिसके लिए अलफांसे और विजय जैसे लोगों की सिर्फ पुस्तक पढने के लिए मांग हो उठी।

कंकालों के बीच- वेदप्रकाश कांबोज

आखिर इस पुस्तक का रहस्य क्या है?
इसी रहस्य का पता लगाने दोनों निकल पड़ते हैं।
         उपन्यास बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित है जहाँ पाकिस्तान समर्थन बाँग्ला भाषियों पर अमानवीय अत्याचार करते हैं। उनमें से एक है सेना प्रमुख शहबाज।
शहबाज,
नाम किसी आदमी का ही लगता है, लेकिन वह आदमी नहीं शैतान लगता था। उसे शैतान कहना भी शायस उपयुक्त नहीं था। क्योंकि उसके कारनामों के आगे शैतान भी लज्जा से सिर झुका लेता।

         इन अमानवीय अत्याचारों का लेखक महोदय ने जो वर्णन किया है वह इतना जीवंत है की उपन्यास पढते पढते पाठक को जहाँ अत्याचारियों से नफरत हो जाती है वहीं शोषित वर्ग से सहानुभूति पैदा हो जाती है।
एक-एक घटना, संवाद और वातावरण का इतनी बारीकी से वर्णन किया गया है की पाठक स्वयं को उसी परिवेश में उपस्थित पाता है।
        एक पुस्तक का रहस्य और बाग्लादेश के दुश्मनों से टकराने की यह कहानी रोमांचक से परिपूर्ण है। कहानी का प्रवाह पाठक को निरंतर पढने के विवश करता नजर आता है।

        बाग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम पर लिखा गया यहा उपन्यास पाकिस्तान के अत्याचारों का जीवंत वर्णन करता है। लोकप्रिय उपन्यास साहित्य का एक अविस्मरणीय उपन्यास है।
उपन्यास- कंकालों के बीच
लेखक- वेदप्रकाश कांबोज
प्रकाशक-
पृष्ठ

1 comment:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। मिला तो जरूर पढूँगा।

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