Thursday 23 April 2020

300. कीकर और कमेड़ी- दीक्षा चौधरी

मार्मिक कहानियों का संग्रह
कीकर और कमेड़ी- दीक्षा चौधरी

    किंडल पर कहानी संग्रह सिखाई दिया 'कीकर और कमेड़ी' मुझे शीर्षक बहुत रोचक लगा और विशेष कर जब शब्द और कथानक राजस्थान की पृष्ठभूमि से संबंधित हो तो मेरी पढने की इच्छा बलवती हो जाती है।
      अगर यही शीर्षक 'फाख्ता और बबूल' होता या कुुछ और होता तो शायद मैं इस किताब की तरफ देखता तक न। जब किताब को देखा तो इसे पढने का द्वितीय कारण भी उपस्थित हो गया। वह कारण था लेखिका का मेरे गृह जिले श्री गंगानगर से होना। वह भी श्रीगंगानगर और रायसिंहनगर के मध्य आने वाले एक गांव तताररसर का होना। वह गांव जिसके सड़क दोनों तरफ से घूमती हुयी उसे अपने आगोश में समाने का अर्द्ध जतन करती सी प्रतीत होती है‌

  
चलो अब चर्चा करते है इस कहानी संग्रह की। इस संग्रह में कुल सात छोटी बड़ी कहानियाँ है जो विभिन्न रंगों को परिभाषित करती नजर आती हैं।
       इस संग्रह की प्रथम कहानी है 'मैं एक लेखक हूँ'। लेखक जो पात्रों का सृजनकर्ता होता है, लेखक संवदेनाओं और मानवीय भावों का वाहक होता है। क्या सच में लेखक ऐसे ही होते हैं। लेखक होना और संवेदनशील होना जब दो अलग-अलग पहलू बन जाये तब 'मैं एक लेखक हूँ' जैसे कहानी लिखी जाती है जो तथाकथित लेखकों को बेनकाब करती है।
ऐसी ही एक और कहानी है 'मैं जैकी हूँ'। यह कहानी भी दोहरे व्यक्तित्व का खेल खेलने वाले लोगों पर लिखी गयी एक सार्थक रचना है।
        "मुझे लगता है औरत कायनात की सबसे नायाब रचना है। मैं उसकी इस रचना के लिये हमेशा से शुक्रगुज़ार रहा हूँ और इसकी बहुत इज्ज़त भी करता हूँ… प्यार भी!"
ज्यादातर लोग शब्दो में ही औरत की इज्जत करते हैं और वास्तविक कुछ और होती है।

      कहानी संग्रह में दो बाते विशेष उभर कर सामने आती हैं। एक तो राजस्थान का वर्णन और दूसरा यौन संबंधों का चित्रण।
      अधिकांश पात्र कुछ यौन संबंधों की अधूरी प्यास या प्यार के चलते एक अजीब सी स्थिति के शिकार हैं‌। ऐसा लगता है उनके जीवन में जैसे रेगिस्तान उतर आया हो।
प्रेम की चाहत और एक समाज के डर से घिरी 'सीगल' कहानी की सलोनी भी यही कहती है -'जीवन न पहाड़ों सा है, न समन्दर सा। जीवन रेगिस्तान जैसा है; दोपहरों में तपते, आँधियों में बर्बाद होते रेगिस्तान जैसा।'
       राजस्थान निवासी होने के कारण लेखिका महोदया ने राजस्थान धरा को शब्दों के माध्यम से जिस तरह से व्यक्त किया है वह प्रशंसनीय है। एक और उदाहरण देखें कैसे राजस्थान की तेज धूप का वर्णन किया है- मई की दोपहर में रेगिस्तान भी किसी गुस्साए किशोर जैसा ही लगता है, मानो अपनी छुअन से ही दुनिया भस्म कर देना चाहता हो।
          वर्णन सिर्फ भौगोलिकता का ही नहीं वरण रिश्तों में आयी दरारों का भी है। मां-बाप अपने निजी कारणों से अलग हो जाते हैं और इसी स्थिति में बच्चे पर जो प्रभाव पड़ता है उसे कोई नहीं समझता। - माँ-बाप के बीच की खाई बच्चों का आसमान बन जाती है। उस आसमान में कभी वो आज़ाद महसूस करते हैं, कभी बेसहारा, तो कभी ख़ुद का एकदम शून्य होना। 

     'कीकर और कमेड़ी' इस संग्रह की वह कहानी है जिस पर इस कहानी संग्रह का नाम रखा गया। इस इंसान को जिसी न किसी का वह चाहे माता- पिता को पुत्र का हो, प्रेमी को प्रेमिका हो या फिर एक कीकर को कमेड़ी का। इस इंतजार और उसकी तड़प को वही महसूस कर सकता है।
इसी इंतजार जो कभी कीकर के नीचे बैठ कर बाबा करते थे,और इसी इंतजार को अब कथा नायक भुगत रहा है।
       क्या गया हुआ वापस लौट कर भी आता है। यह इंतजार बस इंतजार ही रहता है या कभी सफल भी होता है। इंतजार को व्यक्त करती एक और कहानी है 'लौटना एक मिथ है'।
         इस संग्रह की अंतिम कहानी है 'टिश्यू पेपर' जो मुझे बहुत हल्की सी कहानी लगी। प्रेम और फिर प्रेम की असफलता में डूबे व्यक्ति की कहानी है जो सिर्फ प्रेम ही चरित्र से भी डूबता नजर आता है।
      'ये भी जानती हूँ कि प्रेम में देह ज़रूरी नहीं' यह कथन है कहानी 'टिश्यू पेपर' हालांकि कहानियों में कहीं न कहीं प्रेम में देह नजर अवश्य आती है।
      इस संग्रह की सभी कहानियाँ मार्मिक है। मन को छू लेने वाली इन कगानियोतके लिए लेखिका महोदय को धन्यवाद।

        लेखिका महदोय की भाषा का पर अच्छी पकड़ है। कहानियों का जो वातावरण दर्शाया है जो सुक्तियां दी है वे अविस्मरणीय है।
उदाहरण देखें-
- बेशक़ हम सब अपने अपने जीवन के नायक ही होते हैं, बस महसूस होने की प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
- सुख सा विश्वासघाती और कोई नहीं।
- उम्र तो कैसे भी काटी जा सकती है, लेकिन असल में जीवन जीने की यही एकमात्र शर्त है- अपने प्रति, अपनी इच्छाओं के प्रति वफ़ादार होना।
- जिसे टूटकर चाहो और वो न मिल सके तो इंसान पूरी उम्र हर किसी में उस एक को ही ढूँढता रहता है। 

कहानी संग्रह- कीकर और कमेड़ी
लेखिका- दीक्षा चौधरी
प्रकाशन- ebook on kindle

किंडल लिंक-  कीकर और कमेड़ी

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