Thursday 26 October 2017

75. गोली तेरे नाम की - नाना पण्डित

तीन माह और तीस हत्याएं
गोली तेरे नाम की, थ्रिलर उपन्यास, मध्यम स्तरीय।
केशव पण्डित को लेकर जितने हिंदी लोकप्रिय उपन्यास जगत में उपन्यास लिखे गये हैं उतने शायद ही किसी और पात्र को लेकर लिखे गयें हों।
लेकिन अफसोसजनक बात यह है की इस पात्र को लेकर अच्छे और सदाबहार उपन्यास किसी भी लेखक ने नहीं लिखे।
केशव पण्डित उपन्यास जगत में वह बहती गंगा थी जिसमें सभी प्रकाशकों ने अपने हाथ धोये।
   जुर्म के बाद जुर्म....हत्या के बाद हत्या.....।
आतंक की कोख से सर उठाता नया जुर्म हर बार....खून की स्याही से लिखी जाने वाली एक ऐसी पेचीदा अनसुलझी दास्तान......जिसका आदि था अंत.....।

  उपर्युक्त पंक्तियाँ उपन्यास के प्रथम कवर पृष्ठ के अंदर दी गयी है। हालांकि यह कोई अनसुलझी दास्तान नहीं है और इसका अंत भी है। बस प्रकाशन ने ऐसा ही लिख दिया।
       रायगढ़ रियासत में तीन महिनों में तीस युवकों की हत्या कर दी गयी। सभी नौजवान लगभग बीस साल के हैं। उनकी लाशें नग्न अवस्था में पायी जाती हैं। उनके साथ बेरहमी से अत्याचार किया जाता है और उनका अंग विशेष काट दिया जाता है। 

74. मौत का सिलसिला- मेजर बलवंत

मौत का सिलसिला, जासूसी उपन्यास, रोचक, पठनीय।

"नहीं, नहीं सरकार, मैं आपको वास्तविकता बता रहा था।"- वह कह उठा, " मैं आपको आतंकित नहीं करना चाहता था।"
"क्या तुम्हें झूठ बोलने में मजा आता है?"- मैं उसकी चकरा देने वाली कहानी से भौचक्का रह गया था।
35 वर्ष पूर्व जिसे फांसी दी गयी वही व्यक्ति जब भूतपूर्व न्यायाधीश के सामने आ बैठा तो भौचक्का रह जाने के सिवा और कोई चारा भी न था।
    आप भी मेजर बलवंत के इस जासूसी उपन्यास की अनोखी कहानी को  पढकर भौचक्के रह जायेंगे।
   रहस्य, रोमांच, हिंसा, हत्या और षड्यंत्रों के जाल से परिपूर्ण रोमांचक कहानी।
          "सरकार, यह वास्तविकता है। कि मेरे पिता ने शिंदे का कत्ल किया था और यह भी वास्तविकता है कि मैंने भी शिंदे का कत्ल किया है। लेकिन सरकार यह भी वास्तविकता है, इसमें से कोई भी कातिल नहीं है, न मेरा बाप हत्यारा था, न मैं खूनी हूँ।"

    हाई कार्ट के पूर्व जज अमोलक सोलंकी, जो की वर्तमान में जासूसी  के धंधे में हैं।
उनके पास एक विचित्र व संयोग (दुर्योग) भरा एक अनोखा केस आता है।
एक हत्या का केस। जिस व्यक्ति पर हत्या करने का आरोप है वही जासूस महोदय अमोलक सोलंकी के पास आता है।
" सरकार, आप मेरा केस ले लें- आपसे ही उम्मीद है।- वह गिङगिङाने लगा।
"मैं ही क्यों लू तुम्हारा केस? तुम्हें मालूम था कि मैंने तुम्हारे पिता को फांसी पर चढाया था।'- अमोलक ने कहा।
" आप जानना चाहते हैं सरकार, कि मैं अपने पिता के खिलाफ फैसला देने वाले के पास क्यों आया हूँ?"- उसने विचित्र स्वर में कहा।
"हां, मैं जानना चाहता हूँ।"
"सरकार हमारे खानदान का एक रिवाज है। जिस स्थान पर बाप की चिता जलती है उसी स्थान पर बेटे की चिता जलाई जाती है।....मैं इस परम्परा को थोङा आगे बढाना चाहता हूँ। जिस व्यक्ति की नासमझी से मेरे पिता को मृत्यु दण्ड मिला, मैं भी उसी व्यक्ति की ना-समझी का शिकार होना चाहता हूँ।"- वह जोर से हँसा।  (पृष्ठ-14,15)
 
- कौन था ये विचित्र व्यक्ति?
- क्यों मरना चाहता था, वह भी अमोलक के सिर इल्जाम लगाकर?
- अनमोल ने किस निर्दोष व्यक्ति को दण्ड दिया था?
- कौन था शिंदे?
- किसने कत्ल किया शिंदे का?
  ऐसे एक नहीं अनेक रोचक प्रश्नों के उत्तर मौत का सिलसिला उपन्यास में ही दर्ज हैं।

   मेजर बलवंत द्वारा लिखित उपन्यास मौत का सिलसिला वास्तव में रोमांच और हैरत होने का एक ऐसा सिलसिला है जो कभी खत्म नहीं होता। समापन पृष्ठ तक भरपूर आनंद देने वाला है ये सिलसिला।

क्लाइमैक्स-
उपन्यास का समापन भी काफी रोचक है। लेकिन उपन्यास नायक अमोलक सोलंकी द्वारा जिस चीज को आधार या सबूत बनाकर कातिल की खोज की जाती है वह मुझे उचित नहीं लगी।
  कातिल कत्ल करते वक्त एक सबूत छोङ जाता है। अब पता नहीं कातिल ऐसे सबूत को साथ लेकर क्यों घूम रहा था।
  फिर भी इससे उपन्यास की रोचकता पर कोई फर्क नहीं पङता।
              मेजर बलवंत द्वारा लिखित उपन्यास मौत का सिलसिला एक बहुत ही रोचक व पठनीय उपन्यास है।
  
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उपन्यास- मौत का सिलसिला (जासूसी उपन्यास)
लेखक- मेजर बलवंत
प्रकाशन वर्ष- 1983
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-
मूल्य- 06₹ (तात्कालिक (

73. वह भी कोई देस है महराज - अनिल यादव

पूर्वोत्तर भारत के जीवन की दहशत भरी यात्रा।।
  
   पेशे    से पत्रकार अनिल यादव का प्रस्तुत यात्रा वृतांत बहुत ही रोचक व रोमांच से भरा है।  अपने मित्र के साथ यात्रा पर निकले अनिल यादव को भी शायद पता हो की उनके जीवन में यह यात्रा वृतांत स्वयं उनके साथ-साथ पाठकवर्ग के लिए भी यादगार बन जायेगा।
इस यात्रा वृतांत पर कुछ लिखना बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि जिस यात्रा का अनिल यादव ने दस वर्ष में पूर्ण कर उसे एक पुस्तक का रूप प्रदान किया है उस पुस्तक को चंद शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल का काम है।
     मुझॆ नहीं लगात की में इस पोस्ट में इस पुस्तक के साथ न्याय कर पाऊंगा लेकिन नये पाठकों के लिए इतना ही कह सकता हूँ की एक बार आप इस यात्रा वृतांत का अवश्य पढें ताकी आप इस सत्यता से परिचित हो सकें।
  यात्रा वृतांत शुरु होता है दिल्ली से। अनिल यादव लिखते हैं।
  पुरानी दिल्ली के भयानक गंदगी, बदबू और भीङ से भरे प्लेटफार्म नंबर नौ पर खङी मटमैली ब्रह्मपुत्र मेल को देखकर एक बारगी लगा कि यह ट्रेन एक जमाने से इसी तरह खङी है। अब कभी नहीं चलेगी। (29.11.2000)
   
यह यात्रा वृतांत भारत के उन सात राज्यों का चित्रण करता है जो अपने सौन्दर्य के कारण जितने विख्यात हैं, उतने ही दहशत के लिए कुख्यात है।
   

माजुली दुनिया का सबसे बङा नदी द्वीप है और असम का धार्मिक तंत्रिका केन्द्र है। (पृष्ठ-39)
  ज्यादातर असमिया हिंदू गांव किसी न किसी मठ से संबद्ध हैं और वहाँ के सामाजिक जीवन में नामघर की केन्द्रीय भूमिका है। (पृष्ठ -41)

नागालैण्ड का वर्णन लेखक इन पंक्तियों से करता है " पहली नजर में नागालैंड का पहला कस्बा दीमापुर ...टूटी सङकों...फटेहाल लोगों...ट्रांस्पोर्ट कम्पनी का बङा गोदाम लगता है।"-(पृष्ठ-49)
,- नागालैंड की अर्थव्यवस्था केन्द्र सरदार से मिलने वाले नब्बे प्रतिशत अनुदान से चलती है। (पृष्ठ-54)
- ....आँखें ...नये देश की नयी संस्कृति का साक्षात्कार कर रही थी, जहां वेलेन्टाइन डे पर रेस्टोरेंट ' डाॅग मीट स्पेशल' की तख्ती लटका कर प्रेमी जोङों का स्वागत करते हैं।(पृष्ठ-55)

उग्रवाद कि छाया तले अपराध के छोटे-छोटे नेटवर्क पूरे पूर्वोत्तर में फैले हैं।( पृष्ठ-53)
   नागालैंड को पूर्वोत्तर के उग्रवाद की माँ का दर्जा मिला है।(पृष्ठ-70)
- नागाओं की मानसिकता पर ढेरों अध्ययन हुए हैं जिनका एक ही निष्कर्ष है, संवेदनहीनता और पागलपन। (पृष्ठ- 73)

मेघालय चैप्टर पृष्ठ 74 से आरम्भ ।
....रोडवेज की बस भोर के तीन बजकर अडतालीस मिनट पर शिलांग पहुंची। (पृष्ठ-74)
शिलांग नवधनिकों के बच्चों की शिक्षा का केन्द्र है लेकिन यहाँ बीच में स्कूल छोङ देने वालद आदिवासी बच्चों की तादाद बढी है।(पृष्ठ-75)
मेघालय में बेरोजगारी, शराबखोरी, ड्रग्स और एडस बङी सामाजिक समस्या बन कर उभर रही है।(पृष्ठ-75)

- मेघालय का प्रथम उग्रवादी संगठन भी वसूली के लिए ही बना था।(पृष्ठ-85)

"अनिल यादव की यात्रा कृति 'वह भी कोई देश है महराज' को पढते हुए और उसके जिक्र से मेरा रक्तचाप बदल जाता है।.....पूर्वोत्तर देश का उपेक्षित और अर्धज्ञात हिस्सा है, उसको महज सौन्दर्य के लपेटे से देखना अधूरी बात है। अनिल यादव ने कंटकाकीर्ण मार्गों से गुजरते हुए सूचना और ज्ञान, रोमांच और वृतांत, कहानी और पत्रकारिता शैली में इस अनूठे ट्रैवलाॅग की रचना की है।"- ज्ञानरंजन
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पुस्तक- वह भी कोई देस है महराज
लेखक- अनिल यादव
विधा- यात्रा वृतांत
प्रकाशन- अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद- उत्तर प्रदेश
www.antikaprakashan.com
ISBN 978-93-85013-79-9
संस्करण- 2017
प्रथम संस्करण- 2012
पृष्ठ-
मूल्य-150₹

Sunday 22 October 2017

72. खूनी वारदात- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक

अपने पति की हत्या के आरोप में जेल में बंद एक स्त्री की कहानी।
खूनी वारदात, जासूसी उपन्यास, मध्यम स्तरीय।

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा का ' तीन गायब' के  बाद 'खूनी वारदात' यह द्वितीय उपन्यास है जो मैंने पढा।

  जेल से भारत के राष्ट्रपति के नाम एक पत्र पहुंचा।
  पत्र भेजने वाली का नाम यशोधरा था और उसे पुलिस ने अपने पति प्रेमनाथ की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया था।
   पत्र में राष्ट्रपति को पूज्य पिताजी के नाम से संबोधित किया गया।
पत्र में अपना परिचय देते हुए उसने लिखा था- मेरा नाम यशोधरा है और मैं मृत प्रेमनाथ की विधवा हूँ।
    आप विश्वास कीजिए मैं नहीं जानती की मेरे परि का खून किसने किया, क्यों किया और किस समय किया।
मैंने आपको पिताजी कहा है और कोई भी अच्छी बेटी पिता से झूठ नहीं बोला करती। (पृष्ठ -5, कहानी का प्रथम दृश्य)
जब यह पत्र राष्ट्रपति के माध्यम से खुफिया विभाग में पहुंचा तो वहाँ से जगन, जगत, पचिया और बंदूक सिंह को इस मामले की सत्यता पता लगाने के लिए नियुक्त किया गया।
    जब चारों इस मामले की खोजबीन में लगे तो एक यशोधरा की हत्या का प्रयास किया गया और एक बार जगन पर कातिलाना हमला हुआ।
   पर अतंतः चारों अपने अभियान में सफल रहे।
- प्रेमनाथ का खून किसने किया?
- यशोधरा को कातिल किसने ठहराया?
- बंद कमरे में प्रेमनाथ का कत्ल किसने किया?
- यधोधरा पर हमला किसने व क्यों करना चाहा?
- जासूस पार्टी पर हमला किसने किया?
  ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्नों के उत्तर तो जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा के उपन्यास खूनी वारदात को पढकर ही मिल सकते हैं।
          उपन्यास में चार जासूस मुख्य हैं और उनके सहायक भी हैं। चारों पात्रों के साथ लेखक इंसाफ नहीं कर पाया और इस चक्कर में कोई भी पात्र अपनी पहचान नहीं छोङ पाया।
    एक पात्र पचिया( जिसका वास्तविक नाम नहीं नहीं दिया गया) है जो थोङा-बहुत उपन्यास में प्रभाव स्थापित कर पाया है।
           प्रस्तुत उपन्यास एक मध्यम स्तर का उपन्यास है जिसे अनावश्यक रूप से विस्तार दिया गया है। और विस्तार भी ऐसा जिसका कोई महत्व ही नहीं है। चारों जासूसों की वार्तालाप को काफी लंबा खींचा गया है इसके अलावा उर्वशी क्लब, चित्रलेखा- मोहिनी से बातचीत भी बार-बार व अनावश्यक रूप से दिखा कर उपन्यास को विस्तार दे दिया गया है।
      उपन्यास में एक बंदूक सिंह के अलावा अन्य कोई भी जासूस ऐसा नहीं लगता की वह कातिल की तलाश कर रहा है। पचिया एक जगह बस इतना पता लगा पाता है की कातिल किस रास्ते से कमरे में घुसा। बाकी समय तो सभी जासूसी दल अपनी व्यर्थ की वार्तालाप में समय बिता देता है।
  और कातिल में उन्हें अनायास ही हाथ लग जाता है। स्वयं पचिया भी यही बात कहता है- " यह मात्र संयोग ही है की कातिल अनायास ही इतनी जल्दी मिल गया।"(पृष्ठ 233)

      शराब और शराबी के विषय में स्मरणीय बात कही है जो मुझे अच्छी लगी, आप भी पढ लीजिएगा-
  " एकदम गलत बात है। शराब पीने से इंसान अपनी चिंता भूल पाता है और अपने दुख भूल पाता है। इंसान शराब पीता है मन के आनंद के लिए और उसे कुछ आनंद मिलता भी है। इसके बाद वह सोचता है कि अगर और पिएगा  तो और आनंद मिलेगा। परंतु वह यह भूल जाता है कि अधिक शराब पीने से या तो वह बेहोश हो जाएगा या उसके मन की कामनाएं और भी भङक उठेंगी।"- (137)
             यह एक मध्यम स्तरीय जासूसी उपन्यास है जिसे टाइमपास के लिए एक बार पढा जा सकता है लेकिन उपन्यास में कोई याद रखने योग्य कोई विशेष बात नहीं है।
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उपन्यास- खूनी वारदात
लेखक- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- शिवा पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 237
मूल्य- 15₹

Thursday 19 October 2017

71.कृष्ण बना कंस- अनिल सलूजा

एक बहन के हत्यारे की कथा, जिस पर बहन से बलात्कार करने का आरोप था।
कृष्ण बना कंस, थ्रिलर उपन्यास, एक्शन,  पठनीय।

    "औरत के आंसू किस कदर पत्थर को भी मोम में बदल देते हैं- चाहे वे आंसू मगरमच्छी ही क्यों हों। आंसूओं के रूप में औरत के पास एक ऐसा खतरनाक हथियार है, जो किसकी जिंदगी को तबाह कर दे, कहा नहीं जा सकता।
          ऐसे ही मगरमच्छी आंसूओं का सहारा लेकर, एक औरत ने रीमा राठौर को इस कदर फंसाया कि वह बेगुनाह इंसान राक्षस बनने को मजबूर हो गया।" (लेखक की कलम से)
          

रीमा राठौर से हुयी एक छोटी सी गलती ने, उसकी जिंदगी को उस मोङ पर ला खङा किया, जहाँ उसे हर तरफ खून ही खून नजर आने लगा।

उस पर बहन से बलात्कार का आरोप था, और उसने बहन की हत्या कर दी। अपने जीजा को भी मार दिया और अब उसे तलाश थी उस वकील रीमा राठौर की जिसके कारण उसे सजा हुयी।
       रीमा राठौर की तलाश में निकले किशन ने अपनी बेगुनाही साबित करने की जगह लाशों के ढेर लगा दिये और वह भी बेवजह।
   अनिल सलूजा द्वारा लिखा गया रीमा राठौर सीरिज एक ऐसे युवक की कहानी है जिस पर अपनी बहन से बलात्कार का आरोप था, उसे सजा हुयी। वह जेल से भाग निकला और अपनी बहन व जीजा की हत्या कर दी।
      उपन्यास में  प्रतिशोध की कहानी है। उपन्यास का प्रमुख पात्र किशन उपन्यास के आरम्भ में ही जेल से फरार होकर अपना बदला ले लेता है। तब पाठक सोचता है की आगे क्या होगा अब आगे होने को कुछ भी नहीं है। जो होना था उपन्यास के आरम्भिक बीस पृष्ठ में हो जाता है बाकी दो सौ पृष्ठ लेखक ने अनावश्यक रूप से ही बढा दिये।
      अब किशन उन लोगों से बदला लेने लग जाता है जो उसके जीजा के बुरे कामों के साथी थे। हालांकि किशन को जेल करवाने में उनका किसी प्रकार का कोई योगदान नहीं है, पर लेखक महोदय ने बेतुकी कहानी पाठक के आगे परोस दी।
        
  पूरे उपन्यास में मात्र एक दो संवाद हैं जो पठनीय है बाकी तो सामान्य कथन मात्र हैं। हालांकि थ्रिलर उपन्यासों में अच्छे संवादों का इतना महत्व नहीं होता लेकिन फिर भी अच्छे संवाद पाठक को सदा याद रहते हैं।
" यह रिश्ते नाते शरीफों के तबके में पहचाने जाते हैं। हमारे तबके में ऐसे किसी भी रिश्ते की अहमियत नहीं होती।"-(पृष्ठ 50)

- " इस दुनिया का सबसे खतरनाक गुस्सा, शरीफ आदमी का ही गिना जाता है। जब वह जुनून में आता है तो पूरी दुनिया को खत्म करने से भी पीछे नहीं हटता।"-(पृष्ठ 103)

उपन्यास में गलतियां:-
उपन्यास में कुछ गलतियां तो ऐसी हैं जिन्हें मेरे विचार से लेखक उपन्यास को दोबारा पढता तो दूर कर सकता था।

" कानून में पहले प्रावधान था कि अगर किसी औरत की इज्जत लुटती थी, तो उसे साबित करना पङता था कि उसकी वाकई में इज्जत लुटी...मगर अब कानून का यह प्रावधान बदल दिया गया है ....उस आदमी को साबित करना पङता है कि वह बेगुनाह है।"-(पृष्ठ 74)
       मुझे नहीं लगता की कानून में ऐसा कोई प्रावधान है। ऐसे तो कोई भी महिला किसी भी पुरुष पर इल्जाम लगा देगी और पुरुष कैसे साबित करेगा।
- उपन्यास में किशन का कोई मेडिकल टेस्ट नहीं होता जबकि बलात्कार में सबसे पहले मेडिकल टेस्ट ही होता है।
- रमेश सहगल के घर से कुछ गुण्डे शादी की एलबम से फोटो चुरा कर ले जाते हैं, भले आदमी एक-एक फोटो निकालने में कितना समय लगता है, पूरी एलबम ही उठाकर ले जाता। (पृष्ठ 91-92)
- पृष्ठ संख्या 118,
पुलिस की गाङी ऐन रीमा राठौर के करीब आकर रुकी।
......
"लेकिन कार में किसी की लाश नहीं ....." (पृष्ठ 118)
जब इंस्पेक्टर कार के पास ही नहीं गया तो उसे दूर से कैसे पता चल गया की कार में कोई नहीं।

       अनिल मोहन का एक उपन्यास ' दहशत का दौर' पढा था। जिसका नायक लगातार हत्या पर हत्या करता चला जाता है और कहीं पर उसका बाल भी बांका नहीं होता उसी प्रकार इस उपन्यास का मुख्य पात्र किशन भी हर जगह पहुंच कर हत्या दर हत्या करता रहता है।
    उपन्यास खाली समय में एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- कृष्ण बना कंस
लेखक- अनिल सलूजा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 222
मूल्य- 20₹
श्रृंखला- रीमा राठौर सीरिज

लेखक संपर्क-
अनिल सलूजा
मकान नंबर- 494
वार्ड नंबर- 12
पानीपत , हरियाणा

Monday 16 October 2017

70. तीन बजकर बीस मिनट- तीर्थराम फिरोजपुरी

3  बजकर 20 मिनट, जासूसी उपन्यास, मर्डर मिस्ट्री, रोचक।
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जुलाई का महिना, बृहस्पति वार और 9 तारीख थी। सिवोल कस्बे के जीन बर्नाड और उसका लङका फिलीप  चार बजे लगभग मछलियाँ पकङने घर से निकले थे।.......?
........जिस खौफनाक दृश्य ने फिलीप को सहमा दिया था वही अब जीन के सामने था जिस पर बेहोशी सी छायी हुयी थी। नदी के किनारे के पास, बगीची की सीमा में एक खूबसूरत औरत की लाश पङी थी। उसके लंबे -लंबे बाल बिखरे थे और पानी से तर थे। रेशमी पोशाक खून और मिट्टी से लथपथ और सिर कीचङ में ङूबा हुआ था।
नदी के किनारे एक बाग था काउंट डी ट्रिम्यूरल का।-(पृष्ठ संख्या 1-2)
             यह कहानी है पेरिस शहर के एक कस्बे सिवोल की। जहां पर कस्बे के नबाव काउंट डी ट्रिम्यूरल की पत्नी की हत्या हो जाती है और नबाव का कोई अता-पता नहीं। कुछ सबूतों के आधार पर पुलिस का मानना है की नवाब की हत्या कर लाश नदी में बहा दी गयी। घर पर बुरी तरह से लूटपाट के सबूत मिलते हैं।
स्थानीय जज, मजिस्ट्रेट और मेयर खुफिया पुलिस की मदद लेते हैं।
    खुफिया पुलिस का अधिकारी एम. लिकाक जब इस मामले की खोजबीन करता है तो उसे कहानी कुछ और ही नजर आती है।
"मालूम होता है हत्यारे ने कोई शोर या आवाज बाग में सुनी है और वह कुल्हाङी को जल्दी से इस जगह फेंक कर निकल गया है....घङी का समय गलत कर देना, कुल्हाङी यहाँ फेंकना, यह सब किसी जासूस को भ्रम में डाल पाने के लिए काफी है।......इसी तरह मेज पर शराब की बोतल और पाँच गिलास रख दिये गये हैं ताकि ऐसा लगे हत्यारे पाँच थे।" (पृष्ठ 31)
   हत्यारों/हत्यारे ने जो सबूत बता स्थापित किये थे उसे लिकाक पहली नजर में ही पहचान जाता है और जब वह अपनी खोजबीन को आगे बढाता है तो उसे नवाब का एक नया रूप देखने को भी मिलता है।
नवाब - जिसने अपनी कई प्रेमिकाएं बदली और धन के लिए स्वयं भी बदल गया। लिकाक को यह भी पता चकता है की नवाब न तो इस जगह का निवासी है और न ही इस घर का मालिक और सबसे बङी बात की उसकी बेगम भी कभी उसके अच्छे मित्र एम. सावरसी(सवारसी) की पत्नी थी।
           इससे पूूूर्व जब सावरसी को अपने मित्र और अपनी पत्नी की बेवफाई का पता चला तो उसने मरने से पूर्व एक ऐसा षड्यंत्र रचा जिसमें उसकी पत्नी व नवाब को एक अनोखी सजा मिलनी तय थी।
   सावरसी बोला-" .....तुम दोनों को मालूम हो गया होगा कि मैंने तुम्हारे चारों ओर ऐसा जाल फैलाया है जिससे तुम निकल ही नहीं सकते।"- (पृष्ठ 120)
  - क्या थी वह अनोखी सजा?
   - कैसे बदला लिया सावरसी ने?

उपन्यास के पात्र-
1. जीन बर्नाड- स्थानीय निवासी।
2. फिलिप- जीन का पुत्र। जिसने सर्वप्रथम लाश देखी।
3. कोरटायस- कस्बे का मेयर। लोरेंस का पिता।
4. लोरेंस- मेयर की पुत्री। नवाब की प्रेमिका।
5. नवाब काउंट डी ट्रिम्यूरल- कस्बे का एक अमीर व एय्याश आदमी। कावरसी का मित्र।
6. सावरसी कस्बे का अमीर आदमी। बिरथा का पहला पति।
7. बिरथा- नवाब की बेगम। कावरसी की पत्नी।
8. डाक्टर जिंदरान- लिकाक की सहायता करने वाला एक अच्छा डाॅक्टर।
9. डाक्टर रुबेल्ट- स्थानीय डाॅक्टर। जिसने मजिस्ट्रेट को मारने की कोशिश की।
10.प्लटिंट- मजिस्ट्रेट।
11. जैनी- नवाब की प्रथम प्रेमिका।
12. गस्पन- नवाब का नौकर।
13. अन्य और भी बहुत से गौण पात्र।
संवाद-
   उपन्यास के संवाद पाठक को प्रभावित नहीं करते। उपन्यास पढते वक्त ऐसा महसूस होता है जैसे अंग्रेजी उपन्यास का अनुवाद हो।
कुछ पठनीय संवाद देख लीजिएगा-
इंसानी जिंदगी अँगूरों की टोकरी की तरह है। कुछ आदमी एक-एक दाना उठाकर खाते हैं और कुछ सब अंगूरों को एक ही बार में निचोङकर पी जाना पसंद करते हैं।-(पृष्ठ-63)
उपन्यास की कहानी रोचक है लेकिन अपनी भाषा शैली के कारण उपन्यास मात खा जाता है।
कहीं- कहीं तो लेखक शब्दों की इतनी बचत कर गया की पाठक को समझने के लिए बहुत मेहनत करनी पङती है।
शीर्षक-
            उपन्यास के शीर्षक का कहीं कोई औचित्य भी नहीं है। हत्या के वक्त जब घङी नीचे गिर कर बंद हो जाती है तो उसमें समय था रात के तीन बजकर बीस मिनट।
    लेकिन बाद में स्वयं जासूस महोदय यह साबित कर देते हैं की यह समय हत्यारे ने घङी में फिक्स किया था ताकी पुलिस इस समय के अनुसार भटक जाये।
         उपन्यास का एक पात्र सवारसी है या सवारसी पता ही नहीं चलता बार- बार उसका नाम बदलता रहता है। हालांकि यह गलती टाइपिस्ट की है।
        
    तीर्थराम फिरोजपुरी का तीन बजकर बीस मिनट एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। रोचक है पठनीय है। अगर इस उपन्यास की संवाद शैली और कुछ दृश्यों पर और मेहनत की जाती तो यह एक अच्छा, बहुत अच्छा उपन्यास साबित हो सकता था।    लेकिन लेखक/संपादक महोदय की मेहनत की कमी स्पष्ट झलकती है।
         फिर भी मनोरंजन की दृष्टि से यह 150 पृष्ठ का उपन्यास पाठक को निराश नहीं करेगा।
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उपन्यास-  3 बजकर 20 मिनट
लेखक- तीर्थराम फिरोजपुरी
प्रकाशक- अशोक पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ-150.
  उपन्यास उपलब्ध है-
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- माउंट आबू-सिरोही(राजस्थान)
सरस्वती पुस्तकालय,   पुस्तक क्रमांक- 4058/508

Saturday 14 October 2017

69. तांत्रिक पण्डित- तांत्रिक बहल

तांत्रिक पण्डित की हाॅरर सीरिज
तांत्रिक पण्डित, हाॅरर उपन्यास, एकदम बकवास।

हिंदी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में हाॅरर उपन्यास बहुत कम लिखे गये हैं, और उनमें से भी रोचक उपन्यास तो नाम मात्र ही उपलब्ध होते हैं।
हाॅरर उपन्यासकार राज भारती, शैलेन्द्र तिवारी के पश्चात अगर किसी हाॅरर लेखक का नाम सुना था तो वह है तांत्रिक बहल।
    तांत्रिक बहल एक लेखक होने के साथ-साथ यौगिक क्रियाओं के ज्ञाता भी हैं और देश भर में इनके अनुयायियों की संख्या भी खूब है। समय -समय ओर विभिन्न जगहों पर अनुष्ठान आदि भी करते रहते हैं।
   तांत्रिक बहल आज भी फेसबुक पर सक्रिय हैं।
तांत्रिक बहल का प्रस्तुत उपन्यास 'तांत्रिक पण्डित' मित्र शशि भूषण से प्राप्त हुआ। मेरी हार्दिक इच्छा थी तांत्रिक बहल के उपन्यास पढने की पर इस उपन्यास के पश्चात यह इच्छा समाप्त हो गयी।

   प्रस्तुत उपन्यास के नायक तांत्रिक पण्डित हैं। इस उपन्यास में उनके जीवन की विभिन्न घटनाओं का जिक्र है, बस।
उपन्यास में कोई एक कहानी नहीं है, बस छोटी-छोटी घटनाएं है और वह भी अव्यवस्थित। कहीं कोई पात्रों का या घटनाओं का तारतम्य नहीं है।
  उपन्यास का नायक है तांत्रिक पण्डित जो की एक सदमार्ग पर चलने वाला तांत्रिक है।
  "मैं तांत्रिक पण्डित हूँकायाकल्प साधना कर मैं इस रूप मेंगया। दुखी, असहाय लोगों के हितों की रक्षा के लिए मैंने तंत्र शास्त्रों सहारा लिया है। अन्याय, अत्याचार को समाप्त करने के लिए मैंने शस्त्र का नहीं शास्त्र का सहारा लिया है। मेरा पक्का विश्वास है- सद्विचार वाला मनुष्य कभी अकेला नहीं होता है।"-(पृष्ठ-157)
पाठक को पढते वक्त यह भी पता नहीं चलता की वह क्या पढ रहा है। आधी-अधूरी घटनाओं और पात्रों को एकत्र कर एक उपन्यास का नाम दे दिया।
  उपन्यास के प्रारंभ में कुछ घटनाएं ऐसी दर्शायी गयी हैं जो पूर्णतः अधूरी है और बाद में पूरे उपन्यास में उन घटनाओं का और उन पात्रों का कहीं कोई नाम भी नहीं आता।
  मुझे समझ में नहीं आता की लेखक ने ऐसा उपन्यास लिख कैसे दिया और उस पर प्रकाशन महोदय ने प्रकाशित भी कर दिया।
   कहीं-कहीं तो पात्र पुरुष होता है वहीं बाद में उसे स्त्रीलिंग शब्दों से संबोधित किया गया है।..अजीब है।
- तांत्रिक पण्डित बदमाश रामू भईया को पीटते हैं, क्यो? इसका कोई कारण समझ में नहीं आता। (पृष्ठ- 11-13)
- गुल खान का भी ऐसा ही दृश्य है।(पृष्ठ 32-33)
- पृष्ठ संख्या 38-39 पर पहले जिस शख्स को पुरुष लिंग से संबोधित किया जाता है बाद में उसे स्त्री लिंग से संबोधित कर दिया गया।
- पूरे उपन्यास में यह भी पता नहीं चलता की तांत्रिक पण्डित की पत्नी कौन है।
- एक पत्नी को तो काली यादव मार देता है। (पृष्ठ 45-47)
- बाद में शीनू नामक तांत्रिक पण्डित की एक और पत्नी दिखा दी। वह भी कुछ पृष्ठों बाद गायब हो जाती है। (पृष्ठ 100 के आसपास की घटनाएं)
   हालांकि उपन्यास पढने पर पता चलता है की अपने परिवार के खत्म होने के पश्चात रामाश्रय प्रसाद योग सिद्धि से तांत्रिक पण्डित बन गया।
- अब पता नहीं उसकी कौन सी पत्नी है।
ऐसी एक नहीं अनेक गलतियां उपन्यास में भरपूर है।
   उपन्यास में अगर कुछ अच्छा कहा जा सकता है तो वह है कुछ तांत्रिक जानकारी या जीवन- मरण संबंधित कुछ अनमोल कथन।
" जन्म एवं मरण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जन्म जीव की  निरंतर यात्रा का क्रियाशील भाग है तो मृत्यु विश्राम हेतु पङाव। दोनों की उत्पति का हेतु भी एक ही है। मृत्यु सत्य, शिवं, सुंदर है।"- (पृष्ठ-90)
" जन्म अर्ध सत्य है और और मरण पूर्ण सत्य है। शरीर में आत्मा के प्रवेश को जन्म तथा प्रस्थान को मृत्यु कहा जाता है।"(पृष्ठ 90)
"विधाधरों की तीन प्रमुख साधनायें मानी गयी हैं- जैन साधना, वैष्णव साधना और मुस्लिम साधना।"-(पृष्ठ-235)

  प्रस्तुत उपन्यास  किसी भी दृष्टि से पठनीय उपन्यास नहीं है। यह मात्र तात्कालिक समय में पाठकों की हाॅरर उपन्यास पढने की इच्छा का फायदा उठाने का प्रकाशक का एक जरिया है।
    लेखक और प्रकाशन अगर मेहनत करते तो अच्छे हाॅरर उपन्यास लिखे जा सकते है।

     

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उपन्यास- तांत्रिक पण्डित
लेखक- तांत्रिक बहल
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 280
मूल्य- 25₹
श्रृंखला- तांत्रिक पण्डित सीरिज।

तांत्रिक पण्डित के उपन्यास
1. तंत्र भैरवी
2. तांत्रिक पण्डित
3. कपाल भैरवी

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