Monday 9 October 2017

67. दहशत का दौर- अनिल‌ मोहन

जुगल किशोर जैसे खतरनाक इंसान का खूनी खेल।
दहशत का दौर, थ्रिलर उपन्यास, एक्शन।

जुगल किशोर  के प्रतिशोध की कहानी।

अनिल मोहन का पात्र है जुगल किशोर।
क्या आप जुगल किशोर को जानते हैं? अरे! वही
जुगल किशोर
गुण्डा
मवाली
जेबकतरा
दस नंबरी- (पृष्ठ- 07)
और भी न जाने क्या-क्या है बदमाश।
   "छोटे- मोटे गुण्डों-बदमाशों की आँखों में धूल झोंक कर उनके माल पर हाथ साफ करना जुगल किशोर का धंधा था। वक्त आने पर इतना खतरनाक हो जाता था कि उसे देखकर सामने वाले के पसीने छूट जाते थे।"- (पृष्ठ-07)
                     बस जेबतराशने के साथ-साथ कभी कभार छोटा-मोटा हाथ भी मार लेता है। बस कमबख्त से यहीं एक गलती हो गयी। शहर के डाॅन राजबहादुर कोठारी के रुपयों पर हाथ साफ कर बैठा। अब रुपये कार में रखे थे, कार में कोई था नहीं, कार के लाॅक भी न था। जुगल किशोर के हाथों में खुजली होने लगी। अब खुजली का तो एक ही इलाज है और वह है कार में रखा रुपयों से भरा।ब्रीफकेस।
  आदमी हरामी है, दस नंबरी है, बस ब्रीफकेस उठा लिया। लेकिन वाह री किस्मत उसी समय ब्रीफकेस के रक्षकों ने जुगल किशोर को देख लिया। पर जुगल किशोर कहां किस के हाथ आने वाला था। पीछे से गोलियाँ भी चली पर, जुगल किशोर अपनी जान बचा गया पर पहचान पीछे छोङ गया।
 राजबहादुर कोठारी शहर का डाॅन, जिसके नाम से लोग कांपते है। उसके माल पर कोई हाथ साफ कर जाये। लानत है...।
बस यहीं से राजबहादुर कोठारी ने जुगल किशोर की मौत का फरमान जारी कर दिया।
अमृतपाल, कोठारी का वहशी दरिंदा है। जुगल किशोर का पता जानने के लिए अमृतपाल ने जुगल किशोर की प्रेयसी करूणा को अमानवीय यातना देकर मार दिया।
बस यहीं से...ठीक यहीं से ...ठन गयी...दोनों में ठन गयी....राजबहादुर कोठारी और जुगल किशोर में भई ठन गयी।
और जिसका परिणाम इतना भयंकर निकला की पूरा शहर कांप उठा। राजबहादुर कोठारी और शहर के दूसरे डाॅन भूपेन्द्र सिंह के ठीकाने तबाह हो गये।
जब जुगल किशोर जैसा युवक अपने प्रतिशोध लेने को उतरा तो तबाही का वह तूफान उठा जिसनें शहर से अंडरवर्ल्ड को खत्म कर दिया।
"वह खोखली धमकियां नहीं दे रहा है। उसने जो कहा है उसे वह कर दिखाने की हिम्मत रखता है। इसका अंदाज आप उसके चंद दिनों के कारनामों से लगा सकते हो। उसने ऐसे कारनामों को अंजाम दिया है कि अंडरवर्ल्ड में सनसनी फैल गयी। उस अकेले ने तबाही मचा दी।"-(पृष्ठ 194)
  कमबख्त अकेला ही दुश्मनों‌ से जा टकराया, आखिर हवा थी उसकी, सीने में दम था। तभी तो सामंत सिंह के ठिकाने पर जाकर उसके साथियों के सामने सामंत सिंह को ललकार दिया। विश्वास नहीं होता तो आप स्वयं पढ लो ये संवाद।
" साले, हरामी!"- जुगल किशोर ने धधकते स्वर में कहा, "जुगल किशोर पर गोली चलाना बच्चों का खेल नहीं है। मुझ पर गोली चलाने के लिए तेरे को अभी तगङी ट्रेनिंग की जरूरत है। क्योंकि आजकल मेरी हवा है। समझे बेटे।"- (पृष्ठ-213)

भाषा शैली  और संवाद-
  यह एक थ्रिलर उपन्यास है। जिसमें ज्यादा अच्छे संवादों की कल्पना नहीं की जा सकती।
"इंसान कभी अकेला नहीं होता। उसके साथ अपने इरादे होते हैं। कुछ कर गुजरने का जज्बा होता है।"-(पृष्ठ-54)
      उपन्यास भाषा के स्तर पर प्रचलित उपन्यासों की भाषा शैली बनाये हुए है।
    एक्शन और थ्रिलर पाठकों के लिए यह एक अच्छा उपन्यास हो सकता है। कहानी के स्तर पर कुछ भी नया या याद रखने योग्य नहीं है। जुगक किशोर को हद से ज्यादा बहादुर दिखाया गया है। एक अकेला सब पर भारी।
उपन्यास में जहां पुलिस और मुजरिम के आपसी संबंधों का चित्रण है वहीं कर्तव्य को सर्वोपरि मानने वाले पुलिस वाले भी उपन्यास में उपस्थित हैं।
  उपन्यास का सार यही है कि बुराई का अंत बुरा।
  उपन्यास में छुटपुट गलतियां है लेकिन उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
  यह उपन्यास मुझे माउंट आबू से सूरतगढ (राजस्थान) ट्रेन से आते वक्त पाली मारवाड़ जंक्शन के एक पुस्तक विक्रेता से मिला था।
---------
उपन्यास-  दहशत का दौर
लेखक-    अनिल मोहन©
प्रकाशक- शिवा पॉकेट बुक्स- गांधी मार्ग, मेरठ।
प्रकाशन वर्ष- ........
पृष्ठ-       239
मूल्य-      20₹
श्रृंखला- जुगल किशोर

4 comments:

  1. साधारण हीरो का असाधारण वाक्या।
    गजब की कहानी।
    पठनीय

    ReplyDelete
    Replies
    1. ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद।

      Delete
    2. ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद।

      Delete

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...