Thursday 26 October 2017

73. वह भी कोई देस है महराज - अनिल यादव

पूर्वोत्तर भारत के जीवन की दहशत भरी यात्रा।।
  
   पेशे    से पत्रकार अनिल यादव का प्रस्तुत यात्रा वृतांत बहुत ही रोचक व रोमांच से भरा है।  अपने मित्र के साथ यात्रा पर निकले अनिल यादव को भी शायद पता हो की उनके जीवन में यह यात्रा वृतांत स्वयं उनके साथ-साथ पाठकवर्ग के लिए भी यादगार बन जायेगा।
इस यात्रा वृतांत पर कुछ लिखना बहुत ही कठिन कार्य है क्योंकि जिस यात्रा का अनिल यादव ने दस वर्ष में पूर्ण कर उसे एक पुस्तक का रूप प्रदान किया है उस पुस्तक को चंद शब्दों में व्यक्त करना बहुत मुश्किल का काम है।
     मुझॆ नहीं लगात की में इस पोस्ट में इस पुस्तक के साथ न्याय कर पाऊंगा लेकिन नये पाठकों के लिए इतना ही कह सकता हूँ की एक बार आप इस यात्रा वृतांत का अवश्य पढें ताकी आप इस सत्यता से परिचित हो सकें।
  यात्रा वृतांत शुरु होता है दिल्ली से। अनिल यादव लिखते हैं।
  पुरानी दिल्ली के भयानक गंदगी, बदबू और भीङ से भरे प्लेटफार्म नंबर नौ पर खङी मटमैली ब्रह्मपुत्र मेल को देखकर एक बारगी लगा कि यह ट्रेन एक जमाने से इसी तरह खङी है। अब कभी नहीं चलेगी। (29.11.2000)
   
यह यात्रा वृतांत भारत के उन सात राज्यों का चित्रण करता है जो अपने सौन्दर्य के कारण जितने विख्यात हैं, उतने ही दहशत के लिए कुख्यात है।
   

माजुली दुनिया का सबसे बङा नदी द्वीप है और असम का धार्मिक तंत्रिका केन्द्र है। (पृष्ठ-39)
  ज्यादातर असमिया हिंदू गांव किसी न किसी मठ से संबद्ध हैं और वहाँ के सामाजिक जीवन में नामघर की केन्द्रीय भूमिका है। (पृष्ठ -41)

नागालैण्ड का वर्णन लेखक इन पंक्तियों से करता है " पहली नजर में नागालैंड का पहला कस्बा दीमापुर ...टूटी सङकों...फटेहाल लोगों...ट्रांस्पोर्ट कम्पनी का बङा गोदाम लगता है।"-(पृष्ठ-49)
,- नागालैंड की अर्थव्यवस्था केन्द्र सरदार से मिलने वाले नब्बे प्रतिशत अनुदान से चलती है। (पृष्ठ-54)
- ....आँखें ...नये देश की नयी संस्कृति का साक्षात्कार कर रही थी, जहां वेलेन्टाइन डे पर रेस्टोरेंट ' डाॅग मीट स्पेशल' की तख्ती लटका कर प्रेमी जोङों का स्वागत करते हैं।(पृष्ठ-55)

उग्रवाद कि छाया तले अपराध के छोटे-छोटे नेटवर्क पूरे पूर्वोत्तर में फैले हैं।( पृष्ठ-53)
   नागालैंड को पूर्वोत्तर के उग्रवाद की माँ का दर्जा मिला है।(पृष्ठ-70)
- नागाओं की मानसिकता पर ढेरों अध्ययन हुए हैं जिनका एक ही निष्कर्ष है, संवेदनहीनता और पागलपन। (पृष्ठ- 73)

मेघालय चैप्टर पृष्ठ 74 से आरम्भ ।
....रोडवेज की बस भोर के तीन बजकर अडतालीस मिनट पर शिलांग पहुंची। (पृष्ठ-74)
शिलांग नवधनिकों के बच्चों की शिक्षा का केन्द्र है लेकिन यहाँ बीच में स्कूल छोङ देने वालद आदिवासी बच्चों की तादाद बढी है।(पृष्ठ-75)
मेघालय में बेरोजगारी, शराबखोरी, ड्रग्स और एडस बङी सामाजिक समस्या बन कर उभर रही है।(पृष्ठ-75)

- मेघालय का प्रथम उग्रवादी संगठन भी वसूली के लिए ही बना था।(पृष्ठ-85)

"अनिल यादव की यात्रा कृति 'वह भी कोई देश है महराज' को पढते हुए और उसके जिक्र से मेरा रक्तचाप बदल जाता है।.....पूर्वोत्तर देश का उपेक्षित और अर्धज्ञात हिस्सा है, उसको महज सौन्दर्य के लपेटे से देखना अधूरी बात है। अनिल यादव ने कंटकाकीर्ण मार्गों से गुजरते हुए सूचना और ज्ञान, रोमांच और वृतांत, कहानी और पत्रकारिता शैली में इस अनूठे ट्रैवलाॅग की रचना की है।"- ज्ञानरंजन
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पुस्तक- वह भी कोई देस है महराज
लेखक- अनिल यादव
विधा- यात्रा वृतांत
प्रकाशन- अंतिका प्रकाशन, गाजियाबाद- उत्तर प्रदेश
www.antikaprakashan.com
ISBN 978-93-85013-79-9
संस्करण- 2017
प्रथम संस्करण- 2012
पृष्ठ-
मूल्य-150₹

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