Thursday 19 October 2017

71.कृष्ण बना कंस- अनिल सलूजा

एक बहन के हत्यारे की कथा, जिस पर बहन से बलात्कार करने का आरोप था।
कृष्ण बना कंस, थ्रिलर उपन्यास, एक्शन,  पठनीय।

    "औरत के आंसू किस कदर पत्थर को भी मोम में बदल देते हैं- चाहे वे आंसू मगरमच्छी ही क्यों हों। आंसूओं के रूप में औरत के पास एक ऐसा खतरनाक हथियार है, जो किसकी जिंदगी को तबाह कर दे, कहा नहीं जा सकता।
          ऐसे ही मगरमच्छी आंसूओं का सहारा लेकर, एक औरत ने रीमा राठौर को इस कदर फंसाया कि वह बेगुनाह इंसान राक्षस बनने को मजबूर हो गया।" (लेखक की कलम से)
          

रीमा राठौर से हुयी एक छोटी सी गलती ने, उसकी जिंदगी को उस मोङ पर ला खङा किया, जहाँ उसे हर तरफ खून ही खून नजर आने लगा।

उस पर बहन से बलात्कार का आरोप था, और उसने बहन की हत्या कर दी। अपने जीजा को भी मार दिया और अब उसे तलाश थी उस वकील रीमा राठौर की जिसके कारण उसे सजा हुयी।
       रीमा राठौर की तलाश में निकले किशन ने अपनी बेगुनाही साबित करने की जगह लाशों के ढेर लगा दिये और वह भी बेवजह।
   अनिल सलूजा द्वारा लिखा गया रीमा राठौर सीरिज एक ऐसे युवक की कहानी है जिस पर अपनी बहन से बलात्कार का आरोप था, उसे सजा हुयी। वह जेल से भाग निकला और अपनी बहन व जीजा की हत्या कर दी।
      उपन्यास में  प्रतिशोध की कहानी है। उपन्यास का प्रमुख पात्र किशन उपन्यास के आरम्भ में ही जेल से फरार होकर अपना बदला ले लेता है। तब पाठक सोचता है की आगे क्या होगा अब आगे होने को कुछ भी नहीं है। जो होना था उपन्यास के आरम्भिक बीस पृष्ठ में हो जाता है बाकी दो सौ पृष्ठ लेखक ने अनावश्यक रूप से ही बढा दिये।
      अब किशन उन लोगों से बदला लेने लग जाता है जो उसके जीजा के बुरे कामों के साथी थे। हालांकि किशन को जेल करवाने में उनका किसी प्रकार का कोई योगदान नहीं है, पर लेखक महोदय ने बेतुकी कहानी पाठक के आगे परोस दी।
        
  पूरे उपन्यास में मात्र एक दो संवाद हैं जो पठनीय है बाकी तो सामान्य कथन मात्र हैं। हालांकि थ्रिलर उपन्यासों में अच्छे संवादों का इतना महत्व नहीं होता लेकिन फिर भी अच्छे संवाद पाठक को सदा याद रहते हैं।
" यह रिश्ते नाते शरीफों के तबके में पहचाने जाते हैं। हमारे तबके में ऐसे किसी भी रिश्ते की अहमियत नहीं होती।"-(पृष्ठ 50)

- " इस दुनिया का सबसे खतरनाक गुस्सा, शरीफ आदमी का ही गिना जाता है। जब वह जुनून में आता है तो पूरी दुनिया को खत्म करने से भी पीछे नहीं हटता।"-(पृष्ठ 103)

उपन्यास में गलतियां:-
उपन्यास में कुछ गलतियां तो ऐसी हैं जिन्हें मेरे विचार से लेखक उपन्यास को दोबारा पढता तो दूर कर सकता था।

" कानून में पहले प्रावधान था कि अगर किसी औरत की इज्जत लुटती थी, तो उसे साबित करना पङता था कि उसकी वाकई में इज्जत लुटी...मगर अब कानून का यह प्रावधान बदल दिया गया है ....उस आदमी को साबित करना पङता है कि वह बेगुनाह है।"-(पृष्ठ 74)
       मुझे नहीं लगता की कानून में ऐसा कोई प्रावधान है। ऐसे तो कोई भी महिला किसी भी पुरुष पर इल्जाम लगा देगी और पुरुष कैसे साबित करेगा।
- उपन्यास में किशन का कोई मेडिकल टेस्ट नहीं होता जबकि बलात्कार में सबसे पहले मेडिकल टेस्ट ही होता है।
- रमेश सहगल के घर से कुछ गुण्डे शादी की एलबम से फोटो चुरा कर ले जाते हैं, भले आदमी एक-एक फोटो निकालने में कितना समय लगता है, पूरी एलबम ही उठाकर ले जाता। (पृष्ठ 91-92)
- पृष्ठ संख्या 118,
पुलिस की गाङी ऐन रीमा राठौर के करीब आकर रुकी।
......
"लेकिन कार में किसी की लाश नहीं ....." (पृष्ठ 118)
जब इंस्पेक्टर कार के पास ही नहीं गया तो उसे दूर से कैसे पता चल गया की कार में कोई नहीं।

       अनिल मोहन का एक उपन्यास ' दहशत का दौर' पढा था। जिसका नायक लगातार हत्या पर हत्या करता चला जाता है और कहीं पर उसका बाल भी बांका नहीं होता उसी प्रकार इस उपन्यास का मुख्य पात्र किशन भी हर जगह पहुंच कर हत्या दर हत्या करता रहता है।
    उपन्यास खाली समय में एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- कृष्ण बना कंस
लेखक- अनिल सलूजा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 222
मूल्य- 20₹
श्रृंखला- रीमा राठौर सीरिज

लेखक संपर्क-
अनिल सलूजा
मकान नंबर- 494
वार्ड नंबर- 12
पानीपत , हरियाणा

4 comments:

  1. शायद ये प्रावधान है कि अगर एफ आई आर हो गयी तो लड़के की गिरफतारी पक्की है। और जब तक वो अपने को बेगुनाह न साबित कर दे तब तक वो जेल में ही रहेगा क्योंकि ये नॉन बैलएबल ओफ्फेंस है।अनिल सलूजा जी के उपन्यास अब मिलते ही नहीं है। एक दोस्त के माध्यम से मिला था और उसने वो भी सेकंड हैंड पुस्तक विक्रेता से लिया था।रोचक समीक्षा।

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  2. ये मेरा व्यक्तिगत मत है, हालांकि कानूनन जानकारी तो मुझे भी नहीं है।

    पर उपन्यास में जिस व्यक्ति पर यह आरोप लगा उसकी मेडिकल जांच ही नहीं दिखाई कहीं।

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  3. जितने भी महिला मुख्य किरदारों को लेकर हिन्दी उपन्यास लिखे गए हैं उनमें रीमा राठौर सीरीज़ मेरी पसंदीदा है। इस उपन्यास को पहले पढ़ा था। जिसे आप कमी कह रहे हैं वास वास्तव में सत्य है। burden of proof पुरुषों पर है क्यूंकी महिला कानून की नज़रों में अबला है।

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