Sunday 22 October 2017

72. खूनी वारदात- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक

अपने पति की हत्या के आरोप में जेल में बंद एक स्त्री की कहानी।
खूनी वारदात, जासूसी उपन्यास, मध्यम स्तरीय।

जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा का ' तीन गायब' के  बाद 'खूनी वारदात' यह द्वितीय उपन्यास है जो मैंने पढा।

  जेल से भारत के राष्ट्रपति के नाम एक पत्र पहुंचा।
  पत्र भेजने वाली का नाम यशोधरा था और उसे पुलिस ने अपने पति प्रेमनाथ की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया था।
   पत्र में राष्ट्रपति को पूज्य पिताजी के नाम से संबोधित किया गया।
पत्र में अपना परिचय देते हुए उसने लिखा था- मेरा नाम यशोधरा है और मैं मृत प्रेमनाथ की विधवा हूँ।
    आप विश्वास कीजिए मैं नहीं जानती की मेरे परि का खून किसने किया, क्यों किया और किस समय किया।
मैंने आपको पिताजी कहा है और कोई भी अच्छी बेटी पिता से झूठ नहीं बोला करती। (पृष्ठ -5, कहानी का प्रथम दृश्य)
जब यह पत्र राष्ट्रपति के माध्यम से खुफिया विभाग में पहुंचा तो वहाँ से जगन, जगत, पचिया और बंदूक सिंह को इस मामले की सत्यता पता लगाने के लिए नियुक्त किया गया।
    जब चारों इस मामले की खोजबीन में लगे तो एक यशोधरा की हत्या का प्रयास किया गया और एक बार जगन पर कातिलाना हमला हुआ।
   पर अतंतः चारों अपने अभियान में सफल रहे।
- प्रेमनाथ का खून किसने किया?
- यशोधरा को कातिल किसने ठहराया?
- बंद कमरे में प्रेमनाथ का कत्ल किसने किया?
- यधोधरा पर हमला किसने व क्यों करना चाहा?
- जासूस पार्टी पर हमला किसने किया?
  ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्नों के उत्तर तो जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा के उपन्यास खूनी वारदात को पढकर ही मिल सकते हैं।
          उपन्यास में चार जासूस मुख्य हैं और उनके सहायक भी हैं। चारों पात्रों के साथ लेखक इंसाफ नहीं कर पाया और इस चक्कर में कोई भी पात्र अपनी पहचान नहीं छोङ पाया।
    एक पात्र पचिया( जिसका वास्तविक नाम नहीं नहीं दिया गया) है जो थोङा-बहुत उपन्यास में प्रभाव स्थापित कर पाया है।
           प्रस्तुत उपन्यास एक मध्यम स्तर का उपन्यास है जिसे अनावश्यक रूप से विस्तार दिया गया है। और विस्तार भी ऐसा जिसका कोई महत्व ही नहीं है। चारों जासूसों की वार्तालाप को काफी लंबा खींचा गया है इसके अलावा उर्वशी क्लब, चित्रलेखा- मोहिनी से बातचीत भी बार-बार व अनावश्यक रूप से दिखा कर उपन्यास को विस्तार दे दिया गया है।
      उपन्यास में एक बंदूक सिंह के अलावा अन्य कोई भी जासूस ऐसा नहीं लगता की वह कातिल की तलाश कर रहा है। पचिया एक जगह बस इतना पता लगा पाता है की कातिल किस रास्ते से कमरे में घुसा। बाकी समय तो सभी जासूसी दल अपनी व्यर्थ की वार्तालाप में समय बिता देता है।
  और कातिल में उन्हें अनायास ही हाथ लग जाता है। स्वयं पचिया भी यही बात कहता है- " यह मात्र संयोग ही है की कातिल अनायास ही इतनी जल्दी मिल गया।"(पृष्ठ 233)

      शराब और शराबी के विषय में स्मरणीय बात कही है जो मुझे अच्छी लगी, आप भी पढ लीजिएगा-
  " एकदम गलत बात है। शराब पीने से इंसान अपनी चिंता भूल पाता है और अपने दुख भूल पाता है। इंसान शराब पीता है मन के आनंद के लिए और उसे कुछ आनंद मिलता भी है। इसके बाद वह सोचता है कि अगर और पिएगा  तो और आनंद मिलेगा। परंतु वह यह भूल जाता है कि अधिक शराब पीने से या तो वह बेहोश हो जाएगा या उसके मन की कामनाएं और भी भङक उठेंगी।"- (137)
             यह एक मध्यम स्तरीय जासूसी उपन्यास है जिसे टाइमपास के लिए एक बार पढा जा सकता है लेकिन उपन्यास में कोई याद रखने योग्य कोई विशेष बात नहीं है।
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उपन्यास- खूनी वारदात
लेखक- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- शिवा पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 237
मूल्य- 15₹

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