Sunday 23 April 2017

भविष्य की किताबें

आगामी समय में मैं इन किताबों को पढना चाहूँगा।
इस चिह्न वाली किताबें पढ चुका हूँ
@ इस चिह्न वाली पढ रहा हूँ ।
     शेष पढनी बाकी है।

1. सूखे चेहरों का भूगोल- रिपोर्ताज- मणि मधुकर √
2. वह भी कोई देश है महाराज- यात्रा वृतांत √
3. एक हसीन कत्ल- उपन्यास मोहन मौर्य
4. सिंह मर्डर केस- उपन्यास- रमाकांत मिश्र √
5. कोरे कागज का कत्ल- उपन्यास- परशुराम शर्मा
6. हवेली के दुश्मन- उपन्यास- संजय गुप्ता √
7. आजादी मेरा ब्रांड- यात्रा वृतांत- अनुराधा बेनिवाल
8. मौत का साया- उपन्यास- सुनील प्रभाकर √
9. घातक गोली- उपन्यास- सुरेन्द्र मोहन पाठक √
10. लास्ट हिट- उपन्यास- प्रकाश भारती √
11. स्लिपिंग पिल्स- उपन्यास- प्रकाश भारती √
12. The Old Fort- उपन्यास- एम.इकराम फरीद्दी √
13. ट्रेजडी क्वीन- उपन्यास- एम. इकराम फरीद्दी √
14. आदमखोर- उपन्यास- परशुराम शर्मा √
15. हत्यारे की दावत- उपन्यास- प्रकाश भारती
16. कत्ल की सौगात- उपन्यास- राहुल √
17. रात के अंधेरे में - उपन्यास- कर्नल रंजीत
18. मुँह बोला पति- टाइगर √
19. किसका कत्ल करु- टाइगर √
20. कानून का शिकंजा- अनिल मोहन√
21. एक लाश का चक्कर- अनुराग कुमार√
22. गुलाबी अपराध- एम. इकराम फरीदी √
23. जेल से फरार- अनिल मोहन √
24. टेक थ्री- कंवल शर्मा √
25. वन‌ शाॅट - कंवल शर्मा√
26. भयंकरा- वेदप्रकाश शर्मा
27. हीरा फेरी- सुमोपा √
28. देहाती दुनिया-
29. एक तय शुदा मौत
30. सीन 75- राही मासूम रजा
31. काली बिल्ली वाला- कैप्टन देवेश √
32. सैकण्ड चांस- कंवल शर्मा √
33. नीला स्कार्फ- अनु सिंह चौधरी √
34. बनारस टाॅकिज- सत्य व्यास- √
35. कलाम की जीवनी √
36. वयम् रक्षाम- आचार्य चतुरसेन शास्त्री @
37. ब्राउन शुगर - रवि माथुर √
38. कारीगर- वेदप्रकाश शर्मा √
40. इरादा- शगुन शर्मा
41. ए टेरेरिस्ट - इकराम फरीदी √
42. तुरुप का इक्का - गजाला √
43. प्राइम मिनिस्टर का मर्डर- अमित खान √
44. आखिरी दांव - जेम्स हेडली चेइज √
45. शाॅक ट्रीटमेंट- जेम्स हेडली चेइज √
46. आहुति- कुशवाहा कांत- √
47. भंवरा-   कुशवाहा कांत √
48. लवंग-   कुशवाहा कांत√
49. इंसाफ का सूरज - VPS √
50. तूफान के बेटे- कुमार कश्यप √
51. आग का खेल- आरिफ माहरवी √
52. चालीसा का रहस्य- रुनझुन सक्सेना √
53. शिवगामी गाथा-
54. न कोई बैरी न कोई बैगाना
55. फरेब- अमित श्रीवास्तव√
56. दस बजकर दस मिनट- अरुण सागर √
57. गुनाह के फूल- गुलशन नंदा√
58. तीन इक्के- गुलशन नंदा√
59. काजर की कोठरी- देवकीनंदन खत्री√
60. एक्सीडेंट- एक रहस्य कथा- अनुराग कुमार जीनियस √
61. गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री√
63. सौ करोङ डाॅलर के हीरे- विश्व मोहन विराग√
64. देजा वू- कंवल शर्मा √
65. रिवेंज- एम. इकराम‌ फरीदी √
66. मेरी मदहोशी के दुश्मन- आबिद रिजवी √
67.
68.
69.
70
√ वो किताबें जो पढ ली गयी।

Sunday 16 April 2017

38. हस्ती मिटा दूंगा- टाइगर

एक ईमानदार पुलिस अफसर है। जिसके घर में उसकी पत्नी व एक छोटा भाई। छोटे भाई को माँ-बाप के अभाव में छोटे पुत्र की तरह पाला गया है, इसलिए छोटा भाई थोङा बिगङ गया है।
  पुलिस अफसर ईमानदार है, रिश्वत नहीं लेता। इसलिए खलनायक से दुश्मनी हो जाती है। इस दुश्मनी का परिणाम है पुलिस अफसर की मौत। अब पुलिस अफसर का छोटा भाई आवारागर्दी छोङकर खलनायक से बदला लेता है।
        जी, ये है कहानी टाइगर के उपन्यास ' हस्ती मिटा दूंगा' की।
अब कहानी और नाम से ही स्पष्ट है कौन-किसकी हस्ती मिटाना चाहता है।
उपन्यास वही पुरानी भारतीय फिल्मों की तरह है। इसमें कुछ भी नया या हटकर नहीं है, जिसके दम पर उपन्यास पढा जाये। प्रारंभ के कुछ पृष्ठ पढते ही कहानी आईने की तरह साफ हो जाती है और पाठक को पता चल जाता है की उपन्यास में आगे क्या होगा। अगर आगे होने वाला दृश्य रोचक हो तो भी कहानी पढी जा सकती है, पर यहाँ तो ऐसी रोचकता भी नहीं है।
                    कहानी- पुलिस अफसर डी.सी.पी. शमशेर सिंह राणा, एक ईमानदार व्यक्ति है। दूसरी तरफ उसी शहर में एक स्मगलर है सांगा ठाकुर। एक बार शमशेर सिंह, सांगा ठाकुर के अवैध माल को पकङ लेता है। अब सांगा ठाकुर, डी.सी.पी. शमशेर सिंह को रिश्वत देने की कोशिश करता है और शमशेर सिंह मना कर देता है।
  शमशेर सिंह अब सांगा के अवैध धंधों पर कार्यवाही कर उसे बंद करवा देता है तब गुस्से में आकर खलनायक सांगा, डी.सी.पी. शमशेर सिंह की एक योजना के तहत हत्या करवा देता है।
      जब शमशेर सिंह के छोटे भाई शक्ति सिंह को हकीकत पता चलती है तो वह अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता है। उसी शहर में एक और खलनायक है, शाकाल। जो की सांगा का दुश्मन है और एक ईमानदार खलनायक है। जिन लोगों पर अत्याचार होते हैं उन्हें शाकाल शरण देता है।
अब शाकाल और शक्ति सिंह एक साथ आ जाते हैं, क्योंकि दोनों का दुश्मन एक ही है, वह है सांगा। अब शेष कहानी सांगा से बदला लेने में बीत जाती है।
हैरानी तो तब होती है जब पता चलता है की इस उपन्यास के दो भाग हैं। दूसरा भाग है 'सोने की लंका'।

संवाद- उपन्यास के कुछ संवाद पढने लायक हैं। संवाद उपन्यास के पात्र का चरित्र-चित्रण करने के साथ-साथ उपन्यास की कथावस्तु को भी आगे बढ़ाने में सहायक हैं।
सांगा ने कहा,-"किस जमाने की बात कर रहे हो डी.सी.पी. साहब। आज पाप की लंका ही फलती-फूलती है। शराफत और सच्चाई का नाम आप जैसे लोग अपने-आप को तसल्ली देने के सिवा और कुछ नहीं कर सकते।  ........सच्चाई और आदर्शों की चक्की में ऐसा कोई गेहूँ नहीं पिसता जिससे पेट की भूख मिटाई जा सके।"
"पेट तो रोटी से ही भरता है सांगा साहब। और रोटी आदमी मेहनत से कमा लेता है। बात रोटी तक ही सीमित रहे- तब अलग बात है। बात हवस तक पहुँच जाए तो उसका कोई अंत नहीं । और सांगा साहब-आप इसी हवस के शिकार हो चुके हो। और इस हवस की वजह से ही हर रास्ते पर आपको कानून का सामना करना पङेगा"
     उपर्युक्त सांगा और शमशेर सिंह के परस्पर कथन से दोनों के चारित्रिक गुणों का स्पष्ट पता चलता है।
शमशेर सिंह का एक कथन और देखिए जिसमें वह अपने भाई शक्ति सिंह को संबोधित करता है।
"हां शक्ति- हमने आज तक अपनी मर्यादाओं के घेरे से बाहर पंख फङफङाने की कोशिश कभी नहीं की। हम आज तक जीते रहे हैं, तो अपने आदर्शों के बलबूते पर, अपनी ईमानदारी की नीव पर। अपनी सच्चाई की डगर पर ....।" (पृष्ठ-98)
   एक जगह पर शक्ति सिंह का कथन देखिए- "आज की दुनिया में अन्याय से लङना है तो अपने हाथ में जुल्म की तलवार पकङनी पङेगी। इसी तलवार से अन्याय को खत्म किया जा सकता है" (पृष्ठ-130)
अब ये बात जरा अजीब सी है की आदमी जुल्म कर कैसे अन्याय को खत्म कर सकता है। जब वह जुल्म की तलवार उठाऐगा तब तो अन्याय खत्म नहीं होगा, बल्कि बढेगा।
अब पता नहीं लेखक महोदय क्या कहना चाहते हैं।
     टाइगर का उपन्यास हस्ती मिटा दूंगा एक बदला प्रधान उपन्यास है। पढने के तौर पर उपन्यास में कोई विशेष बात नहीं है। उपन्यास में पाठक को प्रभावित करने की क्षमता नहीं है। पाठक अगर प्रथम भाग पढ भी लेगा तो वर्तमान समय में शायद ही वह इस उपन्यास के दूसरे भाग को पढने की इच्छा जताये।
  अगर लेखक चाहता तो इस उपन्यास को एक भाग में समेट सकता था, पर सोचने वाली बात ये है की लेखक दूसरे भाग 'सोने की लंका' में क्या लिखेगा। क्योंकि कहानी का इतना विस्तार नहीं है।
    
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उपन्यास- हस्ती मिटा दूंगा
दूसरा भाग- सोने की लंका
लेखक- टाइगर (JK VERMA, जगदीश कुमार वर्मा)
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 240
मूल्य- 15₹ (अब मूल्य परिवर्तन संभव है)

37. अदालत मेरा क्या करेगी- टाइगर

दिल्ली के विज्ञान भवन में संत जांभोजी के विचारों के प्रचार हेतु एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन 18,19.03.2017 को हुआ था।
इस सम्मेलन में एक प्रतिभागी के रूप में में भी शामिल हुआ था। वहाँ से वापस आते वक्त बुराङी रोङ, दिल्ली से मैंने राजा पाॅकेट बुक्स से कुछ उपन्यास खरीदे थे।
वेदप्रकाश शर्मा का अंतिम उपन्यास ' छठी उंगली' संजय गुप्ता का हवेली के दुश्मन के अतिरिक्त टाइगर के पांच उपन्यास इच्छाधारी, जुर्म का चक्रव्यूह, इंसाफ में करुंगा गोलियों की बरसात, हस्ती मिटा दूंगा और अदालत मेरा क्या करेगी।
टाइगर के अन्य उपन्यासों की समीक्षा के बाद अब प्रस्तुत है 'अदालत मेरा क्या करेगी' उपन्यास की समीक्षा।
अदालत मेरा क्या करेगी- टाइगर
प्रस्तुत उपन्यास को हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम भाग वहाँ तक जब गौतम सरीन दुश्मन देश की कैद से मुक्त होकर वापस आता है और दूसरा भाग जब गौतम सरीन हरिपुर आता है।
अगर देखा जाये तो उपन्यास का प्रथम भाग बहुत ही बोरियत है। प्रत्येक पात्र लंबे-लंबे संवाद बोलता है, कई संवाद तो एक-एक पृष्ठ के हैं।
उपन्यास का दूसरा भाग ही उपन्यास को संभाल पाता है, गति देता है और उपन्यास को पढने लायक बनाता है।
हालांकि उपन्यास में इस प्रकार का कोई भाग का विभाजन नहीं है, पर कहानी को देखा जाये तब महसूस होता है की मध्यांतर से पूर्व मध्यांतर के पश्चात वाली कहानी में बहुत फर्क है, मानों दो अलग-अलग व्यक्तियों ने कहानी लिखी हो। अगर उपन्यास का प्रथम भाग न भी होता तो उपन्यास ज्यादा अच्छी बन सकती थी।
कहानी- सेठ शामनाथ चावला एक बिजनेस मैन है और उनकी सोच है की नौकरीपेशा व्यक्ति की कोई जिंदगी नहीं होती।
शामनाथ चावला की पुत्री गीता एक एयरफोर्स के जवान गौतम सरीन से प्यार करती है लेकिन शामनाथ चावला को एक पसंद नहीं की एक बिजनेस मैन की पुत्री एक ऐसे व्यक्ति से प्यार करे व शादी के सपने देखे जिसकी एक निश्चित तनख्वाह है। वो गौतम सरीन व गीता की शादी के लिए मना कर देते हैं।
दूसरी तरफ एक युद्ध के दौरान गौतम सरीन दुश्मन देश में कैद कर लिए जाते हैं और तीन साल बाद उनकी वापसी होती है। यहाँ तक अप उपन्यास का प्रथम भाग सकते हो।
अब बात करें उपन्यास के दूसरे भाग की।
वापसी पर पता चलता है की गीता की शादी हो गयी और गीता व उसका बाप एक बदतर जिंदगी जीने जो मजबूर हैं। कारण गीता का पति उन पर जुल्म करता है।
इस ज़ुल्म से बचाने के लिए गौतम आगे आते है व गीता और शामनाथ चावला को बचाता है।
अब पाठक स्वयं समझ सकता है की उपन्यास के प्रथम व द्वितीय भाग में कोई ज्यादा सामंजस्य नहीं है। प्रथम भाग जहाँ हद से ज्यादा बोरियत है तो वहीं द्वितीय भाग अति तीव्र गति से चलता है जो की पाठक को बाँधें रखने में पूर्णतः सक्षम है।
उपन्यास के संवाद-
उपन्यास के कुछ संवाद पठनीय है।
-"जहाँ रिश्ते होते हैं- भावनात्मक संबंध होते हैं- उनकी बातों का बुरा नहीं माना जाता।"- (पृष्ठ-10)
-"हल जीवन का प्रतीक है और बंदूक मौत का दूसरा नाम है।" (पृष्ठ-54)
-"जिंदगी बङी नायाब चीज हुआ करती है दोस्त- एक बार गुम हो जाए, फिर नहीं मिला करती।' (पृष्ठ-90)
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उपन्यास में कुछ बातें है जो कहानी की दृष्टि से थोङी अजीब लगती है।
- गीता का पति गीता व अपने ससुर पर अत्याचार करता है, वह भी तब, जब की सब प्रोपर्टी उसके नाम हो चुकी है और बाकी भी भविष्य में उसे मिलने वाली है। इस स्थिति में आदमी ऐसा करेगा थोङा अजीब सा लगता है।
- जब गौतम सरीन युद्ध पर जा रहा होता है तब गीता उससे मिलने आती है, वह भी रात को लेकिन क्यों मिलने आती है कोई कारण स्पष्ट नहीं होता, सिर्फ कुछ लंबे-लंबे संवादों के।
-उपन्यास के मध्यांतर के पुर्व व पश्चात वाले भाग में सामंजस्य नहीं बैठता।
शीर्षक-
जैसा की उपन्यास का शीर्षक है- अदालत मेरा क्या करेगी। वैसा उपन्यास में कुछ भी नहीं है। यहाँ तक की उपन्यास में न तो कोई अदालत का दृश्य है, न कोई जज न कोई वकील।
जहाँ मध्यांतर से पुर्व उपन्यास पूर्णतः सामाजिक है वहीं बाद में शुद्ध थ्रिलर।
अगर उपन्यास के प्रथम भाग में लंबे-लंबे संवादों को काट कर छोटा कर दिया जाये और द्वितीय भाग पर ध्यान दिया जाये तो उपन्यास एक बार पढा का सकता है।
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उपन्यास- अदालत मेरा क्या करेगी
लेखक- टाइगर
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 240
मूल्य- 20₹
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इन दिनों मैंने टाइगर को इंटरनेट पर खूब सर्च किया पर इनके उपन्यासों के बारे में कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं।
पर एक साइट पर इनके बारे में बहुत कुछ मिला।
इनका परिचय, असली नाम आदि।
टाइगर की अन्य जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
टाइगर की साइट

36. गोलियों की बरसात- टाइगर

उपन्यासकार टाइगर का उपन्यास 'गोलियों की बरसात' एक रोचक व थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास की कहानी में कई रोचक मोङ हैं जो पाठक को प्रभावित करते हैं‌। पाठक जैसे -जैसे आगे बढता है वैसे -वैसे उसके सामने नये-नये रहस्य आते जाते हैं।
    उपन्यास का आधार एक कत्ल है, जिसमें एक युवक अनायास ही फस जाता है, और असली अपराधी आजाद घूमता है। युवक का दोस्त इस षडयंत्र को बेनकाब करने के लिए निकलता है तो उसे चौंकाने वाले कई रहस्य बता चलते हैं।
  जब वह कत्ल की वजह पता लगाने के लिए निकलता है तो दूसरी तरफ खलनायक भी इस युवक को मारने के लिए व्यग्र हो उठता है।
लेकिन जीत सत्य की होती है।
उपन्यास बहुत ही रोचक है।
         उपन्यास की कहानी की बात करें तो प्रशांत और संतराम दो चोर-जेबकतरे हैं। छोटी-मोटी चोरी कर अपना पेट पालने वाले हैं। एक रात संतराम उर्फ संतु एक घर में चोरी करने घुसता है। तिजोरी से रुपये निकालने के समय कोई अन्य व्यक्ति, उसी  कमरे में सोये घर के मालिक ' दीवान साहब' का खून कर देता है और इल्जाम आ जाता है चोर संतु पर।
जब संतु के दोस्त प्रशांत  को इस बात का पता लगता है तो वह सत्य का पता लगाने की कोशिश करता है।
   प्रशांत को पता चलता है की संतु जिस व्यक्ति की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार है, वह दीवान साहब वही है जिसकी फैक्ट्री में प्रशांत का भाई मैनेजर था।
यह वही दीवान है जिसकी बेटी कभी प्रशांत को प्यार करती थी।
          प्रशांत का भाई फैक्ट्री में काम करते वक्त एक ऐसा रहस्य जान गया था जिसके कारण उसकी जान चली गयी, और उसके पास जो महत्वपूर्ण कागज थे वे गायब हैं।
  प्रशांत जब दीवान साहब के घर जाता है तब दीवान साहब की बेटी, प्रशांत की प्रेयसी, उसे बताती है की दीवान साहब कुछ ऐसी बात जान गये थे जिसके कारण उनकी जान को खतरा पैदा हो गया था।
-आखिर वह क्या बात थी?
-क्या रहस्य था?
-जिसके कारण पहले फैक्ट्री का मैनेजर जान गवा बैठा और फिर फैक्ट्री का मालिक?
-कौन था असली कातिल?
-क्या था फैक्ट्री का राज?
-क्या प्रशांत उस रहस्य को जान सका?
-क्या संतु बेगुनाह साबित हो सका?
इस रहस्य ने और किस-किस की जान ली।
इन सब बातों का पता तो टाइगर का उपन्यास 'गोलियों की बरसात' पढ कर ही चलेगा।
उपन्यास के कथन-
  "रिश्ता जब जोङा जाता है- तब तोङा नहीं जा सकता।  जो तोङ देते हैं- वे रिश्ता जोङने के काबिल ही नहीं होते।"
      "पुलिस जनता की हिफाजत के लिए बनाई गयी है- लेकिन सरकारी वर्दी पहन लेने के बाद .........वही लोग रक्षा की आङ में स्वयं ही जनता को लूटते चले जाते हैं।
" पांचों उंगलियाँ तो एक समान नहीं होती......
मैं नहीं जानता । ये जरूर जानता हूँ, दोनों हाथों के अंगूठे एक बराबर होते हैं।"
उपन्यास की एक संक्षिप्त झलक- जो उपन्यास की कहानी को स्पष्ट करने के लिए पर्याप्त है।
"आप सोच रहें है- आपको जिंदा देखकर मुझे हैरानी क्यों नहीं हुयी?"-प्रशांत मुस्कुराया- " और फिर वह लाश किसकी थी- जिसका कत्ल किया गया था। आखिर एक हत्या तो हुयी थी। कोठी में गोली चली थी- किसी इन्सान का खून भी बहा था, और उस आदमी की सूरत हू-ब- हू आपसे कैसे मिलती थी। उस आदमी ने कोई मास्क नहीं पहना था। पहना होता तो पोस्टमार्टम के समय यह भेद जरूर खुल जाता। वह लाश किसकी थी मैं जानता हू।"
          थ्रिलर उपन्यास है जिसमें एक के बाद एक घटना घटती चली जाती है। प्रशांत के साथ-साथ भी इस रहस्य में उलझ जाता है की कातिल कत्ल क्यों कर रहा है।
हालांकि उपन्यास की गति धीमी है जिसके कारण पढने का स्वाद कम हो जाता है, लेकिन फिर भी कहानी पढी जा सकती है।
उपन्यास में किसी का कोई उलझाव या बिखराव नहीं है, यह उपन्यास की विशेषता है। पूरी कहानी एक ही सीध में निरंतर बिना रुकावट के चलती है।
       उपन्यास में ज्यादा पात्र नहीं हैं। जितने भी पात्र हैं सब कहानी के अनुसार उचित हैं। उपन्यास में कहीं भी अनावश्यक वार्ता या दृश्य नहीं है।है।
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उपन्यास- गोलियों की बरसात
लेखक- टाइगर
प्रकाशक- राजा पाॅकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 208
मूल्य- 15₹
(वर्तमान कीमतों में मूल्य परिवर्तन संभव है)
टाइगर के अन्य उपन्यासों की समीक्षा पढने के लिए यहाँ क्लिक करें।
जुर्म का चक्रव्यूह

35. इंसाफ मैं करुंगा- टाइगर

कहानी इंसाफ की
इंसाफ मैं करूंगा - टाइगर

एक साधारण सी कहानी है और वैसा ही उसका समापन है। अक्सर ऐसी कहानियाँ हिंदी फिल्मों में खूब देखने को मिलती हैं। अब पता नहीं उपन्यासकार वैसी ही बोरियत कथा क्यों लिख देते हैं जैसी ना जाने कितनी बार दोहराई जा चुकी हैं।
हालांकि समीक्षा वाला यह उपन्यास काफी पुराना है और हो सकता है तब इस प्रकार की कहानियाँ काफी प्रसिद्ध रही हों, पर अब कई वर्षों पश्चात ये उपन्यास/कहानी कोई असर नहीं छोङती।
        उपन्यास पढ लिया और इस पर समीक्षा लिखनी थी ताकी भविष्य के पाठक इन लेखकों की रचनाओं से परिचित हो सकें, बस इसलिए ये समीक्षा लिख रहा हूँ ।
हालांकि टाइगर के सभी उपन्यास ऐसे नहीं हैं, बहुत गजब उपन्यास भी इन्होंने लिखे हैं।
        अभी 17.04.2017 को टाइगर का क्रमशः पांचवां उपन्यास 'इंसाफ मैं करुंगा' पढा।
प्रस्तुत उपन्यास की कहानी पूर्णतः साधारण है।
सेठ किशन लाल और रूपचंद दोनों संयुक्त रूप से एक फैक्ट्री स्थापित करते हैं। इस फैक्ट्री की पनाह में सेठ रूपचंद स्मग्लिंग का कार्य करता है। एक दिन सेठ रूपचंद अपने मित्र किशनलाल की हत्या करवा कर उस फैक्ट्री पर कब्जा कर लेता है।
         सेठ किशन लाल की पत्नी अपने पुत्र-पुत्री के साथ शहर छोङ देती है। समयानुसार किशन लाल का पुत्र अजय जवान होकर सेठ रूपचंद से प्रतिशोध लेता है और फैक्ट्री का मालिक बन जाता है।
लो जी हो गयी 'इंसाफ मैं करूंगा' उपन्यास की कथा पूर्ण।
उपन्यास में कोई रोचकता नहीं है, धीमी रफ्तार व परम्परागत कहानी कोई खास असर पाठक पर नहीं छोड़ती । उपन्यास के कुछ संवाद अवश्य पढने लायक हैं।
उपन्यास नाम के अनुसार थ्रिलर है पर वास्तव में ये सामाजिक ज्यादा हो गयी।
संवाद-
-"दौलत की हवस आदमी को अंधा कर देती है। तब वह कुछ भी नहीं देख पाता। रिश्तों की बात भी भूल जाता है। इसी हवस के बढ जाने से वह अच्छे -बुरे  की तमीज खो बैठता है।"
- " आदमी के पास अगर दौलत का जहर एकत्र हो जाये तो वह नाग बन जाता है।" (पृष्ठ-27)
-"पूंजीपति लोग जब तक मजदूर के खून की आखिरी बूंद भी नहीं चूस लेते उसे मरने कहां देते हैं।" (पृष्ठ-39)
- "गरीबी में दर्जे नहीं हुआ करते। दर्जे तो अमीरों के होते हैं- लखपति, करोङपति और अरबपति। गरीब तो हर हाल में गरीब है। एक रूप है- एक ही परिभाषा।" (पृष्ठ-54)
- "गरीबी से ही जन्म लेता है कम्युनिज्म....और बराबरी का नारा।" (पृष्ठ-64)
-"गरीब के लिए प्यार जैसी भावना अनमोल है। वह जिसे चाहने लगता है- उसे निभाने के लिए टूट जाना कबूल कर लेता है। लेकिन अमीरों के लिए तो प्यार शब्द एक खेल से ज्यादा महत्व नहीं रखता। यह लोग अगर सुबह ब्रेकफास्ट करना भूल जाते हैं तो प्यार कर लेते हैं।" (पृष्ठ-102)
-" जहाँ इंसान को दो रोटी मिले - वहाँ सिर झुकाना पङता है। उस जगह का दर्जा मंदिर- मस्जिद के समान ही होता है।" (पृष्ठ-153)
- "बाहर जलती आग का तमाशा सभी देख पाते हैं...उसी आग की कुछ चिंगारियों से अपना घर जलने लगे तो आदमी सहन नहीं कर पाता, पीङा से चीख उठता है।" (पृष्ठ-177)
           उपर्युक्त संवाद पढ ही पता चलता है की उपन्यास में प्रेम-नफरत, ईर्ष्या-द्वेष, प्रतिशोध का रूप शामिल है।
उपन्यास का समापन सुखांत है।
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उपन्यास- इंसाफ मैं करूंगा
लेखक - टाइगर
प्रकाशक- राजा पाकेट बुक्स
पृष्ठ- 208
मूल्य- 15₹
(वर्तमान कीमतों के अनुसार मूल्य परिवर्तन संभव है)

34. इच्छाधारी- टाइगर

महेन्द्रगढ़ की बरसों से सुनसान पङी हवेली में- बीस साल पहले एक खूनी काण्ड हुआ था। और अब ठीक बीस साल बाद। उसी हवेली में एक-एक करके वो सभी किरदार जमा होने लगे- जो किसी ना किसी रूप से उस काण्ड से संबंधित थे।

ये पंक्तियां है टाइगर के उपन्यास 'इच्छाधारी' के अंतिम कवर पृष्ठ से।
चंद पंक्तियों को पढकर ही रोमांच का अहसास जागता है और मस्तिष्क में प्रश्न गूँजता है की बीस वर्ष पूर्व आखिर हवेली में क्या हुआ था ? और फिर बीस वर्ष बाद अचानक सभी पात्र उस हवेली में कैसे एकत्र होने लगे?
इन समस्त प्रश्नों का उत्तर तो पाठक को टाइगर का यह रोमांचक उपन्यास पढकर ही मिलेगा।
    कहानी- कहानी की बात करें तो 'इच्छाधारी' उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है। पाठक पल -पल सोचता है की आगे क्या होगा। कहानी है जेल से भागे हुए पांच खतरनाक अपराधियों की। पांचों अपराधी एक ऐसी हवेली में शरण लेते हैं जिसमें‌ बीस वर्ष पूर्व एक खूनी काण्ड हुआ था और उस के बाद हवेली के जीवित बचे दो पात्र दादी रुक्मिणी देवी और पोती सोनिया के अलावा कोई जिंदा नहीं बचता। दादी भी इस काण्ड के बाद इस हवेली को छोङ कर हजारों किलोमीटर दूर मुंबई जा बसती है, पर पोती के ख्वाबों में वह हवेली बार-बार आती है। और उस काण्ड के बीस वर्ष बाद एक अदृश्य शक्ति आखिर पोती को उस हवेली में आने के लिए मजबूर कर देती है।
   जब दादी-पोती उस हवेली में बीस वर्ष बाद कदम रखती हैं तो उसी रात जेल से फरार पांच कैदी वहाँ पहुँच जाते हैं। पांचों कैदी दादी-पोती व उनके साथ आये अन्य मेहमानों को कैद कर लेते है।
        जब सारे पात्र हवेली में एकत्र हो जाते हैं तब शुरु होता है प्रतिशोध का अनोखा सिलसिला। पर यह प्रतिशोध हवेली के अंदर नहीं लिया जाता है, यह तो प्रतिशोध हवेली के बाहर लिया जाता। हवेली में उपस्थित सदस्यों को भी पता नहीं चलता की आखिर ये हो क्या रहा है। जो भी सदस्य हवेली से बाहर गया वह वापस जिंदा नहीं लौटा, आश्चर्य यह है की जिन लोगों पर हत्या का शक है वे तो स्वयं कैद में है, फिर कातिल कौन है?
सोने का रहस्य- वर्षों पूर्व सूरजभान व उसके तीन साथियों द्वारा लूटा गया एक बैंक से सोना। और उसी के चक्कर में जेल भी गये, पर सोने की जानकारी किसी को नहीं दी।
आज बीस साल बाद जब हवेली से रात को सूरजभान का एक दोस्त गुप्त स्थान सोने को लेने गया तो उसकी लाश वापस लौटी।
अगली रात फिर सूरजभान के दो दोस्त सोना लेने गये, पर उनका हश्र भी वही हुआ
आखिर सोने का क्या रहस्य था?
क्या सोना अपनी जगह सुरक्षित था?
सोना लेने गये व्यक्तियों की हत्या कौन कर रहा था?
फिर लाश हवेली तक कैसे पहुंचती थी?
पात्र और संवाद- उपन्यास के संवाद ही पात्रों के बारे में बताने के लिए काफी है।
राणा ठाकुर- एक खतरनाक अपराधी। जिसके बारे में प्रसिद्ध है उसे कोई जेल कैद नहीं कर सकती। पर वास्तविकता कुछ और है।
"नहीं जेलर, नहीं । अपुन ऊपर नहीं जायेगा।"- राणा ठाकुर, जेलर की बात काटते हुए गुर्राया- " अभी इतना हौसला ऊपर वाले में भी नहीं है कि राणा ठाकुर को उसकी मर्जी के के वगैर ऊपर बुलाये।......बहुत तारीफ सुना था इधर की जेल का, इसलिए इधर आ गया मैं- तेरा जेल देखने के  वास्ते। वरणा राणा ठाकुर, जिसे नौ प्रांतों की पुलिस मिलकर नहीं रोक सकी- उसे इधर की पुलिस क्या बांध के रख सकती है?"
ऐसा है राणा ठाकुर। स्वयं तो जेल से फरार होता है साथ में चार और दुर्दांत अपराधियों को भी भगा ले जाता है।
सूरजभान- एक खतरनाक अपराधी। जिसे बीस वर्ष की सजा है, पर राणा ठाकुर की मदद से जेल से फरार हो जाता है।
और साथ में अपने तीन और साथियों को भी भगा ले जाता है।
दादी-पोती- महेन्द्रगढ़ की हवेली के अंतिम वारिस दादी और पोती सोनिया। जो बीस वर्ष बाद पुनः हवेली में आने को मजबूर हो जाते हैं।
सोनिया-  महेन्द्रगढ़ की हवेली में जब वह खूनी काण्ड हुआ था, उसके आठ माह बाद सोनिया का जन्म हुआ था। पर आश्चर्य तो इस बात का है की हर रात सोनिया के सपने में वहाँ के दृश्य सपने में आते हैं।
एक वृद्ध संन्यासी और उसके सामने बैठा एक बेबस नाग। आखिर क्या रहस्य था इन सपनों का।
  "हम अपने सवाल का जवाब चाहती हैं ग्रैनी! सूरजभान और उसके साथी हमारे डैडी के कातिल हैं?"
नागेश- हवेली का नौकर। एक ऐसा नौकर जिसके सामने राणा ठाकुर तक घबरा जाता है।
राणा ठाकुर जीवन में पहली बार किसी शख्स के सामने अपने आपको बौना महसूस कर रहा था।   क्या यह चमकदार आँखों वाला शख्स कोई मामूली नौकर था? लेकिन राणा ठाकुर का दिल नहीं माना।
आखिर क्या रहस्य था इस नौकर का।
वृद्ध योगी- जिसने वर्षा पूर्व जो भविष्यवाणी की थी वह आज पुर्णतः सत्य साबित हो रही थी।
डाॅक्टर नाडकर्णी व उसका पुत्र - डाॅक्टर नाडकर्णी अपने अय्याश पुत्र का विवाह सोनिया से करके सोनिया की अथाह संपति के सपने देख रहा था।
उपन्यास का शीर्षक- बीस वर्ष की तपस्या के बाद उसे वरदान प्राप्त था, इच्छाधारी रूप परिवर्तन का। लेकिन वह अपने वरदान का गलत प्रयोग कर बैठा।
क्या वह अपने उद्देश्य में सफल हो पाया।
  एक से बढकर एक रहस्यमयी, प्रतिशोध से भरे, लालची, खतरनाक और सनकी पात्रॊं से भरपूर है उपन्यास इच्छाधारी।
टाइगर का उपन्यास 'इच्छाधारी' बहुत ही रोचक उपन्यास है। मूलतः यह प्रतिशोध पर आधारित है, पर कहानी काफी रोचक होने के कारण पढने लायक है।
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उपन्यास- इच्छाधारी
लेखक- टाइगर
प्रकाशन- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 224
मूल्य- 15₹ (तात्कालिक)

33. जुर्म का चक्रव्यूह- टाइगर

जुर्म का चक्रव्यूह टाइगर का थ्रिलर उपन्यास है। जैसा की नाम से पता चलता है, इसमें कोई षडयंत्र रचा जा रहा है, ठीक होता भी यही है। जूर्म के चक्रव्यूह में एक शरीफ युवक फस भी जाता है।
      उपन्यास की कहानी की बात करें तो कहानी कोई ज्यादा लंबी नहीं है। कहानी भारतीय सेना से जुङे कुछ विशेष फाइलों से संबंधित है। जिसे कुछ विदेशी लोग गायब करना या चोरी करना चाहते हैं, इसके लिए वे एक चक्रव्यूह की रचना करते हैं और उसमें उपन्यास का नायक मुकेश गाँधी फस जाता है।
      मुकेश गाँधी का संरक्षक है ब्रिगेडियर लाल है, वही मुकेश गाँधी का पालन पोषण कर उसे एक योग्य व्यक्ति बनाता है।  विदेश से प्रशिक्षण प्राप्त कर मुकेश एक एक वाॅल्ट/तिजोरी/सेफ आदि को सुरक्षित बनाने की एजेंसी खोल लेता है।
       शाहजहाँपुर, पर भारतीय सेना के पास कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज आते हैं और उन दस्तावेज को सुरक्षित रखने के लिए जिस वाल्ट को और भी सुरक्षित बनाने का काम मुकेश गाँधी की एजेंसी को मिलता है। मुकेश को यह कार्य ब्रिगेडियर लाल साहब की मध्यस्थता से मिलता है, क्योंकि लाल साहब मुकेश की प्रतिभा को पहचाने हैं दूसरा लाल साहब की बेटी मोनिका की शादी भी मुकेश से होने वाली है। मुकेश की एजेंसी इस कार्य को पूरी दक्षता के साथ संपन्न करती है।
  वहीं जब देशद्रोही या खलनायक टीम को इस बात का पता चलता है की मुकेश गाँधी ने इस वाल्ट को अभेद्य बना दिया तो खलनायक टीम एक जूर्म का चक्रव्यूह रचाती है और जिसमें मुकेश गाँधी उलझ कर रह जाता है।
      अतः में मुकेश गाँधी खलनायक टीम को ही उस अभेद्य वाल्ट में कैद कर देता है। यहीं से कहानी में तीव्रता आती है। मुकेश गाँधी एक -एक जाल को काटता चला जाता है और देशद्रोहियों का पर्दाफाश करता है।
उपन्यास का अंत पाठक की सोच के विपरीत निकलता है।
उपन्यास बहुत ही धीमी गति से चलती है जिसके कारण पाठक को पढनें में आनन्द नहीं आता। थ्रिलर कहानी का आनन्द तभी आता है जब कथानक तीव्र गति वाला हो। इस उपन्यास का 75प्रतिशत भाग तो मुकेश गाँधी को वाल्ट लूटने के लिए तैयार करने में बीत जाता है।
उपन्यास के अंतिम कवर पृष्ठ लिखी चंद पंक्तियाँ पढ लीजिएगा-
  "आर्मी हैडक्वार्टर के उस वाल्ट में क्या था- जिसे हासिल करने की खातिर बहुत से लोग मारे जा रहे थे?
उस वाल्ट की खातिर षङयंत्रों का एक ऐसा सिलसिला शुरु हुआ जिसमें मुकेश गाँधी जैसे खुद्दार देशभक्त इंसान को भयानक ' जुर्म के चक्रव्यूह' में फंसा दिया।"
उपन्यास में कई प्रसंग अनावश्यक प्रतीत होते हैं, जिनके बिना भी कहानी आगे बढ सकती थी और उपन्यास की गति भी बनी रहती।
कहानी के 75 प्रतिशत भाग पर जहाँ नायक मुकेश गाँधी छाया रहता वहीं अंत में शेष भाग पर माला चौधरी।
माला चौधरी जहां एक तरफ अपने पति के होते हुए भी विवाहेतर संबंध रखती वहीं वह अंत में अपने पति की रक्षार्थ खून- खराबे पर उतर जाती है, और यही उपन्यास का अंतिम भाग माला चौधरी पर केन्द्रित है।
उपन्यास का अंत पाठक की सोच के विपरीत होने पर भी उपन्यास को कोई विशेष नहीं बना सकता क्योंकि उपन्यास का प्रारंभिक 75 भाग बहुत ही धीमी गति से  चलता है।
उपन्यास में पृष्ठ 79 पर मुकेश गाँधी को माला चौधरी के कुछ शब्द याद आते हैं, "तुम नहीं जानते मुकेश- वह आदमी विक्षिप्त है और विक्षिप्तता के दौर में वह किसी इंसान को हलाल करके उसका खून तक पी सकता है।"
ये पंक्तियाँ माला ने मुकेश को बहुत बाद में कही थी, लेकिन लेखक गलती से इन पंक्तियाँ का जिक्र पहले कर बैठा।
उपन्यास में कोई भी प्रभावी कथन या पात्र नहीं जो पाठक पर असर छोङ सके।
यह एक औसत श्रेणी का उपन्यास है।

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उपन्यास- जूर्म का चक्रव्यूह
लेखक-टाइगर
प्रकाशन- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 231
     

आश्रिता- संजय

कहानी वही है। आश्रिता- संजय श्यामा केमिकल्स की दस मंजिली इमारत समुद्र के किनारे अपनी अनोखी शान में खड़ी इठला रही थी। दोपहरी ढल चुकी थी और सू...