Sunday 16 April 2017

32. जूठन-2, ओमप्रकाश वाल्मीकि

आत्मकथा के इस दूसरे भाग की शुरुआत उन्होंने देहरादून की आॅर्डिनेंस फैक्ट्री में अपनी नियुक्ति से की है। नई जगह पर अपनी पहचान को लेकर आई समस्याओं के साथ-साथ यहाँ मजदूरों के साथ जुङी अपनी गतिविधियों का जिक्र करते हुए उन्होंने अपनी साहित्यिक सक्रियता का भी विस्तार से उल्लेख किया है। सहज, प्रवाहपूर्ण और आत्मीय भाषा में लिखी गयी यह पुस्तक देहरादून की यात्रा करती हुयी शिमला उच्च अध्ययन संस्थान और फिर उनके अस्वस्थ होने तक जाती है।
(जूठन आत्मकथा के अंतिम कवर पृष्ठ से)
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समीक्षा शीघ्र प्रकाशित
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पुस्तक- जूठन
विधा- आत्मकथा
लेखक- ओमप्रकाश वाल्मीकि
प्रकाशक- राधाकृष्ण पेपरबैक
पृष्ठ-152
मूल्य-150₹

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