रात में जागने वाले...
रैना @मिडनाइट- नितिन मिश्रा, हाॅरर उपन्यास
“अंधविश्वास ने आज भी हमारे देश, हमारे समाज के एक बहुत बड़े हिस्से को, इस कदर अँधा कर रखा है कि उन लोगों की नज़रों को एक इंसान और जानवर में फर्क नहीं दिखाई देता।”, रैना की आवाज़ क्रोध और उत्तेजना से काँप रही थी।
यह दृश्य है नितिन मिश्रा के उपन्यास 'रैना @ मिडनाइट' का। यह उपन्यास चार दोस्तों की कहानी है जो समाज में व्याप्त भूत-प्रेत के नाम पर फैले अंधविश्वास का खण्डन करने की जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियाँ उन्हे एक ऐसी जगह ले आती हैं जहाँ वे स्वयं नहीं समझ पाते की ये अंधविश्वास है या सत्य। और फिर एक के बाद ऐसी घटनाएं सामने आती हैं की पाठक हत्प्रभ रह जाता है।
लेखक महोदय ने जिस तरह से कहानी को बुना है वह बहुत गहरी और रोमांचक होती गयी है। दिमाग की नसों की सनसना देनी वाली यह कहानी अंत तक पाठक को स्वयं से चिपका कर रखती है और उसके बाद भी दिमाग में छायी रहती है।
एक बात मैं पहले स्पष्ट करना चाहूँगा, कहानी पर यहाँ ज्यादा चर्चा नहीं होगी क्योंकि कहानी इस ढंग से बुनी गयी है की कुछ कहने का अर्थ होगा कहानी के विषय में रहस्य, आनंद या मनोरंजन को खत्म कर देना। कहानी का वास्तविक आनंद आप तभी ले जायेंगे जब कहानी आपके सामने होगी और वह भी बिना किसी पूर्व अनुमान के।
यहाँ उपन्यास के कुछ दृश्य प्रस्तुत हैं।
1. “मैंने भी तुझे उस समय समझाया था कि मेरी बीवी पागल नहीं है, उस पर पिशाच का साया है, जिसकी वजह से वो खुद को जानवर समझने लगी है। वो खुद जानवरों की तरह व्यवहार करती है। अगर उसे यहाँ जानवरों के बीच नहीं बांधता तो ये घर और गाँव में ना जाने कितने लोगों पर हमला कर देती।”
2. “ये है मुन्नार का फेमस इको-पॉइंट।”, रानी इको पॉइंट की चोटी पर चढ़ते हुए बोली।
“यहाँ आवाज़ सचमुच इको होती है?”, विकास ने पूछा।
“ट्राय करके देख लो।”
“रानी!!!”, विकास दोनों हथेलियों का कुप्पा मुँह से लगाते हुए जोर से चिल्लाया।
“रानी... ...”, एक मिनट बीतते-बीतते उसकी आवाज़ इको हुई।
“यहाँ नीचे एक खूबसूरत झील है, क्या तुमलोग देखना चाहोगे?”, रानी ने पूछा। सभी सहर्ष तैयार हो गए और नीछे झील की तरफ बढ़ गे।
रैना सबसे पीछे थी। अचानक वो कुछ सोचकर इको पॉइंट पर ठिठकी। वो वापस चोटी पर पहुँची।
“रैना!!!”, रैना जोर से चिल्लाई।
कुछ देर तक सिर्फ हवाओं की सरसराहट उसके कानों से गुजरती रही। उसके बाद उसकी आवाज़ इको होकर वापस आई।
“इशानी!!! ...”
3. “यक्षिणी?”
“हाँ, यक्षिणी! यक्षिणी वो परालौकिक शक्तियां या वो स्त्रियाँ, लडकियां होती हैं, जिनकी मृत्यु बेहद दर्दनाक हुई हो। कोई ऐसी लड़की जिसके साथ दुराचार करके, उसकी हत्या कर दी गई हो, वो एक यक्षिणी का रूप ले सकती है। ये यक्षिणी देखने में बिलकुल आम जीते-जागते इंसानों के जैसी लगती है, ये इंसानों के बीच भी रह सकती है। ये अपना शिकार चुनकर उसपर घात लगाती है और शिकार को अपने रूप जाल में फँसा कर, पहले उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाती है, फिर उसकी जान ले लेती है।”, प्रत्युष एक ही सांस में बोलता चला गया।
उपन्यास के विषय में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा बस इतना की आप जब एक बार पढना आरम्भ करेंगे तो आप इस रोचक कथानक में खो जायेंगे। क्योंकि कथानक इतना गहरा है की उसमें से निकलना बहुत मुश्किल है। आप भी हार न माने क्योंकि उपन्यास की मुख्य पात्र रैना ने भी हार नहीं मानी थी- लेकिन रैना ने हथियार नहीं डाले थे। अपने जीवन का हर एक दिन, हर एक पल, वो जैसे उस गुत्थी को सुलझाने के मंसूबे बनाने में लगा रही थी, जिसने उसकी जिंदगी का रुख बदल दिया था।
मैंने हालांकि हाॅरर कहानियां ज्यादा तो नहीं पढी पर जितनी पढी हैं उनमें अधिकांश कहानियाँ मात्र घटनाएं प्रतीत होती हैं, उनमें कहीं सस्पेंश नहीं होता। लेकिन इस बिन्दु पर नितिन मिश्रा अन्य लेखकों से बहुत अलग हैं। इनकी रचनाओं में पाठक को हाॅरर के नाम पर पूरी संतुलित कथा मिलेगी और वह भी तार्किकता के साथ। हर घटना के पीछे कोई न कोई तर्क मिलेगा।
कहानी में तर्क आवश्यक भी है, अगर कोई घटना घटित हुयी है तो वह क्यों हुयी, और हुयी तो इसी समय और इन्हीं पात्रों के साथ क्यों हुयी। इन प्रश्नों को नितिन मिश्रा जी सहजता के साथ स्पष्ट करते चलते हैं।
हाॅरर कहानियों में ज्यादा गहरी शब्दावली की आवश्यकता नहीं होती लेकिन कहीं न कहीं कुछ कथन ऐसे आ ही जाते हैं जो बहुत प्रभावित करते हैं।
- इस दुनिया को हमेशा नए तमाशे की दरकार रहती है, पुराने खेल जल्द ही ज़माना अपने ज़हन से मिटा देता है।
उपन्यास में कुछ जगह मुझे कमियां महसूस हुयी जैसे अंग्रेजी शब्दावली का बहुत प्रयोग है, हालांकि उपन्यास के पात्र आधुनिक हैं, मीडिया जगत से सम्बन्धित हैं तो यह उनके दृष्टिकोण से सहज भाषा है पर पाठक के दृष्टि से थोड़ी से अखरती है।
उदाहरण देखें
“वी वर जस्ट हैविंग सम फन, दैट्स ऑल ऑफिसर!”, रैना अपने कंधे उचकाते हुए बोली।
वो इतनी कैजुअल दिख और साउंड कर रही थी कि उसकी एक्टिंग देख कर प्रत्युष और विकास के मुँह खुले रह गए। “डिटेल! आय नीड योर स्टेटमेंट इन डिटेल।”
“ओके! वी हैड ए कपल ऑफ़ ड्रिंक्स अराउंड मिड-नाईट, देन वी डिसाइडेड टू हैव सम फन। यू अंडरस्टैंड फन, इंस्पेक्टर?”, रैना ने अपने भोले से चेहरे पर बेपनाह मासूमियत लाते हुए कहा लेकिन उसकी आँखों में ज़माने भर की शरारत थी। “फन” को डिसक्राइब करने के लिए उसने अपने दोनों हाथों से भद्दा इशारा किया। इंस्पेक्टर के छक्के छूट गए, उसे लगा उसके कानो से धुंआ निकलने लगेगा।
“फ...फिर क्या हुआ?” “हम दोनों शशांक के रूम में गए, वी वांटेड टू मेक लव एंड वांटेड इट टू लास्ट लॉन्ग।”, रैना अपनी आवाज़ में मादकता लाते हुए बोली।
इंस्पेक्टर को अपना गला सूखता महसूस हो रहा था।
“सो बोथ ऑफ़ अस हैड एफिड्रीन टू मैक्सिमाईज़ द एक्सपीरियंस।”, रैना आँख मारते हुए बोली।
“व्हाट! यू गाइस हैड एफिड्रिन आफ्टर कनज्युमिंग अल्कोहल!!”, इंस्पेक्टर के कान खड़े हो गये।
कहानी में मनोवैज्ञानिक शब्दावली का वर्णन भी कहीं न कहीं कहानी में हल्की सी बाधा पहुंचाता है लेकिन वहीं इसका सकारात्मक पक्ष यह भी है की पाठक को कुछ अलग शब्दावली और कुछ मनोवैज्ञानिक रोगों की जानकारी भी मिलती है।
जैसे- “सेलेक्टिव एमनेशिया?”
या
''एक्सट्रीम इमोशनल फ़्ल्क्चुएशन, एंग्जाईटी और रेज़ का शिकार होता है। इंसान कभी बहुत ही खुशमिजाज़, मिलनसार और सहृदयी होता है तो कभी ईर्ष्या, द्वेष और घृणा से भरा हुआ। ऐसे लोग हमारे इर्द-गिर्द बहुसंख्या में होते हैं और आम जिंदगी बिता रहे होते हैं।”
उपन्यास का उपसंहार एक अलग तरीके का है वह नहीं होना चाहिए था, वह लेखक के पूर्व उपन्यास और वर्तमान लेखकों के इस प्रकार से लिखे जाने वाले तरीके का हि है।
इस उपन्यास में आपको मात्र हाॅरर कथानक ही नहीं बल्कि पाठक को हाॅरर के साथ-साथ थ्रिलर और सस्पेंश का अदभुत मिश्रण मिलता है। हाॅरर, थ्रिलर और सस्पेंश का वह काॅकटले
अगर आप हाॅरर कहानियाँ पढना पसंद करते हो तो यह उपन्यास वास्तव में अच्छा मनोरंजन करने में सक्षम है।
उपन्यास- रैना@ मिडनाइट
लेखक- नितिन मिश्रा
प्रकाशक- fly dreams
Publication date: 2 Apr 2020
पृष्ठ- 175
मूल्य
किंडल लिंक- रैना@ मिडनाइट- नितिन मिश्रा
रैना @मिडनाइट- नितिन मिश्रा, हाॅरर उपन्यास
“अंधविश्वास ने आज भी हमारे देश, हमारे समाज के एक बहुत बड़े हिस्से को, इस कदर अँधा कर रखा है कि उन लोगों की नज़रों को एक इंसान और जानवर में फर्क नहीं दिखाई देता।”, रैना की आवाज़ क्रोध और उत्तेजना से काँप रही थी।
यह दृश्य है नितिन मिश्रा के उपन्यास 'रैना @ मिडनाइट' का। यह उपन्यास चार दोस्तों की कहानी है जो समाज में व्याप्त भूत-प्रेत के नाम पर फैले अंधविश्वास का खण्डन करने की जिम्मेदारी लेते हैं, लेकिन कुछ परिस्थितियाँ उन्हे एक ऐसी जगह ले आती हैं जहाँ वे स्वयं नहीं समझ पाते की ये अंधविश्वास है या सत्य। और फिर एक के बाद ऐसी घटनाएं सामने आती हैं की पाठक हत्प्रभ रह जाता है।
लेखक महोदय ने जिस तरह से कहानी को बुना है वह बहुत गहरी और रोमांचक होती गयी है। दिमाग की नसों की सनसना देनी वाली यह कहानी अंत तक पाठक को स्वयं से चिपका कर रखती है और उसके बाद भी दिमाग में छायी रहती है।
एक बात मैं पहले स्पष्ट करना चाहूँगा, कहानी पर यहाँ ज्यादा चर्चा नहीं होगी क्योंकि कहानी इस ढंग से बुनी गयी है की कुछ कहने का अर्थ होगा कहानी के विषय में रहस्य, आनंद या मनोरंजन को खत्म कर देना। कहानी का वास्तविक आनंद आप तभी ले जायेंगे जब कहानी आपके सामने होगी और वह भी बिना किसी पूर्व अनुमान के।
यहाँ उपन्यास के कुछ दृश्य प्रस्तुत हैं।
1. “मैंने भी तुझे उस समय समझाया था कि मेरी बीवी पागल नहीं है, उस पर पिशाच का साया है, जिसकी वजह से वो खुद को जानवर समझने लगी है। वो खुद जानवरों की तरह व्यवहार करती है। अगर उसे यहाँ जानवरों के बीच नहीं बांधता तो ये घर और गाँव में ना जाने कितने लोगों पर हमला कर देती।”
2. “ये है मुन्नार का फेमस इको-पॉइंट।”, रानी इको पॉइंट की चोटी पर चढ़ते हुए बोली।
“यहाँ आवाज़ सचमुच इको होती है?”, विकास ने पूछा।
“ट्राय करके देख लो।”
“रानी!!!”, विकास दोनों हथेलियों का कुप्पा मुँह से लगाते हुए जोर से चिल्लाया।
“रानी... ...”, एक मिनट बीतते-बीतते उसकी आवाज़ इको हुई।
“यहाँ नीचे एक खूबसूरत झील है, क्या तुमलोग देखना चाहोगे?”, रानी ने पूछा। सभी सहर्ष तैयार हो गए और नीछे झील की तरफ बढ़ गे।
रैना सबसे पीछे थी। अचानक वो कुछ सोचकर इको पॉइंट पर ठिठकी। वो वापस चोटी पर पहुँची।
“रैना!!!”, रैना जोर से चिल्लाई।
कुछ देर तक सिर्फ हवाओं की सरसराहट उसके कानों से गुजरती रही। उसके बाद उसकी आवाज़ इको होकर वापस आई।
“इशानी!!! ...”
3. “यक्षिणी?”
“हाँ, यक्षिणी! यक्षिणी वो परालौकिक शक्तियां या वो स्त्रियाँ, लडकियां होती हैं, जिनकी मृत्यु बेहद दर्दनाक हुई हो। कोई ऐसी लड़की जिसके साथ दुराचार करके, उसकी हत्या कर दी गई हो, वो एक यक्षिणी का रूप ले सकती है। ये यक्षिणी देखने में बिलकुल आम जीते-जागते इंसानों के जैसी लगती है, ये इंसानों के बीच भी रह सकती है। ये अपना शिकार चुनकर उसपर घात लगाती है और शिकार को अपने रूप जाल में फँसा कर, पहले उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाती है, फिर उसकी जान ले लेती है।”, प्रत्युष एक ही सांस में बोलता चला गया।
उपन्यास के विषय में ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा बस इतना की आप जब एक बार पढना आरम्भ करेंगे तो आप इस रोचक कथानक में खो जायेंगे। क्योंकि कथानक इतना गहरा है की उसमें से निकलना बहुत मुश्किल है। आप भी हार न माने क्योंकि उपन्यास की मुख्य पात्र रैना ने भी हार नहीं मानी थी- लेकिन रैना ने हथियार नहीं डाले थे। अपने जीवन का हर एक दिन, हर एक पल, वो जैसे उस गुत्थी को सुलझाने के मंसूबे बनाने में लगा रही थी, जिसने उसकी जिंदगी का रुख बदल दिया था।
मैंने हालांकि हाॅरर कहानियां ज्यादा तो नहीं पढी पर जितनी पढी हैं उनमें अधिकांश कहानियाँ मात्र घटनाएं प्रतीत होती हैं, उनमें कहीं सस्पेंश नहीं होता। लेकिन इस बिन्दु पर नितिन मिश्रा अन्य लेखकों से बहुत अलग हैं। इनकी रचनाओं में पाठक को हाॅरर के नाम पर पूरी संतुलित कथा मिलेगी और वह भी तार्किकता के साथ। हर घटना के पीछे कोई न कोई तर्क मिलेगा।
कहानी में तर्क आवश्यक भी है, अगर कोई घटना घटित हुयी है तो वह क्यों हुयी, और हुयी तो इसी समय और इन्हीं पात्रों के साथ क्यों हुयी। इन प्रश्नों को नितिन मिश्रा जी सहजता के साथ स्पष्ट करते चलते हैं।
हाॅरर कहानियों में ज्यादा गहरी शब्दावली की आवश्यकता नहीं होती लेकिन कहीं न कहीं कुछ कथन ऐसे आ ही जाते हैं जो बहुत प्रभावित करते हैं।
- इस दुनिया को हमेशा नए तमाशे की दरकार रहती है, पुराने खेल जल्द ही ज़माना अपने ज़हन से मिटा देता है।
उपन्यास में कुछ जगह मुझे कमियां महसूस हुयी जैसे अंग्रेजी शब्दावली का बहुत प्रयोग है, हालांकि उपन्यास के पात्र आधुनिक हैं, मीडिया जगत से सम्बन्धित हैं तो यह उनके दृष्टिकोण से सहज भाषा है पर पाठक के दृष्टि से थोड़ी से अखरती है।
उदाहरण देखें
“वी वर जस्ट हैविंग सम फन, दैट्स ऑल ऑफिसर!”, रैना अपने कंधे उचकाते हुए बोली।
वो इतनी कैजुअल दिख और साउंड कर रही थी कि उसकी एक्टिंग देख कर प्रत्युष और विकास के मुँह खुले रह गए। “डिटेल! आय नीड योर स्टेटमेंट इन डिटेल।”
“ओके! वी हैड ए कपल ऑफ़ ड्रिंक्स अराउंड मिड-नाईट, देन वी डिसाइडेड टू हैव सम फन। यू अंडरस्टैंड फन, इंस्पेक्टर?”, रैना ने अपने भोले से चेहरे पर बेपनाह मासूमियत लाते हुए कहा लेकिन उसकी आँखों में ज़माने भर की शरारत थी। “फन” को डिसक्राइब करने के लिए उसने अपने दोनों हाथों से भद्दा इशारा किया। इंस्पेक्टर के छक्के छूट गए, उसे लगा उसके कानो से धुंआ निकलने लगेगा।
“फ...फिर क्या हुआ?” “हम दोनों शशांक के रूम में गए, वी वांटेड टू मेक लव एंड वांटेड इट टू लास्ट लॉन्ग।”, रैना अपनी आवाज़ में मादकता लाते हुए बोली।
इंस्पेक्टर को अपना गला सूखता महसूस हो रहा था।
“सो बोथ ऑफ़ अस हैड एफिड्रीन टू मैक्सिमाईज़ द एक्सपीरियंस।”, रैना आँख मारते हुए बोली।
“व्हाट! यू गाइस हैड एफिड्रिन आफ्टर कनज्युमिंग अल्कोहल!!”, इंस्पेक्टर के कान खड़े हो गये।
कहानी में मनोवैज्ञानिक शब्दावली का वर्णन भी कहीं न कहीं कहानी में हल्की सी बाधा पहुंचाता है लेकिन वहीं इसका सकारात्मक पक्ष यह भी है की पाठक को कुछ अलग शब्दावली और कुछ मनोवैज्ञानिक रोगों की जानकारी भी मिलती है।
जैसे- “सेलेक्टिव एमनेशिया?”
या
''एक्सट्रीम इमोशनल फ़्ल्क्चुएशन, एंग्जाईटी और रेज़ का शिकार होता है। इंसान कभी बहुत ही खुशमिजाज़, मिलनसार और सहृदयी होता है तो कभी ईर्ष्या, द्वेष और घृणा से भरा हुआ। ऐसे लोग हमारे इर्द-गिर्द बहुसंख्या में होते हैं और आम जिंदगी बिता रहे होते हैं।”
उपन्यास का उपसंहार एक अलग तरीके का है वह नहीं होना चाहिए था, वह लेखक के पूर्व उपन्यास और वर्तमान लेखकों के इस प्रकार से लिखे जाने वाले तरीके का हि है।
इस उपन्यास में आपको मात्र हाॅरर कथानक ही नहीं बल्कि पाठक को हाॅरर के साथ-साथ थ्रिलर और सस्पेंश का अदभुत मिश्रण मिलता है। हाॅरर, थ्रिलर और सस्पेंश का वह काॅकटले
अगर आप हाॅरर कहानियाँ पढना पसंद करते हो तो यह उपन्यास वास्तव में अच्छा मनोरंजन करने में सक्षम है।
उपन्यास- रैना@ मिडनाइट
लेखक- नितिन मिश्रा
प्रकाशक- fly dreams
Publication date: 2 Apr 2020
पृष्ठ- 175
मूल्य
किंडल लिंक- रैना@ मिडनाइट- नितिन मिश्रा
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