Tuesday 10 December 2019

246. दिलेर मुजरिम- इब्ने सफी

इब्ने सफी का प्रथम उपन्यास
दिलेर मुजरिम- इब्ने सफी

जासूसी दुनिया- अंक-01

कहते हैं कि जिन दिनों अंग्रेज़ी में जासूसी उपन्यासों की जानीमानी लेखिका अगाथा क्रिस्टी का डंका बज रहा था, किसी ने उनसे पूछा कि इतनी बड़ी तादाद में अपने उपन्यासों की बिक्री और अपार लोकप्रियता को देख कर उन्हें कैसा लगता है। अगाथा क्रिस्टी ने जवाब दिया कि इस मैदान में वे अकेली नहीं हैं, दूर हिन्दुस्तान में एक और उपन्यासकार है जो हरदिल अज़ीज़ी और किताबों की बिक्री में उनसे कम नहीं है। यह उपन्यासकार था- इब्ने सफी। ( उपन्यास से)
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        इसरार अहमद उर्फ इब्ने सफी साहब का जासूसी दुनिया पत्रिका में सन् 1942 में प्रथम उर्दू उपन्यास प्रकाशित हुआ 'बहादुर अपराधी' जो की बाद में हिन्दी में 'दिलेर मुजरिम' के नाम से भी प्रकाशित हुआ। यह इब्ने सफी का पहला उपन्यास है, और यह 'जासूसी दुनिया' पत्रिका में प्रकाशित हुआ , हार्पर काॅलिंस द्वारा प्रकाशित इब्ने सफी का पहला उपन्यास है, इंस्पेक्टर फरीदी और हमीद का पहला उपन्यास है और इस ब्लॉग पर समीक्षार्थ इब्ने सफी का पहला उपन्यास है।
अब चर्चा करते है उपन्यास कथानक की। उपन्यास का आरम्भ डाॅक्टर शौकत से होता है। शौकत अली की माँ सविता देवी का कत्ल हो जाता है। (बेटा शौकत और माँ सविता, यह भी एक रहस्य है)
सविता देवी सिर से पाँव तक कम्बल ओढ़े चित लेटी हुई थी और उनके सीने में एक ख़ंजर इस तरह घोंपा गया था कि सिर्फ़ उसका हत्था नज़र आ रहा था। बिस्तर ख़ून से तर था।
इस कत्ल की खोजबीन के लिए इंस्पेक्टर फरीदी और हमीद का आगमन होता है।
इन्स्पेक्टर फ़रीदी तीस-बत्तीस साल का एक तेज़ दिमाग़ और बहादुर जवान था। उसके चौड़े माथे के नीचे दो बड़ी-बड़ी आँखें उसकी क़ाबिलियत को नुमायाँ करती थीं। उसके लिबास के रख-रखाव और ताज़ा शेव किये चेहरे से मालूम हो रहा था वह एक उसूल वाला आदमी है। सार्जेंट हमीद की चाल-ढाल में थोड़ा-सा ज़नानापन था। उसके अन्दाज़ से मालूम होता था कि वह ज़बर्दस्ती अपने हुस्न की नुमाइश करने का आदी था। उसने कोई बहुत ही तेज़ ख़ुशबू वाला सेंट लगा रखा था। उसकी उम्र चौबीस साल से ज़्यादा न थी, लेकिन इस छोटी-सी उम्र में भी वह बहुत चतुर और बुद्धिमान था।
         फरीदी एक रहस्य से आवरण हटाता है - अब मामला बिलकुल ही साफ़ हो गया कि सविता देवी डॉक्टर ही के धोखे में क़त्ल हुई थीं।
कहानी का दूसरा घटनाक्रम है नवाब वजाहत मिर्जा का। मिर्जा के बीमार होने पर उनके रिश्तेदार उसकी सम्पत्ति को हड़पना चाहते हैं। लेकिन यहाँ भी इंस्पेक्टर फरीदी का आगमन हो जाता है।
अब दोनों घटनाक्रम कैसे एक होते हैं‌ और कौन षड्यंत्र रचता है, यह पठनीय है। क्या कारण रहा था की डाॅक्टर शौकत की माँ का कत्ल कर दिया जाता है। यह सब काम एक चालाक अपराधी द्वारा किया जाता है जो पर्दे के पीछे रहकर खतरनाक खेल खेलता है। इंस्पेक्टर फरीदी भी अपराधी की बुद्धिमता को मानता है।
ऐसा बहादुर अपराधी आज तक मेरी नज़रों से नहीं गुज़रा...!
‘‘आइए...तो चलिए, उसे तलाश करें।’’ हमीद ने कहा।
‘‘पागल हो गये हो...अब तुम उसकी परछाईं को भी नहीं पा सकते। वह मामूली दिमाग़ का आदमी नहीं।’’

        अपराधी की जासूस वर्ग की आँखमिचौली उपन्यास में निरंतर चलती रहती है। हालांकि मध्यांतर पश्चात अपराधी का पता चल जाता है लेकिन उसको पकड़ने के लिए फरीदी जो जाल बुनता है वह फरीदी के बुद्धि कौशल का कमाल पठनीय है।

उपन्यास में हमीद का चित्रण अधिकांश हास्य उपस्थित करने के लिए किया गया है लेकिन उपन्यास में उपस्थित वैज्ञानिक प्रोफेसर इमरान का किरदार बहुत रोचक है। वह सनकी है, पागल है और हास्य पैदा करने वाला भी है।

‘‘मुझसे मिलिए...मैं प्रोफ़ेसर इमरान हूँ।’’ उसने हाथ मिलाने के लिए दायाँ हाथ बढ़ाते हुए कहा। ‘‘और आप...!"
‘‘मुझे शौकत कहते हैं...!’’ शौकत ने बेदिली से हाथ मिलाते हुए कहा।
डॉक्टर शौकत रुक गया। उसे महसूस हुआ जैसे उसके जिस्म के सारे रोयें खड़े हो गये हों। इतनी ख़ौफ़नाक शक्ल का आदमी आज तक उसकी नज़रों से न गुज़रा था।


उपन्यास में एक जगह वर्णन आता है। जहाँ हमीद जासूस फरीदी को कहता है।
...इस वक़्त तो आप किसी चालीस रुपये वाले जासूसी नावेल के जासूस की तरह बोल रहे हैं।’’ हमीद बोला।
उस समय चालीस रूपये की उपन्यास की कल्पना असंभव सी जान पड़ती है या यह हार्पर काॅलिंस की मुद्रण गलती है।

निष्कर्ष-
          हत्या और फिर अपराधी की खोज पर आधारित यह छोटा सा उपन्यास वास्तव में दिलचस्प है। हालांकि खलनायक का पता मध्यांतर पश्चात चल जाता है लेकिन उसके पीछे का कारण, हत्या के तरीके आदि उपन्यास को बांधे रखते हैं।
उपन्यास रोचक और पठनीय है।


उपन्यास- दिलेर मुजरिम (प्रथम संस्करण- मार्च, 1942)
लेखक- इब्ने सफी
प्रकाशक- हार्पर काॅलिंस

इब्ने सफी का प्रथम उपन्यास

2 comments:

  1. इब्ने सफी के उपन्यास विशेषकर जासूसी दुनिया श्रृंखला के उपन्यास मुझे भी काफी पसंद आये थे। यह उपन्यास जब पढ़ा था तब अच्छा लगा था। बस दुःख ये होता है कि हार्पर वालों ने कुछ ही उपन्यास निकाले। और निकालते तो मज़ा आ जाता।

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    1. हार्पर वालों का प्रयास अच्छा था। उन्होंने इब्ने सफी जी के कुल 16 उपन्यास निकाल थे।
      उम्मीद है आगे यह प्रयास जारी रहेगा।

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