Monday 30 December 2019

260. कादम्बिनी पत्रिका

सन् 2019 के साहित्य जगत का विवरण
कादम्बिनी- दिसंबर,2019

कादम्बिनी दिसंबर 2019 अंक पढने को मिला।
'शब्दों की दुनिया' आवरण कथा है। यह अंक सन् 2019 में साहित्य की विभिन्न विधाओं में आयी हुयी किताबों पर आधारित है। विभिन्न विषयों की किताबें हिन्दी में आयी और नये-नये लेखक भी उपस्थित हुये हैं।
स्थायी स्तंभ के अतिरिक्त कहानियाँ, आलेख, रोचक जानकारी जैसे अन्य काॅलम भी आकर्षक हैं।

      अनामिका जी का आलेख 'खुल रही हैं अलग-अलग राहें' में से 'किताबों की दुनिया इस साल काफी समृद्ध रही, लगभग सभी विधाओं में। अच्छी बात यह रही कि अब बड़े और छोटे प्रकाशकों का भेद मिट रहा है और साहित्येतर विधाओं में, खासकर ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी प्रकाशकों की रूचि बढी है। यह हिन्दी की अपनी जनतांत्रिक परम्परा है, जो निरंतर विकसित हो रही है।'
      ‌‌इस आलेख में सन् 2019 में प्रकाशित विभिन्न किताबों की चर्चा की गयी है। यह आलेख बहुत सी किताबों से परिचय करवाता है। मुझे कुछ और पठनीय किताबों की जानकारी उपलब्ध हुयी।
        सबसे अच्छी चर्चा लगी चित्रा मुद्गल जी की। वे 'हाशिये पर नहीं रहे हाशिये के लोग' शीर्षक से साहित्य में फैले भ्रष्ट वातावरण का खुल कर चित्रण करती नजर आती हैं। इस आलेख में चित्रा जी ने कुछ पठनीय रचनाओं का जिक्र किया है तो साथ ही उन रचनाओं की चर्चा भी की है जो साहित्य के नाम पर कचरा फैला रहे हैं। इस क्रम को आगे बढाते हुए सविता सिंह जी 'जगर-मगर बाजार लेकिन...'' शीर्षक आलेख में लिखती हैं की "...साहित्य को कतई सिर्फ कलात्मक मनोरंजन के लिए नहीं, अपितु परिवर्तन के औजार के रूप में लिया गया है। ऐसे कवि जब मिलते हैं, तो देश दुनिया के बारे में चिंता करते हैं।"
       अगर देखा जाये तो वर्तमान अधिकांश साहित्य मात्र पठन-पाठन तक सीमित होकर रह गया, लेखक को सिर्फ 'वाह-वाही' चाहिए उसे समाज से कोई सरोकार नहीं रहा। आजकल तो अश्लिलता भी साहित्य होकर बिक रही है और ऐसे लोग, अश्लील लिखने वाले स्वयं को साहित्यकार भी कहलवाने लग गये। इस बात को आधार बना कर कभी प्रेमचंद ने लिखा है- 'कला संयम और संकेत में है।' जब यह संयम और संकेत तोड़ दिये जाते हैं तो कला भी विकृत हो जाती है।
'साहित्य की नई प्रवृत्ति' आलेख में प्रेमचंद जी लिखते है की 'नंगे चित्र और मूर्तियाँ बनाना कला का चमत्कार समझा जाता है। वह भूल जाता है कि वह काजल जो आंखों को शोभा प्रदान करता है, अगर मुँह पर पोत दिया जाए, तो रूप को विकृत कर देता है। (पृष्ठ-46)

इस अंक में कुल तीन कहानियाँ है। यू. आर. अनंतमूर्ति की 'घटश्राद्ध', कृष्णा अग्निहोत्री की 'मुखोटे' और राजेन्द्र राव की 'वत्सल'। तू तो तीनों कहानियाँ अच्छी हैं लेकिन 'घटश्राद्ध' बहुत ही मार्मिक रचना है। इस कहानी को पढने वक्त मेरे मानस में जैनेन्द्र का उपन्यास 'त्यागपत्र' घूमता रहा। 'वत्सल' कहानी आधुनिक दौर की कहानी है जहां एक दादा-पोते के प्रेम को पोते की माँ से सहन नहीं होता। कहानी 'मुखौटे' भाव स्तर पर अच्छी रचना है पर उसमें ज्यादा पात्र और नकारात्मक विचारों के कार मुझे अच्छी नहीं लगी।

गीतकार शैलेन्द्र जी के पुत्र 'दिनेश शैलेन्द्र' का अपने पिता की पुण्यतिथि 14 दिसंबर पर आलेख 'राजकपूर की आत्मा थे शैलेन्द्र' बहुत ही दिलचस्प है। इस आलेख में राजकपूर और शैलेन्द्र जी के कुछ रोचक किस्से वर्णित है।

    'नई हिन्दी' के नाम से आजकल चर्चित साहित्य पर दिव्य प्रकाश दूबे ने अच्छी सामग्री दी है। अज्ञेय और सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के आलेख भी काफी रोचक और ज्ञानवर्धक हैं।
प्रस्तुत अंक में स्थायी स्तंभ के अतिरिक्त और बहुत कुछ पठनीय सामग्री उपलब्ध है। साहित्य प्रेमियों के लिए यह अंक अच्छी जानकारी प्रदान करता है।

पत्रिका- कादम्बिनी
अंक- दिसंबर-2019
मूल्य- 30₹

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