Friday 17 January 2020

261. अक्टूबर जंक्शन- दिव्य प्रकाश दूबे

इस प्यार को क्या नाम दूं?
अक्टूबर जंक्शन- दिव्य प्रकाश दूबे
नये लेखकों में दिव्य प्रकाश दुबे जी ने कम समय में अपनी अच्छा पहचान स्थापित की है। नयी उम्र के पाठकों में इनकी रचनाएँ काफी चर्चित रही हैं।
           दिव्य प्रकाश दुबे का उपन्यास 'अक्टूबर जंक्शन' लगभग एक साल से मेरे पास पड़ा था पर इस उपन्यास को कभी पढने का अवसर ही नहीं मिला। सन् 2020 में मेरे द्वारा पढे जाने वाली यह प्रथम रचना है।
        'अक्टूबर जंक्शन' एक प्रेम कथा है, हालांकि इसे पूर्णतः प्रेम कथा भी नहीं कहा जा सकता। यह दोस्ती और प्रेम के समानांतर चलती वाली एक 'ठहरी सी कथा' है। ऐसी कथा जिसके लिए बस यही कहा जा सकता है- 'इस प्यार को क्या नाम दूं।'
www.svnlibrary.blogspot.in

        यह किस संदर्भ में ठहरी है यह भी स्पष्ट कर लेते हैं।। उपन्यास का नायक सुदीप यादव और चित्रा पाठक संयोग से दोस्त हैं। यह दोस्ती भी संयोग से होती है और अजीब भी है, क्योंकि दोनों साल में एक तय समय पर ही मिलते हैं,वह भी साल में एक बार और यह सिलसिला अनवरत दस साल तक चलता है। इस तय समय के अलावा दोनों में कोई संपर्क भी नहीं होता। दोनों की एक-दूसरे की जिंदगी में साल में एक दिन ही सही लेकिन पक्की जगह है। (पृष्ठ-84)
इसी वजह से कहानी मुझे ठहरी सी लगती है। हालांकि यह दस साल पठन दौरान दस दिन की तरह गुजर जाते हैं।
       अब बात करे 'अक्टूबर जंक्शन' के कथानक की। सुदीप यादव कम समय में भारत का श्रेष्ठ स्टार्टर बन कर उभरता है। उसकी कम्पनी बहुत कम समय में नयी उंचाइयों को छूती लेती है।‌ लेकिन सुदीप यादव के मन में एक विरक्ति है जो उसे कभी-कभी अपने काम से दूर एकांत में ले जाती है। वही चित्रा पाठक परिस्थितियों की मार से बचने के लिए और अपने रोजगार के लिए कुछ नया करना चाहती है।- औरतों को नजारा बदलने के लिए आदमी से ज्यादा चलना पड़ता है। चित्रा का रास्ता लम्बा भी था और अलग भी इसलिए मुश्किल ज्यादा न भी हो लेकिन नयी थी। (पृष्ठ-83)
       चित्रा का यह सफर वास्तव के में सुदीप के सफर से अलग और कठिन है। चित्रा जहाँ से सफर आरम्भ करती है और अंत में वहीं आकर ठहर जाती है।
       संयोग दोनों को बनारस में मिला देता है। प्रथम परिचय एक नाम मात्र की दोस्ती में परिवर्तित होता है। और फिर यह दोस्ती एक किताब के माध्यम से आगे बढती है।
लेकिन कुछ परिस्थितियों दोनों की जिंदगी में एक ऐसा परिवर्तन ले आती हैं जिसकी कल्पना किसी ने नहीं की।
      असल में प्यार को हमने जिंदगी में जरूरत से ज्‍यादा जगह दे रखी है। हमें प्यार से जगह बचाकर कभी-कभी कभार ऐसे ही शहर से दूर चले जाना चाहिए, जहां रिश्ते में प्यार तो हो लेकिन प्यार का नाम न हो। (पृष्ठ-60)
सुदीप और चित्रा के रिश्ते को परिभाषित करती उक्त पंक्तियाँ उपन्यास का सार भी है।
        उपन्यास अच्छा और दिलचस्प है। बस उपन्यास को दस साल तक लंबा खींचना कुछ अजीब सा लगता है। वह भी तक की वो 365 दिन में से 364 दिन तक किसी भी प्रकार का परस्पर संपर्क तक नहीं रखते।

उपन्यास में कुछ रोमानी और नीतिगत संवाद/पंक्तियाँ है जो लेखक के साथ-साथ पात्रों की भावनाओं को उजागर करने में सक्षम है।
- हम शाम होने तक अपनी पीछे एक पूरी दुनिया खोकर घर लौटते हैं। दिन ऐसे ही खाली होकर साल हो जाते हैं। (पृष्ठ-85)

- कुछ रिश्तों को ऐसे ही छूना चाहिए जैसे ठण्ड में घास पर जमी ओस की बूँद को नंगे पाँव छूते हैं। (पृष्ठ-106)

- जिंदगी एक हद तक ही परेशान करती है। उसके बाद वो खुद ही हाथ थाम लेती है। (पृष्ठ-109)

- आसमान हमें उन सारी ख्वाहिशों को देख‌ने की आँखें देता है जो जमीन पर बेकाम की बातों में उलझी रहती हैं।
(पृष्ठ-131)
'अक्टूबर जंक्शन' प्रेम और दोस्ती पर आधारित आधुनिक जीवन शैली का उपन्यास है। अगर आपको प्रेम परक रचनाएँ अच्छी लगती हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आयेगा। हां, उपन्यास का समापन पाठक को भावुक करने में सक्षम है।
My new laptop with Book
उपन्यास- अक्टूबर जंक्शन 

लेखक-    दिव्य प्रकाश दुबे
प्रकाशक- हिन्द युग्म
पृष्ठ-        150
अमेजन लिंक-  अक्टूबर जंक्शन

No comments:

Post a Comment

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...