Friday 31 January 2020

264. समुद्र में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक

क्यों हुआ समुद्र में खून....
समुद्र में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक, मर्डर मिस्ट्री उपन्यास
सुनील सीरिज-02

      सुरेन्द्र मोहन पाठक जी ने जी अपने उपन्यास लेखक की शुरुआत सुनील चक्रवर्ती सीरीज से की थी। सुनील सीरीज का प्रथम उपन्यास था 'पुराने गुनाह, नये गुनहगार' और द्वितीय उपन्यास है 'समुद्र में खून' दोनों ही मर्डर मिस्ट्री हैं।
वर्तमान में हार्डकाॅपी में ये उपन्यास उपलब्ध नहीं हैं लेकिन Ebook के रूप में विभिन्‍न प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। मैंने भी ये उपन्यास Kindle पर पढा था। छोटा सा उपन्यास है जिसे आसानी से पढा जा सकता है। 
दीपा नाम की एक विवाहित महिला मुरलीधर को सात हजार का प्रोनोट लिखकर दे आयी है। उसके पास इस समय अपना लिखा कागज वापिस लेने के रुपये नहीं हैं जबकि उसका पति उस कागज को हथियाने के लिए सात हजार से अधिक भी देने के लिए तैयार है।
और इस केस में प्रवेश करता है ब्लास्ट अखबार का पत्रकार सुनील चक्रवर्ती। जो किसी परिस्थिति वश उस प्रोनोट को प्राप्त करना चाहता है- मेरी दिलचस्प यह है कि वह कागज पति के हाथ नहीं पहुंचना चाहिए।


सुनील का इस केस में हस्तक्षेप स्वयं उसके लिए मुसीबत बन जाता है। क्योंकि इस केस दौरान एक खून हो जाता है और उसका इल्जाम सुनील पर आता है।
वहीं पुलिस विभाग भी सुनील को इस खून के इल्जाम में आरोपी मानता है। - "सुनील, इस केस में तुम्हारी नाक न रगड़वाई तो मेरा भी नाम प्रभुदयाल नहीं।"
समाचार पत्रों में यह विशेष खबर बनती है-
एक अखबार वाला जोर-जोर से चिल्ला रहा था।
रिपोर्टर फरार...ब्लास्ट के रिपोर्टर पर हत्या का संदेह..रिपोर्टर फरार....।

उस प्रोनोट में क्या था?
- दीपा का पति उस प्रोनोट को क्यों खरीदना चाहता था?
- सुनील का इस केस से क्या संबंध था?
- समुद्र में किस का खून हुआ?
- आखिर खूनी कौन था?

      

   तो यह है 'समुद्र में खून' उपन्यास का एक छोटा सा कथानक। कथानक चाहे छोटा है पर कथा पठनीय है। उपन्यास का कथानक तीव्र गति से चलता है कहीं नीरसता महसूस नहीं होती। कहीं ज्यादा उलझाव नहीं है। हां, अंत में एक 'घण्टी' बजने की वजह थोड़ी कन्फ्यू अवश्य करती है।

उपन्यास का कथानक एक जहाज से सम्बन्धित है जो समुद्र में अंतर्राष्ट्रीय सीमा में खड़ा है और वहाँ अवैध कार्य होता है। अंतर्राष्ट्रीय सीमा में स्थित होने के कारण पुलिस वहाँ कोई कार्यवाही नहीं कर सकती। लेकिन जब वहाँ एक खून होता है तो पता नहीं कैसे पुलिस कार्यवाही करती नजर आती है। उस पर भी वहाँ स्थित लोग पुलिस का धमकाते भी हैं।
यह जहाज हमारे देश की सीमा से बाहर खड़ा है। यहाँ आप हमें खामख्वाह अपने आॅफिसर होने की धौंस नहीं दे सकते।

- "ऐसी की तैसी तुम्हारी और तुम्हारे आॅर्डर की" दीनानाथ आपे से बाहर होकर बोला, "इस जहाज का मालिक मैं हूँ और यह जहाज अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में खड़ा है समझे।"


ऐसी ही एक और कमी है जो मुझे लगी। उपन्यास के अनुसार सन् 1964 में (1964 उपन्यास का प्रकाशन वर्ष है) बैंक में कोई भी छद्म नाम से खाता खुलवा सकता था। मुझे नहीं लगता यह संभव होगा।
सुनील अपने मित्र रमाकांत को कहता है- तुम किसी भी बैंक में जाकर रवीन्द्र कुमार के नाम से एक हजार रुपये का नया एकाउंट खुलवा लो। बैंक के रिकार्ड में अपने साइन के स्थान पर रवीन्द्र कुमार लिख दो।
रमाकांत के विरोध करने पर सुनील उसे समझाता है है की कोई भी व्यक्ति अपना नाम बैंक खाते में बदल सकता है- किसी भी व्यक्ति को कोई भी नाम धारण कर लेने का पूरा अधिकार होता है।

उपन्यास का कथानक एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है। समुद्र में खड़े एक जहाज में खून होता है और फिर हत्यारे की तलाश।
उपन्यास में कुछ कमियों को छोड़ दिया जाये तो उपन्यास अच्छा है, छोटा है और रोचक है।

उपन्यास- समुद्र में खून
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक


सुनील सीरीज का द्वितीय उपन्यास
पाठक जी का द्वितीय

1 comment:

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