Monday 2 December 2019

244. मिस्टर बी.ए.- आर.के. नारायण

एक शिक्षित बेरोजगार की कथा
मिस्टर बी.ए.- आर. के. नारायण

आर. के. नारायण अपनी एक विशिष्ट कथाशैली ले कारण जाने जाते हैं। इनकी रचनाओं में कहीं बनावटीपन न होकर समाज की वास्तविकता का चित्रण होता है, एक ऐसा चित्रण जिससे पाठक सहज ही जुड़ाव अनुभव करता है।
आर. के. नारायण, खुशवंत सिंह और रस्किन बाॅण्ड ऐसे लेखक हैं जो गंभीर बात को भी बहुत सहज अंदाज से कह जाते हैं।
आर. के. नारायण जी के अंग्रेजी उपन्यास 'The Bachelor of Arts' का हिन्दी अनुवाद 'मिस्टर बी.ए.' पढा। यह काफी मनोरंजक उपन्यास है।

‘मिस्टर बी. ए.’ एक ऐसे मनमौजी युवक की कहानी है जिसे बी. ए. पास करने के कुछ समय बाद ही एक लड़की से प्रेम हो जाता है। परिवार उससे अच्छी नौकरी की उम्मीद लगाए है जबकि उसका मन कहीं और ही उलझा है। युवक की इसी कशमकश को बेहद रोचक अंदाज़ में प्रस्तुत करता उपन्यास। (उपन्यास के आवरण पृष्ठ से)


उपन्यास का आरम्भ उपन्यास नायक चन्द्रन से होता है। जो की बी.ए. अंतिम वर्ष का छात्र है। चन्द्रन जहां मनमौजी है वहीं वह कोई ठोस निर्णय लेने में सक्षम भी नहीं है। हर बात पर वह असमंजस की स्थिति में रहता है और यही स्थिति उसकी परिस्थितियों को और भी दुरूह बना देती है।
अब मेरी समस्या है—मैं क्या करूँ, मैं नहीं जानता…नहीं जानता। इन्हीं परिस्थितियों से घबरा कर वह अक्सर गलत निर्णय ले लेता है।
कुछ रोचक घटनाक्रम देखें जो हर उस युवक को सुनने पढते हैं जो उच्च शिक्षा ग्रहण करता है।

“पिताजी, मुझे लगता है कि बी.ए. पास करके मैंने अच्छा नहीं किया।”
“क्यों बेटा?”
“हर आदमी मेरे कैरियर के बारे में राय दे रहा है। ये लोग अपने काम पर ध्यान क्यों नहीं देते?”
“अरे, यह तो दुनिया का नियम है। इससे तुम्हें परेशान नहीं होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि लोग तुम्हारे बारे में सोचते हैं।”

यह समाज की वास्तविकता है और हर शिक्षित युवक को इन प्रश्नों से गुजरना पड़ता है।


तात्कालिक समाज का एक रोचक चित्रण देखें। तब लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी जाती थी। अगर लड़की उम्र ज्यादा हो गयी तो लोग उसे सही नजर से न देखते थे।
“उन्हें होना पड़ेगा। मैंने सुना है कि लड़की सोलह साल की हो रही है और इसी साल उसकी शादी कर दी जाएगी।”
“सोलह की?” माँ यह सुनकर चीखी—“अगर इस उम्र तक उसकी शादी नहीं हुई है तो ज़रूर कोई खास बात है। ज़रूर कोई नुक्स है। हमें शहर में मुँह दिखाना है। तुम शादी को बच्चों का खेल समझते हो?” यह कहकर वह भनभनाती हुई कमरा छोड़कर चली गयी।

एक और कथन है जो सरकारी तंत्र पर व्यंग्य है।
सरकारी नौकरी में भी यही होता है। कभी काम की तारीफ़ करनी होगी तो मन मार के करेंगे।
मेरा छोटा सा अनुभव भी कहता है की अक्सर ऐसा होता है, हालांकि सभी ऐसे लोग नहीं होते।


उपन्यास का एक पात्र है मोहन जो कवि है और पत्रकार भी उसका जीवन के प्रति एक अलग ही दृष्टिकोण है।- “जीवन में धन सबसे बड़ा ईश्वर है। पिता और माता और भाई, सब तुम्हारे धन की ही परवाह करते हैं। उन्हें पैसा देते रहो, वे तुम्हें स्वतन्त्र छोड़ देंगे। मैं इस समय ‘धन का प्रेम’, पर ही कविता लिख रहा हूँ। मुक्त छंद है। तुम्हें ज़रूर सुनना चाहिए। तुम्हीं को समर्पित है।” उसने पैड उठाया और कविता पढ़नी शुरू की:

तुमने सोचा था, माता-पिता तुम्हें प्यार करते हैं,
नहीं, हरगिज़ नहीं, मेरे दोस्त।
वे कुछ भी उसके ही कारण प्यार नहीं करते।
उन्होंने तुम्हें पाला-पोसा, पढ़ाया, बड़ा किया,
इसलिए कि किसी दिन उन्हें धन कमाकर दोगे।
पैसा, ज़्यादा से ज़्यादा पैसा, पैसा ही पैसा,
क्योंकि किसी दिन तुम ऐसी बहू भी लाओगे
जो अपने साथ और भी पैसा लाएगी,
बहुत ज़्यादा पैसा, इतना ज़्यादा
कि बस, हाँ, ज़्यादा से ज़्यादा…।”



चन्द्रन के दोस्त जिनसे अक्सर वह प्रभावित होता है। और वह ठोस निर्णय नहीं ले पाता लेकिन कुछ जगह वह अपने परिवार के वायदों के प्रति सजग भी है।
“माफ़ कीजिएगा, मैंने अपनी माँ के सामने वादा किया था कि शराब को ज़िन्दगी में कभी नहीं छुऊंगा,” चन्द्रन ने कहा। कैलाश इससे बहुत प्रभावित हुआ। वह क्षणभर गम्भीर रहा, फिर बोला: तो मत पिओ। माँ बहुत पवित्र वस्तु होती है। उसका महत्त्व हम तब तक नहीं समझते, जब तक वह हमारे साथ रहती है। इसे समझने के लिए उसे खोना ज़रूरी है। अगर मेरी माँ ज़िन्दा रहती तो मैं कॉलेज पढ़ने जाता और इज़्ज़तदार आदमी बनता। तब मैं तुम्हें यहाँ नहीं मिलता।
उपन्यास में बहुत से रोचक प्रसंग और कथन है जो समाज की वास्तविकता का सजीव चित्रण करते हैं।
     

उपन्यास की कहानी चन्द्रन के जीवन के इर्दगिर्द घूमती है। उसके जीवन में आये विभिन प्रसंगों का रोचक शैली में वर्णन प्रस्तुत करती है। एक ऐसा युुुुुुुवक जो बी.ए. करने के पश्चात बेरोजगार है, जो स्वयं निर्णय लेने में असक्षम है। परिस्थितियों से घबराया हुआ चन्द्रन, बेरोजगार चन्द्रन प्यार में पड़ जाता है। इन सब परिस्थितियों से मिलकर उपन्यास बहुत रोचक बनता है।
उपन्यास रोचक और पठनीय है। लेकिन अंत में एक अधूरी सी टीस के साथ एक प्रश्न चिह्न छोड़ जाता है।

उपन्यास- मिस्टर बी. ए.
लेखक- आर. के. नारायण
ISBN- 9788170 89135
अनुवाद- महेन्द्र कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक- राजपाल

website: www.rajpalpublishing.com
e-mail: sales@rajpalpublishing.com

1 comment:

  1. आर के नारायण मेरे सबसे पसंदीदा लेखकों में से एक रहे हैं। उन्हीं से मैं सीखा है कि अच्छे उपन्यास के लिया जरूरी नहीं कि आप भारी भरकम शब्दों का प्रयोग करें। आप चाहें तो सरल शब्दों में मर्मस्पर्शी कथानक सुना सकते हैं।  प्रस्तुत उपन्यास भी मैंने काफी पहले पढ़ा था। आर के नारायण उन चुनिंदा ऐसे लेखकों में से है जिन्हे मैं बार बार पढ़ना पसंद करता हूँ।

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