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Thursday 30 December 2021

494. कानून की आँख - परशुराम शर्मा

जाना था जापान, पहुँच गये चीन...
कानून की आँख - परशुराम शर्मा

    आदरणीय परशुराम शर्मा जी का प्रस्तुत उपन्यास किंडल पर को मिला।
  सबसे पहले किंडल पर लिखा गया सारांश देखें 
अगर कोई कत्ल हो जाये और उसका न्याय मांगने वाला पुलिस के समक्ष कोई न हो– तब पुलिस और कानून क्या करेगा....?
अगर किसी अपराधी की इतनी पकड़ हो कि वह अदालत तक गवाही को पहुँचने ही न दे तब न्यायाधीश किस तरह अपराधी को सजा देगा....?
अगर पुलिस किसी निर्दोष पर डकैती दिखाकर उसका एनकाउंटर कर दे तो कानून पुलिस को क्या सजा देगा....?
और अगर समाज के सफेदपोश इज्जतदार, धनवान व्यक्ति जरायम में लिप्त हों– कानून और पुलिस अधिकारी उनके घिनौने जुर्मों में साझेदार हों– उनके विरुद्ध कहीं कोई सबूत ही न हो– उनके बलबूते पर चुनाव जीते जाते हों, ऐसे लोगों से क्या कोई व्यक्ति कानून से इंसाफ मांग सकता है...?
ऐसे सभी पात्रों से मुलाकात करिये, जिनके लिए अरविन्द को अर्जुन बनना पड़ा और कानून से इंसाफ मांगने के लिए जंगल का कानून लागू कर दिया।

'कानून की आँख' कहानी है अरविन्द नामक एक युवा की। जो LLB है और 'सुराग' नामक एक समाचार पत्र का संचालन करता है। एक नये मकान की क्रय के संदर्भ में वह एक काॅलोनी में जाता है। वहाँ उसे एक एक मृत लड़की की सूचना मिलती है। अरविन्द का खोजी पत्रकार दिमाग कहता है की लड़की की मृत्यु सामान्य नहीं है उसके पीछे कोई रहस्य है। और उस रहस्य को खोजना, मृत लड़की को न्याय दिलावाने का वह जिम्मा लेता है।
इस लड़की से सहानुभूति तो सभी को है परन्तु कानून के सामने इंसाफ मांगने कोई आने को तैयार नहीं।
   लेकिन अरविन्द को कहा पता था की यह इंसाफ की राह उसकी जान की दुश्मन बन जायेगी।
    यहाँ तो उपन्यास की कहानी बहुत रोचक और दिलचस्प है। जब मैंने यह उपन्यास यहाँ तक पढा तो बहुत आकर्षक लगा। कहानी कहने का तरीका और कथा दोनों ही रोचक थे।
   लेकिन बाद में अरविन्द के साथ कुछ घटनाएं घटित होती हैं और उपन्यास थ्रिलर से एक्शन की तरफ घूम जाता है‌। फिर भी कहानी के अनुरूप ठीक ही लगता है। मुझे लगा कहानी में एक्शन और रहस्य दोनों ही हैं। चलो यह भी ठीक है।
   फिर अरविन्द का फरार होना और ट्रेन में उसे स्वप्न आना। चलो यह भी ठीक है स्वप्न आ ही जाते हैं। और फिर जब किस्सा 'अरविन्द' से 'अरबन' तक पहुंचा तो लगा यार कोई स्वप्न बीस पृष्ठ तक का तो नहीं हो सकता। अब तो स्वीकार करना ही पड़ा की यह स्वप्न नहीं मूल कहानी ही चल रही है।
         कहानी एक बार पुनः वहीं पहुँच गयी जहाँ से आरम्भ हुयी थी यानि मेरठ और अरविंद पहुँच गया जेल में।
  और यहाँ उसे एक साथी बिना, अरविंद का हमशक्ल दोस्त एक 'जिन्न', 'भूत-प्रेत' आप कुछ भी कहें पर उसका नाम है अरबन।
    अरबन उसे आश्वासन देता है की उसके साथ हुये अत्याचार का वह प्रतिशोध लेगा। और दोनों मित्र निकल पड़ते हैं अपने दुश्मन से टकराने।
    फिर तो सारी कहानी हैरतअंगेज ढंग से आगे बढती है। एक के बाद एक दुश्मन नजर आने लगते हैं। एक नाम सामने आता है वह है 'सेक्टर बाॅस' का। जो एक खतरनाक अपराधी है।
     'कानून की आँख' उपन्यास दोनों भागों में विभक्त है द्वितीय भाग का नाम है 'बंगला नंबर 420'। शेष कहानी का पता उस उपन्यास को पढने पर ही पता चलेगा।
     प्रस्तुत उपन्यास का आरम्भ बहुत अच्छा था‌। अगर कहानी उसी स्तर पर चलती तो यह उपन्यास एक यादगार उपन्यास होता पर उपन्यास में 'जिन्न' आदि प्रस्तुत कर कहानी का स्वरूप ही बदल दिया गया। लगता है लेखक लिखना कुछ और चाहते थे और लिख कछ और ही दिया। उपन्यास का आरम्भ कुछ और है आगे कहानी कुछ और हो गयी। जाना था जापान पहुँच गये चीन।
   उपन्यास का शीर्षक है 'कानून की आँख' पर पूरे उपन्यास में ऐसा कुछ दृष्टिगत नहीं होता। यहाँ सब अपराधी हैं।
उपन्यास- कानून की आँख
लेखक -     परशुराम शर्मा
प्रकाशक - सूरज पॉकेट बुक्स
श्रेणी-      ‌ हाॅरर
 द्वितीय भाग की समीक्षा
बंगला नम्बर 420- परशुराम शर्मा

1 comment:

  1. परशुराम शर्मा सबसे बेकार किताबें लिखते हैं.

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