Friday 28 August 2020

370. प्रतिशोध- सुरेश चौधरी

चम्बल के डाकू की कहानी
प्रतिशोध- सुरेश चौधरी
       हालातों ने चंदन सिंह को बेरहम डाकू तो बना दिया पर जब उसके अपने खून से उसका सामना हुआ तो जैसे उसके अंदर का इंसान फिर से जी उठा और....(आवरण पेेेज से)
          सुरेश चौधरी उभरते हुए लेखक हैं। अब तक उनके तीन उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। 'खाली आंचल', 'एहसास' और तृतीय उपन्यास है 'प्रतिशोध'। मेरठ निवासी सुरेश चौधरी जी पेशे से वकील हैं।
       मनुष्य अपने जीवन में कुछ जाने-अनजाने में अमानवीय कृत्य कर बैठता है और उसका परिणाम भी उसे भुगतना पड़ता है। ऐसा ही कुछ अपने जीवन में जमींदार भैरो सिंह ने किया और उसी राह पर चंदन सिंह भी चला। जब समय ने अपना प्रतिशोध लिया तो दोनों की जिंदगी में वह बवण्डर उठा जो उनका सब कुछ तबाह कर गया। 
        अब उपन्यास के कथानक पर कुछ चर्चा हो जाये। भैरों सिंह जमींदार थे और सरजू उनका एक खास कारिंदा था। सरजू का पुत्र था चन्दू और जमींदार की पुत्री थी बेला।
वक्त ने चंदू को जमींदार भैरों सिंह का वह रूप दिया दिया जिसकी वह कल्पना भी नहीं कर सकता था। भैरों सिंह के आतंक और पुलिस के भ्रष्टाचार ने चंदू को डाकू चंदन सिंह बना दिया‌। "चंदन सिंह नाम है हमार... ।" (पृष्ठ-67)
      अब डाकू चंदन सिंह जीवन का एक ही मकसद था भैरों सिंह से प्रतिशोध लेना। "...आज के मकसद में हमारी जिंदगी भी चली जाये...तो कौनू बात नाही...लेकिन हम चाहत हैं...कि ऊ ससुरे जमींदार को पता लगी जाये कि प्रतिशोध एइसा होत है...।" (पृष्ठ-64)
       प्रतिशोध की राह पर निकला चंदन सिंह सही औत गलत की पहचान भी भूल गया। प्रतिशोध की आग मे उसे अंधा बना दिया लेकिन जब उसकी आँख खुली तो उसका अपना खून उसके सामने दीवार बन कर खडा़ था।
- चंदन सिंह की भैरों सिंह से क्या दुश्मनी थी?
- चंदन सिंह ने कैसे प्रतिशोध लिया?
- चंदन सिंह के सामने दीवार बन कर कौन खड़ा था।
- चंदन सिंह और भैरों सिंह की दुश्मनी क्या रंग लायी?
आदि प्रश्नों के उत्तर के लिए सुरेश चौधरी का उपन्यास प्रतिशोध पढना होगा। 
 उपन्यास चाहे एक प्रतिशोध पर आधारित है लेकि‍न इसमें कुछ और भी बाते समाहित हैं। पुलिस का व्यवहार जो इंसान नहीं कर पाती। "कौन कानून की बात करत हो बिटवा...कानून बडे़ लोगन के घरों में कैद है...।" (पृष्ठ-218)
         वहीं चंदन सिंह की साथी तारा का व्यवहार डाकू होते हुए भी मानवीय है। उसके लिए स्त्री की इज्जत महत्वपूर्ण है-"मैं भी एक औरत हूँ... ठाकुर... और इसलिए मैं एक औरत की इज्जत बचाना चाहती हूँ।" (पृष्ठ-87). लेकिन अंत में तारा का पण्डित और अब्दुल के प्रति व्यवहार में विरोधाभास नजर आता है।
उपन्यास का कथानक का विस्तार चार पीढ़ियों तक विस्तृत है। जो गांव, शहर और चंबल तक फैला है।
      उपन्यास में कुछ कमियां है जो उपन्यास का प्रभावित करती हैं। लेखक महोदय को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
      एक तो उपन्यास में कहीं भी अर्धविराम या अल्प विराम का प्रयोग नहीं किया गया, हर जगह तीन बिंदु(...) लगा दिया गये हैं। यह भाषागत दृष्टि से बड़ी गलती है। ऐसा कोई भी संवाद नहीं जिसमें बिंदु न हों।
उपन्यास के दो पृष्ठ देखें
    
द्वितीय कहानी को संवाद के माध्यम से विस्तृत किया गया है। हर जगह औपचारिक अभिवादन को विशेष महत्व दे दिया गया है।

    उपन्यास कहानी के स्तर पर 70 के दशक की डाकूओं पर आधारित फिल्मों की तरह है जिसका आनंद लिया जा सकता है।
     एक मासूम युवक के डाकू बनने और उसके प्रतिशोध की यह रोचक कहानी एक बार पढी जा सकती है।
उपन्यास- प्रतिशोध
लेखक-    सुरेश चौधरी
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-         270
मूल्य-      80₹

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