Saturday 22 December 2018

160. दहशतगर्दी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

एक खतरनाक दहशत का खेल...
दहशतगर्दी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुरेन्द्र मोहन पाठक जासूसी उपन्यास साहित्य में किसी परिचय के मोहताज नहीं है। उपन्यास पर लिखा उ‌नका नाम ही पाठक के लिए बहुत होता है।
        ‌पाठक जी मूलतः 'मर्डर मिस्ट्री ‌लेखक' हैं। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास 'दहशतगर्दी' उनका मर्डर मिस्ट्री न होकर एक थ्रिलर उपन्यास है।
            यह उपन्यास मुख्यतः आतंकवादियों को आधार बनाकर लिखा गया है। 
"अपनी ताकत दिखाने का हमारे पास एक ही कार आमद तरीका है।"- खान गर्जा " और वो है दहशतगर्दी।" 
दहशतगर्दों का एक  टारगेट है भारत से सिंगापुर को चलने वाली लग्जरी  कन्टीनैंटल एक्सप्रेस ट्रेन को निशाना बनाना। दूसरी तरफ भारत, बांग्लादेश, फ्रांस और स्विटजरलैंड की पुलिस/जासूस/अधिकारी  है जो इन दहशतगर्दों/ आतंकवादियों के विरोध में, उनके मिशन को असफल करने में और असली अपराधी को पकड़ने के लिए सक्रिय हैं। 
    रूसी सर्कस के अंदर पी. सेनगुप्ता को मारने के लिए जो हत्यारा भेजा जाता है वह बिलकुल फिल्मी तरीका अपनाता है।  हत्यारा 'काॅमेडियन' का वेश धारण करके स्टेज पर काॅमेडी करता नजर आता है।
    एक लंबा, बहुत लंबा दृश्य/ संवाद भी देख लीजिएगा। दोपहर का वक्त था जब कलकता के ग्रैड होटल के एक डीलक्स सुइट में चार व्यक्तियों की एक मीटिंग का आयोजन था। (पृष्ठ-57) चार आदमियों का यह आयोजन पृष्ठ संख्या 57 से आरम्भ होकर पृष्ठ संख्या 74 पर जाकर खत्म होता है। इस दृश्य का अनावश्यक रूप से विस्तार दिया गया है।
            दहशतगर्दी एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास की कहानी एक ट्रेन को बम विस्फोट से उठाने की है। उपन्यास का भारी कथानक, अनावश्यक विस्तार और बोझिलपन कहानी को नीरस बना देता है।
            पहली बार पाठक जी के किसी उपन्यास को पढकर ऐसा लगा की ये उपन्यास शायद ही पाठक जी ने लिखा हो।
                उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- दहशतगर्दी
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक-  मनोज पब्लिकेशन
पृष्ठ-     261
मूल्य- 25₹
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      एक ऐसा षड्यंत्र जिसकी नींव पेरिस, जनेवा और सिंगापुर में रखी गयी।  जिसकी चपेट में भारत को लाने के लिए एक खतरनाक टैरेरिस्ट, एक इंटरनेशनल आर्म्स डीलर, एक प्रोफेशन किलर,  एक गद्दार इन्डस्ट्रिलिस्ट और एक वतन फरोश कर्नल एक ही थैली के चट्टे- बट्टे बने हुए थे। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
क्या वो अपने नापाक मंसूबों में कामयाब हो सके?
       सुरेन्द्र मोहन पाठक मूलतः एक 'मर्डर मिस्ट्री लेखक' हैं, लेकिन यह उपन्यास उनके जेनर से अलग तरह का है। इसका कथानक भी ऐसा है जिसे पाठक जी ने कभी नहीं लिखा। लेखकीय में लिखा है उपन्यास मैंने लिख तो लिया है लेकिन बड़े संकोच के साथ कहना पड़ता है कि भविष्य में दोबारा शायद  कभी मैं न करुं। (पृष्ठ-05, लेखकिय)
'दहशतगर्दी' उपन्यास की कहानी कश्मीरी दहशतगर्दों पर आधारित है जो कश्मीर को भारत से अलग करने की घटिया कोशिश में असफल होने पर भारत के विभिन्न जगहों पर अपनी दहशतगर्दी फैलाना चाहते हैं।
          उपन्यास का आरम्भ ही इतना नीरस लगता है की 10-15 पृष्ठ के पश्चात ही बोरियत महसूस होने लगती है। उपन्यास बहुत ज्यादा 'भारी' सा महसूस होता है, कथानक है ही इतना भारी की पाठक को समझना ही मुश्किल हो जाता है की लेखक लिख क्या रहा है।
    कुछ दृश्य और संवाद अनावश्यक रूप से विस्तार पाकर उपन्यास को नीरस बनाने में सहायक बने हैं।
निष्कर्ष-
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