Wednesday 31 October 2018

149. वेयरवुल्फ- नितिन मिश्रा

खून का प्यासा मानव भेड़िया
वेयरवुल्फ- नितिन मिश्रा।
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एक शाॅर्ट फिल्म 'वेयरवुल्फ' के लिए फिल्म की टीम एक खतरनाक जंगल में अपनी फिल्म की शुटिंग करने के लिए पहुंची।
             अभी शुटिंग आरम्भ भी न हुयी और एक खतरनाक वेयरवुल्फ अर्थात् मानव भेडिया वास्तव में वहां आ पहुंचा।
             जो घटनाक्रम एक शाॅर्ट फिल्म में दर्शाना था वह खूनी खेल वहाँ वास्तव में खेला गया।
             क्या यह संयोग था या एक षड्यंत्र?
            
उपन्यास की कहानी वास्तव में दिल दहला देने वाली है। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ यही सोचता है की आखिर वास्तविकता क्या है। क्या यह षड्यंत्र है या फिर संयोग। अगर संयोग है तो बहुत भयानक संयोग है अगर षड्यंत्र है तो कौन है षड्यंत्र कर्ता।
            
                         उपन्यास का आरंभ होता है शांंतनु से। शांतनु ने अपने जीवन की सारी जमा पूंजी अपने आखरी दाँव, अपनी शाॅर्ट फिल्म 'वेयरवुल्फ' पर लगा दी। शांतनु अपनी टीम के साथ 'ब्लैक आॅर्किड वुड्स' नामक  जंगल में फिल्म की शुटिंग के लिए पहुंचा।
वेयरवुल्फ अर्थात् मानव भेड़िया पर आधारित थी यह शाॅर्ट फिल्म। लेकिन आपसी तकरार के चलते फिल्म के पात्र फिल्म में काम‌ करने के लिए मना कर देते हैं और शुटिंग स्थल से फिल्म को छोड़ कर निकलने की तैयारी करते हैं।
          इसी दौरान कहानी में‌ प्रवेश होता है मानव भेड़िये का।  सभी सदस्यों पर मानव भेड़िये के आक्रमण आरम्भ हो जाता है।  इस बार पेड़ के पीछे से निकलने वाली आकृति एक मानव भेड़िये यानी वेयरवुल्फ की थी। (पृष्ठ-24)
        

          एक एक सदस्य मानव भेड़िये के शिकार होते जाते हैं। एक ख़तरनाक मानव भेड़िया/वेयरवुल्फ जो खून का प्यासा है।  इस भेड़िये का शक परस्पर सभी पर होता है।
          "दूर रह तू हमसे भेड़िये वरना अंजाम बुरा होगा तेरा।"
          "मेरा यकीन करो मैं‌ सच कह रहा हूँ मैं वेयरवुल्फ नहीं हूँ।"
(पृष्ठ-38)
           शक सभी पर होता है लेकिन वास्तविक क्या है यह कोई नहीं जानता और -" साला तू वेयरवुल्फ नहीं है, ये वेयरवुल्फ नहीं है, मैं वेयरवुल्फ नहीं हूँ तो ये ....वेयरवुल्फ है कौन....।"(पृष्ठ-39)
                 यही प्रश्न पाठकों के दिमाग में निरंतर घूमता रहता है।
        उपन्यास में चाहे भेड़िये का वर्णन हो या जंगल का लेखक ने बहुत अच्छे ढंग से लिखा है। कुछ दृश्य तो ऐसे हैं‌ जो एक बार तो पाठक में डर पैदा करते हैं।
हालांकि इस प्रकार की कहानियाँ बहुत बार लिखी और पढी जा चुकी हैं, लेकिन इस कहानी का प्रस्तुतीकरण और उपन्यास में‌ जगह-जगह जो कहानी में बदलाव होता है वह कहानी में जान डाल देता है। लेखक ने जो कहानी में जगह-जगह ट्विस्ट डाले हैं वह वास्तव में कहानी की जान हैं।
       पाठक को पल-पल किसी न किसी पात्र पर शक होता है लेकिन अगले ही पल कहानी बदल जाती है। कहानी में जो मोङ हैं वह मोड़ कहा‌नी को बांधने में सक्षम हैं।
उपन्यास की कहानी अच्छी है। लेकिन उपन्यास में शाब्दिक गलतियों की तरफ संपादक महोदय ने ध्यान नहीं दिया।
उपन्यास में सामान्य प्रचलित हिंदी शब्द भी अंग्रेजी में‌ लिखे गये हैं। प्लान शब्द को 'प्लैन' लिखा है, रोशनी को 'रौशनी'
कहीं-कहीं पूरे वाक्य ही अंग्रेजी में हैं। हालांकि उपन्यास के पात्र शिक्षित हैं उनके लिए अंग्रेजी स्वभाविक भाषा हो सकती है लेकिन कई जगह तो ऐसा लगता है जैसे अंग्रेजी शब्द जानबूझ कर लिखे गये हैं। जैसे स्पाॅट(जगह), मून, हाइट आदि।
उपन्यास के पात्र-  शांतनु, अमित, किशोर, इशिका, जुगल दादा, गुरुमंग, केविन।
       निष्कर्ष-
        नितिन मिश्रा का उपन्यास वास्तव में एक दिल दहला देने वाली कहानी है। पाठक को आदि से अंत तक अपने में बांधने में सक्षम है। कहानी चाहे लघु है लेकिन लेखक का प्रस्तुतीकरण गजब है, हालांकि इस प्रकार की बहुत सी कहानियाँ पहले भी आ चुकी हैं लेकि‌न इस कहानी में अलग विशेषता जो मुझे लगी वह है कहानी में घटनाओं का जबरदस्त तरीके से घूमना।
              उपन्यास रोचक और दिलचस्प है। उपन्यास एक बार पढकर अवश्य देखें।
                
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संपर्क-
Email-    teamflydreams@gmail.com
उपन्यास-   वेयर इज द वेयरवुल्फ
लेखक- नितिन मिश्रा
प्रकाशक-फ्लाई ड्रिम्स
पृष्ठ-
मूल्य- 75₹

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2 comments:

  1. रोचक लेखक। किताब के प्रति उस्तुकता जगाता है। आपने सही कहा किताब काफी रोचक है और रहस्य अंत तक बना रहता है।

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  2. Thanks Gurpreet ji . Iss trha ki story and films kafi bn chuki haii kuch nya ni h .new readers k lye thek hai.but agr hme yani mature readers ko impress krna h to smp ko chuna hi hoga.

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