Friday 31 August 2018

137. बीस लाख का बकरा- सुरेन्द्र मोहन पाठक

एक ब्लैकमेलिंग की कथा।
बीस लाख का बकरा- सुरेन्द्र मोहन पाठक, रोचक,पठनीय।
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    रणवीर राणा एक कारोबारी व्यक्ति था लेकिन वह एक युवा लड़की के प्यार के चक्कर में वह ब्लैकमेलिंग का शिकार हो गया।
   एक तरफ राणा का परिवार, समाज में इज्जत और कारोबार था और दूसरी तरफ वे ब्लैकमेलर थे जिन्होंने राणा का जीना मुश्किल कर रखा था।
    अभी राणा इस मुश्किल से निकला भी न था ब्लैकमेलर द्वारा पैदा की गयी नयी‌ मुसीबत 'एक लड़की की हत्या' का आरोप उस पर लगा दिया गया।
        लेकिन रणवीर राणा की भी जिद्द थी की  ब्लैकमेलर को एक रुपया तक नहीं देना और  फिर वह रकम बीस लाख की थी।
 
ब्लैकमेलिंग मकड़ी के उस जाले की तरह है जिसमें आदमी एक बार फंस गया तो वह उसी में उलझ कर खत्म हो जाता है। कुछ लोगों ने ब्लैकमेलिंग को अपना रोजगार बना रखा है। इस काले कृत्य ने न जाने कितनी जिंदगियां तबाह कर दी। इस जाल में‌ फंसा आदमी अपनी बात न तो किसी को कह सकता है और न सहन कर सकता है।
       ब्लैकमेलर जोक की तरह होता है जो धीरे-धीरे खून चूसता रहता है और एक दिन आदमी परेशान होकर कोई न कोई कदम उठाने को मजबूर हो ही जाता है।
       
             रणवीर राणा को जब ब्लैकमेलिंग की धमकी मिली तो पहले तो वह घबराया लेकिन उसे पता था घबराने से काम नहीं चलने वाला उसे कोई न कोई ठोस कदम उठाना ही पड़ेगा और जब रणवीर राणा ने कदम उठा ही लिया तो ....
रणवीर राणा एक फैक्ट्री का मालिक था और उसका कारोबार भी ठीक था। सभ्य और इज्जतदार आदमी था लेकि‌न एक बार एक युवा लड़की के प्यार में वह सब कुछ भूल गया।
              राणा की यह भूल उसे एक खतरनाक ब्लैकमेलर रैकेट के जाल में फंसा गयी। ब्लैकमेलर उसे उस जाल से निकालने की कीमत चाहते थे और राणा उन्हें एक रुपया तक नहीं देना चाहता था।
"क्या कीमत चाहते हो तुम इसकी ?"- राणा कठिन स्वर में बोला।
" ज्यास्ती नहीं। बहुत कम। अपुन को लालच बिलकुल नेई है।"
"कीमत बोलो।"
"बीस लाख। सिर्फ। बस।" (पृष्ठ-11)
 
           ब्लैकमेलिंग एक ऐसा जाल है जिसमें आदमी एक बार फंस गया तो उम्र भर उसी में उलझा रहेगा। इसलिए तो राणा के‌ मित्र खेतान ने उसे पहले ही सावधान कर दिया था।
"राणा, तुमने एक बार उन लोगों की मांग पूरी कर दी तो विश्वास जानो वे जिंदगी भर जोंक की तरह तुम्हारा खून चूसते रहेंगे। ब्लैकमेलिंग रैकेट ऐसे ही चलता है।" (पृष्ठ-23)
     
      रणवीर राणा घबराने वाला व्यक्ति न था। उसने तो सोच ही लिया था की वह ब्लैकमेलर से टकरायेगा।
हालात से घबराकर हथियार डाल देने वाला वह भी नहीं था। हर दुश्वारी का कोई हल होता था, हर सवाल का कोई जवाब होता था, हर भूल-भूलैया का कोई रास्ता होता था। अगर वह इतना भी‌ मालूम कर पाता कि वे मवाली असल में कौन थे तो कुछ बात बन सकती थी, उनसे निपटने की कोई सूरत निकल सकती थी। (पृष्ठ-63)
     
        और जब रणवीर राणा सक्रिय हुआ तो ब्लैकमेलर रैकेट भी कहां शांत बैठने वाला था आखिर उनका बकरा उनके हाथ से निकल रहा था।
...हैरान था कि पूरी तरह से जकड़ा हुआ बकरा एकाएक इतना बेकाबू कैसे हो गया था कि उस पर सींग चलाने तक की हिम्मत कर बैठा था?.(पृष्ठ-114)
      
      ब्लैकमेलर रैकेट भी तैयार था रणवीर राणा को सबक सिखाने के लिए।
...चैंबर गोलियों से भरा चेट्टियार ने उसे बंद कर दिया-"अब समझ लो फिक्स हो गया।"
"क...कौन?"
"अपना बकरा। और कौन?"
"हां, बकरा।" (पृष्ठ-146)
- आखिर राणा इस ब्लैकमेलिंग रैकेट में कैसे फंस गया?
- क्या राणा ने बीस लाख रुपये दिये?
- ब्लैकमेलर कौन थे?
- आखिर इस कथा का परिणाम क्या निकला?
   इस प्रश्नों के उत्तर तो सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक जी का उपन्यास 'बीस लाख‌ का बकरा' पढ कर ही जाने जा सकते हैं।
       उपन्यास रोचक है जो आदि से अंत तक जिज्ञासा बनाये रखता है।‌ पाठक  भी यह सोचता है की आगे क्या होगा।
       उपन्यास नायक रणवीर राणा को जब ब्लैकमेल किया जाता है तो उसे यह नहीं पता होता की आखिरी ब्लैकमेलर हैं‌ कौन?
     लेकिन उसके दिमाग में एक बात सवार होती है की अगर वह ब्लैकमेलर का पता लगा ले तो इस चक्रव्यूह से बाहर निकल सकता है और इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने के लिए वह तैयार हो जाता है।
‌     उपन्यास में यह रोचक प्रसंग है की रणवीर राणा ब्लैकमेलर का पता कैसे लगता है। हालांकि रणवीर राणा जिस तरह से, जिस व्यक्ति पर बार-बार शक करता है वह कुछ उचित नहीं लगता क्योंकि रणवीर राणा के पास उस व्यक्ति को ब्लैकमेलर ठहरा‌ने का कोई पुख्ता तथ्य नहीं है।
"तुम फिर आ गये।"- वह हड़बड़ा कर बोला।
" हाँ।' - राणा मेज कर करीब पहुंच कर ठिठका-"तुम्हारे ही काम से आया हूँ।"
"मेरे काम से। यानि कि वो सुबह वाली तस्वीर वापिस करने आये हो जो की तुम्हें खींचनी ही नहीं चाहिये थी।"
"नहीं।"- राणा बड़े इत्मीनान से बोला।
" तो?"
'मैं"- राणा ने जेब में हाथ डालकर नोटों से भरा लिफाफा बाहर निकाल लिया - "रोकङा अदा करने आया हूँ।"
"क्या?" नागवानी अचकचा कर बोला।
.......
.....
"तुम रुपया लेना चाहते हो या नहीं?"
"रुपया कौन नहीं लेना चाहता। लेकिन सांई, रुपया मिलने की कोई वजह भी तो  समझ में आये।"
"वजह तुम्हें नहीं मालूम?"
"नहीं"
".....यानि की तुम‌ उन लोगों में से नहीं हो।"
"किन लोगों में से नहीं हूँ मैं?"
"जब तुम‌ कुछ जानते ही नहीं हो तो बात करना बेकार है।" (पृष्ठ संख्या-91-92)
        रणवीर राणा अपने मकसद में आगे बढता है और वह सफल भी होता है लेकिन अगर वह पुख्ता तथ्यों के साथ आगे बढता तो उपन्यास में रोचकता में वृद्धि होती।
      
        उपन्यास में रणवीर राणा की पत्नी रश्मि का किरदार बहुत सशक्त होकर उभरा है। रश्मि एक ऐसी सशक्त नारी के रूप में उपन्यास में आयी है जो गंभीर परिस्थितियों में भी अपने पति के साथ डट कर खङी होती है और रणवीर राणा उसी की वजह से सफल होता है।
  
        उपन्यास का अंत बहुत रोचक है। रणवीर राणा जैसा एक सामान्य आदमी जब अपनी पर आता है तो वह बहुत खतरनाक होता है। इस उपन्यास का समापन भी ऐसे ही एक कारनामें‌ के साथ होता है
निष्कर्ष-
            प्रस्तुत उपन्यास ब्लैकमेलिंग जैसे काले कृत्य पर लिखा गया है रोचक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास पठनीय है यह पाठक को किसी भी स्तर पर निराश नहीं करता।
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उपन्यास- बीस लाख का बकरा
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- डायमंड पॉकेट बुक्स
वर्ष- 1988
पृष्ठ-
मूल्य-
थ्रिलर उपन्यास
( 'बीस लाख का बकरा' उपन्यास आबू रोड़ के लेखक मित्र अमित श्रीवास्तव जी से पढने को मिला)

सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कुछ उपन्यासों की समीक्षा


1 comment:

  1. रोचक लेख।पाठक साहब के थ्रिलर रोचक होते हैं। यह मैंने पढ़ा तो नहीं है लेकिन डेली हंट में हुआ तो जरूर पढूँगा।

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