Sunday 16 September 2018

138. जय हिंद- वेदप्रकाश शर्मा

क्या नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिंदा है?
जय हिंद- वेदप्रकाश शर्मा, जासूसी उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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                     उपन्यासकर वेदप्रकाश शर्मा भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण वह है इनका कथानक और कथानक में रोचकता। कहानी चाहे जैसी भी हो लेकिन उसे रोचक तरीके से जैसे वेदप्रकाश शर्मा लिखते हैं वह स्वयं रोचक हो उठती है। अगर उसमें कथानक स्वयं कुछ अलग हट कर हो तो उपन्यास की रोचकता बहुत ज्यादा बढ जाती है।
                            ऐसा हि एक अलग प्रकार के कथानक वाला उपन्यास है 'जय हिंद'। यह उपन्यास स्वयं इस दृष्टि से अलग है की यह कहानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस पर आधारित है। नेताजी सुभाष चंद्र, जिनकी मृत्यु भी एक रहस्य है और जब उपन्यास में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस स्वयं उपस्थित होते हैं और अपनी मृत्यु को गलत ठहराते है तो कहानी में रहस्य का समावेश सहज ही हो जाता है।
                    इस उपन्यास में एक बड़ी ही अनोखी कल्पना की गयी है। यह कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस अगर आज के भारत को देख रहे होते तो उनके दिल पर क्या गुजरती? केवल गुजर कर रह जाती या वे कुछ करते भी? चुप रहने वाले तो नहीं थे बोस। 

‌‌‌ अगर वे मातृभूमि की दुर्दशा देखते तो कुछ करते भी...और कुछ क्यों... बहुत कुछ करते।
वे जो कुछ करते, इस उपन्यास में‌ नेताजी वही सब कुछ करते नजर आते हैं
अंग्रेज़ों की सरकार की हुकूमत से लोहा लेने के लिए जहां उन्होंने आजाद हिंद फौज बनायी थी वहीं, आज की हुकूमत से लोहा ले‌ने के लिए 'अखण्ड आजाद हिंद' बनाते हैं। आधुनिक भारत में एक बार फिर 'अखण्ड हिंद फौज' के झण्डे़ के तले 'जय हिंद' का नारा गूंजता है और देश की देशभक्त युवा पीढी उनके साथ खङी नजर आती है। (उपन्यास के अंदर के आवरण पृष्ठ से)
            वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यासों में एक और विशेषता देखने को मिलती है और वह है कहानी किसी एक छोटी सी घटना से आरम्भ होती है और एक विस्तृत फलक तक चली जाती है। इसी उपन्यास का भी आरम्भ एक संस्था द्वारा आयोजित नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन के कार्यक्रम से होता है।
23 जनवरी।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म दिन। (पृष्ठ-07)
          बस यहीं मंच पर एक महाविद्यालय का देशभक्त छात्र नेता राकेश पाण्डे अचानक एक घोषणा करता है- "आज नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन पर मैं इस मंच से अपने समस्त युवा साथियों के साथ एक आंदोलन शुरु करने की घोषणा करता हूँ- जिसका मुद्दा होगा नेताजी सुभाषचंद्र बोस के जन्मदिन को राष्ट्रीय सम्मान दिलाना।''(पृष्ठ-12)
                   इसी घोषणा के साथ यह आयोजन एक बड़ा आंदोलन का रूप धारण कर लेता है। दूसरी तरफ सरकार किसी तरह इस आंदोलन को रोकना चाहती है। लेकिन राकेश पाण्डे जैसा देशभक्त युवक एक ही उत्तर देता है।- "एक बार सूरज, धूप और स्वतंत्र रहने वाली हवा को खरीदा जा सकता है- लेकिन राकेश पाण्डे नाम की चीज को दुनियां भर की दौलत देकर भी नहीं खरीदा जा सकता।"-(45)
              और एक दिन राकेश पाण्डे की मुलाकात वास्तव में ही नेताजी सुभाषचंद्र बोस से हो जाती है। नेताजी एक नयी सेना 'अखण्ड हिंद फौज' का निर्माण करते हैं।
                   नेताजी के युवा सैनिक भारत के गद्दार और रिश्वतखोर और बेइमानों को चुन-चुन कर मारते हैं।
भारतीय सीक्रेट सर्विस नेताजी की वास्तविकता का पता लगाने के लिए जासूस विजय को नियुक्त करती है। सिक्रेट सर्विस का चीफ पवन(ब्लैक बाॅय) विजय से भी यही कहता है।
"क्या तुम यह कहना चाहते हो कि इस दल का नेतृत्व नेताजी सुभाष चंद्र बोस कर रहे हैं?"
"मौजूद प्रमाण तो यही कहता है।" (पृष्ठ-121)
        और एक दिन स्वयं नेताजी की मुलाकात सीक्रेट सर्विस के चीफ से हो जाती है।
"मुझे पक्का यकीन है कि आप कोई धोखेबाज हैं...ऐसे धोखेबाज जो खुद को नेताजी बताकर देश के युवकों को ठग रहें हैं...।" (पृष्ठ-239)
- क्या नेताजी सचमुच जिंदा थे?
- या यह कोई वास्तव में कोई अपराधी या ठग था?
- क्या थी 'अखण्ड हिंद फौज' की वास्तविकता?
- क्या हुआ राकेश पाण्डे के आंदोलन का?
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संवाद-
      ‌‌संवाद किसी भी कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। प्रस्तुत कहानी में संवाद बहुत अच्छे और कहानी,पात्र के अनुकूल हैं।
कुछ संवाद देखिएगा-
"आदर्श और सिद्धांतों की बलि चढाकर ही इंसान तरक्की करता है मिस्टर पाण्डे।" (पृष्ठ-30)
"यानि पब्लिक की भावनाओं का सौदा करना होगा?"
"राजनीति में बहुत कुछ पाने के लिए इन बातों का कोई महत्व नहीं होता।" (पृष्ठ-30)
"आजादी के दीवानों के खून का रंग अभी इतना हल्का नहीं हुआ कि देश के हुक्मरान उस पर कोई रंग चढा सके।" (पृष्ठ-19)
"...जरूरत है पूरे समाज की विचारधारा बदल देने की -उस नैतिकता को जगाने की जरूरत है जो मरी नहीं... हमारे मनों में गहरी नींद सो गयी है...।" (पृष्ठ-128)
"हकीकत से आंखे मूंदने वाले और अपनी ताकत को आवश्यकता से अधिक समझने वाले हमेशा मूर्ख कहलाते हैं।"-(पृष्ठ-215)
निष्कर्ष-
     ‌   उपन्यास प्रथम पृष्ठ से ही तेज रफ्तार से आरम्भ होता है और अंतिम‌ पृष्ठ तक पाठक को स्वयं में बांधे रखता है। जब कहानी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसी महान व्यक्तित्व पर हो और लेखक वेदप्रकाश शर्मा हो तो कहानी स्वयं ही रोचक हो उठती है।
       उपन्यास कहीं से भी पाठक को निराश नहीं करता। पाठक पृष्ठ दर पृष्ठ रहस्य के नये नये आवरण में‌ लिपटता चला जाता है।
अगर आप लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में कुछ अच्छा व रोचक पढना चाहते हैं तो यह उपन्यास अवश्य पढें।
  उपन्यास बहुत ही रोचक और पठनीय है।
विशेष-
1. इस उपन्यास 'जय हिंद' का दूसरा भाग 'वंदे मातरम्' है।
2.  इस उपन्यास के अंत में संक्षिप्त रूप में वेदप्रकाश शर्मा जी के लेखकिय जीवन का परिचय दिया गया है। यह परिचय बहुत रोचक है। वेद जी के पाठकों के लिए यह एक विशेष उपहार है।
        
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उपन्यास- जय हिंद
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- तुलसी पेपर बुक्स
पृष्ठ- 240
मूल्य- 100₹

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