Saturday 29 September 2018

142. किराये के हत्यारे- चन्दर

कसमकस की जिंदगी.....
किराये के हत्यारे- चन्दर, थ्रिलर उपन्यास, रोचक।
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‌जासूसी उपन्यासकार चन्दर का पहली बार कोई उपन्यास पढने को मिला। यह उपन्यास एक जासूसी उपन्यास है।
उपन्यास की कहानी एक वकील साहब के परिवार के चारों तरफ घूमती है। परिवार में वकील सूरज,उनकी पत्नी करूणा देवी, नौकर मंगलसिंह और एक नौकरानी कल्लो है।
यह कहानी नौकर मंगल सिंह के माध्यम से ही आगे बढती है। मंगल सिंह वकील साहब के घर का नौकर है और इस उपन्यास का नायक भी है।
एक गांव है हजरतबल। एक बार वकील जी के काम से मंगल सिंह हजरतबल गांव गया। हजरत बल गांव में हर व्यक्ति डरपोक था।(पृष्ठ-01)....ऐसे गाँव में वकील साहब ने अपना मेहनतामा वसूल करने के लिए मुझे इसलिए भेजा था मैं ही एक मर्द नौकर उनके यहाँ था। (पृष्ठ-06)
    कहानी का आरम्भ हजरतबल गांव के कुछ डरावने दृश्यों से होता है।
जैसे
पहलवान भोलाराम का सिर उसी के गंडासे से कटा मिला।
- गबरू झींवर की लड़की पना का शव गांव के बाहर पेङ से लटका मिला।
  गांव था ही इतना ख़तरनाक। ग्रामीण भी यही कहते थे।
"भैया, तुम यहाँ न रुको। अच्छा, तुम लौट जाओ भैया। यह गांव मनहूस है। यहाँ हत्यारों का राज है हत्यारों का।"
"कौन हत्यारे?"- मेरे दिल में एक ठण्डी छुरी सी उतरती चली गयी।
   यह दोनों दृश्य उपन्यास में सस्पेंश बनाये रखते हैं। इसी तरह वकील का अपनी पत्नी को कत्ल करने की साजिश रचना भी उपन्यास का एक पहलु है लेकिन अफसोस इन घटनाओं का उपन्यास में कोई तालमेल ही नहीं बैठता और न ही इनका कहीं कोई स्पष्टीकरण मिलता है। इन घटनाओं के कारण जो रहस्य और रोमांच बना था वह अंत में निराशा में बदल जाता है।
        
    उपन्यास का आरम्भ हजरतबल गांव की उक्त दो घटनाओं से होता है। उपन्यास में रोचकता भी जगती है फिर वकील का अपनी पत्नी को मरवाने का षड्यंत्र रचना भी इस उत्सुकता में बढोत्तरी करता है लेकिन उपन्यास अपने तृतीय चरण में कहीं और घूम जाता है। यह तृतीय चतण ही उपन्यास की मूल कथा है। यहाँ से उपन्यास पूर्णत: एक नयी दिशा को मुङ जाती है। हालांकि यह तीसरा मोड़ उपन्यास को रोचकता तो देता है लेकिन उपन्यास को गति प्रदान नहीं कर पाता। और फिर तीनों घटनाओं/प्रकरण/मोड़ का आपसी तालमेल भी नहीं बैठता। हालांकि लेखक ने एक कोशिश की है की पहली दो घटनाओं को आपसे से संबंधित किया जाये।

         उपन्यास का आरम्भ बहुत अच्छा है। इसे लेखक मेहनत से बहुत अच्छा बना सकता है। उपन्यास की घटनाएं और भाषा शैली इतनी रोचक है की पाठक स्वयं इससे जुड़ाव महसूस करता है लेकिन लेखक की कमी के कारण एक बेहतरीन उपन्यास बेहतर न बन सका।
            उपन्यास का नायक मंगल सिंह एक नौकर है। ऐसा प्रयोग कम ही देखने को मिलता है की एक नौकर कथा नायक हो। वह भी एक सामान्य नौकर जिसमें कोई अतिरिक्त खूबी नहीं है वह तो बस परिस्थितियों के अनुसार चलता है।
करुणा देवी भी मंगल सिंह के सीधेपन लिए कहती है।
"हमारे इस बुद्धु राम के लिए सब माँ ही माँ है। बस, भोजन अच्छा बनाना आना चाहिए।"
मंगल सिंह है भी भोजन भट्ट उसे तो खाना चाहिए। वह खुद भी कहता है। "यों ही दो रोटी दूसरों से ज्यादा खा लेता हूँ।"
        
      कम तो पहलवान भी नहीं है। वह भी नायक के साथ-साथ सत्य की खोज करता है। वह कहता है- "बेटे, जिस बात का तालमेल मेरे दिमाग में नहीं बैठता। उसकी तह तक पहुंचने का आदि हूँ।"
संवाद और भाषा शैली-
       किसी भी उपन्यास में उसकी भाषा शैली और संवाद बहुत महत्व रखते हैं। संवाद ही कथा को गति प्रदान करते हैं। इस उपन्यास के संवाद भी पठनीय है।
         इस उपन्यास की भाषा शैली की बात करें तो यह बहुत रोचक है। जहाँ वकील और करूणा देवी की भाषा में ....वहीं मंगल सिंह की भाषा शैली इनसे अलग है।
  कल्लो के संवाद और उसका लहजा उपन्यास में सबसे अलग है। वह ग्रामीण हरियाणवी अंदाज में बात करती है।
झज्जन,  और खलनायक द्वय की भाषा भी रोचक है।
बुजदिल बदमाश बहादुर बदमाश से कहीं ज्यादा खतरनाक होता है।
-औरत के रुतबे और हैसियत का भी कोई ठिकाना होता है भला। पति ने जितना चढाया उतनी चढ गयी। जितना उतारा उतनी उतर गयी
निष्कर्ष-
            इस उपन्यास की कहानी कई स्तर पर अलग-अलग घुमाव लेती है, लेकिन कहानी में कोई तारतम्य स्थापित नहीं होता। कहानी मूल विषय से भटकी सी‌ नजर आती है।
         उपन्यास में कहानी की बजाय इसकी शैली बहुत रोचक है। अपनी भाषा शैली के कारण उपन्यास स्वयं रोचकता बनाये रखता है।
            उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- किराये के हत्यारे
लेखक-    चन्दर
वर्ष- सितंबर, 1974
पृष्ठ- 125
प्रकाशक- सुबोध पॉकेट बुक्स, दिल्ली।



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