Saturday 29 September 2018

141. दौलत और खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक

दौलत और खून- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
विमल सीरिज -02

अगर आदमी की किस्मत बुरी हो तो उसका हर अच्छा काम भी बुरा हो जाता है, अगर किस्मत बुरी हो तो घर बैठे भी मुसीबत आ जाती है। ऐसी ही बुरी किस्मत है सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ विमल खन्ना उर्फ गिरीश की।
विमल एक मुसीबत से बचता है तो आगे एक और नयी मुसीबत तैयार होती है। उसकी बेबस जिंदगी का हर कोई फायदा उठाना चाहता है।

'दौलत और खून' उपन्यास विमल सीरिज का दूसरा उपन्यास है लेकिन दोनों की कहानी पूर्णतः अलग-अलग है, पर दोनों कहानियों को दो बातें आपसे में जोड़ती हैं। एक तो स्वयं विमल और दूसरा वह हार जो विमल 'लेडी शांता गोकुलदास' से चुरा कर लाया था।(उपन्यास 'मौत का खेल')
        यही हार इस बार विमल के लिए मौत का हार बनता है। मुंबई से फरार विमल जा पहुंचता है‌ मद्रास। तंगहाली की जिंदगी जीने वाला विमल उस हार को बेच कर कुछ रुपयों की व्यवस्था करना चाहता है और यहीं से वह कुछ गलत लोगों की‌ नजर में चढ जाता है। "अपना नाम गिरीश बताने वाला यह युवक शर्तिया वही विमल कुमार खन्ना है जिसकी लेडी शांता गोकुलदास की हत्या के इल्जाम में पुलिस को तलाश है।" (पृष्ठ-120)        यहीं से विमल विरप्पा, अब्राहम, सदाशिव और जयशंकर जैसे लोगों की नजर में चढ जाता है। जयशंकर भी उसे धमकी देता है। "तुम पुलिस के हाथों में पड़कर फांसी पर चढना चाहते हो या मेरे सहयोगी बनकर लाखों रुपया कमाना चाहते हो।" (पृष्ठ-125)
"मैं फांसी पर नहीं लटकना चाहता।"
तब जयशंकर एक प्लान बनाता है। "अब मैं आपके सामने उस ऑपरेशन की रूपरेखा प्रस्तुत करता हूं जिसके सफल हो जाने पर सत्तर लाख रुपए की भारी रकम हमारे हाथ में होगी।"
"सत्तर लाख रुपए "-अब्राहम के नेत्र फैल गये।
वही हाल सदाशिव का भी हुआ।
" करैक्ट।"- जयशंकर प्रभावपूर्ण स्वर में बोला-"और यह रुपया सोमवार रात को मद्रास की ही नहीं बल्कि भारत की शान समझे जाने वाले सत्तर हजार सीटों वाले विशाल अन्ना स्टेडियम मैं‌ मौजूद होगा।"(पृष्ठ-132)

              प्लान बना और लूट सफल भी रही लेकिन कुछ साथी मित्र गद्दार निकल गये। इस लूट दौरान किसी को रुपया मिला तो किसी को मौत। कुछ ऐसे थे जो सारी दौलत अकेले ही हड़प जाना चाहते हैं। "ऐसी की तैसी बाकी लोगों की। तुम्हारे सिवाय किसी को इस जगह की जानकारी नहीं है। पुलिस की तरह वे भी सिर पटक कर मर जायेंगे लेकि‌न मुझे तलाश नहीं कर पायेंगे।" (पृष्ठ-143)

          विमल के हाथ क्या लगा। दौलत, मौत या धोखा। जैसी विमल की किस्मत है। उसे धोखा मिला। तब विमल ने निर्णय लिया की वह धोखेबाज को सबक सीखा कर रहेगा। -"मैंने कहा था कि जिस दौलत की खातिर तुमने अपने साथियों के साथ दगाबाजी की थी, मैं‌ उसी में तुम्हें दफन करके जाऊंगा...।"(पृष्ठ-280)
- आखिर विमल की क्या मजबरी थी इस लूट में शामिल होने की?
- तो क्या विमल इन दगाबाजों को सजा दे पाया?

उपन्यास की कहानी एक लूट और उसके पश्चात धोखेबाजी पर आधारित है। उपन्यास काफी रोचक और दिलचस्प है जो पाठक को कहीं निराश नहीं करता।
विमल की मजबूरी, धोखेबाज दोस्त, और एक अलग से पात्र उपन्यास में उपस्थित होता है वह है त्यागराजन और उसकी पत्नी लक्ष्मी।
जहाँ त्यागराजन डरपोक किस्म का है वहीं लक्ष्मी को पैसे की भूख है। लेकिन पैसा इतना आसानी से कहां मिलता है। दोनों पात्र उपन्यास के अंतिम चरण में कहानी को रोचक बना देते हैं।
ऐसे ही रोचक पात्र हैं पुलिसवाला राघवाचारी। राघवाचारी अपने दो साथियों पोनाप्पा और नायर के साथ डकैतों की खोज करता है। राघवाचारी भी एक डरपोक किस्म का पुलिसवाला है। वह डर के मारे जीप से बाहर भी नहीं निकलता।
"साहब"- ....पोनाप्पा राघवाचारी से बोला-" अगर आप जीप में बैठे रहने के स्थान पर साथ चले तो काम जल्दी निपट जायेगा।"
"मुझे तरीके मत सिखाओ।"-राघवाचारी गुर्राया।(पृष्ठ-230)

          सभी पात्र अलग-अलग स्वभाव के लेकिन रोचक हैं। उपन्यास पढते वक्त सभी पात्रों के साथ एंजोय किया जा सकता है।
उपन्यास में कुछ कमियां है जो उपन्यास के कथानक को कुछ कमजोर बना देती हैं। हालांकि थोड़ी सी कोशिश इन कमियों को दूर कर सकती है।

निष्कर्ष-
दौलत और खून' उपन्यास विमल सीरिज का दूसरट उपन्यास है। यह एक डकैती पर आधारित उपन्यास है। इसकी कहानी मध्यम स्तर की है। उपन्यास में‌ काफी कमियां महसूस होती है जो उपन्यास का प्रभाव कम करती हैं।
कहानी अच्छी है लेकिन प्रस्तुतिकरण इतना अच्छा ना बन पाया।
उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- दौलत और खून
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स-दिल्ली
पृष्ठ- 117-284(दो उपन्यास एक साथ हैं।)
मूल्य-
विमल सीरिज
विमल सीरिज का दूसरा उपन्यास



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