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Monday, 28 April 2025

बोलते सिक्के - कर्नल रंजीत

वैज्ञानिकों की हत्या का रहस्य
बोलते सिक्के - कर्नल रंजीत

अप्रैल 2025 में मैंने कर्नल रंजीत के उपन्यास पढें हैं और यह सिलसिला जारी है। कभी-कभी यह कोशिश होती है एक ही लेखक के स्वयं के पास उपलब्ध समस्त उपन्यास पढ लिये जायें हालांकि यह प्रयास कभी कभार ही पूरा होता है।
जैसे इस बार कर्नल रंजीत के उपन्यास पढने आरम्भ किये तो कुछ छुपे हुये उपन्यास और सामने आ गये। अब उनको कब तक पढा जायेगा यह कहा नहीं जा सकता। फिर भी कोशिश जारी है।
कर्नल रंजीत का उपन्यास '11 बजकर 12 मिनट' के साथ एक और उपन्यास संलग्न था जिसका नाम है 'बोलते सिक्के'।
यह उपन्यास उन लोगों की कहानी है जो धन-दौलत के लिए अपना मान-सम्मान सब कुछ बेचने को तैयार हो जाते हैं।
अब चलते हैं 'बोलते सिक्के' उपन्यास के प्रथम दृश्य की ओर, अध्याय का नाम है 'भयंकर तूफान'

भयंकर तूफान
रात आधी से अधिक बीत चुकी थी।
चारों ओर घटाटोप अंधियारा छाया हुआ था, जिसे आकाश के सीने को रौंदकर उमड़ती-घुमड़ती दैत्याकार काली-कजरारी घटाओं ने और अधिक भयावह बना दिया था।
हवा इतनी तेज चल रही थी जैसे आंधी चल रही हो। पहले हल्की-हल्की बौछारें पड़ती रही थीं लेकिन अब वे हल्की-हल्की बौछारें मूसलाधार बारिश में बदल गई थीं।
तूफानी हवा और मूसलाधार बारिश के कारण सड़क के दोनों ओर खड़ी पहाड़ियों पर से पेड़ उखड़-उखड़कर सड़क पर जहां-तहां बिखरते चले जा रहे थे। पहाड़ियों पर से लुढ़क लुढ़ककर गिरने वाले पत्थरों की आवाजें रात के उस भयावह सन्नाटे में बहुत ही भयानक मालूम हो रही थीं।
        मेजर बलवंत जब पूना से रवाना हुआ था तो बारिश की नन्ही-नन्ही बूंदें पड़नी शुरू हो गई थीं। उसने एक नजर आकाश पर छाई हुई घटाओं पर डाली थी। लेकिन इस बात का आभास तक न हो पाया था कि ये नन्ही-नन्ही बूंदें मूसलाधार बारिश में बदल जाएंगी और हवा के धीमे-धीमे झोंके भयंकर आंधी का रूप ले लेंगे।
          अपनी कार ड्राइव करते हुए मेजर बलवंत सोच रहा था कि अपनी जिद में आकर और अपने मित्र डॉक्टर प्रदीप नाडकर्णी की बात न मानकर पार्टी खत्म होते ही मुम्बई चल पड़ने का निर्णय करके उसने बहुत बड़ी मूर्खता की है। उसके मित्र डॉक्टर प्रदीप नाडकर्णी ने उससे बहुत आग्रह किया था कि वह रात को पूना में ही रुक जाए। आकाश पर छाई घटाओं का कोई भरोसा नहीं कि कब बरसने लगें। डॉक्टर प्रदीप नाडकर्णी ने उसे यह भी बताया था कि जब भी तेज बारिश होती है, मुम्बई-पूना रोड के दोनों ओर खड़ी पहाड़ियों पर से पत्थर लुढ़क लुढ़ककर सड़क पर आ गिरते हैं और कार ड्राइव कर पाना कठिन हो जाता है और कभी-कभी तो बड़ी-बड़ी चट्टानें भी पहाड़ियो से फिसलकर सड़क पर आ गिरती हैं और यातायात को रोक देती हैं।
          मेजर बलवंत के साथ ऐसे ही आंधी-पानी में एक बार पहले भी एक भयंकर दुर्घटना हो चुकी थी, जब इसी सड़क पर यातायात रुक जाने के कारण, कुछ लोग सोनिया को उठाकर ले गए थे। सोनिया के अपहरण की वह घटना मेजर बलवंत के जीवन की बहुत ही दुखद घटना थी। अविस्मरणीय और महत्वपूर्ण घटना- लेकिन जल्द-से-जल्द मुम्बई पहुंचने की धुन में वह उस घटना को बिल्कुल ही भूल गया था।
(उपन्यास 'बोलते सिक्के' का प्रथम पृष्ठ)
  प्रथम दृश्य के बाद हम चलते हैं मुख्य घटनाक्रम की ओर। एक ही दिन में अलग-अलग ट्रेनों में दो भारतीय वैज्ञानिकों की हत्या कर दी जाती है।
"मिस्टर घोषाल, शायद आपको पता नहीं कि एक ही दिन में भारत के दो महत्वपूर्ण और विख्यात वैज्ञानिकों की बहुत ही रहस्यपूर्ण ढंग से हत्या की गई है। दोनों वैज्ञानिकों का सम्बंध परमाणु विकास और अंतरिक्ष सम्बंधी खोजों से था। डॉक्टर जयंत कोठारी भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर कार्य कर रहे थे। पोकरण में भारत ने जो पहला परमाणु बम परीक्षण किया था उस परमाणु बम के निर्माण में डॉक्टर जयंत कोठारी का प्रमुख हाथ था। इसी प्रकार डॉक्टर शितांशु घोषाल इसरो उपग्रह केंद्र बंगलौर में वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहे थे और भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट तथा भास्कर के निर्माण में उनका प्रमुख योगदान था।" मेजर बलवंत ने बताया और फिर एक पल कुछ सोचकर बोला, "मुझे लगता है इन दोनों महत्वपूर्ण भारतीय वैज्ञानिकों की हत्या किसी सुनियोजित षड्यन्त्र का परिणाम है।"
         यह घटनाक्रम मुम्बई से संबंधित है और यहाँ का प्रसिद्ध जासूसी मेजर बलवंत अपनी टीम सुधीर, सुनील, सोनिया, डोरा,मालती और प्रशिक्षित कुत्ते क्रोकोडायल के साथ इन हत्याओं का रहस्य सुलझाने के लिए सामने आता है।
       क्योंकि हत्या दो महत्वपूर्ण वैज्ञानिकों की हुई थी तो इसका रहस्य जल्दी सुलझाना आवश्यक था‌ लेकिन चलती ट्रेन में हत्या का होना और कोई सबूत भी न मिलना एक बड़ी समस्या थी।
अब कहानी को आगे कैसे बढाया जाये । यहाँ मेजर बलवंत पर दो हमले होते हैं। द्वितीय हमलावर पकड़ा जाता है और मेजर बलवंत को कुछ साक्ष्य हाथ लगते हैं। और फिर मेजर बलवंत वैज्ञानिकों की हत्या वाले केस पर सक्रिय होता है।
       वैज्ञानिक सितांशु घोषाल और जयंत कोठारी के अतिरिक्त एक और वैज्ञानिक सामने आता है जिसका नाम है राजबहादुर श्रीवास्तव जो की इन दोनों वैज्ञानिकों का मित्र है और वहीं एक और रिसर्चर अमेरिकन लड़की मार्था का नाम भी सामने आता है जो डाक्टर सितांशु घोषाल के करीब मानी जाती थी‌।
        यहाँ दो केस चलते हैं एक उन लोगों का है जिन्होंने मेजर बलवंत पर जानलेवा हमला किया और द्वितीय वैज्ञानिकों की हत्या का। मुख्य कहानी वैज्ञानिकों की हत्या से संबंधित है पर उपन्यास में ज्यादा विस्तार हमलावरों का है, क्योंकि यह कहानी आगे जाकर मुख्य कहानी से मिलती है।
मुम्बई से कहानी घूमती है कर्नाटक की ओर जहाँ के एक होटल में अंतरराष्ट्रीय अपराधी उपस्थित हैं।
मेजर बलवंत और साथियों के सहयोग से वास्तविक अपराधी को पकड़ लिया जाता है।
एक महत्वपूर्ण संवाद देखें-
मेजर बलवंत ने दोनों समाचारों को बड़े ध्यान से पढ़ा और फिर दोनों अखबार मेज पर रखते हुए बोला, "जानती हो सब दुर्घटनाओं का मूल कारण क्या है? इन तमाम घटनाओं का मूल कारण है जिम्मेदार व्यक्तियों का अपने काम और अपने कर्तव्यों के प्रति उपेक्षा और लापरवाही की भावना। आज देश का नैतिक और राष्ट्रीय चरित्र इस सीमा तक गिर गया है कि हमें केवल अपने अधिकारों की ही। याद रह गई है। हम अपने कर्तव्यों को एकदम भुला बैठे हैं।"
उपन्यास का कथानक भारतीय वैज्ञानिक और ऐसे दुश्मनों से जुड़ा है जो मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव का फायदा उठाकर भारत को कमजोर बनाना चाहते हैं।
         उपन्यास का आरम्भ एक मर्डर से होता हुआ धीरे-धीरे अन्य घटनाओं से जुड़ता चला जाता है। उपन्यास काफी रोचक और दिलचस्प है।
        हां, अगर आपने कर्नल रंजीत के उपन्यास पढे हैं तो आपको पता होगा जासूस मेजर बलवंत उपन्यास के अंत में सभी पात्रों को एकत्र कर उन्हें पूरा घटनाक्रम बताता है। यहां उपन्यास की गति धीमी हो जाती है लेकिन उपन्यास की कहानी समझने के लिए इसे जानना भी आवश्यक है
         हां,मेजर बलवंत ने यह सब जैसे जाना..कभी कभी पाठक यह नहीं जान पाता क्योंकि मेजर बलवंत होंठ गोलकर सीटी बजाकर समस्या का हल खोज लेते हैं या कहे की समस्या का हल खोजकर होंठ गोलकर सीटी बजाते हैं।
मेजर बलवंत की सहयोगी सोनिया का अपहरण किस उपन्यास में होता है?
अगर किसी पाठक को जानकारी हो तो अवश्य बतायें।
- मेजर बलवंत एक विख्यात जासूस है और उसकी कुछ न कुछ नयी विशेषताएँ सामने आती हैं । यहां मेजर बलवंत को मनोविज्ञान का ज्ञाता दर्शाया गया है।
- मेजर बलवंत कुछ असमंजस में पड़ गया। वह मनोविज्ञान का अच्छा जानकार था। मानव स्वभाव का पारखी था। उसकी पैनी नजरें मानव के चेहरों पर से होती हुयी उसके अंतर में उतर जाती थी और वह पल-दो पल में ही सु व्यक्ति के चरित्र और स्वभाव को परख लेता था ।
मेजर बलवंत की मुख्य विशेषता-
मेजर बलवंत के होंठ सहसा गोल हो गए और वह जोर-जोर से सीटी बजाने लगा ।
मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए किस हद तक गिर जाता है, यह इस उपन्यास में पठनीय है। वह अपने स्वार्थ और धन के लालच के लिए अपना मान-सम्मान सब खो सकता है।

उपन्यास- बोलते सिक्के
लेखक-     कर्नल रंजीत

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