कर्नल रंजीत का प्रथम उपन्यास
हत्या का रहस्य- कर्नल रंजीत, 1967
हिंदी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में छद्मनाम का पहला प्रयोग हिंद पॉकेट बुक्स ने कर्नल रंजीत के नाम से आरम्भ किया था। यह प्रयोग बाद में इस साहित्य में छूत की बीमारी की तरह फैल गया।
एक के बाद एक प्रकाशक छद्मनाम और Ghost writing करवाने लगे, इस चक्कर में प्रतिभाशाली लेखक भी अपनी प्रतिभा का हनन करवा बैठे। हत्या का रहस्य- कर्नल रंजीत, 1967
हिंदी लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में छद्मनाम का पहला प्रयोग हिंद पॉकेट बुक्स ने कर्नल रंजीत के नाम से आरम्भ किया था। यह प्रयोग बाद में इस साहित्य में छूत की बीमारी की तरह फैल गया।
लेकिन जो प्रसिद्ध कर्नल रंजीत के नाम को प्राप्त हुयी वह अन्यत्र दुर्बल है। कर्नल रंजीत का अन्य नाम मखमूर जलंधरी था।
हत्या का रहस्य
उपन्यास की कहानी एक दैनिक समाचार पत्र के कार्टूनिस्ट से संबंध रखती है। जो कार्टूनिस्ट था, सेना का जवान भी रहा और एक दिन रहस्यमय परिस्थितियों में उसकी लाश पाई गयी। दैनिक पत्र के एक पत्रकार के कहने पर मेजर बलवंत इस रहस्यमय केस पर कार्य करने को सहमत होता है।
हिंद पॉकेट बुक्स ने साधारण स्तर के जासूसी उपन्यास प्रकाशित करने की अपेक्षा अच्छे स्तर के आश्चर्यजनक जासूसी उपन्यास प्रकाशित करने का निश्चय किया है और इसके लिए विशेष रूप से कर्नल रंजीत का सहयोग प्राप्त है। वे आपके लिए जासूसी उपन्यासों की शृंखला शुरु कर रहे हैं।
'हत्या का रहस्य' आपका पहला उपन्यास है जो निस्संदेह हिंदी में जासूसी साहित्य के राजपथ पर मील का पत्थर सा महत्व रखता है। (उपन्यास के आरम्भिक पृष्ठ से)
उक्त कथन से यह तो तय है की कर्नल रंजीत के उपन्यासों
का एक सुनहरा दौर रहा है और आज भी उनकी मांग कम-ज्यादा बनी हुयी है। कर्नल रंजीत के उपन्यासों का नायक 'मेजर बलवंत' था और बाद में हिंद पॉकेट ने मेजर बलवंत नामक लेखक के नाम से भी उपन्यास प्रकाशित किये। और यह भी स्थापित है कि कर्नल रंजीत के उपन्यास वास्तव में रोचक और स्तरीय होते थे।
उपन्यास का आरम्भ पत्रकार जगदीश से होता है। जगदीश अंग्रेजी के स्थानीय दैनिक 'नेशन' का क्राइम रिपोर्टर था। उसे शहर में होने वाले अपराधों की दिलचस्प खबरें बनाने में कुशलता प्राप्त थी। और आज से चार बरस पहले अब्दुलमजीद के बनाए हुए कार्टून उसके अखबार में छपा करते थे, जो अत्यंत लोकप्रिय हुए थे। और फिर अचानक अब्दुलमजीद गायब हो गया। (पृष्ठ-प्रथम)
अब्दुलमजीद को खोजने की जिम्मेदारी जगदीश पर थी। पर एक दिन उसे अब्दुलमजीद की लाश मिली और वह भी एक लकड़ी के बक्से में बंद।
अब्दुलमजीद की हत्या के रहस्य को सुलझाने के लिए...और ठीक उस समय उसे सेना के गुप्तचर विभाग का मेजर बलवंत याद आ गया। (पृष्ठ-12)
मेजर बलवंत तीस बरस का, लम्बे कद का एक खूबसूरत और आकर्षक नौजवान था। अभी तक कुंवारी था। हैवी लाईट वेट में मुक्केबाजी का चैम्पियन था और पिस्तौल की निशानाबाजी में रिकार्ड तोड़ चुका था। (पृष्ठ-13)
मेजर बलवंत जब इस रहस्य को सुलझाने निकलता है तो उसका वास्ता उसके चित्रकार मित्र से होता है। और उसे पता चलता है की अब्दुलमजीद के बनाये चित्र सब के सब गायब हो गये।
जब मेजर बलवंत इस रहस्य के नजदीक पहुंचता है तो वह लोग भी मारे जाते हैं जिन्होंने उन तस्वीरों को खरीदा था। सब के लिए यह एक पहेली है की आखिर कौन और किसलिए कत्ल कर रहा है
होंठों को गोल कर सीटी बजाने वाला मेजर बलवंत आखरी इस रहस्य को खोज लेता है की क्यों अब्दुलमजीद की बनाई तस्वीरें गायब हुयी, आखिर क्यों और किसने अब्दुलमजीद की हत्या की।
मेजर बलवंत एक जासूस होने के साथ-साथ हास्यप्रवृति का आदमी है। वह अपनी सहयोगी सोनिया के साथ स्तरीय हास्य करता नजर आता है।
मेजर बलवंत का एक शेर भी पढ लीजिएगा-
महफिल में इस ख्याल से फिर आ गया हूँ मैं
शायद मुझे निकाल के पछता रहे हैं आप।। (पृष्ठ-14)
उपन्यास का एक अच्छा संवाद-
"औरतों का जब आवेश खत्म हो जाता है तो उनके दिल में प्यार की भावना जाग जाती है।" (पृष्ठ-84)
कर्नल रंजीत द्वारा लिखा गया प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री रचना है। कहानी रहस्य से परिपूर्ण है।
उपन्यास- हत्या का रहस्य
लेखक- कर्नल रंजीत
संस्करण- 1967
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteतस्कीन अहमद
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteकहानी रोचक लग रही है। मुझे भी नेट में कर्नल रंजीत के कुछ उपन्यास मिले थे। उन्हें पढ़ने की कोशिश रहेगी।
ReplyDeleteइनके आरम्भिक हिंद पॉकेट से प्रकाशित उपन्यास काफी दिलचस्प हैं।
DeletePlease send me
Deleteसर बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।
ReplyDeleteकर्नल रंजीत मेरे पसन्द के लेखकों में से हैं। काफी समय से उनकी कोई किताब नहीं पढ़ी। मेजर बलवंत और उनके ग्रुप के साथियों का केस की जांच करने का अंदाज बेहद पसंद आता था। उनके उपन्यास बेहद रोचक लगते हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद जी।
Deleteजब मैं 10 क्लास भी पास नही की तब तक कर्नल रणजीत की जासूसी उपन्यासों का मुरीद बन चुका था। मेजर बलवंत, सोनिया,डोरा,मालती, सुधीर, सुनील,क्रोकोडाइल -- क्या लिखूं अब अब भी जेहन में वैसे ही है जैसे पहली बार मे बस गए थे। आज भी मेरे पास बहुत सी उनकी बुक्स हैं।
ReplyDeleteअगर आप उपन्यास साहित्य पर किसी भी विषय पर कोई आर्टिकल लिखना चाहें तो आपका स्वागत है।
Deletewww.sahityadesh.blogspot.com