Friday, 30 July 2021

446. राख- जितेन्द्र नाथ

जहाँ हर लाश बस राख थी
राख- जितेन्द्र नाथ

लोकप्रिय जासूसी साहित्य में नये लेखकों का पदार्पण से यह तो तय हो जाता है कि इस क्षेत्र का भविष्य अभी उज्ज्वल है।
जितेन्द्र नाथ का प्रथम मौलिक उपन्यास 'राख' किंडल पर पढा, आज उसी उपन्यास की यहाँ चर्चा करते हैं।
   एक काव्य संग्रह और एक जेम्स हेडली चेईज के उपन्यास के अनुवाद के पश्चात जितेन्द्र नाथ जी अपने मौलिक लेखक के साथ उपन्यास साहित्य में पदार्पण किया है। वह भी मर्डर मिस्ट्री के साथ। 
  उपन्यास का कथानक आरम्भ होता है प्रेम नगर की एक सुनसान जगह पर लाश मिलने से। अभी यह मर्डर मिस्ट्री हल नहीं होती की एक और लाश सामने आती है। हर लाश जली हुई अवस्था में होती है और सबूत के तौर पर सिर्फ राख मिलती है।
  पुलिस इंस्पेक्टर रणवीर के लिए यह चुनौती है-
वह लोग इसे आत्महत्या मानने के लिए तैयार नहीं हैं।-
रणवीर ने धीर-गंभीर आवाज में बोलना शुरू किया । “हमारे पुलिस स्टेशन की हद में पिछले तीन-चार दिनों में दो लाशों का मिलना और बेहद हौलनाक वारदातों का घटित हो जाना हमारे पुलिस स्टेशन की रेपुटेशन के लिए अच्छा नहीं हैं । इस मामले को लेकर एसपी ऑफिस में आज ही मेरी पेशी लग जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।”
    अभी इंस्पेक्टर रणवीर एक केस को हल नहीं कर पाता तभी एक और लाश मिलती वह भी राख बन कर।
एक- दो और फिर तीसरी लाश ने पुलिस विभाग के सामने मानो एक चुनौती पैदा कर दी। 

Monday, 26 July 2021

445. कागज की नाव- गोविंद वल्लभ पंत

एक डाकू की पश्चाताप कथा
कागज की नाव- गोविंद वल्लभ पंत, 1960

"क्यों रंजीत क्या थक गये? तभी तो मैंने तुमसे कहा था मेरा साथ देने का दुस्साहस मत करो।"- प्रताप भागते हुये ठहर गया था अपने मित्र के लिए।
'कागज की नाव' कहानी है दो दोस्तों की और पश्चाताप की।
   मेरे विद्यालय 'राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय-माउंट आबू' में 'सरस्वती पुस्तकालय' है। जिसमें लगभग दस हजार से ज्यादा पुस्तकें हैं। हर विषय की किताबें यहाँ उपलब्ध हैं।
   इन्हीं किताबों में से गोविन्द वल्लभ पंत का एक छोटा सा उपन्यास पढने के लिए निकाला 'कागज‌‌ की नाव'।
     जैसा की यह दो दोस्तों की कहानी है जो छोटी- मोटी चोरियां‌ कर के अपना जीवनयापन करते हैं। इनके साथ इनका प्यारा कुत्ता विक्टर भी होता है। 

Sunday, 25 July 2021

444. हाॅगकाॅग में हंगामा- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुनील का प्रथम अंतरराष्ट्रीय अभियान
हाॅगकाॅग में हंगामा- सुरेन्द्र मोहन पाठक,1966
सुनील सीरीज-06

सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन के सुपरिटेन्डेन्ट रामसिंह ने अपनी जेब से एक असाधारण लम्बाई का सिगार निकाला, दांत से ही उनका कोना काटा, सिगार को अपने मुंह के कोने में लगाकर उसने माचिस से सुलगाया और फिर एक बेहद लम्बा कश लेकर उसे होंठों से हटा लिया और अपने विशिष्ट ढंग से उसे अपने अंगूठे और पहली उंगली में नचाता हुआ सुनील से सम्बोधित हुआ - “आज तुमको मेरे साथ प्रतिरक्षा मन्त्रालय में चलना है।”
   यहाँ जाकर सुनील को पता चलता है की कुछ महत्वपूर्ण फाईल गायब हो गयी हैं। और विभाग का एक सामान्य सा कर्मचारी नरेश मारा गया है और उसकी जेब में कुछ गोपनीय कागज पाये गये हैं।
मिस्टर सुनील, नरेश देशद्रोही, नहीं हो सकता । वह चोरी नहीं कर सकता । वह तो अवश्य ही किसी बहुत बड़े कुचक्र का शिकार होकर जान दे बैठा है।” 
     सुनील को यह भी पता चलता है की उस कर्मचारी नरेश की पहुँच उन कागजों तक न थी।
- वह महत्वपूर्ण कागज/फाईल क्या थी?
- वह फाईल कैसे गायब हुयी?
- वह कागज किसने गायब किये?
- नरेश कैसे मारा गया?
- सुनील इस रहस्य जो कैसे सुलझाता है?
- आखिर प्रतिरक्षा विभाग सुनील की मदद क्यों लेता है?

443. ब्लैकमेलर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुनील सीरीज का पांचवां उपन्यास
ब्लैकमेलर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन पाठक, 1966
सुनील सीरीज-05

दीवानचन्द एक ऑटोमोबाइल कम्पनी का मैनेजर था जिसे अपनी काम के सिलसिले में अक्सर राजनगर से बाहर जाना पड़ता था। ऐसे ही एक टूर के बाद एक सुबह उसे चिट्ठी मिली जिसमें उस पर इल्जाम लगाया गया था कि अपने पिछले टूर के दौरान उसने एक मासूम लड़की की जिंदगी तबाह डाली थी और उसकी सारी कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा उसकी बीवी के सामने खोल देने की धमकी दी गयी थी। जबकि खुद दीवानचंद का दावा था कि उसने कुछ गलत नहीं किया था। (उपन्यास अंश) 

  ब्लैकमेलर की हत्या सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा लिखा जाने वाला और सुनील सीरीज का पांचवा उपन्यास है। उपन्यास का कथानक एक ब्लैकमेलर की हत्या और संबंधित है। शक तो संबंधित सभी लोगों पर जाता है पर हत्यारा तो कोई एक ही था। बस उसे हत्यारे की तलाश पर आधारित है यह उपन्यास। उपन्यास में हालांकि यह मूल कथानक है लेकिन कहानी सिर्फ इतनी ही नहीं है और भी बहुत कुछ उपन्यास में रोचक और पठनीय है। 

Sunday, 4 July 2021

442. वो बेगुनाह थी- मोहन मौर्य

                           एक रोचक थ्रिलर
          वो बेगुनाह थी- मोहन मौर्य

लोकप्रिय जासूसी साहित्य में वर्तमान समय में हर लेखक जब मर्डर मिस्ट्री को मील का पत्थर मान चुका है उस समय में एक थ्रिलर उपन्यास का आना सावन की प्रथम बरसात की फुहार की तरह है।
      हम बात कर रहे हैं मोहन मौर्य जी के उपन्यास 'वो बेगुनाह थी' की। यह एक थ्रिलर उपन्यास है हालांकि उपन्यास में मर्डर होता है पर वह मूल कथा नहीं है। वैसे मोहन‌ मौर्य का उपन्यास साहित्य में‌ पदार्पण 'एक हसीन कत्ल' नामक मर्डर मिस्ट्री से ही हुआ था। 
   अब बात करते हैं उपन्यास जे कथानक की।
  यह कहानी है एक युवा की जो हैदराबाद में जो काम करता है और एक लड़की की 'मैं बेगुनाह हूँ' की मार्मिक पुकार पर उसे बेगुनाह साबित करने के अभियान पर निकल पड़ता है।
      मेरा नाम राहुल है, राहुल वर्मा । मूलतः मैं दिल्ली से हूँ और एक एमएनसी में जॉब कर रहा हूँ । फिलहाल जॉब के सिलसिले में वर्तमान में हैदराबाद मेरा रैन बसेरा है । मैं अपने परिवार के साथ हैदराबाद के कुकटपल्ली क्षेत्र की न्यूयार्क टाइम्स टाउनशिप की बिल्डिंग नंबर 7 के फ्लैट नंबर 304 में रहता हूँ।
    राहुल वर्मा के पडोसी में दो लड़कियाँ रहती हैं। जिस में से एक खूबसूरत लड़की का नाम है रश्मि माथुर।

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...