Wednesday, 23 August 2023

572. करिश्मा आँखों का - टाइगर

आखिर क्या रहस्य था उन नीली आँखों‌ का
करिश्मा आँखों का - टाइगर

राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' टाइगर द्वारा लिखित 'लाश की जिंदा आँखें' उपन्यास का अंतिम और द्वितीय भाग है। 

"यानि तुम अंधे नहीं हो ?"
"नहीं ।'
"तुम... तुम शुरू से ही अंधे नहीं थे फिर भी तुम मुझे धोखा देते रहे ? सारी दुनिया को धोखा देते रहे? क्यों ? क्यों किया तुमने यह नाटक ?” - सोना तिलमिलाकर बोली - "क्यों किया तुमने ऐसा ?" 
"यह नाटक मुझे करने पर मजबूर होना पड़ा।"- अशोक इस बार दांत भींचकर गुर्रा उठा- "अगर यह नाटक नहीं किया होता तो मैंने इस दुनिया का असली रूप शायद आज भी न पहचाना होता। यह सच है सोना, आज मैं अंधा नहीं हूं । लेकिन मैं अंधा था, आंखें होते हुए भी मैं अंधा था। तभी तो इस दुनिया की हकीकत को नहीं देख रुका था मैं तभी तो मैं सांप को भी रस्सी समझता रहा— तभी तो मैं नागों को अपनी आस्तीन में पालकर दूध पिलाता रहा।" (उपन्यास अंश)

प्रस्तुत उपन्यास का कथानक डाक्टर कामत के द्वारा अशोक प्रधान के किये गये ऑप्रेशन से होता है। डॉक्टर कामत का यह ऑप्रेशन तो सफल हो जाता है लेकिन वह अशोक प्रधान के शांत जीवन में तूफान खड़ा कर देता है, अशोक का विश्वास और दुनिया दोनों ही खत्म हो जाते हैं।

Saturday, 19 August 2023

571. लाश की जिंदा आँखें- टाइगर

बैंक डकैती और आँखों का रहस्य
लाश की जिंदा आँखें- टाइगर
प्रथम भाग
 वह एक लाश में तबदील हो चुका था और उसकी लाश खंडाला घाट की हजारों फुट गहराई में धकेली जा चुकी थी लेकिन उसकी आंखें फिर भी जिंदा थीं। उन आंखों ने बहुत कहर ढाया, उत्पात मचाया लेकिन उन आंखों का रहस्य कोई न जान पाया।
कैसा अनसुलझा रहस्य था वो, आंखें तो जिन्दा थी, मगर इन्सान लाश में तबदील हो चुका था।
(उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
लाश की जिंदा आँखें- टाइगर

 राजा पॉकेट बुक्स के लेखक 'टाइगर' के उपन्यास रहस्य-रोमांच के साथ-साथ हास्य से परिपूर्ण होते हैं। इनका रहस्य जितना कथा में होता है उतना ही उपन्यास शीर्षक में भी। उपन्यास शीर्षक देखें- लाश की जिंदा आँखें, मुँह बोला पति जैसे शीर्षक पाठक को सहज ही आकृष्ट कर लेते हैं। उस पर अगर आप टाइगर के नियमित पाठक हैं तो आपको पता ही है टाइगर के उपन्यासों में जो कथा कहने का तरीका, हास्य रस और आमजन पात्रों का वर्णन होता है वह बहुत प्रभावित करता है।
   प्रस्तुत उपन्यास 'लाश की जिंदा आँखें' अपने समय का अत्यंत चर्चित उपन्यास रहा है। इसका कथानक एक बैंक डकैती से आरम्भ होता है।
कथा का मुख्य पात्र है बाबू राव पेंडरकर जो एक सजाप्राप्त, उम्रदराज व्यक्ति है और उसके साथ है उस जैसे ही तीन और सदाबहार दोस्त।

Monday, 14 August 2023

570. मौत सस्ती है - राज भारती

क्या विनोद खन्ना ने की थी एक हेरोइन की हत्या?
मौत सस्ती है- राज भारती

'सब झूठ है ।' आवेश में उसकी आवाज कांपने लगी 'पाल पहले ही कहता था कि ऐसा होगा वह जानता था कि उसको जीवित नहीं छोड़ा जायेगा। मैं जानती हूं कि तुम्हारे ही किसी आदमी उसकी जिन्दगी का सौदा कर डाला होगा।' - उसकी आंखों में अब आंसू झलक आये - 'वह पहले ही कहता था... तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये।' 
विजय बोला - 'वह महज दुर्घटना ही है। मैं खुद बाथरूम के बाहर मौजूद था । बाथरूम में दरवाजे के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं है।'-  
कमल उसे घूरती रही, उसके होंठ अब भी कांप रहे थे । (मौत सस्ती है- राज भारती)

   अनिता एक प्रसिद्ध अभिनेत्री थी। उसका एक फिल्म अभिनेता से और एक खतरनाक अपराधी से अच्छा संपर्क था। लेकिन एक दिन अनिता अपने घर के स्वीमिंग पूल में मृत अवस्था में पायी गयी। आखिर उसकी हत्या किसने और क्यों की?
  पुलिस सुपरिडेटेंड रघुनाथ और जासूस विजय जब अभिनेत्री सुनीता के घर पहुँचे तो वहाँ का दृश्य अत्यंत वीभत्स था। अनीता के साथ-साथ घर के नौकरों का लाशें यहाँ-वहाँ पड़ी थी।
एक साथ इतने कत्ल।
इतना भयंकर हत्याकांड।
कितनी सस्ती नजर आ रही थी उसे मौत । कार में बैठा विजय वापस जाते समय वह यही सोच था।

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...