आखिर क्या रहस्य था उन नीली आँखों का
करिश्मा आँखों का - टाइगर
राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' टाइगर द्वारा लिखित 'लाश की जिंदा आँखें' उपन्यास का अंतिम और द्वितीय भाग है।
"यानि तुम अंधे नहीं हो ?"
"नहीं ।'
"तुम... तुम शुरू से ही अंधे नहीं थे फिर भी तुम मुझे धोखा देते रहे ? सारी दुनिया को धोखा देते रहे? क्यों ? क्यों किया तुमने यह नाटक ?” - सोना तिलमिलाकर बोली - "क्यों किया तुमने ऐसा ?"
"यह नाटक मुझे करने पर मजबूर होना पड़ा।"- अशोक इस बार दांत भींचकर गुर्रा उठा- "अगर यह नाटक नहीं किया होता तो मैंने इस दुनिया का असली रूप शायद आज भी न पहचाना होता। यह सच है सोना, आज मैं अंधा नहीं हूं । लेकिन मैं अंधा था, आंखें होते हुए भी मैं अंधा था। तभी तो इस दुनिया की हकीकत को नहीं देख रुका था मैं तभी तो मैं सांप को भी रस्सी समझता रहा— तभी तो मैं नागों को अपनी आस्तीन में पालकर दूध पिलाता रहा।" (उपन्यास अंश)
प्रस्तुत उपन्यास का कथानक डाक्टर कामत के द्वारा अशोक प्रधान के किये गये ऑप्रेशन से होता है। डॉक्टर कामत का यह ऑप्रेशन तो सफल हो जाता है लेकिन वह अशोक प्रधान के शांत जीवन में तूफान खड़ा कर देता है, अशोक का विश्वास और दुनिया दोनों ही खत्म हो जाते हैं।