आखिर क्या रहस्य था उन नीली आँखों का
करिश्मा आँखों का - टाइगर
राजा पॉकेट बुक्स, दिल्ली से प्रकाशित उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' टाइगर द्वारा लिखित 'लाश की जिंदा आँखें' उपन्यास का अंतिम और द्वितीय भाग है।
"यानि तुम अंधे नहीं हो ?"
प्रस्तुत उपन्यास का कथानक डाक्टर कामत के द्वारा अशोक प्रधान के किये गये ऑप्रेशन से होता है। डॉक्टर कामत का यह ऑप्रेशन तो सफल हो जाता है लेकिन वह अशोक प्रधान के शांत जीवन में तूफान खड़ा कर देता है, अशोक का विश्वास और दुनिया दोनों ही खत्म हो जाते हैं।
वहीं उपन्यास के द्वितीय पक्ष में बैंक डकैती की दो पार्टियां अब एक हो जाती हैं लेकिन अफसोस की उन्हें यह पता नहीं चलता की बैंक से लूटे गये डेढ करोड़ रुपए कहां गये। क्योंकि रुपये बिल्ला ने छिपाये थे और बिल्ला अब इस दुनिया में नहीं है, अगर कुछ है तो वह है बिल्ला की नीली आँखें, जो अशोक प्रधान की अंधेरी दुनिया को रोशन कर रही हैं।
वहीं पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वेलंकर और सब इंस्पेक्टर लेंगडे बैंक डकैती के अपराधियों की खोज में सक्रिय हैं लेकिन उनके हाथ लगता कुछ भी नहीं। क्योंकि अपराधी तो एक-एक कर पृथ्वी से ही गायब हो रहे हैं। और शेष बचे हैं वह पुलिस की नजरों से दूर हैं।
चाहे पुलिस को अपराधियों का पता नहीं लेकिन रत्नाकर राव जानता है की बैंक डकैत कौन हैं, पर चाह कर भी वह उनको खोज नहीं पाता।
वहीं अशोक प्रधान की पत्नी शालिनी और मित्र महेश जौहरी वास्तविकता से अनजान पुन: अशोक प्रधान को खत्म करने का प्रयास करते है, लेकिन इस बार अशोक प्रधान 'आँखों वाला अंधा' होकर सब कुछ देखता है।
अब कहानी किस करवट घूमती है यह तो खैर उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
- बैंक डकैती के रुपयों का क्या हुआ?
- बिल्ला की आँखों का क्या रहस्य था?
- बैंक डकैती की लूट में से क्या रत्नाकर राव अपना हिस्सा ले पाया?
- क्या पुलिस असली अपराधियों को खोज पायी?
- हरमेल सिंह और रस्तोगी की टीम ने क्या कमाल दिखाया?
- बाबू राव और बालेराम दोनों पार्टियां क्या साथ रह पायी?
- बाबू राव और बालेराम को डेढ करोड़ रुपया मिल पाया?
- क्या सोना अशोक प्रधान, बालेराम और बिल्ला की वास्तविकता जान पायी?
पाठक के मन में उठने वाले इन सवालों के उत्तर टाइगर का उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' पढकर ही जाने जा सकते हैं।
पाठक मित्रो, आपने बैंक डकैती से संबंधित और भी उपन्यास पढे होंगे, पर यह उपन्यास बिलकुल अलग तरह का है। और उपन्यास अलग होने का कारण है 'करिश्मा आँखों का'। लेखक महोदय ने जो कल्पना की और उस कल्पना को शब्दों के माध्यम से पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है वह रोमांच उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है।
लेखक महोदय की यह कल्पना उपन्यास साहित्य में एक अच्छा प्रयोग है। जो पाठकों को परम्परागत डकैती कथा से कुछ अलग पढने को प्रदान करता है।
प्रथम उपन्यास को जहाँ हम कथा की भूमिका मान सकते हैं तो वहीं प्रस्तुत उपन्यास सम्पूर्ण कथा है। प्रथम उपन्यास में मात्र डकैती थी और अशोक प्रधान के आँखों का ऑप्रेशन था लेकिन प्रस्तुत उपन्यास में डकैती के पश्चात घटित घटनाक्रम और अशोक प्रधान के मिली करिश्माई आँखों का चमत्कार भी है।
प्रथम भाग में बाबूराव मुख्य किरदार में था लेकिन यहां बालेराम अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है। उपन्यास में बाबूराव जिंदगी से हार जाने पर मनोहर को राय देता है की इस डकैती की दौलत को भूल जा और अपनी जा बचाकर निकल जा। वह दृश्य अत्यंत मार्मिक है।
अशोक प्रधान का शालिनी और महेश जौहरी के जाल को तोड़ना भी कथा को रोचकता प्रदान करता है।
उपन्यास का एक संवाद-
- पाप का एक रिश्ता जुड़ता है तो पवित्रता के कई रिश्ते टूट जाते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' एक थ्रिलर उपन्यास है और यह अपने कथा आधार पर बिलकुल ही अलग तरह की कहानी है।
प्रस्तुत उपन्यास अपने समय का चर्चित उपन्यास रहा है जिसे पाठक आज भी याद करते हैं।
अगर आप रोमांच अपराध कथा पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा।
उपन्यास- करिश्मा आँखों का
"यानि तुम अंधे नहीं हो ?"
"नहीं ।'
"तुम... तुम शुरू से ही अंधे नहीं थे फिर भी तुम मुझे धोखा देते रहे ? सारी दुनिया को धोखा देते रहे? क्यों ? क्यों किया तुमने यह नाटक ?” - सोना तिलमिलाकर बोली - "क्यों किया तुमने ऐसा ?"
"यह नाटक मुझे करने पर मजबूर होना पड़ा।"- अशोक इस बार दांत भींचकर गुर्रा उठा- "अगर यह नाटक नहीं किया होता तो मैंने इस दुनिया का असली रूप शायद आज भी न पहचाना होता। यह सच है सोना, आज मैं अंधा नहीं हूं । लेकिन मैं अंधा था, आंखें होते हुए भी मैं अंधा था। तभी तो इस दुनिया की हकीकत को नहीं देख रुका था मैं तभी तो मैं सांप को भी रस्सी समझता रहा— तभी तो मैं नागों को अपनी आस्तीन में पालकर दूध पिलाता रहा।" (उपन्यास अंश)
प्रस्तुत उपन्यास का कथानक डाक्टर कामत के द्वारा अशोक प्रधान के किये गये ऑप्रेशन से होता है। डॉक्टर कामत का यह ऑप्रेशन तो सफल हो जाता है लेकिन वह अशोक प्रधान के शांत जीवन में तूफान खड़ा कर देता है, अशोक का विश्वास और दुनिया दोनों ही खत्म हो जाते हैं।वहीं उपन्यास के द्वितीय पक्ष में बैंक डकैती की दो पार्टियां अब एक हो जाती हैं लेकिन अफसोस की उन्हें यह पता नहीं चलता की बैंक से लूटे गये डेढ करोड़ रुपए कहां गये। क्योंकि रुपये बिल्ला ने छिपाये थे और बिल्ला अब इस दुनिया में नहीं है, अगर कुछ है तो वह है बिल्ला की नीली आँखें, जो अशोक प्रधान की अंधेरी दुनिया को रोशन कर रही हैं।
वहीं पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वेलंकर और सब इंस्पेक्टर लेंगडे बैंक डकैती के अपराधियों की खोज में सक्रिय हैं लेकिन उनके हाथ लगता कुछ भी नहीं। क्योंकि अपराधी तो एक-एक कर पृथ्वी से ही गायब हो रहे हैं। और शेष बचे हैं वह पुलिस की नजरों से दूर हैं।
चाहे पुलिस को अपराधियों का पता नहीं लेकिन रत्नाकर राव जानता है की बैंक डकैत कौन हैं, पर चाह कर भी वह उनको खोज नहीं पाता।
वहीं अशोक प्रधान की पत्नी शालिनी और मित्र महेश जौहरी वास्तविकता से अनजान पुन: अशोक प्रधान को खत्म करने का प्रयास करते है, लेकिन इस बार अशोक प्रधान 'आँखों वाला अंधा' होकर सब कुछ देखता है।
अब कहानी किस करवट घूमती है यह तो खैर उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
- बैंक डकैती के रुपयों का क्या हुआ?
- बिल्ला की आँखों का क्या रहस्य था?
- बैंक डकैती की लूट में से क्या रत्नाकर राव अपना हिस्सा ले पाया?
- क्या पुलिस असली अपराधियों को खोज पायी?
- हरमेल सिंह और रस्तोगी की टीम ने क्या कमाल दिखाया?
- बाबू राव और बालेराम दोनों पार्टियां क्या साथ रह पायी?
- बाबू राव और बालेराम को डेढ करोड़ रुपया मिल पाया?
- क्या सोना अशोक प्रधान, बालेराम और बिल्ला की वास्तविकता जान पायी?
पाठक के मन में उठने वाले इन सवालों के उत्तर टाइगर का उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' पढकर ही जाने जा सकते हैं।
पाठक मित्रो, आपने बैंक डकैती से संबंधित और भी उपन्यास पढे होंगे, पर यह उपन्यास बिलकुल अलग तरह का है। और उपन्यास अलग होने का कारण है 'करिश्मा आँखों का'। लेखक महोदय ने जो कल्पना की और उस कल्पना को शब्दों के माध्यम से पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है वह रोमांच उपन्यास पढकर ही जाना जा सकता है।
लेखक महोदय की यह कल्पना उपन्यास साहित्य में एक अच्छा प्रयोग है। जो पाठकों को परम्परागत डकैती कथा से कुछ अलग पढने को प्रदान करता है।
प्रथम उपन्यास को जहाँ हम कथा की भूमिका मान सकते हैं तो वहीं प्रस्तुत उपन्यास सम्पूर्ण कथा है। प्रथम उपन्यास में मात्र डकैती थी और अशोक प्रधान के आँखों का ऑप्रेशन था लेकिन प्रस्तुत उपन्यास में डकैती के पश्चात घटित घटनाक्रम और अशोक प्रधान के मिली करिश्माई आँखों का चमत्कार भी है।
प्रथम भाग में बाबूराव मुख्य किरदार में था लेकिन यहां बालेराम अपना वर्चस्व स्थापित कर लेता है। उपन्यास में बाबूराव जिंदगी से हार जाने पर मनोहर को राय देता है की इस डकैती की दौलत को भूल जा और अपनी जा बचाकर निकल जा। वह दृश्य अत्यंत मार्मिक है।
अशोक प्रधान का शालिनी और महेश जौहरी के जाल को तोड़ना भी कथा को रोचकता प्रदान करता है।
उपन्यास का एक संवाद-
- पाप का एक रिश्ता जुड़ता है तो पवित्रता के कई रिश्ते टूट जाते हैं।
प्रस्तुत उपन्यास 'करिश्मा आँखों का' एक थ्रिलर उपन्यास है और यह अपने कथा आधार पर बिलकुल ही अलग तरह की कहानी है।
प्रस्तुत उपन्यास अपने समय का चर्चित उपन्यास रहा है जिसे पाठक आज भी याद करते हैं।
अगर आप रोमांच अपराध कथा पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपको अवश्य पसंद आयेगा।
उपन्यास- करिश्मा आँखों का
लेखक- टाइगर
प्रकाशक - राजा पॉकेट बुक्स
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लेख से उपन्यास रोचक लग रहा है। अगर मिला तो पढ़ने की कोशिश रहेगी। आभार।
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