13 जुलाई 1660
इच्छामृत्यु शब्द सुनते ही पितामह भीष्म की प्रतिमा समक्ष उभर आती है, जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था, अर्थात उनकी इच्छा के बिना मृत्यु भी उनके समक्ष नही फटक सकती। वे द्वापर में अकेले थे जिन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला था किंतु इस युग मे कुछ शूरवीर ऐसे भी थे जिन्होंने मृत्यु की आंखों में आंखे डालकर उसे चुनौती दी। हजारों प्रहार सहे, मानवी क्षमता के हर मानक, हर क्षमता को ध्वस्त करते हुए भीषण शौर्य किया, रक्त की अंतिम बूंद तक तलवार थामे रहे, शत्रु भी जिनकी वीरता देख कर थर्रा उठा। वे मुट्ठीभर और शत्रु अनगिनत। अपने शौर्य और जिद से मृत्यु को भी प्रतीक्षा करने पर विवश कर देने वाले वीरों की शौर्य गाथा है यह। साक्षी बनिए इतिहास के उस हिस्से का जो मृत्यु पर मानवी इच्छाशक्ति की जीत और अदम्य शौर्य का प्रतीक है।
41 मील का दुर्गम सफर, 21 घण्टे और हजारों शत्रु।
एक युद्ध जिसने इतिहास की दिशा बदल कर रख दी।