Tuesday, 29 May 2018

116. करमजली- धरम राकेश

एक मासूस युवक की खतरनाक कहानी।
करमजली- धरम राकेश, सामाजिक उपन्यास, पठनीय।
-------------------------
     धरम-राकेश अपने समय की चर्चित उपन्यासकारों की जोङी थी। जिन्होंने अपने समय में काफी सामाजिक-थ्रिलर उपन्यास साहित्य को प्रदान किये। यह भी एक कौशल था की दो व्यक्ति मिलकर एक उपन्यास लिखें।
    धरमा-राकेश जी का बहुत समय पूर्व उपन्यास पढा था 'नये जमाने की बहू' जो की एक बैंक डकैती पर आधारित था।
    ‌‌‌    प्रस्तुत उपन्यास 'करमजली' मुझे आबू रोङ (सिरोही, राजस्थान) के लेखक मित्र अमित श्रीवास्तव जी से मिला।
    जब मेरा धरम-राकेश जी की चर्चित जोङी के एक लेखक धरम (धरम बारिया) जी से परिचय हुआ तो मेरी इच्छा हुयी की धरम-राकेश जी के उपन्यास पढने की। तब यह एक उपन्यास सामने आया।

  प्रस्तुत उपन्यास की कहानी-
* एक परिवार पर घिर आये दुख के काले बादलों‌ की करूण कहानी।
* मासूम‌ युवतियों पर जालिमों के अत्याचार की कसक भरी कथा।
* दो भयानक गैंगस्टर्स की खूनी साजिश टकराहट की अद्भुत गाथा।

                मनमोहन कुमार शर्मा एक सीधे-सादे इंसान हैं।‌ ईमानदार और मेहनती मनमोहन शर्मा की का परिवार थोङा बङा है। जिसमें उनके बीवी बच्चों के अतिरिक्त भाई विजय शर्मा और दो जवान बहनें कविता और रेखा भी है।
      अच्छा और खुश परिवार है लेकिन सदा स्थिति कुछ समय बाद बदल जाती है और जब स्थिति बदलती है तो एक के बाद परेशानियां मनमोहन शर्मा के परिवार को घेर लेती हैं।
             विजय शर्मा एक कत्ल के इल्जाम‌ में जेल चले जाते हैं और एक बहन घर से गायब हो जाती है।
    इसी शहर में दो खतरनाक गैंगस्टर हैं। एक है के.के. और दूसरा है मास्टर । जिनकी आपसी गैगंवार से पुलिस भी परेशान है।
              परिस्थितियाँ एक बार फिर बदलती हैं और इन दोनों गैंगस्टर के बीच में फंस जाता है विजय शर्मा।
          और फिर बहुत तेजी से घटनाक्रम बदलते हैं जिसे पाठक बहुत दिलचस्पी से पढता चला जाता है।

- विजय शर्मा ने किसका व क्यों कत्ल किया?
- क्या वास्तव में विजय शर्मा ने कत्ल किया या उसे किसी‌ ने फंसा दिया।
- मनमोहन शर्मा के परिवार का क्या हुआ?
- मनमोहन शर्मा की बहनों पर क्या बीती?
- कौन थी करमजली?
- दो गैंगस्टर कौन थे?
- दोनों गैंगस्टर के बीच में विजय शर्मा कैसे फंस गया?
      ऐसे अनेक प्रश्न है जिनका स्पष्ट उत्तर तो धरम-राकेश जी के उपन्यास 'करमजली' को ही पढकर मिलता है।

के विशेष कथन-
"....पहले जमाने में लोग दिल से दिल, मन से मन मिलाने के लिए गले मिला करते थे, लेकिन‌‌ अब जमाना बदल चुका है। आज पिच्यानवें प्रतिशत दोस्त गले मिलते समय पीठ में वह स्थान ढूंढा करते हैं, जहाँ आसानी से चाकू घोंपा जा सके।"- (पृष्ठ-114)

गलतियाँ-
उपन्यास में एक दो जगह शाब्दिक गलतियाँ हैं।
जैसे। राजीव और अरूण नाम‌ में है।

- और फिर मनमोहन कुमार शर्मा ने रामप्रकाश शर्मा के लङके राजीव से रेखा की शादी तय कर दी। (पृष्ठ-78)

- "तुम...तुम यहाँ रहते हो, अरूण?"- जैसे ही रेखा के पति अरूण ने दस्तक की आवाज सुनकर दरवाज़ा खोला।(पृष्ठ-131)
          अब यहाँ पता नहीं कब, कैसे राजीव का नाम अरूण हो गया।
      

उपन्यास के पात्र-
हालांकि प्रथमदृष्टि उपन्यास के पात्र बहुत ज्यादा नजर आते हैं लेकिन इतने पात्र उपन्यास में निरंतर नजर नहीं आते।
पुलिस विभाग से संबंधित पात्र हैं उनका या तो एक दो बार कहीं‌ नाम आया है या मात्र एक से आधे पृष्ठ तक उनकी भूमिका है।

मनमोहन कुमार शर्मा-    उपन्यास का मुख्य पात्र।
रुक्मणी-         मनमोहन शर्मा की पत्नी
विजय शर्मा-    मनमोहन शर्मा का भाई।
बबलू और नीलू- मनमोहन शर्मा के बच्चे।
रेखा-           मनमोहन शर्मा की बहन। काॅलेज स्टूडेंड।
कविता-        मनमोहन शर्मा की बहन। हाई स्कूल विद्यार्थी।
अशोक-      विजय शर्मा का मित्र।
सुभाष-      कविता का प्रेमी।
संध्या-        विजय की प्रेयसी।
प्रताप कुमार/ PK-       एक बदमाश।
गोगा,  राॅकी, शाकाल-  गुण्डे
नकाबपोश-               शाकाल का बाॅस।
निकल्सन-                 एक बदमाश।
शर्मा, सेवक राम, धूलिया  - पुलिस इंस्पेक्टर।
राणा, खन्ना, जोशी, हजूर सिंह, रोहिल्ला -  एस. आई./ पुलिस विभाग।
आशा- राणा आआभाखङी सिंह, पूरण सिंह,- काॅंस्टेबल
राम प्रसाद कुकरेजा- जेलर
चतुर्वेदी- पुलिस कमिश्नर  
अवस्थी-          डाॅक्टर
श्यामनाथ तिवारी- ब्लू स्टार होटल‌ का मैनेजर।
गिरधारी लाल/ तीर्थ राम - मनमोहन शर्मा का सेठ।
अनूप दत्ता-         वकील।
मिस्टर गुप्ता-       मनमोहन शर्मा के मित्र।
रमा-                  मिस्टर गुप्ता की पत्नी ।
रामप्रकाश शर्मा-  मिस्टर गुप्ता के मित्र।
राजीव-              रामप्रकाश शर्मा का पुत्र। रेखा का पति।
कांता-               राजीव की‌ माँ।

निष्कर्ष-
          उपन्यास रोचक और सरल भाषा -शैली में लिखा गया है। उपन्यास सामाजिक है जो की भावना प्रधान है। जिसे पढकर पाठक की आँखें सहज ही नम हो जाती है।
    उपन्यास पठनीय है।
--------
उपन्यास- करमजली
लेखक द्वय- धरम-राकेश
प्रकाशन- 1986 (प्रथम संस्करण)
प्रकाशक- अभिनव पॉकेट बुक्स, जी. टी. रोङ, शाहदरा-दिल्ली।

115. देजा वू- कंवल शर्मा

जब तीन अजनबी एक तूफानी रात में‌ मिले...
देजा वू- कंवल शर्मा, थ्रिलर उपन्यास, रोचक, पठनीय।
----------------
कंवल शर्मा वर्तमान उपन्यास जगत के वह सितारे हैंं जिन्होंने अल्प समय में अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर ली। अपने पहले उपन्यास 'वन शाॅट' से चर्चा में आये कंवल शर्मा लगातार चर्चा बने रहे।
उनका प्रस्तुत उपन्यास 'देवा वू' भी अपनी एक अलग प्रकार की कहानी के लिए काफी चर्चित रहा। इसके चर्चित होने के भी दो कारण है एक तो उपन्यास का कथानक कुछ अलग होना दूसरा कहानी का अधिकांश पाठकों की समझ से बाहर होना। हालांकि लेखक का यह एक नया प्रयोग था लेकिन लेखक इसे फिल्म के स्तर पर ले गये। जहाँ फिल्म का प्रत्येक दृश्य दर्शक के समक्ष होता है वहीं उपन्यास में लेखक की जिम्मेदारी होती है की वह कुछ बातें पाठक के सामने स्पष्ट करें।

Saturday, 19 May 2018

114. मेरी मदहोशी के दुश्मन- आबिद रिजवी

मस्ती से भरा एक का रोमांटिक उपन्यास।
मेरी मदहोशी के दुश्मन- आबिद रिजवी, रोमांटिक-थ्रिलर उपन्यास।
----------------------------
     
  जासूसी उपन्यास जगत का जब से सुनहरी दौर बिता उसी के साथ बहुत से लेखक गुमनामी के अंधेरे में‌ खो गये।
इन्हीं लेखकों में से एक लेखक है आबिद रिजवी साहब जिन्होंने वक्त के साथ स्वयं को बदला और लेखन क्षेत्र में सतत सक्रिय रहे।
लेकिन उपन्यास के क्षेत्र में इन्होंने लगभग बीस साल बाद पुन: पदार्पण किया। इनके इस आगमन का आगाज होता है रवि पाकेट बुक्स से प्रकाशित इनके उपन्यास 'मेरी‌ मदहोशी के दुश्मन' उपन्यास से।
 ‌‌‌‌‌‌‌‌


  
    नीलू कक्षा दस की एक विद्यार्थी है। कुछ असामाजिक तत्व नीलू का अपहरण करना चाहते हैं। तब जासूस कामिनी बट उनसे जा टकराती है और दुश्मनों को मात देती है।
   हालांकि उपन्यास की कहानी मात्र इतनी है पर लेखक ने अपनी‌ कल्पना शक्ति से इसमें विविध रंग भरे हैं। ये रंग एक्शन और रोमांस के हैं। 
         उपन्यास रोचक और हल्का-हल्का प्रेम रस लिए हुये है। इस प्रेम रस में वह ताजगी है जो पाठक को आनंदित करती है और इस आनंद सागर में बहता हुआ पाठक उपन्यास के पृष्ठ दर पृष्ठ पढता चला जाता है। 
        वर्तमान में जहां अधिकांश उपन्यास मर्डर मिस्ट्री और दिमागी उलझन वाले हैं वहीं आबिद रिजवी साहब का यह उपन्यास सावन की हल्की सी बरसात की उस फुहार की तरह हैं जो तन के साथ मन को भी भीगों देती हैं।
            




भाषा शैली
इस उपन्यास की सबसे बङी विशेषता है इसकी भाषा शैली। आबिद रिजवी साहब एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं, साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विषयों पर लिख चुके हैं। अत: स्वाभाविक ही है कि इनकी भाषा शैली बहुआयामी होगी।
एक एक्शन उपन्यास में इन्होंने कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग किया है। ऐसी शब्दावली जो पाठक को सहज की आकर्षित कर लेती है।
उस दिन मौसम बहुत रोमांटिक था। सुरम ई बादलों‌के नन्हें -मुन्ने टुकङे, धुनी हुयी रूई की तरह आसमान पर बिखरे हुए थे।
ठण्डी हवा थी, लेकिन चुपके-चुपके धीमे-धीमे इस तरह चल रही थी, जैसे महबूब के बेडरूम में‌ पहुँचकर अचानक चौंका देना चाहती हो। (पृष्ठ- 07)

उपन्यास में लेखक महोदय ने कहानी पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया इसलिए कहानी अपने मूल‌ विषय से भटक जाती है।
उपन्यास में मुख्य खलनायक का किरदार हावी रहता है लेकिन खलनायक संपूर्ण उपन्यास में‌ एक बार दृष्टिगोचर होता है और वह भी पीठ किये हुए।
 उपन्यास

निष्कर्ष- 
            
     उपन्यास के विषय में उपन्यास के अंतिम‌ कवर पृष्ठ पर लिखी हुयी इबारत प्रकाश डालती है।
शहद की चाशनी की‌मधुरिमा में डूबा एक ऐसा थ्रिलर उपन्यास, जिसमें हुस्न की चाहत के साथ देश प्रेम की भावना से लबरेज एहसासात भी हैं।
        अगर पाठक वर्तमान एक्शन, मर्डर मिस्ट्री से अलग हटकर कुछ रोमांटिक पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आपका मनोरंजन करेगा। हालांकि कहानी के स्तर पर उपन्यास काफी पीछे रह गया।
  फिर भी रोमांस और एक्शन पसंद पाठकों को उपन्यास पसंद आयेगा।
--------------
उपन्यास- मेरी मदहोशी के दुश्मन
लेखक- आबिद रिजवी
पृष्ठ- 269
मूल्य- 80₹
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स- मेरठ
-------_--
अन्य लिंक
1. आबिद रिजवी जी का परिचय
2. आबिद रिजवी जी से साक्षात्कार

Monday, 14 May 2018

113. कौओं‌ का हमला- अजय सिंह

जब कौवों ने किया हमला...
कौओं का हमला- अजय सिंह, बाल उपन्यास, रोचक, पठनीय।
-------
'आहट, क्राइम‌ पट्रोल, CID, अगले जन्म मोहे बिटिया ही किजो' जैसे चर्चित धारावाहिक लेखन से अपने पहचान स्थापित कर चुके लेखक अजय सिंह का एक बाल उपन्यास भी इन दिनों खूब चर्चा में हैं।
जहाँ एक तरफ टीवी सीरियल लेखन गंभीर किस्म‌ का है तो वहीं बाल उपन्यास उतना ही सरल और सहज है। लेखन में‌ कहीं भी अतिरिक्त बौद्धिकता नहीं झलकती । एक अच्छे लेखक की यही पहचान होती है की वह कहानी के साथ-साथ सरल भाषा शैली का प्रयोग करे। 'कौओं का हमला' तो है ही बाल उपन्यास तो इसकी भाषा शैली भी बच्चों के अनुकूल है।
लेखक ने विषय बहुत ही रोचक चुना है जो सहज ही पुस्तक पढने को प्रेरित करता है। पाठक के अंदर एक जिज्ञासा उत्पन्न होती है की आखिर कौओं‌ ने‌ किस पर और क्यों हमला किया।
उपन्यास की कहानी बहुत रोचक और धारा प्रवाह है। पाठक के हृदय में‌ निरंतर उत्कण्ठा बनी रहती है की आगे क्या होगा।

Sunday, 13 May 2018

112. रिवेंज- एम. इकराम फरीदी

रहस्य से भरी एक बदले की कथा।
रिवेंज- एम. इकराम फरीदी, सस्पेंश-थ्रिलर, रोचक, पठनीय।
----------------------
उत्तर प्रदेश के युवा लेखक एम. इकराम ‌फरीदी ने जो कम समय में पाठकवर्ग में जो अपनी पहचान स्थापित की है वह वास्तव में प्रशंसनीय है।‌ इनकी पहचान स्थापित होने की एक वजह तो यह है की लेखक लंबे समय से गुमनामी में संघर्ष करता रहा और जब पाठकवर्ग के सामने आया तो एक से बढकर एक रचनाएँ दी और सभी रचनाएँ समाज को संदेश देने के साथ-साथ विषय वस्तु में नवीनता लिए हुए हैं।
                    द ओल्ड फोर्ट, ट्रेजङी गर्ल, गुलाबी अपराध, ए टेरेरिस्ट और अब प्रस्तुत उपन्यास रिवेंज सभी की कहानी एक दूसरे से पूर्णतः अलग है। इसी विशेषता के चलते फरीदी साहब के पाठकों में‌ वृद्धि हुयी।


प्रस्तुत उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है, हालांकि इनका पूर्व उपन्यास 'गुलाबी अपराध' भी मर्डर मिस्ट्री था लेकिन दोनों की पृष्ठभूमि बहुत अलग है।

"सर.....।"- सुधीर ने भूमिका तैयार की और चेतना का मोबाइल दिखाता हुआ बोला-" यह मेरी बेटी का फोन है, अभी थोङी देर पहले इस पर धमकी मिली है कि मेरे पूरे परिवार को मार दिया जाएगा- मेरे बेटे मोनू को इस वीक के लास्ट तक‌ मर्डर कर दिया जायेगा।"
................
इंस्पेक्टर ने नंबर देखा। काॅल हिस्ट्री देखी।
................
"कौन है यह?"
"बकौल इसके मेरा भतीजा अंशु है, जो चार महीने पहले एक सङक दुर्घटना में मर चुका है।"
"मतलब?"- इंस्पेक्टर तो चौंक उठा- " जो मर चुका है, वह कैसे फोन कर सकता है?"
"कल रात ग्यारह बजे वह मेरे बेटे सोनू से मिलने भी उसके कमरे में आया था।"
"कौन आया था?"
"मेरा भतीजा अंशु।"
"जो मर चुका है?"
"जी हां, सर।"
"तुम पागल तो नहीं हो- तुम लोग कहीं पागलखाने से तो नहीं छूटे हो?"
"सच्चाई वही है सर जो मैं बता रहा हूँ ।"-सुधीर रो‌ देने वाले स्वर में बोला।
(पृष्ठ-31-32)
.....और अनंतः इंस्पेक्टर भी इस बात को मानने को मजबूर हो जाता है।
"अजीब बात है।"- इंस्पेक्टर बेंत को ठकठकाते हुए इधर-उधर चहलकदमी करता हुआ बोला- " जो धमका रहा है कत्ल करने को, वह मर चुका है- वैरी इंस्ट्रेस्टिंग -लेकिन अब उसको ढूंढा कहां जाये- क्या श्मशान घाट में?" (पृष्ठ-39)
कत्ल हुआ बाकायदा धमकी देकर हुआ लेकिन कोई कातिल साबित न हुआ, कोई सबूत न‌ मिला और सबसे सामने कत्ल हुआ।
और दूसरी तरफ एक मैना थी। जिसने चैलेंज किया था।
मैना चलकर थोङा करीब आई। मात्र थोङा सा गैप देकर खङी हुयी और आँखों में आँखें डालकर फुसफुसाई -"फ्राइङे को मोनू का कत्ल हो जाएगा- रोक सको तो रोक लेना।"(पृष्ठ-47)

Saturday, 12 May 2018

111. सौ करोङ डाॅलर के हीरे- विश्व मोहन विराग

सौ करोङ डाॅलर के हीरों के लिए हुयी जंग
सौ करोङ डाॅलर के हीरे- विश्व मोहन विराग, थ्रिलर उपन्यास, औसत।
--------------------
            अमेरिका के एक व्यापारी त्रिलोचन सिंह की भारत के राजा के साथ सौ करोङ डॉलर के हीरों‌ की एक डील थी। उस डील का भारत से अमेरिका लाने की जिम्मेदारी अमेरिका के एक प्राइवेट जासूस विलियम डफी पर थी।
           लेकिन उन हीरों पर नजर भारत और अमेरिका के माफिया की भी थी। सौ करोङ डॉलर के हीरों को लेकर एक ऐसा तूफान उठा जिसमे कई माफिया अपनी जान से हाथ धो बैठे।
           एक तरफ का अमेरिका का बिग बाॅस लाकोसा दि नोस्ट्रा और भारत में‌ थे महादेव और उसके साथ कैलाश कावस काकङे (ट्रिपल K) और उनका विरोधी  बाबू खान। क्या इनसे बचकर विलियम डफी हीरों को अमेरिका ले जा सका।
          उपन्यास की शुरुआत बहुत जबरदस्त तरीके से होती है। अमेरिका की धरती से और वहाँ के खतरनाक अपराधियों से लेकिन कुछ समय पश्चात ही कहानी अपनी लय से उतर जाती है। भारत में आने के पश्चात कहानी बहुत ही धीमी हो जाती है और अपने मुख्य कथानक से इतर भटकती‌ महसूस होती है।
            जासूस विलियम डफी को बहुत मजबूत बताया गया है लेकिन पूरे उपन्यास में वह कहीं‌ भी अपनी मजबूत छाप छोङता नजर नहीं आता। लेखक महोदय ने आरम्भ में विलियम की प्रशंसा की खूब की है लेकिन बाद में उसे कहीं भी स्थापित न कर पाये।
                    मार्था जो की विलियम की सहयोगी होती है, वह बहुत सी परिस्थितियों में‌ फंसती है, जिसका हल्का सा आभास विलियम डफी को अवश्य होता है लेकिन‌ सत्य का उसे पता नहीं चलता और इसी वजह से वह मात पर मात खाता है।
                  लेखक ने उपन्यास की जतनी अच्छी शुरुआत की थी उतना अच्छा कथानक आगे प्रस्तुत न कर सके।
  उपन्यास की कहानी अमेरिका, भारत से होते हुए नेपाल तक फैली हुयी है। उपन्यास का अंत जो नेपाल में दर्शाया गया है वह कुछ हद तक उपन्यास को संभाल‌ लेता है लेकिन मार्था का अंत पाठक को निराश कर सकता है।
   शुरु से अंत तक परेशानियां सहन करती मार्था अंत में इन परेशानियां से मुक्त हो जाती है।‌     जिस प्रकार का विलियम डफी का चित्रण आरम्भ में दर्शाया गया था उसके अनुसार लगता नहीं था की मार्था का अंत इतना भयानक होगा।
      निष्कर्ष-
   उपन्यास की कहानी है भारत से अमेरिका को हीरों‌ की डिलीवर की जिसमें क ई खलनायक इन हीरों‌ को लूटना चाहते हैं। इनकी रक्षा का दायित्व अमेरिकी जासूस विलियम डफी पर होता है।
       विलियम डफी अपने उद्देश्य में‌ कैसे कामयाब होता है बस यही पठनीय है।
  लेखक कुछ मेहनत से उपन्यास को‌ कसावट दे सकता था‌ लेकि‌न ऐसा कर न पाया।
         उपन्यास एक बार पढा जा सकता है लेकिन स्मरणीय नहीं होगा।

        विश्व मोहन विराग जी का एक और उपन्यास 'मरघट' मेरे पास उपस्थित है। समय मिलने पर उसे भी पढकर देखा जायेगा की लेखन ने कैसा लिखा है।
  
----------
उपन्यास- सौ करोङ डॉलर के हीरे
लेखक- विश्व मोहन विराग
प्रकाशक- रजत पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ-223
मूल्य-20₹

Saturday, 5 May 2018

110. बैंक राॅबरी- एन. सफी

एक चालाक अपराधी की कहानी।
बैंक राॅबरी- एन. सफी, जासूसी उपन्यास, मध्यम स्तर।

एन सफी का प्रस्तुत उपन्यास एक छोटी सी बैंक राॅबरी से आरम्भ होता है और कई घटनाओं से गुजरता हुआ अंततः अपने अंजाम तक जा पहुंचता है।
    उपन्यास हालांकि लघु कलेवर का ही है लेकिन रोचक है। तात्कालिक समय की दृष्टि से देखें तो यह उपन्यास पाठक को स्वयं में बांधने में सक्षम है।
                 कहानी में कई‌ मोङ आते हैं, जो पाठक को प्रभावित करने में कुछ हद तक सक्षम है। 
          उपन्यास की कहानी की बात करें तो यह आरम्भ होती है एक डैनी नामक व्यक्ति द्वारा एक बैंक की राॅबरी से। बैंक राॅबरी की रकम के साथ डैनी एक नये चेहरे के साथ शहर में एक नयी जिंदगी आरम्भ करता है।
        उसी शहर में एक डांसर सैफाली के साथ शराफत की नयी जिंदगी जीता है। लेकिन चोर चोरी से जाये हेराफेरी से न जाये वाली कहावत डैनी पर लागू होती है। और एक दिन डैनी को अपने कर्मों की सजा मिलती है।
              उपन्यास की कहानी छोटी सी है। कहानी आरम्भ चाहे बैंक राॅबरी से होता है लेकिन कुछ पृष्ठों के पश्चात कहानी पूर्णतः बदल जाती है। 
कहानी को तीन चरणों में विभक्त कर सकते हैं।
1. डैनी द्वारा बैंक राॅबरी
2. डैनी और शैफाली की मुलाकात
3. डैनी के कर्मों की सजा
उपन्यास का आरम्भ जहां कुछ रोचक है वहीं शैफाली और डैनी की मुलाकात वाली कहानी उपन्यास में थोङा धीमापन लाती है। उपन्यास का समापन उपन्यास में पुनः रोचकता व प्रवाह पैदा करता है

     उपन्यास में कई गलतियाँ है जो उपन्यास को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं।
- वह सुबह से भूखा था। कोई चारा न देखकर उसने माँस को कच्चा ही चबाने की कोशिश की। उसने अपनी तलवार से राजेन्द्र के चेहरे का कच्चा माँस छीलने की कोशिश की। (पृष्ठ-23)
- डैनी ने राजेन्द्र के उस चेहरे की सर्जरी बना कर अपने चेहरे पर फिट कर ली। (पृष्ठ-29)
- यह कैसे संभव है की कोई आदमी किसी के चेहरे से अपने चेहरे पर सर्जरी कर लेगा। यह तो बिलकुल असंभव।
- डैनी जब शहर में राजेन्द्र सिंह बेदी का चेहरा(मास्क) लगाकर घूमता है  उसे राजेन्द्र बेदी के परिचित कहीं क्यों नहीं मिलते और स्वयं डैनी को भी डर होना चाहिए इस बात का।
- राजेन्द्र सिंह बेदी की हत्या हो जाती। लेकिन पुलिस उसकी कहीं कोई जांच नहीं करती।
- राजेन्द्र सिंह बेदी के परिवार वाले भी राजेन्द्र सिंह बेदी की कोई खोजबीन नहीं करते।

- निष्कर्ष
उपन्यास मध्यम स्तर का है। जिसकी कहानी का आरम्भ रोचक तरीके से होता है लेकिन मध्य भाग उपन्यास को कमजोर बना देता है। लेखक ने भी कई जगह अति कल्पना का सहारा लिया है जो की सही नहीं लगता। लेखक की कुछ अतिरिक्त मेहनत से उपन्यास अच्छा बन सकता था।
उपन्यास छोटा सा है एक बार मनोरंजन की दृष्टि से पढा जा सकता है।

उपन्यास के पात्र
डैनी- बैंक राॅबरी कर्ता
राजेन्द्र बेदी- शहर का व्यापारी
इंस्पेक्टर रमेश देव
इंस्पेक्टर अशोक
हवलदार चेतराम
पुलिस कर्मी- साधुराम, छज्जू राम
शैफाली- एक डांसर, डैनी की प्रेमिका
महावीर प्रसाद- उपन्यास का एक पात्र
जगन- एक चोर
कर्नल विनोद- जासूस
हमीद- कर्नल विनोद का साथी
कासिम- कर्नल विनोद-हमीद का साथी, एक हास्य पात्र।

---------------------------------
उपन्यास- बैंक राॅबरी
लेखक- एन. सफी
प्रकाशक- नीलिमा पाॅकेट बुक्स (2238, किनारी बाजार, दिल्ली-6)
पृष्ठ- 12
अनुवादक- वीरेन्द्र लोहचन

109. बाल एकांकी- रवीन्द्रनाथ टैगोर

चार रोचक बाल एकांकी


नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बाल साहित्य भी खूब लिखा है। इन्होंने जो भी लिखा है वास्तव में मन को छू लेने वाला साहित्य है।

मेरा शीश नवा दो अपनी, चरण धूल के तल में।

देव! डूबो दो अहंकार सब, मेरे आँसू जल में। - गीतांजलि

           टैगोर जी द्वारा लिखित बाल एंकाकी संग्रह विद्यालय के पुस्तकालय से पढने को मिला। इस संग्रह में कुल चार बाल एकांकी है। चारों एंकाकी दिलचस्प और रोचक है।

1. परीक्षा

              यह एकांकी हमारी वर्तमान शिक्षा में व्याप्त कमियों को हास्य रूप में उजागर करती है। प्रस्तुत एकांकी में शिक्षक प्रेम की बजाय छात्र को दण्ड के द्वारा सुधारना चाहता है, छात्र भी कम नहीं है वह भी एक अनोखे तरीके से शिक्षक को सबक सीखा देता है।

                यह एकांकी हमारी शिक्षा व्यवस्था पर गहरी चोट करती है।

2. ख्याति का नाटक

                         यह एकांकी बहुत ही रोचक है।  इस एकांकी में एक संस्था 'गानोन्नति विधायिनि'  के लिए सेठ कंगालीचरण एक वकील दुकौड़ी दत्त के पास चंदा लेने आता है। वकील चंदे के लिए मना कर देता है। तब कंगालीचरण प्रण लेता है। आया चंदा मांगने और मिला गरदन पर प्रहार। महाशय तुम्हें भी सबक सीखा कर रहूंगा। (पृष्ठ-14)

        और कंगालीचरण एक बहुत ही अलग तरीके से वकील को चंदा न देने पर सबक सीखाता है।

        यह एकांकी पूर्णतः हास्य रस से सरोबर है।

3. बिरछा बाबा

                         यह एकांकी एक ऐसे वृक्ष देवता की कथा है जो मनोकामना पूर्ण करता है। एक दिन पांचू और ऊधो नामक दो व्यक्ति उसी वृक्ष देवता की खोज में निकलते हैं। 

                         "चलो भाई, चलो।  बिरछा बाबा की तलाश की जाये। लेकिन उन्हें खोजेगे कहां?"

                        - तो क्या पांचू और माधो को वृक्ष देवता मिले?

                        - क्या उनकी मनोकामना पूर्ण हुयी?

                        - क्या था रहस्य वृक्ष बाबा का?

    इन प्रश्नों का उत्तर तो यह बाल एकांकी ही दे सकती है। इस एकांकी में कुछ रोचक प्रसंग भी हैं।

     

4. मुकुट

              इस संग्रह की अंतिम और सबसे लंबी एकांकी है मुकुट। यह अन्य एकांकियों से कुछ अलग है।‌ बाकी एकांकी जहाँ हास्य रस से परिपूर्ण है वहीं मुकुट एकांकी वीर रस की रचना है।

              युद्ध में विजय के पश्चात विजय मुकुट कौन धारण करे इस विषय पर तीनों राजकुमार एकमत नहीं हैं। सभी एक दूसरे को विजय का कारण मानते हैं।

              यह एकांकी एक शिक्षाप्रद रचना है।

निष्कर्ष-   इस संग्रह में शामिल चारों रचनाएँ बहुत ही रोचक और पठनीय है।

----

  पुस्तक- बाल एकांकी

  लेखक- रवीन्द्रनाथ टैगोर

  प्रकाशक- यूनिक ट्रेडर्स, जयपुर

  संस्करण-1994

  पृष्ठ- 72             

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...