नोबेल पुरस्कार विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बाल साहित्य भी खूब लिखा है। इन्होंने जो भी लिखा है वास्तव में मन को छू लेने वाला साहित्य है।
मेरा शीश नवा दो अपनी, चरण धूल के तल में।
देव! डूबो दो अहंकार सब, मेरे आँसू जल में। - गीतांजलि
टैगोर जी द्वारा लिखित बाल एंकाकी संग्रह विद्यालय के पुस्तकालय से पढने को मिला। इस संग्रह में कुल चार बाल एकांकी है। चारों एंकाकी दिलचस्प और रोचक है।
1. परीक्षा
यह एकांकी हमारी वर्तमान शिक्षा में व्याप्त कमियों को हास्य रूप में उजागर करती है। प्रस्तुत एकांकी में शिक्षक प्रेम की बजाय छात्र को दण्ड के द्वारा सुधारना चाहता है, छात्र भी कम नहीं है वह भी एक अनोखे तरीके से शिक्षक को सबक सीखा देता है।
यह एकांकी हमारी शिक्षा व्यवस्था पर गहरी चोट करती है।
2. ख्याति का नाटक
यह एकांकी बहुत ही रोचक है। इस एकांकी में एक संस्था 'गानोन्नति विधायिनि' के लिए सेठ कंगालीचरण एक वकील दुकौड़ी दत्त के पास चंदा लेने आता है। वकील चंदे के लिए मना कर देता है। तब कंगालीचरण प्रण लेता है। आया चंदा मांगने और मिला गरदन पर प्रहार। महाशय तुम्हें भी सबक सीखा कर रहूंगा। (पृष्ठ-14)
और कंगालीचरण एक बहुत ही अलग तरीके से वकील को चंदा न देने पर सबक सीखाता है।
यह एकांकी पूर्णतः हास्य रस से सरोबर है।
3. बिरछा बाबा
यह एकांकी एक ऐसे वृक्ष देवता की कथा है जो मनोकामना पूर्ण करता है। एक दिन पांचू और ऊधो नामक दो व्यक्ति उसी वृक्ष देवता की खोज में निकलते हैं।
"चलो भाई, चलो। बिरछा बाबा की तलाश की जाये। लेकिन उन्हें खोजेगे कहां?"
- तो क्या पांचू और माधो को वृक्ष देवता मिले?
- क्या उनकी मनोकामना पूर्ण हुयी?
- क्या था रहस्य वृक्ष बाबा का?
इन प्रश्नों का उत्तर तो यह बाल एकांकी ही दे सकती है। इस एकांकी में कुछ रोचक प्रसंग भी हैं।
4. मुकुट
इस संग्रह की अंतिम और सबसे लंबी एकांकी है मुकुट। यह अन्य एकांकियों से कुछ अलग है। बाकी एकांकी जहाँ हास्य रस से परिपूर्ण है वहीं मुकुट एकांकी वीर रस की रचना है।
युद्ध में विजय के पश्चात विजय मुकुट कौन धारण करे इस विषय पर तीनों राजकुमार एकमत नहीं हैं। सभी एक दूसरे को विजय का कारण मानते हैं।
यह एकांकी एक शिक्षाप्रद रचना है।
निष्कर्ष- इस संग्रह में शामिल चारों रचनाएँ बहुत ही रोचक और पठनीय है।
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पुस्तक- बाल एकांकी
लेखक- रवीन्द्रनाथ टैगोर
प्रकाशक- यूनिक ट्रेडर्स, जयपुर
संस्करण-1994
पृष्ठ- 72
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