कत्ल के बाद कत्ल- संजय नागपाल
सुनील ने पैन्सिल टार्च के क्षीण प्रकाश को क्षण-भर के लिये पलंग पर लेटे व्यक्ति पर डाला।
उसी एक क्षण मैं उसे लगा कि पलंग पर लिहाफ ओढकर लेटे व्यक्ति का चेहरा साधारण नहीं था ।
न जाने किस भावना के वशीभूत होकर उसने एक झटके से लिहाफ को उस व्यक्ति के ऊपर से हटा दिया ।
उसने जो देखा - उसे देखकर उसकी रीढ़ की हड्डी में भय की एक सर्द लहर दौड़ती चली गई ।
- (इसी उपन्यास में से)
दिल्ली निवासी जगदीश कंवल जी ने अपना प्रकाशन 'कंवल पॉकेट बुक्स' आरम्भ किया तो उस के अंतर्गत उन्होंने संजय नागपाल जी का उपन्यास 'कत्ल के बाद कत्ल' प्रकाशित किया। हालांकि संजय नागपाल जी का नाम इस उपन्यास के अतिरिक्त और कहीं-कभी देखने,पढने और सुनने में नहीं आया।
प्रोफेसर सुबोध जिस समय बस अड्डे पर पहुंचा सन्ध्या के पौने पांच बज चुके थे।
अपने दाएं हाथ में काले रंग के ब्रीफकेस को थामे प्रोफेसर सुबोध रिक्शा से नीचे उतर गया।
रिक्शा चालक को पैसे देकर वह उस बस की ओर बढ़ गया जिस पर 'पठानकोट-दिल्ली' लिखा हुआ था ।




