Sunday, 29 December 2024

613. लाश गिरेगी वाईपर की- गोपाल शर्मा

कहानी 'राॅ' के सर्वश्रेष्ठ जासूस की
लाश गिरेगी वाईपर की- गोपाल शर्मा

नमस्ते मित्रो,
आज हम यहां चर्चा करने जा रहे हैं पवन पॉकेट बुक्स के अंतर्गत प्रकाशित छद्म लेखक गोपाल शर्मा जी के उपन्यास 'लाश गिरेगी वाईपर की। '
वाईपर सीरीज का प्रथम उपन्यास का नाम 'वाईपर' था। मैंने पढा तो था पर यहां उसकी समीक्षा न लिख पाया। अब इसी शृंखला का उपन्यास 'लाश गिरेगी वाईपर की' पढा तो समीक्षा लिखने का विचार भी मन में आया तो एक छोटी सी , अव्यवस्थित सी समीक्षा इसलिए लिख दी की अन्य पाठक इस लेखक और पात्र के विषय में जान सकें।

हालांकि मेरा प्रयास यही रहता है जो भी पुस्तक पढी जाये,उस पर एक विस्तृत टिप्पणी/ समीक्षा लिखी जाये पर ऐसा संभव नहीं हो पाता और इस साल (2024)में तो पढा भी बहुत कम है और लिखने के मामले में उस से भी बहुत पीछे रहा हूँ।
  कभी-कभी किसी महत्वपूर्ण पुस्तक पर न लिखने का अफसोस भी रहता है। जैसे- कैच फोर (कंवल शर्मा), चक्क पीरा दा जस्सा (बलवंत सिंह), राक्षस (नीतिश सिन्हा) जैसे और भी रचनाएँ पढी पर उन पर कुछ भी न लिख सका।
चलो, भविष्य में यथासंभव कोशिश रहेगी जो पढा जाये, उस पर लिखा जाये।
अब हम बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास की । इस उपन्यास का घटनाक्रम शिवालिक द्वीप से संबंधित है।
"क्या तुमने शिवालिक द्वीप का नाम सुना है?" भरत ने गला साफ करने के बाद पूछा।
"यह वह द्वीप तो नहीं, जो साइप्रस और मालद्वीप के बीच स्थित है।" उसने अपनी याददाश्त पर जोर देते हुए कहा।
"बिल्कुल ठीक भांजे, तुम्हारा आई. क्यू. बढ़िया है। मैं उसी शिवालिक द्वीप की बात कर रहा हूं। शिवालिक द्वीप की स्थिति भी भारतीय उप-महाद्वीप जैसी है। वह पचास बाई सत्तर वर्ग किलोमीटर में स्थित एक छोटा-सा द्वीप है। वहां हिन्दू घराने के व्यक्ति लगभग साठ प्रतिशत हैं और बाकी जनसंख्या मिश्रित धर्म के लोगों की है। लेकिन तीस प्रतिशत लोग वहां मुसलमान हैं बाकी क्रिश्चियन, पारसी, डच और पुर्तगाली लोग वहां पर बसे हुए हैं।"
"मैं द्वीप के भूगोल के विषय में भी जानता हूं मामा जी। आप असल मुद्दे पर तो आइए।" शरद शर्मा ने टोका था।
(उपन्यास अंश)
         इस द्वीप से सदा से ही हिंदू राजतंत्र रहा पर वर्तमान में वहाँ के शासक महाराज विक्रम सिंह चक्रवर्ती ने राजतंत्र को खत्म कर लोकतंत्र की स्थापना कर दी और जैसे ही लोकतंत्र की स्थापना हुयी एक वर्ग विशेष राज्य के नियमों को भूल अपने धर्म को ज्यादा महत्व देने लगा और इसी बात का फायदा उठाया पाकिस्तान ने।
पाकिस्तान के शासकों और आतंकवादी गुट्ट ने इन लोगों से मिलकर शिवालिक द्वीप में आतंकी कार्यवाही आरम्भ कर दी ।
यहाँ तक महाराज विक्रम सिंह चक्रवर्ती पर भी आक्रमण कर दिया । इस समस्या के में निपटने के लिए महाराज ने भारत सरकार से प्रार्थना की ।
और भारत सरकार ने आतंकवाद से निपटने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर वाईपर को शिवालिक द्वीप भेजा।
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वाइपर जिसकी असलियत वही लोग जानते थे, जो वाइपर के राज को कायम रखने के लिए अपनी जान भी दे सकते थे। रिसर्च एण्ड एनेलेसिस विंग (रॉ) का वह जांबाज जासूस शरद शर्मा था। वाइपर, नाम का टाइटिल शरद शर्मा के रूप में पहले गुप्तचर को ही दिया गया था।
      शरद शर्मा बत्तीस वर्ष का सांवली रंगत वाला शख्स था। यूं दिखावे के तौर पर वह एक एक्सपोर्ट कम्पनी में नौकरी करता था। गोपनीयता का यह आलम था कि शरद शर्मा की पत्नी सुनन्दा शर्मा तक नहीं जानती थी कि उसका पति खतरनाक स्पाई-रिंग का सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर है ।
(उपन्यास की प्रथम पंक्तियाँ)

    और वाईपर अपने एक सहयोगी भरत मामा के साथ जा पहुंचता है शिवालिक द्वीप ।
शिवालिक द्वीप पर पहले से ही भारतीय I.B. के तीन श्रेष्ठ जासूस  जोनाथन राॅडरिक्स, अविनाश कौल और मधुमिता । जिन्होने शिवालिक द्वीप पर आतंकवादियों की कुछ कार्यवाहियों को रोका है और अब यह काम वाईपर को करना था ।
        और फिर मामा भरत तथा वाईपर शिवालिक द्वीप के गुप्तचर विभाग के प्रमुख कौस्तुव नायर था पुलिस कमिश्नर माधवन के साथ मिलकर आगे की योजना बनाते हैं। लेकिन उस समय वाईपर भी चकित रह जाता है जब उसे एक गुमनाम पत्र से यह सूचना मिलती है की उसका वाईपर वाला रूप भी यहां उजागर हो चुका है।
पाठको को बताते चले की 'राॅ' द्वारा वाईपर को यह स्पष्ट चेतावनी दी गयी थी अगर किसी ने उसको 'वाईपर' के रूप में पहचान लिया तो या तो पहचानकर्ता को मरना होगा या फिर स्वयं वाईपर को ।
अब शिवालिक द्वीप में वाईपर को जहाँ एक और आतंकवादियों से निपटना था वहीं दूसरी और उसे उस पहचानकर्ता को भी तलाशना था ।
       पाकिस्तानपरस्त ISI संगठन, सात दरिंदे, कुछ स्थानीय लोग और कुछ स्वार्थवश गद्दार लोग शिवालिक द्वीप को तबाह कर, महाराज विक्रम सिंह चक्रवर्ती को शासक से हटाकर वहां पाकिस्तान समर्थक को सत्ता पर बैठाना चाहते थे । लेकिन यह इतना आसान न था ।
और फिर आरम्भ होता है 'राॅ' के सर्वश्रेष्ठ गुप्तचर वाईपर का पाकिस्तान की ISI संगठन के आतंकवादियों को खत्म करने का अभियान ।
 कथानक-      उपन्यास का मूल कथानक आतंकवाद है। और यह दिखाया गया है की कैसे लोगों को गुमराह कर के आतंकवादी शांति और समृद्धि को खत्म करते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण दिखाया गया है- 'कमाल हैदर अंसारी' को। जो काश्मीर निवासी है और आंतकवादियों के चक्कर में आकर फंस जाता है।
कभी-कभी कुछ उपन्यासों में रोचक दृश्य भी मिल जाते हैं जो काफी प्रभावित करते हैं।
यहां भी एक ऐसा घटनाक्रम है, उसका एक दृश्य पढें-
"यदि याकूब अली तुमसे कहे कि उनका कत्ल हमारे द्वारा नहीं किया गया... तो शायद तुम दोनों को यकीन हो जाएगा।"
"मुर्दे कभी बोला नहीं करते।" जोनाथन रॉडरिक्स ठण्डे स्वर में बोला।
"लेकिन हमारे सामने मुर्दे भी बोला करते हैं...।" इतना कहने के पश्चात् कुछ देर के लिए खामोशी छाई रही। फिर उसी शख्स का स्वर उभरा - "हाजी याकूब अली साहब, क्या आप इन लोगों को यह बताने की ज़हमत गंवारा करेंगे कि आपका कत्ल हमारे द्वारा नहीं किया गया।"
जोनाथन और मधुमिता की नजरें याकूब अली के मृत जिस्म पर लगी हुई थीं। अचानक उनकी आंखें विस्मय से फैल गईं।
उन्होंने याकूब अली के मुर्दा जिस्म में हरकत होते हुए देखी थी।
(पृष्ठ-162)

सात दरिंदे- उपन्यास के आरम्भ से ही सात दरिंदो का वर्णन आता है कि जब भी सात दरिंदे शिवालिक द्वीप पहुँच जायेंगे यहां तबाही मचा देंगे। उनको अत्यंत खतरनाक और वहशी बताया गया है।
240 पृष्ठ के उपन्यास में 228 पृष्ठ तक बस यही चलता है सात दरिंदे शिवालिक द्वीप पर पहुच जायेंगे।
"...वे सात दरिंदे शीघ्र ही द्वीप पर पहुंचने वाले हैं।' (पृष्ठ-228)
फिर मुझे लगा अब ये सात दरिंदे यहां पहुंच जायेंगे और इनकी टक्कर वाईपर से होगी और उपन्यास में तब कुछ रोचकता आयेगी।
पर वाह रे लेखक महोदय....सात दरिंदे द्वीप पर पहुंचे भी और लेखक महोदय ने एक पंक्ति में उनका काम खत्म कद दिया ।
तब उन नौ नकाबधारियों द्वारा जो मंच पर बैठे थे, अपनी जेब से हथियार निकालने का प्रयत्न किया था और तब तक दोनों स्टेनगन पर वाइपर और भरत मामा काबू कर चुके थे। (पृष्ठ-236)
        हां, आप यह सोच सकते हैं की नौ नकाबधारियों में सात तो दरिंदे थे, शेष दो कौन हैं? बस यही उपन्यास का सस्पेंस है जो आप पढकर जान सकते हैं।
      उपन्यास का कथानक बिलकुल सामान्य है।‌ इस से अच्छा एक्शन और रहस्य तो रीमा भारती के उपन्यासों में होता है।
पूरे उपन्यास में कोई कुछ भी नहीं करता । न वाईपर, न सात दरिंदे और न कोई और ।
     पूरे उपन्यास में वाईपर का दृश्य भी नाम मात्र हैं और द्वीप पर उसने क्या कार्यवाही की। एक तो वह मामा भरत के साथ ...से मिलने जाता है, हालांकि यह काम मामा के हिस्से में आता है या फिर उपन्यास के अंत में वाईपर आतंकवादियों पर काबू पाता है।
एक श्रेष्ठ जासूस जिसके विषय में लम्बी-चौड़ी कहानी तैयार की गयी, वह कुछ करता नजर नहीं आता।
       वहीं बात करें I.B. के तीन एजंटों की तो उनका काम हालांकि ठीक है पर भावुकता और मूर्खता उनमें कूट-कूट कर भरी है।
वह अपने विभागाध्यक्ष की बात तक नहीं सुनते सिर्फ अपनी मनमानी करते हैं। और तो और उन्हें कोई फोन करके अज्ञात जगह बुलाता है और बिना कोई जांच कर उस जगह जा पहुंचते हैं और अपनी भूल का मातम मनाते हैं।
बस लेखक का जैसा जी किया पृष्ठ भर दिये।
कहीं कोई तार्किक कथानक है ही नहीं।

उपन्यास-  लाश गिरेगी वाईपर की।
लेखक-    गोपाल शर्मा
प्रकाशक- पवन पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ-         240

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