Thursday, 31 December 2020

410. स्पर्श - राजवंश

एक मासूम लड़की की दर्द कहानी
स्पर्श - राजवंश
दीपा ने मुड़कर देखा, पहाड़ी के पीछे से चाँद निकल आया था। अँधकार अब उतना न था। नागिन की तरह बलखाती पगडण्डी अब साफ नजर आती थी। उजाले के कारण मन की घबराहट कुछ कम हुयी और उसके पाँव तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढने लगे। 
    लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में राजवंश एक चर्चित नाम रहा है। राजवंश का मूल नाम आरिफ माहरवी था। वे राजवंश नाम से सामाजिक उपन्यास लेखन करते थे। 
प्रस्तुत उपन्यास 'स्पर्श' राजवंश जी की कृति है। यह कहानी है एक लड़की दीपा की, जो परिस्थितियों से संघर्ष करती हुयी जीवन व्यतीत करती है। एक लड़की के जीवन संघर्ष की यह मार्मिक दास्तान है। 

Sunday, 27 December 2020

408. प्रतिशोध- जगदीशकृष्ण जोशी

पचास के दशक का जासूसी उपन्यास
प्रतिशोध- पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की समृद्ध परम्परा में कुछ उपन्यास समय की धूल में लुप्तप्राय से हो गये। और जब जब उस धूल को हटाकर कुछ खोजने का प्रयास किया गया है तो कुछ अनमोल मोती हाथ लगे हैं।
    मेरे इस समीक्षा ब्लॉग के अतिरिक्त, साहित्य संरक्षण ब्लॉग www.sahityadesh.blogspot.com पर ऐसे लेखकों और उपन्यास का वर्णन उपलब्ध है। 
गंगा ग्रंथागार- लखनऊ से प्रकाशित ऐसा ही एक उपन्यास मुझे मिला जो जासूसी उपन्यास साहित्य के आरम्भ के दौर का एक रोचक मर्डर मिस्ट्री युक्त उपन्यास है। 

    पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी द्वारा लिखित 'प्रतिशोध' जो सन् 1949 में प्रकाशित हुआ था।

   जयनारायण एक प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति था। लेकिन उसे जान का खतरा था, इसलिए उसने अपने घर की पूर्ण सुरक्षा करवा रखी थी लेकिन एक रात वह घर के बाहर सड़क पर मृत पाया गया।
- जयनारायण कौन था?
- जयनारायण को किस से खतरा था?
- उसकी हत्या किसने की?
- वह सड़क पर मृत कैसे पाया गया?

आदि प्रश्नों के लिए आप पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी जी का जासूसी उपन्यास 'प्रतिशोध' पढें।

407. दूसरा चेहरा- एच. इकबाल

कहानी हत्या और ब्लैकमेलर की
दूसरा चेहरा- एच. इकबाल

यात्रा के दौरान मेरे बैग में दो-चार किताबें रहती ही हैं। जब समय मिलता है तो पढ लेता हूँ। विद्यालय में शीतकालीन अवकाश के दौरान घर जाते समय ट्रेन में एच. इकबाल नामक लेखक का उपन्यास पढा।
   लोकप्रिय साहित्य में बहुत लेखकों ने नाम कमाया है, कुछ प्रसिद्धि पा गये और कुछ गुमनाम हो गये।
  एच. इकबाल ऐसे ही लेखक रहे हैं, जिनका नाम अब कम ही सुनाई देता है। 
 उपन्यास कथानक-
  प्रस्तुत उपन्यास की कहानी टीकमगढ नामक शहर पर केन्द्रित है जहाँ कुछ दिनों से ब्लैकमेलिंग और कत्ल की घटनाएं हो रही हैं।
"...इस समय टीकमगढ़ की आधी आबादी उसके कारण तंग आ चुकी है।"
"कारण भी बताइये...।"
"कत्ल और ब्लैकमेलिंग।"
"अच्छा... ।"
"हां, पिछले सप्ताह में पूरे 15 कत्ल हो चुके हैं। और यह सब सुंदर लोगों के थे। यूं समझो कि अपराधी हर अच्छी सूरत वालों का दुश्मन है।" -
(पृष्ठ-45)

टीकमगढ एस.पी. माथुर जी के बुलाने पर विनोद और हमीद नामक जासूस इस समस्या का खात्मा करके टीकमगढ आते हैं।
     उपन्यास की कहानी एक अज्ञात ब्लैकमेलर पर आधारित है जिसने जनता को परेशान कर रखा है और एक समस्या कत्ल की है। शहर में सिलसिलेवार कत्ल हो रहे हैं। स्थानीय पुलिस के असफ़ल होने पर विनोद-हमीद इस समस्या का समाधान करते हैं।  

406. रंगरलियां- राजवंश

 कहानी मूर्ति चोर गिरोह की

रंगरलिया- राजवंश

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सामाजिक उपन्यास लेखक की धाराएं एक नाम काफी चर्चित रहा और वह नाम है 'राजवंश'।   
मैंने इन दिनों राजवंश के दो उपन्यास पढे। एक 'सपनों‌ की दीवार' और दूसरा 'रंगरलियां'।
यहाँ हम 'रंगरलियां' उपन्यास के कथानक पर चर्चा करते हैं।
         उपन्यास की कहानी अशोक नामक एक शिक्षित, एथलेटिक्स और बेरोजगार युवक पर केन्द्रित है। जो मजबूरी में एक मूर्तिचोर गिरोह के संपर्क में आ जाता है और वहाँ आने पर उसे पता चलता है कि इसी गिरोह ने उसके भाई की जान ली थी।
   अपने भाई की हत्या का बदला लेने की चाह में अशोक की माँ और बहन की जान भी दांव पर लग जाती है।
  तब अशोक  महारानी जी के संपर्क में आता है। महारानी की एक कीमती मूर्ति चोरी हो गयी थी, जो कभी अशोक ने गिरोह में काम करते वक्त चोरी की थी। 
अशोक के भाई की हत्या क्यों हुयी?
- अशोक का भाई चोर क्यों बना?
- मूर्ति चोर गिरोहकार कौन था?
- अशोक ने मूर्ति क्यों चोरी की?
महारानी और अशोक परस्पर मिले तो क्या परिणाम आया?
- क्या अशोक अपने भाई की हत्या का बदला ले पाया?
- गिरोह अशोक को क्यों मारना चाहता था?
इन प्रश्नों के उत्तर राजवंश जी द्वारा रचित एक छोटे से उपन्यास 'रंगरलियां' में मिलेंगे। 

405. सपनों की दीवार- राजवंश

बच्चे के दुश्मन

सपनों‌ की दीवार- राजवंश

चारों ने एक दूसरी की ओर देखा। फिर कलाई की घड़ियां देखी। फिर निगाहें गेट की ओर उठ गई। उन निगाहों में एक बैचेनी थी। लेकिन फिर चारों‌ नजरें निराश होकर गेट की ओर लौट आई।
राजेश अभी तक नहीं आया था। (प्रथम पृष्ठ)

उक्त दृश्य सामाजिक उपन्यासकार राजवंश द्वारा लिखे गये उपन्यास सपनों की दीवार का है। 

सपनों की दीवार- राजवंश
   मनुष्य अपने जीवन में बहुत से सपने देखता है और उन सपनों को वास्तविकता में बदलना भी चाहता है। कुछ लोग सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए सही रास्ता चुनते हैं और कुछ गलत रास्ता। यह कहानी उन लोगों की है जो अपने सपनों को सच करने के लिए गलत रास्ते पर चलते हैं। 

Tuesday, 15 December 2020

404. जंक्शन बिलारा- अकरम इलाहाबादी

 मौत की गाड़ी...
जंक्शन बलारा- अकरम इलाहाबादी

बलारा जंक्शन
बलारा ढाई-तीन सौ छोटे बड़े मकानों का एक औसत दर्जे का कस्बा था। यहाँ कि आबादी किसानो, जमींदारों और मजदूरों और देहाती महाजनों पर निर्भर थी। 
    लेकिन इस छोटे से कस्बे की शांति को भंग करती थी एक ट्रेन। - बलारा जंक्शन से आधी रात के सन्नाटे में एक भयंकर मौत की रेल गुजरती थी। बिलकुल काली और भयानक जो कहां से आती और कहां जाती है किसी को नहीं मालूम स्टेशन मास्टर और स्टेशन का स्टाफ भी इस रात आठ बजे ही स्टेशन छोड़कर भाग जाते और स्टेशन से दूर दूर तक की सीमा में आदमी तो क्या जानवर तक दिखाई नहीं पड़ते। इस विचित्र रेल के बारे में यहाँ प्रसिद्ध था कि जो कोई उसे देख लेता है तुरंत मर जाता है। जब वह आने लगती है तो वातावरण में एक भयानक सी सीटी गूंजती है। सिग्नल अपने आप गिर जाता है, प्लेटफार्म की घण्टी अपने आप बजने लग जाती है। ...बलारा स्टेशन का मास्टर कहता है कि उसमे केवल एक बार इस गाड़ी को बंद कमरे की खिड़की से देखा था। पच्चीस वर्ष पहले की दुर्घटना में मरे हुये मुर्दे चलाते हैं। वह मुर्दा की रेल है। जिसके इंजन के सिर पर हैडलाइट की जगह मुर्दे की खोपड़ी दिखाई पड़ती है।

Tuesday, 8 December 2020

403. मैकाबर का अंत- वेदप्रकाश शर्मा

आखिर कौन है मैकाबर और कजारिया?
मैकाबर का अंत - वेदप्रकाश शर्मा
मैकाबर सीरीज का तृतीय/अंतिम भाग

कजारिया नामक देश की एक खतरनाक संस्था है मैकाबर, जो विश्व के विभिन्न देशों से महत्वपूर्ण सूचनाएं चोरी करती हैं। विश्व पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए विभिन्न वैज्ञानिक शक्तियों का प्रयोग करती है।
     इसी खतरनाक संस्था को खत्म करके के लिए विश्व के जासूस जा पहुंचते हैं कजारिया नामक देश।
मैकाबर सीरीज के तीन भाग है। प्रथम 'विकास और मैकाबर', द्वितीय 'विकास मैकाबर के देश में', और तृतीय/अंतिम भाग है 'मैकाबर का अंत।' 

   अब हम यहाँ इसी अंतिम भाग पर चर्चा करते हैं। यह तृतीय भाग जासूस मित्रों (विजय-विकास, बागारोफ, ग्रिफित, माइक, फुचिंग) के मैकाबर में पहुंचने और फिर मैकाबर के शक्तिशाली सम्राज्य से टकराने की कथा है। कैसे जासूस मित्र 'मैकाबर का अंत' करते हैं। यह उपन्यास पढने पर ही पता चलता है।

Monday, 7 December 2020

402. विकास मैकाबर के देश में- वेदप्रकाश शर्मा

एक खतरनाक यात्रा
विकास मैकाबर के देश में
मैकाबर सीरीज का द्वितीय भाग

वेदप्रकाश शर्मा जी की 'मैकाबर' एक एक्शन सीरीज है, जिसके तीन भाग हैं। यहाँ इस सीरीज के द्वितीय भाग 'विकास मैकाबर के देश में' की चर्चा करते हैं।
    यह कहानी 'विकास और मैकाबर' उपन्यास का द्वितीय भाग है। प्रथम भाग में मैकाबर की दहशत  संपूर्ण विश्व पर छा जाती है और मैकाबर कुछ जासूसों को गायब कर देता है।
      शेष बचे जासूस मित्र मैकाबर नामक खतरनाक संस्था को खत्म करने की यात्रा पर निकलते हैं। प्रस्तुत उपन्यास उसी यात्रा पर आधारित है। 
इस उपन्यास को मुख्यतः चार भागों में बांट सकते हैं।
प्रथम - वायुमार्ग से यात्रा करने वाले जासूस
द्वितीय-  जलमार्ग से यात्रा करने वाले जासूस
तृतीय- विकास और चीनी जासूस फुचिंग की लडा़ई
चतुर्थ- कजारिया देश का वर्णन जिसमें मैकाबर संस्था का वर्णन, लार्बिटा, अलफांसे आदि।  

Sunday, 6 December 2020

401. विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा

एक खतरनाक संस्था से टकराव
विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा
मैकाबर सीरीज का प्रथम भाग
 वेदप्रकाश शर्मा जी की 'विजय- विकास' सीरीज में मैकाबर शृंखला के तीन उपन्यास हैं। 'विकास और मैकाबर', 'विकास मैकाबर के देश में',  और 'मैकाबर का अंत'।
     इस शृंखला के प्रथम उपन्यास 'विकास और मैकाबर' पर चर्चा करते हैं। 
   मैकाबर अपराधियों की एक खतरनाक संस्था है और जिनका आतंक विश्व में फैल रहा है। कजारिया नामक देश से संचालित यह संस्था भारत में भी अपनी दहशत फैलाती है।
     भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रोफेसर अरोड़ा के मूत्र को मैकाबर चुराना चाहता है और इस के लिए वह अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे को हायर करते हैं।
विजय-विकास और भारतीय सिक्रेट सर्विस इस मूत्र चोरी को रोकना चाहती है।
- मैकाबर संस्था की वास्तिकता क्या है?
- वह भारतीय वैज्ञानिक का मूत्र क्यों चुराना चाहती है?
- क्या इस चोरी में अलफांसे सफल हो पाया?
- क्या विकास और उसके साथी इस चोरी को रोक पाये?
    यह सब जान ने के लिए आपको 'वेदप्रकाश शर्मा जी' का उपन्यास 'विकास और मैकाबर' पढना होगा।

Friday, 4 December 2020

400. होटल में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 तलाश एक कातिल की
होटल में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज-03


लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को सर्वश्रेष्ठ मर्डर मिस्ट्री लेखक का पद प्राप्त है। उन्होंने सुनील और सुधीर सीरीज के मर्डर मिस्ट्री उपन्यास लिखे हैं।
      होटल में खून पाठक जी द्वारा लिखा गया सुनील सीरीज का एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। सुनील चक्रवर्ती 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र का एक खोजी पत्रकार है। जो पत्रकारिता के माध्यम से कुछ पुलिस केस भी हल करता है।
     अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'होटल में खून' की। जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट होता है कि एक होटल में खून होता है और उसी के अन्वेषण पर कथा का क्रमिक विकास होता है।
   ढलती हुई रात के साथ होटल ‘ज्यूल बाक्स’ की रंगीनियां भी बढती जा रही थी । होटल का आर्केस्ट्रा वातावरण में पाश्चात्य संगीत की उत्तेजक धुनें प्रवाहित कर रहा था । जवान जोड़े एक दूसरे की बांहों में बांहें फंसाये संगीत की लय पर थिरक रहे थे । जो लोग नृत्य में रूचि नहीं रखते थे, वे डांस हाल के चारों ओर लगी मेजों पर बैठे अपने प्रिय पेय पदार्थों की चुस्कियां ले रहे थे। (उपन्यास अंश)
    ऐसी चर्चा है की इस होटल में गुप्त रूप से अवैध जुआघर संचालित होता है।- सुनील को विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था कि ज्यूल बाक्स का मालिक माइक गुप्त रूप से एक जुआघर का संचालन कर रहा था।
     इसी होटल में सुनील की आँखों‌ के सामने एक कत्ल होता है लेकिन लेकिन सुनील के अतिरिक्त कोई और उस कत्ल की गवाही देने को तैयार नहीं। जब सुनील इस कत्ल के अपराधी तक पहुंचने की कोशिश करता है तो वह स्वयं एक खून के अपराध में मुजरिम बना दिया जाता है। 

होटल ज्यूल बाॅक्स में जुआघर चल रहा था?
- क्या सुनील उस जुआघर का पता लगा पाया?
- होटल में किसका खून हुआ?
- होटल में खून किसने और क्यों किया?
- क्या असली अपराधी पकड़ा गया?
- सुनील पर किसके कत्ल का आरोप लगा?

ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित उपन्यास 'होटल में खून' पढने पर मिलेंगे।

Tuesday, 1 December 2020

399. बदसूरत चेहरे- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 कुबड़ों की दहशत
बदसूरत चेहरे- सुरेन्द्र मोहन पाठक, उपन्यास 
सुनील सीरीज-04

इस माह मेरे द्वारा पढे जाने वाला यह पांचवा उपन्यास है। और सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का इस माह पढे जाने वाला यह चौथा उपन्यास है। और प्रस्तुत उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' के साथ 'स्वामी विवेकानंद पुस्तकालय' ब्लॉग पर मेरे द्वारा पढी गयी चार सौ रचनाओं पर समीक्षक पूर्ण हो जायेगी।

जहां गत वर्ष 2019 मैं मैंने सौ रचनाएँ पढी और उन पर समीक्षाएं प्रस्तुत की वहीं इस वर्ष 2020 में यह लक्ष्य 150 रचनाओं का है। जिस से मैं मात्र 10 कदम दूर हूँ। यह लक्ष्य दिसंबर 2020 तक पूर्ण जायेगा।
   मेरे ब्लॉग के पाठकों का हार्दिक धन्यवाद मेरी समीक्षाओं को पढते हैं और उन पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। हालांकि कुछ रचनाएँ पढने के बाद भी समयाभाव के कारण समीक्षा से वंचित रह जाती हैं।
   अब चर्चा करते हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पर।
      शहर में इन दिनों कुछ रहस्यमय घटनाएं घटित होती हैं। एक रहस्यमय कत्ल और उस कत्ल के पश्चात शहर का कोई धनाढ्य व्यक्ति गायब हो जाता है।
     पुलिस और प्रशासन घटनाओं से बहुत परेशान है और आमजन दहशत में है। लेकिन संयोग से एक कुबड़ा और एक लाश घटना का साक्षी 'ब्लास्ट' का रिपोर्टर सुनील चक्रवर्ती बन गया।
यह रहस्यमयी कत्ल क्या थे?
- शहर से धनाढ्य व्यक्ति क्यों गायब हो जाते थे?
- कुबड़े व्यक्ति का रहस्य क्या था?
- क्या सुनील इस रहस्य को जान पाया?

    इन दहशत भरी घटनाओं‌ को जानने के लिए सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सुनील सीरीज का उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पढें।
   

सुनील का मित्र है जुगल किशोर जिसे सब बंदर ही कहते हैं। लड़कियों और पार्टियों का शौकीन है जुगल किशोर।

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...