बच्चे के दुश्मन
सपनों की दीवार- राजवंश
चारों ने एक दूसरी की ओर देखा। फिर कलाई की घड़ियां देखी। फिर निगाहें गेट की ओर उठ गई। उन निगाहों में एक बैचेनी थी। लेकिन फिर चारों नजरें निराश होकर गेट की ओर लौट आई।
राजेश अभी तक नहीं आया था। (प्रथम पृष्ठ)
उक्त दृश्य सामाजिक उपन्यासकार राजवंश द्वारा लिखे गये उपन्यास सपनों की दीवार का है।
मनुष्य अपने जीवन में बहुत से सपने देखता है और उन सपनों को वास्तविकता में बदलना भी चाहता है। कुछ लोग सपनों को वास्तविकता में बदलने के लिए सही रास्ता चुनते हैं और कुछ गलत रास्ता। यह कहानी उन लोगों की है जो अपने सपनों को सच करने के लिए गलत रास्ते पर चलते हैं। मिस्टर अशोक शहर के एक समृद्ध व्यक्ति है लेकिन उनके जीवन में एक दुख है और वह दुख है उनका निसंतान होना।अशोक के परिवार के सदस्य यह चाहते हैं की अशोक निःसंतान रहे ताकि उसकी सम्पति उन्हें मिल सके।
लेकिन एक दिन अशोक के घर खुशियाँ आ ही जाती हैं और बाकी सदस्यों के दिलों में मातम छा जाता है।
सारी कहानी अशोक और आशा के पुत्र गुड्डू पर केन्द्रित हो जाती है। घर के सदस्य जहाँ अशोक के समक्ष प्रेम दर्शाते हैं वहीं सब गुड्डू का अहित चाहते हैं।
एक बच्चे को लेकर लिखी गयी यह कहानी रोचक तो है लेकिन अधिकांश जगह उपन्यास में नाटकीयता हावी रहती है।
एक छोटे से बच्चे का बार-बार अहित करने की कोशिश करना और उसके संयोग से हर बार बच जाना कहानी को अति काल्पनिक बना देता है।
उपन्यास एक बार पढा जा सकता है। लेकिन याद रखने लायक कुछ विशेष नहीं है।
उपन्यास के पात्र
राजेश - गुड्डू का मामा
रोशनलाल- राजेश का मित्र
अशोक - एक समृद्ध व्यक्ति
आशा- अशोक की पत्नी
गुड्डू- अशोक का बेटा
ललिता- अशोक का बहन
प्रेम- अशोक का भाई
जूली- प्रेम की प्रेमिका
शेरा- डाकू
उपन्यास- सपनों की दीवार
लेखक- राजवंश
प्रकाशक- स्टार पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 130
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