नन्हीं बहन प्रीती |
Saturday, 30 December 2017
89. एक कैदी की करामात- अलेक्जेंडर ड्यूमा
Thursday, 28 December 2017
88. तूफान के बेटे- कुमार कश्यप
जासूस मित्रों के अपहरण की कहानी ।
तूफान के बेटे- कुमार कश्यप, जासूसी उपन्यास, अपठनीय।
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कुमार कश्यप के उपन्यास जासूसी और क्राइम पर आधारित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय कथानक और भारतीय जासूस मंडली द्वारा आने वाली मुसीबतों का निस्तारण करना है।
एक समय था जब कुमार कश्यप के उपन्यासों की बहुत मांग थी, अपने समय में कुमार कश्यप बहुत चर्चित और लोकप्रिय उपन्यासकार रहें हैं।
हालांकि प्रस्तुत उपन्यास 'तूफान के बेटे' कोई विशेष उपन्यास नहीं है और यह कोई आवश्यक भी नहीं की किसी भी लेखक का प्रत्येक उपन्यास महान हो।
'तूफान के बेटे' उपन्यास का आरम्भ जितना जबरदस्त होता है लेकिन उपन्यास उसके बाद उतना जबरदस्त रह नहीं पाता और यह भी बाद में पता चलता है की उपन्यास का आरम्भ भी एक पात्र की भूमिका तैयार करने में ही उपयोगी रहा है। लेकिन जैसे ही उपन्यास में असंख्य जासूस प्रवेश करते हैं वैसे ही उपन्यास अपनी महत्ता खो देता है।
वाशिंगटन।
अमेरिका की राजधानी।
विश्व के ऐसे शक्तिशाली राष्ट्र की राजधानी जिसे दुनिया का चौधरी कहा जाता है। जो दुनिया के अधिकतर राष्ट्रों का सरपंच है। (उपन्यास का प्रथम पृष्ठ, पृष्ठ संख्या-05)
न्यूयॉर्क में अमेरिका के प्रसिद्ध जासूस हेरल्ड की शादी में विश्व के जासूस एकत्र होते हैं और उस दौरान उनका अपहरण हो जाता है। हालांकि अपहरणकर्ता विक्रांत का अपहरण करना चाहता है लेकिन विक्रांत का अपहरण करने में असफल रहता है।
जब विक्रांत को इस अपने जासूस मित्रों के अपहरण का पता चलता है तो वह अपने कुछ साथियों के साथ एक टापू से कैद अपने मित्रों को बचा लेता है।
उपन्यास में अनावश्यक वर्णन बहुत ज्यादा है। पाठक को पता भी नहीं चल पाता की कौनसा अंश उपन्यास से वास्तव में संबंध रखता है। आरम्भ लगभग पचास पृष्ठ तो एक पात्र की भूमिका से भरे गये हैं। इसके अलावा भी उपन्यास में अनावश्यक पृष्ठ उपन्यास का स्वाद खराब करते हैं।
उपन्यास किसी भी दृष्टि से पठनीय नहीं है बस समय की बर्बादी है।
कुमार कश्यप अपने समय के चर्चित जासूसी उपन्यासकार रहें हैं लेकिन प्रस्तुत उपन्यास 'तूफान के बेटे' उनकी लेखनी का अच्छा परिचय न दे सका।
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उपन्यास - तूफान के बेटे
लेखक- कुमार कश्यप
87. खामोश, मौत आती है!- कर्नल रंजीत
. मौत का अनोखा खेल
खामोश, मौत आती है- कर्नल रंजीत, थ्रिलर, रोमांच।
मेजर बलवंत का कारनामा।
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दिल्ली शहर में एक के बाद एक खूबसूरत लङकियों का अपहरण होता है। बहुत कोशिश के पश्चात भी पुलिस किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाती। तब दिल्ली शहर में आये मेजर बलवंत की मुलाकात पुलिस इंस्पेक्टर रंजीत से होती है। इस तरह मेजर बलवंत इस अपहरण के केस से जुङ जाता है। इसी दौरान एक फोटो स्टुडियो पर काम करने वाले मथुरा दास का कत्ल हो जाता है। इस कत्ल के पश्चात मेजर बलवंत और उसकी टीम एक -एक कङी जोङती जाती है और जा पहुंचती है असली अपराधी तक।
जासूसी उपन्यास लेखन के सरताज कर्नल रंजीत की अनोखी कलम से हैरतअंगेज कारनामों से भरा एक और अनोखा कारनामा- खामोश, मौत आती है।
- कैसी थी वह मौत, जो बिना किसी आहट के चुपचाप चली आती थी? क्या सचमुच मौत थी वह या मौत से भी बढकर कुछ और?
- राजधानी में खूबसूरत लङकियों का एक के बाद एक अपहरण होने लगता है और फिर उनके मंगेतर या प्रेमी भी गायब होने लगते हैं, क्या तालमेल था दोनों तरह के अपहरण में?
- खूबसूरत जवानियों को तबाह करने का घिनौना और भयानक खेल। कौन था वह सफेदपोश भेङिया, जो मासूम युवक-युवतियों को जीते जी मौत भेंट देता था।
- भावनाओं की ब्लैकमेलिंग का अजीबोगरीब तरीका जिसे शातिर बदमाश की बुद्धि ही खोज सकती थी।
- सनसनी और रहस्य-रोमांच का जबरदस्त तूफान जो मन -मस्तिष्क को हिलाकर रख देता है।
भारत की सर्वप्रथम पाॅकेट बुक्स हिंद पॉकेट बुक्स की प्रस्तुति कर्नल रंजीत का उपन्यास - खामोश, मौत आती है।
86. आखिरी दांव- जेम्स हेडली चेइस
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जेम्स हेडली चेइज जासूसी उपन्यास जगत के वह सितारे थे जिनकी चमक दूर दूर तक थी। यही कारण है की इनके उपन्यास जितने लोकप्रिय अंग्रेजी में थे, स्वयं के देश में थे, तात्कालिक समय में थे, उतने ही लोकप्रिय आज हैं, विभिन्न देशों में भी और विभिन्न भाषाओं में हैं।
प्रस्तुत उपन्यास आखिरी दांव मूलत: अंग्रेजी उपन्यास One Bright Summer Morning का हिंदी अनुवाद है और यह अनुवाद किया है प्रसिद्ध अनुवादक सब्बा खान जी ने।
उपन्यास जितना रोचक है अनुवाद उतना ही शानदार है।
एक दिन किस्मत ने क्रेमर को ऐसी स्थिति में ला पटका की वह अर्श से फर्श पर आ गया। अपनी शाही जिंदगी को बनाये रखने के लिए अब उसके लिए जरूरी था की वह कुछ ऐसा करता जिससे उसके पास पुन: दौलत एकत्र हो जाये।
क्रेमर ने अपने एक पुराने अपराधी मित्र मो जेगेटी, चिटा क्रेन एव रिफ क्रेन नामक भाई-बहन के साथ मिलकर एक ऐसा प्लान अपराधी जाल बुना जिसके बल पर उन्होंने विश्वास था की वो चार करोड़ डालर्स की रकम एकत्र कर लेंगे।
लेकिन पुलिस अधिकारी डेनिसन जो लंबे समय से क्रेमर का इंतजार कर रहा था। क्रेमर को थामने के लिए मैंने इक्कीस सालों तक इंतजार किया है।वह बड़ी मछली है, जो उस वक्त जाल से फिसल गयी थी और अब अगर वह वापस जुर्म की दुनियां में कदम रख रही है तो यह मेरी खुशकिस्मती है। (पृष्ठ-45)
क्रेमर ने एक अभेद्य जाल बनाया और उस जाल में फंसा वान वाइलाई। वान वाइलाई शहर का एक प्रतिष्ठित अमीर आदमी था। वान वाइलाई की बेटी का अपहरण कर उससे चार करोड़ डॉलर की फिरौती मांगी गयी। लेकिन वान वाइलाई इतनी आसानी से रुपये देने वाला नहीं था। "अगर यह हरामखोर समझते हैं कि मेरे चार करोङ डॉलर लेकर हवा हो जायेंगे, तो ये ख्वाबों में जी रहे हैं।" (पृष्ठ-122,23)
- क्या क्रेमर को चार करोड़ डॉलर मिल पाये?
- आखिर क्रेमर और साथियों का प्लान क्या था?
- डेनिसन अपने उददेशे में सफल हो पाया?
- वान वाइलाई ने क्या धनराशि दे दी?
- बहन- भाई की जोड़ी ने आखिर क्या गुल खिलाया?
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क्रेमर का अपराध जगत में पुनः प्रवेश उसकी एक मजबूरी है लेकिन वह आज भी स्वयं को उतना ही सशक्त मानता है जितना पहले था लेकिन मो जगेटी स्वयं को परिस्थितियों पर छोड़ देता है।
अगर देखा जाये तो मो जगेटी का किरदार एक अपराधी का होते हुए भी एक कोमल ह्रदय व्यक्ति का है। वह अपनी माँ के सानिध्य से दूर नहीं जा सकता, वह विक्टर डरमोट की पता पर अत्याचार नहीं देख सकता और डरमोट के छोटे बच्चे से भी स्नेह रखता है।
वहीं चिटा और रिट दोनों भाई बहन निकृष्ट मानसिकता के व्यक्ति हैं। वे किसी को भी मारते हुए नहीं हिचकते। उपन्यास में मो जगेटी से अनायास ही एक भावुकता का बंधन बन जाता है।
- मिस वाइलाई का अपहरण कर्ता रिफ क्रेन से प्यार हो जाना उपन्यास में एक रोचक प्रसंग है।
उपन्यास का समापन पृष्ठ दर पृष्ठ रोचक और घुमावदार है। कहानी अंत में जाते-जाते काफी बदलती रहती है जिससे उपन्यास में रोचकता सहज और स्वाभाविक बनी रहती है।
प्रस्तुत उपन्यास का अनुवाद चर्चित अनुवादक सब्बा खान जी ने किया है। इनका उपन्यास उपन्यास को सहज और सरल बना देता है। यह इनकी व्यक्तिगत विशेषता है।
उपन्यास मात्र शब्दानुवाद ही नहीं है यह भावानुवाद भी है। कहीं कोई क्लिष्ट शब्द प्रयुक्त नहीं हैं। उपन्यास पढते वक्त कहीं भी यह महसूस नहीं होता है की हम एक अनुवाद पढ रहे हैं।
भाषा शैली की कोमलता, सजीवता और धार प्रवाह उपन्यास को पठनीय बनाने में विशेष योगदान रखते हैं।
अनुवादक सब्बा खान जी धन्यवाद की पात्र हैं।
उपन्यास की कहानी एक जुर्म की दुनियां से किनारा कर चुके अपराधी की पुन: जुर्म की दुनियां में आगमन की कहानी है। कहानी अपने प्रथम पृष्ठ से ही रहस्य समेटे हुये है और ऐसे ही आगे बढती है।
उपन्यास की भाषा शैली सब्बा खान जी के अनुवाद से बहुत अच्छी बनी है।
उपन्यास रोचक और पठनीय है।
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उपन्यास- आखिरी दांव
मूल नाम- One Bright Summer Morning
लेखक- जेम्स हेडली चेइज
अनुवादक- सब्बा खान
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 219
मूल्य- 150₹
85. साहित्य समर्था- पत्रिका
साहित्य समर्था- एक साहित्यिक पत्रिका
प्रथम अंक, अगस्त-सितंबर-2017
जयपुर से प्रकाशित होने वाली साहित्यिक पत्रिका साहित्य समर्था का प्रथम अंक प्राप्त हुआ।
प्रस्तुत अंक कथाकार डाॅ. बानो सरताज को समर्पित है। इसलिए इस अंक में अधिकांश रचनाएँ बानो सरताज की ही हैं और आवरण पृष्ठ का चित्र भी बानो सरताज का है। यह एक अच्छा व सराहनीय प्रयास है। इस अंक में बानो सरताज की कहानी, कविता, लेखन यात्रा, व्यंग्य- हास्य, आलेख आदि पाठक को पढने को मिलेंगे।
संपादिका महोदया लिखती हैं। "समर्था का प्रस्तुत अंक वरिष्ठ साहित्य डाॅ. बानो सरताज काजी को समर्पित है। बहुआयामी लेखन की धनी डाॅ. बानो सरताज का समृद्ध लेखन संसार एवं समाजसेवी व्यक्तित्व प्रशंसनीय है।" (पृष्ठ- 03)
इसके अलावा भी अन्य बहुत से रचनाकरों को स्थान दिया गया है।
बानो सरताज की कहानी 'दस्तक' में कई रंग देखने को मिलेंगे। कहानी में रोचकता और रहस्य भी है और अंत पूर्णतः मार्मिक। इनकी अन्य कहानियाँ भी रोचक हैं लेकिन इनके व्यंग्य भी दिये गये हैं वह मुझे न तो व्यंग्य लगे न ही हास्य।
मालती जोशी की कहानी 'मन धुआं-धुआं' पढना भी बहुत अच्छा अनुभव कराती है। मुकुट सक्सेना की 'अस्तित्व-बोध', डाॅ. पूनम गुजराती की 'मेहंदी' , चन्द्रकांता की 'एक लङकी शिल्पी'
लघुकथा में नरेन्द्र कुमार गौङ की लघुकथा 'भ्रष्टाचार' यह दर्शाने में सफल रही है की हम स्वयं भ्रष्ट होकर अपना दोष न देखकर दूसरों को दोष देते हैं।
लघुकथा में किशन लाल शर्मा की 'हक', पूर्णिमा मित्रा की ' आस के दिये' भी अच्छी हैं।
सबसे अलग हटकर प्रस्तुति है जर्मनी की युट्टा आॅस्टिन का साक्षात्कार। यह साक्षात्कार लिया है आभा सिंह ने।
युट्टा आॅस्टिन जर्मन महिला है। विवाह पश्चात अपने पति के देश इंग्लैंड में कोल चैस्टर नामक स्थान पर रहती है। वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय कोल चैस्टर में यूरोपीय भाषाओं की व्याख्याता है, साथ ही साथ हिंदी की विदूषी है और अध्यापन भी करती है। (पृष्ठ -58)
हिंदी भाषा के प्रति प्रेम विषय पर वे कहती है- "हिंदी इतनी सुंदर और बढिया भाषा लगी कि उसे सीखने लगी और भारत के बारे में पढने लगी।" (पृष्ठ- 58)
इस अंक की काव्य रचनाएँ भी बहुत सराहनीय है।
डाॅ. नरेन्द्र शर्मा 'कुसुम' राष्ट्र ध्वज क लिए लिखते हैं।
- तू हमारे देश की पहचान है,
कोटि कंठों से उमङता गान है,
तीन रंगों में फहराता व्योम में
एकता की तू सुरीली तान है। (पृष्ठ-33)
स्त्री वर्ग को लेकर लिखी गयी रचनाएँ भी अच्छी हैं। डाॅ. अंजु दुआ 'जैमिनी' की कविता ' स्त्री, मात्र देह' में स्त्री की स्वतंत्रता का वर्णन करती है।
स्त्री चारदीवारी से निकल
बढी खुली हवा में
कुछ पाना है- सब कुछ पाना है। (पृष्ठ- 37)
डाॅ. पद्मजा शर्मा की रचना 'लङकी' भी स्त्री वर्ग की बात करती है।
जितना सरल है कह देना लङकी
हकीकत में उतना ही कठिन है होना लङकी
जितने पल जीती है उससे कहीं ज्यादा पल मरती है लङकी। (पृष्ठ- 37)
संगीता गुप्ता की कविता 'माँ', मीरा सलभ की 'गम ही फलते रहे', डाॅ अमिता दुबे की 'ऐसा मन करता है', डाॅ संगीता सक्सेना की ' राखी', आदि काव्य रचनाएँ भी पठनीय है। शिवानी शर्मा की 'स्त्री', सत्यदेव संतिवेन्द्र की 'प्रश्न सहेजे चेहरे, सुकीर्ति भटनागर की कविता 'बस एक पल' भी सराहनीय रचनाएँ हैं।
मधु प्रमोद अपनी कविता 'हम सी ना बेटियाँ होती' में कहती हैं- ये हवाएं हैं
एक जगह रह नहीं सकती
ये ऋचाएं हैं
कभी खुलकर नहीं कहती। (पृष्ठ-46)
इनके अतिरिक्त इस अंक में साहित्यिक चर्चा और पुस्तक समीक्षा भी दी गयी है।
साहित्य समर्था का प्रस्तुत अंक वास्तव में बहुत अच्छा है। संपादिका नीलिमा टिक्कू जी धन्यवाद की पात्रा है जिन्होंने इस कठिन कार्य को अंजाम दिया है।
इस पत्रिका की एक और विशेषता है वह है इसका मजबूत संपादन पक्ष तथा उच्च स्तर के कागज पर मुद्रण। यह दोनों विशेषताएँ पत्रिका को और ज्यादा मजबूती प्रदान करती है।
पूर्णतः सफेद पृष्ठों पर अंकित काले -काले अक्षर मन मोह लेते हैं।
पत्रिका का प्रथम अंक पठनीय है।
पुनश्च: उन सभी रचनाकारों और संपादन मण्डल का धन्यवाद जिनके अथक प्रयास से साहित्य समर्था का प्रथम अंक साहित्य जगत में आया।
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पत्रिका- साहित्य समर्था (त्रैमासिक)
संपादिका- नीलिमा टिक्कू
अंक- जुलाई- सितंबर, 2017 ( वर्ष-1, अंक-01)
पृष्ठ-
मूल्य- एक अंक- 50₹, वार्षिक- 200₹
संपर्क-
ई-311, लालकोठी स्कीम, जयपुर- 302015
दूरभाष- 0141-2741803, 2742027
Email- sahityasamartha@gmail.com
- neelima.tikku16@gmail.com
Monday, 25 December 2017
84. कारीगर- वेदप्रकाश शर्मा
कहानी चाहे कितनी भी सहज और सामान्य हो लेकिन वेदप्रकाश शर्मा जी उसमें ऐसे घुमाव पैदा करते हैं की पाठक सोचता रह जाता है आगे क्या होगा।
प्रभावशाली लेखक भी वही है जो पाठक को कहानी से जोङे रखे। और इस विषय में वेदप्रकाश शर्मा जी अपने समकालीन उपन्यासकारों में अग्रणी रहें हैं।
अपनी इसी विशेषता के लिए वेदप्रकाश शर्मा जाने जाते हैं।
Wednesday, 6 December 2017
83. जनकवि रमाशंकर यादव 'विद्रोही'
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जनकवि रमाशंकर यादव मेरे प्रिय कवि हैं।
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शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज
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एक खतरनाक संस्था से टकराव विकास और मैकाबर- वेदप्रकाश शर्मा मैकाबर सीरीज का प्रथम भाग वेदप्रकाश शर्मा जी की 'विजय- विकास' सीरीज में ...