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Tuesday, 31 December 2024

615. मोम का जहर- कुमार कश्यप

कहानी खत्म होते एंजिल द्वीप की
मोम का जहर- कुमार कश्यप
- विक्रांत, बटलर, अमरजीत, शंकर अली, फादर विलियम कृष्ण

Crime fiction क्षेत्र में जासूसी उपन्यास लेखन में कुमार कश्यप नाम भी अग्रणी पंक्ति में रहा है। इनके अधिकांश उपन्यास जासूसी वर्ग की करामात पर आधारित होते थे, जिनमें कथानक कम और एक्शन अधिक होता था ।
प्रस्तुत उपन्यास 'मोम का जहर' भी जासूस मण्डली की हास्य, एक्शन, रोमांस पर ही आधारित है‌ ।
इस उपन्यास के विषय में बात कहां से आरम्भ करें कुछ समझ में नहीं आ रहा। जहां से उपन्यास आरम्भ होता हैं वहां से, यां फिर जहाँ से कथानक आरम्भ होता है वहाँ से या फिर इस कहानी के प्रथम परिच्छेद से ।
चलो, हम पहले इस उपन्यास का कथानक ही बता देते हैं बाकी बातें बाद में।
एक युवा विद्रोही वैज्ञानिक है शंकर अली जो 'एंजिल टापू' पर रहता है। वही उसकी दुनिया है। इस टापू की आबादी बहुत कम है और अधिकांश यहाँ के लोग वैज्ञानिक ही हैं। कभी इस विरान टापू को शंकर अली ने ही आबाद किया था। लेकिन शंकर अली के दुश्मन उसकी प्रगति से अप्रसन्न हैं।

614. घर का दुश्मन- प्रेम प्रकाश

कहानी ब्लैकमेलिंग की
घर का दुश्मन- प्रेम प्रकाश- 
दिसंबर-1966
हिंदी अपराध साहित्य में बहुसंख्यक कहानियाँ बिखरी पड़ी हैं, इनमें से कभी-कभार कुछ नया और अच्छा पढने को मिल जाता है। ऐसा ही एक एक छोटा सा उपन्यास पढने को मिला, जिसकी छोटी और सामान्य सी कहानी अच्छी लगी। इस उपन्यास का नाम है- घर का दुश्मन ।
नकहत पब्लिकेशन -इलाहाबाद का नाम विशेष रूप से इब्ने सफी साहब से संबंधित है। और उनके उपन्यासों का हिंदी अनुवाद करने के लिए जाने जाते हैं प्रेम प्रकाश जी।  स्वयं प्रेम प्रकाश जी ने भी उपन्यास लिखे हैं। प्रस्तुत उपन्यास 'घर का दुश्मन' इन्हीं का ही है।
उपन्यास का कथानक- उपन्यास की कहानी ब्लैकमेलिंग पर आधारित है। एक संगठित गिरोह का बाॅस अपने आदमियों से सुनियोजित तरीके से अलग- अलग शहरों में लोगों को फंसा कर ब्लैकमेल कर रूपया लेता है।

Sunday, 29 December 2024

613. लाश गिरेगी वाईपर की- गोपाल शर्मा

कहानी 'राॅ' के सर्वश्रेष्ठ जासूस की
लाश गिरेगी वाईपर की- गोपाल शर्मा

नमस्ते मित्रो,
आज हम यहां चर्चा करने जा रहे हैं पवन पॉकेट बुक्स के अंतर्गत प्रकाशित छद्म लेखक गोपाल शर्मा जी के उपन्यास 'लाश गिरेगी वाईपर की। '
वाईपर सीरीज का प्रथम उपन्यास का नाम 'वाईपर' था। मैंने पढा तो था पर यहां उसकी समीक्षा न लिख पाया। अब इसी शृंखला का उपन्यास 'लाश गिरेगी वाईपर की' पढा तो समीक्षा लिखने का विचार भी मन में आया तो एक छोटी सी , अव्यवस्थित सी समीक्षा इसलिए लिख दी की अन्य पाठक इस लेखक और पात्र के विषय में जान सकें।

हालांकि मेरा प्रयास यही रहता है जो भी पुस्तक पढी जाये,उस पर एक विस्तृत टिप्पणी/ समीक्षा लिखी जाये पर ऐसा संभव नहीं हो पाता और इस साल (2024)में तो पढा भी बहुत कम है और लिखने के मामले में उस से भी बहुत पीछे रहा हूँ।
  कभी-कभी किसी महत्वपूर्ण पुस्तक पर न लिखने का अफसोस भी रहता है। जैसे- कैच फोर (कंवल शर्मा), चक्क पीरा दा जस्सा (बलवंत सिंह), राक्षस (नीतिश सिन्हा) जैसे और भी रचनाएँ पढी पर उन पर कुछ भी न लिख सका।
चलो, भविष्य में यथासंभव कोशिश रहेगी जो पढा जाये, उस पर लिखा जाये।
अब हम बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास की । इस उपन्यास का घटनाक्रम शिवालिक द्वीप से संबंधित है।
"क्या तुमने शिवालिक द्वीप का नाम सुना है?" भरत ने गला साफ करने के बाद पूछा।

611. नौकरी डाॅट काॅम - वेदप्रकाश शर्मा

एक लड़की रहस्यमयी
नौकरी डाॅट काॅम- वेदप्रकाश शर्मा

केवल दस हजार रुपए महीना की पगार पाने के लिए वह
नौकरी डॉट कॉम में काम करती थी मगर उसका महीने का खर्च लाखों रुपए था।
मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा डॉन भी उससे डरता था। क्या था इस रहस्यमय लड़की का राज ?
 इस उपन्यास में बताने जा रहे हैं- वेद प्रकाश शर्मा
उपन्यास आरम्भ करने से पहले हम एक नजर उपन्यास के प्रथम पृष्ठ की कुछ पंक्तियों पर डाल लेते हैं।
कॉलबेल बजी ।
इंस्पेक्टर अबोध ने दरवाजा खोला।
वह अड़तालीस-पचास साल के लपेटे का शख्स था।
जब वह सामने वाले से बातें करता था तो आदतन उसका हाथ अपने सिर पर पहुंच जाता था और वेख्याली में अधगंजी चांद को सहलाने लगता था, मगर जैसे ही ख्याल आता था, फौरन सिर से हाथ झटक लेता था और अपनी आंखों पर लगे नजर के चश्मे को उतारकर बेवजह रूमाल से साफ करने लगता था।
सामने उमेश हांडा खड़ा था।
इंस्पेक्टर उछल पड़ा।
पलभर के लिए तो उसे यकीन ही न आया कि वह जो देख रहा है, वह सच हो सकता है। सामने खड़े इंसान को पहचानने में उससे कोई गलती नहीं हुई थी।
बेध्यानी में तत्काल हाथ अधगंजी चांद की शोभा बढ़ाने लगा ।
उमेश हांडा उसे देखकर बेहद चित्ताकर्षक अंदाज में
मुस्कराया।

 और अब बात करते हैं उपन्यास के कथानक की।
यह कहानी है नीलिमा/ नीलम नामक एक युवती की, जो पन्द्रह हजार की नौकरी करती है, पर उसका रहन सहन उच्च श्रेणी का है। करोड़ों का बंगला, लाखों की कार और लंदन से शिक्षा प्राप्त खूबसूरत युवती है।
नीलिमा का तीन बार कार एक्सीडेंट हो चुका है और संयोग से वह तीनों बार बच गयी। और स्वयं नीलिमा का मानना है उसकी मौत जब भी होगी गोली से होगी ।
“मैं सच कह रही हूं हसबैंड जॉनी । मेरी मौत रोड एक्सीडेंट में नहीं लिखी।"
"तो फिर कैसे लिखी है?"
"गोली से ।"(पृष्ठ-22)

Friday, 27 December 2024

610. कत्ल के बाद कत्ल- संजय नागपाल

और फंस गये प्रोफेसर सुबोध...
कत्ल के बाद कत्ल- संजय नागपाल
 
सुनील ने पैन्सिल टार्च के क्षीण प्रकाश को क्षण-भर के लिये पलंग पर लेटे व्यक्ति पर डाला।
उसी एक क्षण मैं उसे लगा कि पलंग पर लिहाफ ओढकर लेटे व्यक्ति का चेहरा साधारण नहीं था ।
न जाने किस भावना के वशीभूत होकर उसने एक झटके से लिहाफ को उस व्यक्ति के ऊपर से हटा दिया ।
उसने जो देखा - उसे देखकर उसकी रीढ़ की हड्डी में भय की एक सर्द लहर दौड़ती चली गई ।

- (इसी उपन्यास में से)

दिल्ली निवासी जगदीश कंवल जी ने अपना प्रकाशन 'कंवल पॉकेट बुक्स' आरम्भ किया तो उस के अंतर्गत उन्होंने संजय नागपाल जी का उपन्यास 'कत्ल के बाद कत्ल' प्रकाशित किया। हालांकि संजय नागपाल जी का नाम इस उपन्यास के अतिरिक्त और कहीं-कभी देखने,पढने और सुनने में नहीं आया।
प्रोफेसर सुबोध जिस समय बस अड्डे पर पहुंचा सन्ध्या के पौने पांच बज चुके थे।
अपने दाएं हाथ में काले रंग के ब्रीफकेस को थामे प्रोफेसर सुबोध रिक्शा से नीचे उतर गया।
रिक्शा चालक को पैसे देकर वह उस बस की ओर बढ़ गया जिस पर 'पठानकोट-दिल्ली' लिखा हुआ था ।

Monday, 2 December 2024

जर्नी टू द सेंटर ऑफ द अर्थ- जूल्स वर्न

पृथ्वी के केन्द्र की रोमांचक यात्रा
Journey to the center of the earth-
'चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो...'- आपने यह गीत तो जरूर सुना होगा, पर आज हम बात कर रहे हैं पृथ्वी के अंदर की। जहां चले हैं चाचा-भतीजा ।
जी हां, यह कहानी है चाचा-भतीजा की जो पृथ्वी के गर्भ की यात्रा पर निकले हैं, और इस यात्रा का नाम हैं - Journey to the center of the earth.
World Trade Park Jaipur-22.07.2021

और सांसों को थमा देने वाली पृथ्वी के केंद्र तक की साहसिक यात्रा प्रोफेसर वॉन हार्डविग और उनके भतीजे हैरी को एक रहस्यमयी पांडुलिपी का पता चलता है, जो हमेशा के लिये उनके जीवन को बदल देता है।
      उस पांडुलिपी के अध्ययन के पश्चात जब वे उसमे छिपी पहेली को सुलझा लेते है तब उन्हें पता चलता है यह पांडुलिपी सोलहवीं शताब्दी के एक आइसलैंडिक दार्शनिक द्वारा लिखा गया है। दार्शनिक, जिसने पृथ्वी के केंद्र तक जाने का एक गुप्त मार्ग खोजने का दावा किया था।
क्या वाकई में ऐसा कोई मार्ग था?