पृथ्वी के केन्द्र की रोमांचक यात्रा
Journey to the center of the earth-
Journey to the center of the earth-
'चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो...'- आपने यह गीत तो जरूर सुना होगा, पर आज हम बात कर रहे हैं पृथ्वी के अंदर की। जहां चले हैं चाचा-भतीजा ।
जी हां, यह कहानी है चाचा-भतीजा की जो पृथ्वी के गर्भ की यात्रा पर निकले हैं, और इस यात्रा का नाम हैं - Journey to the center of the earth.
और सांसों को थमा देने वाली पृथ्वी के केंद्र तक की साहसिक यात्रा प्रोफेसर वॉन हार्डविग और उनके भतीजे हैरी को एक रहस्यमयी पांडुलिपी का पता चलता है, जो हमेशा के लिये उनके जीवन को बदल देता है।
उस पांडुलिपी के अध्ययन के पश्चात जब वे उसमे छिपी पहेली को सुलझा लेते है तब उन्हें पता चलता है यह पांडुलिपी सोलहवीं शताब्दी के एक आइसलैंडिक दार्शनिक द्वारा लिखा गया है। दार्शनिक, जिसने पृथ्वी के केंद्र तक जाने का एक गुप्त मार्ग खोजने का दावा किया था।
क्या वाकई में ऐसा कोई मार्ग था?
यदि यह सच था तो यह अब तक की सबसे बड़ी वैज्ञानिक खोज साबित हो सकती थी। लेकिन इस खोज की पुष्टि करने का एक ही तरीका था, उस मार्ग की खोज करना और उसमे प्रवेश करके पृथ्वी के केंद्र तक पहुंचना, जिसका रास्ता एक सुषुप्त ज्वालामुखी से होकर जाता था। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
चलो अब चलते हैं इस उपन्यास की लम्बी कहानी की छोटी समीक्षा पर।
यह कहानी है जर्मनी के प्रोफेसर हार्डविग और उसके भतीजे हैरी की, जो पृथ्वी के केन्द्र की यात्रा पर निकले हैं। और यह सफर आरम्भ होता है एक ज्वालामुखी के मुँह से। इनके साथ तीसरा व्यक्ति है इनका सहायक और सामान ढोने वाला एक खामोश व्यक्तित्व का हैंस ।
ज्वालामुखी के अंदर प्रवेश करने के पश्चात जैसे ही आगे बढते हैं इनके सामने छोटी-छोटी परेशानियां आनी आरम्भ हो जाती है। लेकिन तीनों संघर्षशील व्यक्ति आगे बढते जाते हैं और जैसे-जैसे आगे बढते हैं वैसे-वैसे यह सफर रोमांचक और खतरनाक होता जाता है। क्योंकि आगे का सफर उन्हें सुरंगों में करना और उन्हे यह भी नहीं पता की कौनसी सुरंग उन्हें कहां लेकर जायेगी और इसी चक्कर में वह भटक भी जाते ।
उपन्यास में एक घटनाक्रम है जहाँ हैरी अपने दोनों साथियों से भटक जाता है और उसकी टाॅर्च भी बदं हो जाती है, वह इस उपन्यास का बहुत ही मार्मिक दृश्य है। एक अंतहीन सफर, जहां कोई व्यक्ति, पशु-पक्षी तक नहीं और जब यह अहसास हैरी को होता है वह मानसिक रूप से टूट जाता है।
एक बार फिर यात्रा आगे बढती है तो उनका सामान ऐसे रहस्यों से होता है जिनकी वह कल्पना तक भी नहीं कर सकते ।
- आश्चर्यजनक है। कौन विश्वास करेगा कि धरती के इतना नीचे पानी का ऐसा विशाल भंडार होगा। जिसमें लहरें उठ रही होंगी, हवा चल रही होगी, तूफ़ान आ रहे होंगे। अगर कोई मुझसे यह कहता तो मैं उसे पागल समझता।
लेकिन यहाँ तो पृथ्वी के नीचे एक विशाल समुद्र है, सिर्फ समुद्र ही नहीं बल्कि नीचे पूरा वातावरण है, बादल हैं, वाष्प है, पेड़-पौधे हैं।
- मैंने देखा कि पानी की सतह पर आदिम युग के कछुए तैर रहे हैं जिनका आकार किसी द्वीप के बराबर का है। वीरान पड़े हुए किनारे भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों से भरे पड़े हैं। चट्टान के पीछे ऐसा विचित्र जीव घात लगाए अपने शिकार की प्रतीक्षा में बैठा है जिसके अंदर गैंडे, घोड़े, ऊँट और दरियाई घोड़े सभी की विशेषता हैं। विशालकाय मैमथ अपनी सूंड़ से पत्थरों का चूरा बना रहे हैं। पेड़ो पर बंदर उछल-कूद मचा रहे हैं। आसमान में तरह-तरह के विचित्र पक्षी उड़ रहे हैं।
जी हां, यह कहानी है चाचा-भतीजा की जो पृथ्वी के गर्भ की यात्रा पर निकले हैं, और इस यात्रा का नाम हैं - Journey to the center of the earth.
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World Trade Park Jaipur-22.07.2021 |
और सांसों को थमा देने वाली पृथ्वी के केंद्र तक की साहसिक यात्रा प्रोफेसर वॉन हार्डविग और उनके भतीजे हैरी को एक रहस्यमयी पांडुलिपी का पता चलता है, जो हमेशा के लिये उनके जीवन को बदल देता है।
उस पांडुलिपी के अध्ययन के पश्चात जब वे उसमे छिपी पहेली को सुलझा लेते है तब उन्हें पता चलता है यह पांडुलिपी सोलहवीं शताब्दी के एक आइसलैंडिक दार्शनिक द्वारा लिखा गया है। दार्शनिक, जिसने पृथ्वी के केंद्र तक जाने का एक गुप्त मार्ग खोजने का दावा किया था।
क्या वाकई में ऐसा कोई मार्ग था?
यदि यह सच था तो यह अब तक की सबसे बड़ी वैज्ञानिक खोज साबित हो सकती थी। लेकिन इस खोज की पुष्टि करने का एक ही तरीका था, उस मार्ग की खोज करना और उसमे प्रवेश करके पृथ्वी के केंद्र तक पहुंचना, जिसका रास्ता एक सुषुप्त ज्वालामुखी से होकर जाता था। (उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
चलो अब चलते हैं इस उपन्यास की लम्बी कहानी की छोटी समीक्षा पर।
यह कहानी है जर्मनी के प्रोफेसर हार्डविग और उसके भतीजे हैरी की, जो पृथ्वी के केन्द्र की यात्रा पर निकले हैं। और यह सफर आरम्भ होता है एक ज्वालामुखी के मुँह से। इनके साथ तीसरा व्यक्ति है इनका सहायक और सामान ढोने वाला एक खामोश व्यक्तित्व का हैंस ।
ज्वालामुखी के अंदर प्रवेश करने के पश्चात जैसे ही आगे बढते हैं इनके सामने छोटी-छोटी परेशानियां आनी आरम्भ हो जाती है। लेकिन तीनों संघर्षशील व्यक्ति आगे बढते जाते हैं और जैसे-जैसे आगे बढते हैं वैसे-वैसे यह सफर रोमांचक और खतरनाक होता जाता है। क्योंकि आगे का सफर उन्हें सुरंगों में करना और उन्हे यह भी नहीं पता की कौनसी सुरंग उन्हें कहां लेकर जायेगी और इसी चक्कर में वह भटक भी जाते ।
उपन्यास में एक घटनाक्रम है जहाँ हैरी अपने दोनों साथियों से भटक जाता है और उसकी टाॅर्च भी बदं हो जाती है, वह इस उपन्यास का बहुत ही मार्मिक दृश्य है। एक अंतहीन सफर, जहां कोई व्यक्ति, पशु-पक्षी तक नहीं और जब यह अहसास हैरी को होता है वह मानसिक रूप से टूट जाता है।
एक बार फिर यात्रा आगे बढती है तो उनका सामान ऐसे रहस्यों से होता है जिनकी वह कल्पना तक भी नहीं कर सकते ।
- आश्चर्यजनक है। कौन विश्वास करेगा कि धरती के इतना नीचे पानी का ऐसा विशाल भंडार होगा। जिसमें लहरें उठ रही होंगी, हवा चल रही होगी, तूफ़ान आ रहे होंगे। अगर कोई मुझसे यह कहता तो मैं उसे पागल समझता।
लेकिन यहाँ तो पृथ्वी के नीचे एक विशाल समुद्र है, सिर्फ समुद्र ही नहीं बल्कि नीचे पूरा वातावरण है, बादल हैं, वाष्प है, पेड़-पौधे हैं।
- मैंने देखा कि पानी की सतह पर आदिम युग के कछुए तैर रहे हैं जिनका आकार किसी द्वीप के बराबर का है। वीरान पड़े हुए किनारे भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों से भरे पड़े हैं। चट्टान के पीछे ऐसा विचित्र जीव घात लगाए अपने शिकार की प्रतीक्षा में बैठा है जिसके अंदर गैंडे, घोड़े, ऊँट और दरियाई घोड़े सभी की विशेषता हैं। विशालकाय मैमथ अपनी सूंड़ से पत्थरों का चूरा बना रहे हैं। पेड़ो पर बंदर उछल-कूद मचा रहे हैं। आसमान में तरह-तरह के विचित्र पक्षी उड़ रहे हैं।
कितना विचित्र होगा यह सब देखना । जरा कल्पना लीजिए जहां वर्तमान हाथियों के पूर्वज हैं, जहां द्वीप के बराबर के कछुये हैं। कितना हैरतजनक होगा यह सब । जैसे जैसे आप कहानी के साथ-साथ आगे बढते हैं वैसे -वैसे ही आपको रोचकता से परिपूर्ण दृश्य देखने को मिलते हैं । लेखक महोदय जूल्स वर्न ने जो कल्पना की है वह अद्वितीय है।
उपन्यास का वास्तविक आनंद कहानी को पढने में है। आप उपन्यास पढें और खो जाये एक अद्भुत दुनिया में ।
उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से आरम्भिक पंक्तियाँ-
उस दिन के बाद से मेरे साथ जो घटनाएं घटी हैं, मुझे आज भी उन पर विश्वास करना कठिन होता है। वे सचमुच में इतनी आश्चर्यजनक थीं कि उनके बारे में सोच कर ही में रोमांच से भर उठता हूँ।
मेरे अंकल एक जर्मन थे पर उन्होंने मेरी मौसी, जो की अंग्रेज थी, से विवाह किया था। मेरे पिता की असामयिक मृत्यु ने मुझे मेरे अंकल के करीब ला दिया था। वे मुझे बहुत प्यार करते थे और कई बार मुझे अपने घर पर बुलाया करते थे। उनका घर एक बड़े शहर में था। मेरे अंकल दर्शनशास्त्र, रसायनशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, खनिजशास्त्र, और भी ना जाने कितने शास्त्रों के ज्ञाता थे।
इस उपन्यास की सबसे रोचक बात है, वह है इसका हिंदी अनुवाद । अनुवाद आलोक कुमार जी ने इसका अनुवाद बहुत ही सरल और कथानुरूप किया है। पढते वक्त कहीं से ऐसा नहीं लगता कि हम अनुवाद पढ रहे हैं।
इस उपन्यास का प्रथम प्रकाशन 1871 में हुआ था, लेकिन अपने रोचक कथानक के कारण यह आज भी उतनी ही रोचकता लिये हुये है।
अगर विश्व स्तरीय रोमांच साहित्य पढना पसंद करते हैं तो यह आपको उपन्यास पढना चाहिए । इस उपन्यास पर फिल्म निर्माण भी हो चुका है और यह उपन्यास अपने समय से लेकर आज तक अपनी रोचक कथा के कारण चर्चित है ।
जितनी रोचक यह यात्रा है उतना ही रोमांच पाठक को भी आता है।
उपन्यास - जर्नी टू द सेंटर ऑफ द अर्थ
लेखक- जूल्स वर्न
अनुवादक- आलोक कुमार
उस दिन के बाद से मेरे साथ जो घटनाएं घटी हैं, मुझे आज भी उन पर विश्वास करना कठिन होता है। वे सचमुच में इतनी आश्चर्यजनक थीं कि उनके बारे में सोच कर ही में रोमांच से भर उठता हूँ।
मेरे अंकल एक जर्मन थे पर उन्होंने मेरी मौसी, जो की अंग्रेज थी, से विवाह किया था। मेरे पिता की असामयिक मृत्यु ने मुझे मेरे अंकल के करीब ला दिया था। वे मुझे बहुत प्यार करते थे और कई बार मुझे अपने घर पर बुलाया करते थे। उनका घर एक बड़े शहर में था। मेरे अंकल दर्शनशास्त्र, रसायनशास्त्र, भूगर्भशास्त्र, खनिजशास्त्र, और भी ना जाने कितने शास्त्रों के ज्ञाता थे।
इस उपन्यास की सबसे रोचक बात है, वह है इसका हिंदी अनुवाद । अनुवाद आलोक कुमार जी ने इसका अनुवाद बहुत ही सरल और कथानुरूप किया है। पढते वक्त कहीं से ऐसा नहीं लगता कि हम अनुवाद पढ रहे हैं।
इस उपन्यास का प्रथम प्रकाशन 1871 में हुआ था, लेकिन अपने रोचक कथानक के कारण यह आज भी उतनी ही रोचकता लिये हुये है।
अगर विश्व स्तरीय रोमांच साहित्य पढना पसंद करते हैं तो यह आपको उपन्यास पढना चाहिए । इस उपन्यास पर फिल्म निर्माण भी हो चुका है और यह उपन्यास अपने समय से लेकर आज तक अपनी रोचक कथा के कारण चर्चित है ।
जितनी रोचक यह यात्रा है उतना ही रोमांच पाठक को भी आता है।
उपन्यास - जर्नी टू द सेंटर ऑफ द अर्थ
लेखक- जूल्स वर्न
अनुवादक- आलोक कुमार
प्रकाशक- फ्लाइड्रिम्स पब्लिकेशन
पृष्ठ- 201
पृष्ठ- 201
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