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Saturday, 28 December 2024

611. नौकरी डाॅट काॅम - वेदप्रकाश शर्मा

एक लड़की रहस्यमयी
नौकरी डाॅट काॅम- वेदप्रकाश शर्मा

केवल दस हजार रुपए महीना की पगार पाने के लिए वह
नौकरी डॉट कॉम में काम करती थी मगर उसका महीने का खर्च लाखों रुपए था।
मुंबई अंडरवर्ल्ड का सबसे बड़ा डॉन भी उससे डरता था। क्या था इस रहस्यमय लड़की का राज ?
 इस उपन्यास में बताने जा रहे हैं- वेद प्रकाश शर्मा
उपन्यास आरम्भ करने से पहले हम एक नजर उपन्यास के प्रथम पृष्ठ की कुछ पंक्तियों पर डाल लेते हैं।
कॉलबेल बजी ।
इंस्पेक्टर अबोध ने दरवाजा खोला।
वह अड़तालीस-पचास साल के लपेटे का शख्स था।
जब वह सामने वाले से बातें करता था तो आदतन उसका हाथ अपने सिर पर पहुंच जाता था और वेख्याली में अधगंजी चांद को सहलाने लगता था, मगर जैसे ही ख्याल आता था, फौरन सिर से हाथ झटक लेता था और अपनी आंखों पर लगे नजर के चश्मे को उतारकर बेवजह रूमाल से साफ करने लगता था।
सामने उमेश हांडा खड़ा था।
इंस्पेक्टर उछल पड़ा।
पलभर के लिए तो उसे यकीन ही न आया कि वह जो देख रहा है, वह सच हो सकता है। सामने खड़े इंसान को पहचानने में उससे कोई गलती नहीं हुई थी।
बेध्यानी में तत्काल हाथ अधगंजी चांद की शोभा बढ़ाने लगा ।
उमेश हांडा उसे देखकर बेहद चित्ताकर्षक अंदाज में
मुस्कराया।

 और अब बात करते हैं उपन्यास के कथानक की।
यह कहानी है नीलिमा/ नीलम नामक एक युवती की, जो पन्द्रह हजार की नौकरी करती है, पर उसका रहन सहन उच्च श्रेणी का है। करोड़ों का बंगला, लाखों की कार और लंदन से शिक्षा प्राप्त खूबसूरत युवती है।
नीलिमा का तीन बार कार एक्सीडेंट हो चुका है और संयोग से वह तीनों बार बच गयी। और स्वयं नीलिमा का मानना है उसकी मौत जब भी होगी गोली से होगी ।
“मैं सच कह रही हूं हसबैंड जॉनी । मेरी मौत रोड एक्सीडेंट में नहीं लिखी।"
"तो फिर कैसे लिखी है?"
"गोली से ।"(पृष्ठ-22)
इंस्पेक्टर अबोध एक कर्तव्यनिष्ट व्यक्ति है । नीलिमा के दो बार कार एक्सीडेंट उसी के क्षेत्र में हुये थे और तीसरा कहीं बाहर हुआ था । लेकिन जब तीसरा कार एक्सीडेंट हुआ तो मुंबई अण्डरवर्ल्ड का डाॅन नारायण स्वामी यह जानने को मरा जा रहा था कि उस लड़की का एक्सीडेंट किसने करवाया है और इसी लिए वह चाहता है कि इंस्पेक्टर अबोध उस शख्स का पता लगाये जो नीलिमा का मारना चाहता है। 
और इंस्पेक्टर अबोध...
वह जा पहुंचता है नीलिमा/ नीलम के पास-
"बहुत रहस्यमय किरदार है तुम्हारा मिस नीलिमा । न जाने कितने राज छुपा रखे हैं तुमने अपने नन्हे से दिल में और जब तक वे बाहर नहीं आएंगे, मुझे नहीं लगता कि कोई भी पहेली हल हो सकती है। मेरी मजबूरी देखो, सबकुछ जानने के बावजूद मैं कुछ नहीं कर सकता। मैं तुम पर दबाव नहीं बना सकता। तुम्हारे साथ अपनी वर्दी और कानून की ताकत इस्तेमाल नहीं कर सकता। जानती हो क्यों?" (उपन्यास अंश)
तो यह कहानी है एक रहस्यमयी किरदार नीलिमा की । जो अविनाश नामक एक साधारण से युवक से प्रेम करती है । वहीं गुलशन नामक युवक नीलिमा से प्रेम करता है और गुलशन पूर्व सांसद विश्वमोहन का पुत्र है। 
 नीलिमा स्पष्ट रूप से गुलशन को मना कर चुकी है लेकिन गुलशन है कि मानता ही नहीं और फिर एक दिन नीलिमा गुलशन को गुण्ड़ों द्वारा उठवा लेती है।
        वहीं अविनाश के पिता एक साधारण से क्लर्क है पर उनका किरदार काफी रहस्यमयी है। जो की एक औरत माला के सामने स्पष्ट होती है। और स्वयं माला भी एक चालबाज औरत प्रतीत होती है। और माला का पुत्र उस से भी ज्यादा खतरनाक है।
या हम कहें की यहाँ लगभग पात्र रहस्यमयी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। हर पात्र का एक अतीत है, हर पात्र के कुछ रहस्य है और हर पात्र प्रतिशोध की आग में धधक रहा है।
 बात फिर करते हैं नीलिमा की जो इस उपन्यास का मुख्य और रहस्यमयी पात्र है। जिस से मुम्बई अण्डरवर्ल्ड का डाॅन भी डरता है।
आखिर क्यों ड़रता है? बस यही रहस्य जानने के लिए आपको यह उपन्यास पढना होगा ।
 नीलिमा का का किरदार जहाँ अत्यंत रहस्यमयी है, और इंस्पेक्टर सुबोध के अनुसार जिसने भी नीलिमा से 'पंगा' लेने की कोशिश की वह इस दुनिया से ही गायब हो गया और यह नीलिमा एक साधारण से और मासूम युवक अविनाश से अथाह प्रेम करती है और उस से शादी करना चाहती है। वहीं अविनाश के पिता चन्द्रप्रकाश अपनी अलग ही गुल खिला रहे हैं, जो समझ में ही नहीं आते और जब समझ में आते हैं तो हैरानी होती है।
    उपन्यास में बहुत से पात्र नीलिमा की मौत की इच्छा रखते हैं और एक मात्र डाॅन नारायण स्वामी नहीं चाहता की नीलिमा की मौर हो, पर वह नीलिमा से डरता भी बहुत है।
उपन्यास जहाँ आरम्भ में ज्यादा रहस्यमय बनती है वहीं मध्य के पश्चात प्रतिशोध पर केन्द्रित हो जाती है। और देखा जाये तो उपन्यास के मध्य तक आते-आते कहानी स्पष्ट हो जाती है और कोई विशेष रहस्य भी नहीं बचता। और कुछ बचता है तो बस यही की शेष पात्रों का क्या होगा ।
        उपन्यास में पात्रों की बात करें तो यह बहुत ज्यादा है लेकिन कहीं भी कोई ऐसा पात्र नहीं है जो दिमाग में से निकल जाये या जिसे जानने के लिए उपन्यास के पुनः पृष्ठ पलटने पड़े।
 उपन्यास के दो पात्र सर्वाधिक प्रभावित करते हैं एक है नीलिमा उर्फ नीलम और दूसरा है इंस्पेक्टर अबोध।
नीलिमा एक जिंदादिल लड़की है जो तीन-तीन प्राणघातक रोड़ एक्सीडेंट के बाद भी मुस्काती है। अपने दुश्मनों को माफ भी कर देती है और जहाँ जरूरत पड़े वहीं वह खतरनाक भी हो जाती है।
 हालांकि वह यह जानना चाहती थी कि अविनाश के विनाश के पीछे कौन है, पर वह सफल न हो सकी।
नीलिमा हर किसी को प्यार से 'जाॅनी' बुलाती है।
वहीं बात करें इंस्पेक्टर अबोध की तो वह एक कर्तवनिष्ट और धुन का धनी व्यक्तित्व वाला है। उसे पता है अगर वह नीलिमा के पीछे पड़ेगा तो उसका हार बुरा होगा पर वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटता।
वह प्यार से लोगों के नाम बदल देता है। जैस इन्द्रजीत को 'इन्द्र के जीत' कहता है। चन्द्रप्रकाश को 'चंदरू' कहता है।
वह अपने अधगंजे सिर पर हाथ फेरता है या फिर अपने चश्मे जो रुमाल से साफ करता रहता है। यह उसकी मुख्य आदत है।
उपन्यास की कहानी 284 पृष्ठों में फैली है जो की अतिविस्तार ही प्रतीत होता है। कहीं -कहीं तो व्यर्थ ही संवादों को लम्बा खींचा गया है।
 एस आई इंद्रजीत और तरूण भट्टी का संवाद जो 17 पृष्ठों तक फैला है।
और भी कई जगह अतिवस्तार है जो कहानी को नीरसता प्रदान करते हैं।
दर असल ऐसे लम्बे संवाद, वर्णन मात्र उपन्यास के पृष्ठ बढाने के लिए लिखे जाते हैं। 
उपन्यास शीर्षक- उपन्यास का शीर्षक 'नौकरी डाॅट काॅम' है जो कहीं से भी सार्थक नजर नहीं आता । मात्र इस आधार पर उपन्यास का नाम रख देना की उपन्यास का एक पात्र 'नौकरी डाॅट काॅम' कम्पनी में काम करता है, कहां से उचित है। 
इस शीर्षक का इस कहानी से कहीं से भी कोई लेना देना नहीं है।
उपन्यास का नाम 'बदला', 'प्रतिशोध' जैसा कुछ भी हो सकता था, पर नौकरी डाॅट काॅम नहीं होना था।
क्या यह उपन्यास वेदप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया है ?-
इस उपन्यास को पढकर यह विचार मन में आना स्वाभाविक ही है। जो वेदप्रकाश शर्मा जी के पाठक है वह जानते हैं वेदप्रकाश शर्मा जी के कथानक किस स्तर के होते हैं। उनमें कितना सस्पेंस होता है, पात्र कैसे होते हैं और इंस्पेक्टर कैसे होते हैं।
 वेदप्रकाश शर्मा जी ने जब 'नौकरी डाॅट काॅम' उपन्यास का विज्ञापन दिया था तो उसमें कथानक बिलकुल अलग तरह का था ।
यहां पढें- 
युवाओं को लगा - ये वेबसाइट हमारे सभी सपनों को साकार कर सकती है। वे निकल पड़े और जा फंसे एक ऐसी दुनिया में जो हर पल उन्हीं को हैरान परेशान कर रही थी। मगर आज के युवा किसी से कम नहीं है। जब वे अपने रंग में आये तो सबको छकाते चले गये। तौबा कर ली उन्होंने जो उन जैसे युवाओं को सुनहरे सपने दिखाकर अपना उल्लू सीधा करते थे।
बिलकुल नये और ताजा विषय पर लिखा - नौकरी डॉट कॉम
 नौकरी डाॅट काॅम उपन्यास के विज्ञापन के विषय में और जानने के लिए यहाँ क्लिक करें - Sahityadesh/नौकरीडाॅटकाॅम
 दर असल एक बेहतरीन और समसामयिक विषय पर आने वाला उपन्यास न जाने किन परिस्थितियों में कहां खो गया और उसकी जगह सामने आया एक सामान्य कथानक वाला उपन्यास । जिसे हर लिहाज से वेदप्रकाश शर्मा स्टाइल का बनाने की कोशिश की गयी पर वह सफलता नहीं मिली ।
        नौकरी डाॅट काॅम एक मध्यम स्तर का उपन्यास है। एक तो इसका नाम बदल देना चाहिये था दूसरा इस उपन्यास के पृष्ठ कम करने चाहिए थे और तीसरा यह शगुन शर्मा के नाम से आना चाहिए था और चौथा और महत्वपूर्ण... 
धन्यवाद उस अज्ञात लेखक को जिसने जी-जान से, हर तरीके से इस उपन्यास को वेदप्रकाश शर्मा स्टाइल का बनाने की कोई कसर नहीं छोड़ी। पर अफसोस यह वेदप्रकाश शर्मा 'मार्का' उपन्यास न बन सका।
और आप... बस इसलिए ही पढ लीजिए इसके लेखक के नाम की जगह वेदप्रकाश शर्मा लिखा गया है।
धन्यवाद ।
उपन्यास- नौकरी डाॅट काॅम
लेखक -   वेदप्रकाश शर्मा ?
प्रकाशक- तुलसी पेपर बुक्स,मेरठ।

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