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Friday, 27 December 2024

610. कत्ल के बाद कत्ल- संजय नागपाल

और फंस गये प्रोफेसर सुबोध...
कत्ल के बाद कत्ल- संजय नागपाल
 
सुनील ने पैन्सिल टार्च के क्षीण प्रकाश को क्षण-भर के लिये पलंग पर लेटे व्यक्ति पर डाला।
उसी एक क्षण मैं उसे लगा कि पलंग पर लिहाफ ओढकर लेटे व्यक्ति का चेहरा साधारण नहीं था ।
न जाने किस भावना के वशीभूत होकर उसने एक झटके से लिहाफ को उस व्यक्ति के ऊपर से हटा दिया ।
उसने जो देखा - उसे देखकर उसकी रीढ़ की हड्डी में भय की एक सर्द लहर दौड़ती चली गई ।

- (इसी उपन्यास में से)

दिल्ली निवासी जगदीश कंवल जी ने अपना प्रकाशन 'कंवल पॉकेट बुक्स' आरम्भ किया तो उस के अंतर्गत उन्होंने संजय नागपाल जी का उपन्यास 'कत्ल के बाद कत्ल' प्रकाशित किया। हालांकि संजय नागपाल जी का नाम इस उपन्यास के अतिरिक्त और कहीं-कभी देखने,पढने और सुनने में नहीं आया।
प्रोफेसर सुबोध जिस समय बस अड्डे पर पहुंचा सन्ध्या के पौने पांच बज चुके थे।
अपने दाएं हाथ में काले रंग के ब्रीफकेस को थामे प्रोफेसर सुबोध रिक्शा से नीचे उतर गया।
रिक्शा चालक को पैसे देकर वह उस बस की ओर बढ़ गया जिस पर 'पठानकोट-दिल्ली' लिखा हुआ था ।
एक निहायत खूबसूरत औरत - जिसने कीमती कश्मीरी शाय ओढ़ रखा था- प्रोफेसर सुबोध से पहले बस में प्रविष्ट हुई। उसके पीछे- पीछे प्रोफेसर सुबोध बस में चढ़ गया ।
बस के भीतर प्रवेश करने के पश्चात् प्रोफेसर सुबोध ने इत्मीनान का सांस लिया । सौभाग्य से उसे सीट मिल गई थी ।
जिस सीट पर प्रोफेसर सुबोध बैठा था- वहां दो व्यक्तियों के बैठने का स्थान था। शीघ्र ही काले रंग का गर्म सूट पहने एक व्यक्ति प्रोफेसर सुबोध के समीप आकर खाली सीट पर बैठ गया ।
काले सूट वाला युवक सुन्दर था ।
बस भर चुकी थी। कन्डक्टर ने व्हिसल बजा दी ।

ड्राइवर ने बस को स्टार्ट किया तथा पठानकोट के बस अड्डे से निकलकर दिल्ली के लिए यात्रा आरम्भ कर दी। (उपन्यास के प्रथम पृष्ठ से)
         यह कहानी है प्रोफेसर सुबोध की। जो पाठनकोट एक शादी में आये थे और यहाँ से अपने घर दिल्ली लौट रहे थे। प्रोफेसर सुबोध ने काॅलेज छोड़ दिया और अपनी अमीर मंगेतर रेखा के कारोबार को संभालना आरम्भ कर दिया।
   हालांकि रेखा अमीर है पर शक्ल से बदसूरत है इसी कारण से प्रोफेसर सुबोध अन्य महिलाओं से संपर्क बनाने में दिलचस्पी रखते हैं।
दिल्ली पहुंचने से पहले-पहले सुबोध के लिए राजननामक व्यक्ति के माध्यम से  एक लड़की की व्यवस्था हो चुकी थी। और प्रोफेसर सुबोध चाहते थे कि अपने घर पहुंचने से पहले वह लड़की के पास पहुंच जायें।
प्रातः के कठिनता से पांच बजे होंगे - जब राजन प्रोफेसर सुबोध को लेकर रजनी के कमरे में पहुंचा ।
अभी वातावरण में अन्धकार व्याप्त था ।
अत्यधिक सर्दी की वजह से कोहरा छाया हुआ था पूर्णतया नशे में होने के बावजूद भी प्रोफेसर सुबोध को ठंड लग रही थी।
वह सबसे पहले बाथरूम में जाकर थोड़ा फ्रेश होना चाहता था
- उसके पश्चात समर्पण की युवा देह के साथ अपने शरीर को सटा कर ठंड को समाप्त करना चाहता था ।

और इसी कल्पना में खोया प्रोफेसर सुबोध लड़की के कमरे पर पहुंचा, उसके सामीप्य सुख की कामना करता हुआ तो-
वह लिहाफ ओड़े निश्चल लेटी हुई थी । उसके बिल्कुल करीब पहुंचकर प्रोफेसर सुबोध ने देखा - वह जीवित नहीं थी ।
प्रोफेसर सुबोध के हाथ पांव फूल गये !
यह कल्पना करके उसका समूचा अस्तित्व एक बारगी ही कांप उठा कि वह अब तक एक लाश के साथ लेटा रहा था- एक ही लिहाफ में।
कुछ पल तक वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा कमरे के बीचों-बीच खड़ा समर्पण के मृत शरीर को निहारता रहा।
फिर जब उसे अपनी स्थिति का भान हुआ तो वह कांप उठा । उसे समझते देर न लगी कि उसे फंसाने के लिए षड्यन्त्र रचा गया था।

   प्रोफेसर सुबोध को यह तो कन्फर्म हो गया की उसे किसी ने जाल में बुरी तरफ से फंसा दिया और जब उसके पास ब्लैकमेलर का फोन आया तो वह और भी बुरी तरह से त्रस्त हो उठा ।
अब सुबोध के पास एक ही रास्ता था और वह रास्ता था प्राइवेट डिटेक्टिव मेजर दिनेश । और फिर अपनी समस्या को प्रोफेसर सुबोध मेजर दिनेश के सांझा किया ।
  मेजर दिनेश ने प्रोफेसर सुबोध को आश्वासन दिया कि वह असली अपराधी तक अवश्य पहुँच जायेगा क्योंकि जिस तरफ से उसके साथ हादसा पेश आया है यह एक सोची समझी चाल का हिस्सा है।
मेजर दिनेश अपनी निहायत खूबसूरत सेक्रेटरी निशि और सहयोग सुनील के साथ इस केस पर चर्चा करता है। जहाँ यह केस तीनों को ब्लैकमेलिंग का नजर आता है वहीं प्रोफेसर सुबोध का कहना है कि उसके पास इतना धन ही नहीं की कोई ब्लैकमेल कर के उस से धन ले सके।
तो फिर प्रोफेसर सुबोध को कत्ल के आरोप में कोई क्या फंसाना चाहता था?
मरने वाली युवती रजनी देह व्यापार से संबंधित थी और मेजर दिनेश ने इसी क्षेत्र में रजनी से संबंधित जानकारी एकत्र करने की कोशिश की, वह कुछ हद तक सफल भी रहा और असफल भी क्योंकि जहाँ से मेजर दिनेश को जानकारी मिली उस औरत का भी किसी ने कत्ल कर दिया।
आखिर क्यों...?
आखिर वह कौन था जो नहीं चाहता था कि मेजर दिनेश आगे बढे। कथित ब्लैकमेलर... और एक दिन वह कथित ब्लैकमेलर भी मारा गया।
तो फिर इन हत्याओं के पीछे कौन था?
         मेजर दिनेश के आगे बढने के सारे रास्ते बंद हो गये थे लेकिन प्रोफेसर सुबोध की मुसीबत अब भी कम नहीं हो रही थी क्योंकि इंस्पेक्टर खन्ना उस व्यक्ति की तलाश में था जो उस सुबह मृत रजनी के कमरे से निकल कर भागा था और उसे सड़क पर बहुत से लोगों ने देखा था ।
रजनी मारी गयी, रजनी को मारने वाला मारा गया, ब्लैकमेलर मारा गया, वैश्या औरत का कातिल मारा गया लेकिन फिर भी एक असली अपराधी कहीं खुला घूम रहा था ।।
  अब उस असली अपराधी को सामने लागे का कार्य मेजर दिनेश को ही करना था। वह अपने सहयोगियों के साथ मिलकर कार्य को आगे बढाता है और पुलिस के सहयोग से आखिर वास्तविक अपराधी को पकड़ लेता है।
उपन्यास का कथानक काफी रोचक है, भरपूर थ्रिलर है। जहाँ आरम्भ में एक कत्ल की घटना घटित होती है, वहीं अन्य तथ्य उपन्यास को रहस्यमय बनाते हैं। क्योंकि उपन्यास का कथानक जहाँ से चलता है वह घटनाएं आगे जाकर कुछ और मोड़ ले लेती हैं। जो उपन्यास को नया ट्विस्ट देती हैं।
उपन्यास के पात्र काफी प्रभावित करते हैं।
प्रोफेसर सुबोध और उसकी मंगेतर रेखा के विषय में पाठक को लगातार जिज्ञासा बनी रहती है। जहाँ एक तरफ रेखा कुरूप हैं वहीं सुबोध समार्ट है। दोनों की बेमेल जोड़ी का क्या रहस्य है।
         प्रोफेसर सुबोध जहाँ अन्य औरतों से संपर्क बनाना चाहता है,वहीं उसे यह भी डर रहता है कहीं रेखा उसके विषय में जान न जाये।
सुबोध का डर का एक पार्टी में देखा जा सकता है, जहाँ पुलिस वाला रेखा से रजनी नामक वैश्या के कत्ल और संदिग्ध व्यक्ति की चर्चा करता है।
रेखा का किरदार भी उस समय संदिग्ध हो जाता है जब एक विक्की मोपेड वाला कथा में प्रवेश करता है।
एक समय था जब उपन्यासों में अधिकांश जासूस मेजर, कर्नल, इंस्पेक्टर जैसी उपाधियों के साथ आते थे। यहाँ भी मेजर दिनेश हैं और उसकी निहायत खूबसूरत (लेखक के शब्द हैं) सेक्रेटरी है। जो अपने सहयोगी सुनील को चाहती है, हालांकि अधिकांश लेखक यह प्रेम प्रसंग मुख्य जासूस के साथ ही दर्शाते हैं,यहाँ संजय नागपाल जी ने कुछ अलग किया है।
मेजर दिनेश के विषय में कुछ बातें और जान लेते हैं, जैसे-
वह अपनी जानकारी के सोर्स गुप्त रखता है लेकिन जब कोई उस विषय में पूछता है तो उनका उत्तर काफी मजेदार होता है- मैंने यह घोड़े के मुँह से सुना है।
वहीं अपनी दूरदर्शिता को वह अपनी तीसरी आँख कहते हैं।
- "मेरी तीसरी आंख कहती है, प्रोसफर सुबोध ।" अपने मुह में फंसे सिग्रेट का गहरा कश लेते हुए मेजर दिनेश बोला,
  बात करें उपन्यास के मुख्य खलपात्र की तो...लेखक ने उसके विषय में जो तर्क दिये हैं वह ज्यादा ठोस हैं नही।
उपन्यास का आरम्भ पाठनकोट बस स्टैण्ड से होता है और उस समय का पाठनकोट से दिल्ली का किराया चालीस रुपये दिखाया गया है।
फिर भी कहानी अच्छी है, हल्की-फुल्की है,मन लगा रहता है, पाठक नीरस नहीं होता।
उपन्यास-  कत्ल के बाद कत्ल
लेखक-    संजय नागपाल
प्रकाशक-  कंवल पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ-         186

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