Monday, 29 September 2025

भयानक बौने- कर्नल रंजीत

विश्व पर छाया बौनों का आतंक
भयानक बौने- कर्नल रंजीत

चार और खूंख्वार जीव उस गढ़े में से निकले । उनकी शक्लें बौनों जैसी थीं । उनकी आंखें क्रोध से अंगारा बन गईं । चारों तेज़ी से उछले और दो बलदेव के सीने से और दो उसकी गर्दन से चिपट गए-जोंकों की तरह ! देखते ही देखते उसके सारे कपड़े खून से तर हो गए। वह आकाश की ओर देखने लगा । उसकी आंखें खुली की खुली रह गई थीं । उसपर अचानक विषैले खूंख्वार बौनों ने आक्रमण कर दिया था । एक सनसनीभरा उपन्यास, जिसमें मानवता के शत्रुओं का भयानक षड्यंत्र विफल हो जाता है ।

       कर्नल रंजीत अपने अनोखे कथानक और रहस्यमयी पात्रों के लिए विशेष तौर पर जाने जाते हैं। उनके उपन्यासों के कथानक मर्डर मिस्ट्री होते हुये भी बहुत अलग होते हैं और पात्र भी बहुत अजीब ।
   एक ऐसे ही अलग कथा पर आधारित उनका उपन्यास मिला है- भयानक बौने। प्रस्तुत उपन्यास ऐसे भयानक और जानलेवा चूहों पर आधारित है जो एक तरफ जहां लोगों की जान ले रहे हैं वहीं वह खाद्यान्न भी खत्म कर रहे हैं ।
ऐसे खतरनाक और जानलेवा चूहे कहां से आये ?
   नमस्ते पाठक मित्रो,
कर्नल रंजीत के उपन्यास पढने के क्रम में मुझे एक अनोखा और मनोरंजक उपन्यास मिला । यह कहानी चूहों पर आधारित है। तो पहले हम इस उपन्यास का प्रथम दृश्य / प्रथम दृश्य पढते हैं और इस अध्याय का नाम है- आरम्भ ।
आरंभ
आज से अट्ठाइस वर्ष पहले की बात है, जब हमारा देश स्वतन्त्र नहीं हुआ था। दासता मानव को पतन की किस सीमा तक ले जाती है, इसकी अनुभूति जनसाधारण को बड़े से बड़े त्याग और बलिदान के लिए प्रेरित कर रही थी। लाखों भारतीयों ने सिर-धड़ की बाज़ी लगा रखी थी कि वे अत्याचार करने वाले हाथों को ही नहीं, दासता की फौलादी जंजीरों को भी तोड़ देंगे । स्वतन्त्रता मानव का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसे प्राप्त करने के लिए यदि प्राण भी निछावर करने पड़ें तो भी चेहरे पर वेदना की हल्की-सी रेखा तक न उभरेगी, बल्कि होंठों पर मुस्कान फूल की तरह खिल उठेगी। एक अच्छे आदर्श के लिए प्राणोत्सर्ग करना मानव की सबसे बड़ी प्रसन्नता है ।
आज से अट्ठाइस वर्ष पहले बम्बई सेंट्रल जेल में सुबह पांच बजे कड़कती सर्दी में फांसी के तख्ते पर चढ़ा हुआ एक कड़ियल युवक कनटोप पहनने से इनकार कर रहा था और गले में रस्सी का फंदा डलवाते हुए मुस्करा रहा था। उस समय यह नहीं कहा जा सकता था कि वह किसी अच्छे आदर्श के लिए प्राण निछा-वर करते हुए अपनी रगों में हर्ष और उल्लास की लहरें दौड़ती हुई अनुभव कर रहा था, या किसी अन्य कारण से मुस्करा रहा था। और यह भी नहीं कहा जा सकता था कि जेल के अहाते में खड़े तमाशा देखने वाले अधिकारी और जेल के कर्मचारी उस कड़ियल नौजवान की वीरता और धैर्य से प्रभावित हो रहे थे, या मन ही मन उसे पत्थर जैसे कठोर मन का युवक समझ रहे थे
। (भयानक बौने- प्रथम पृष्ठ)
    हम उपन्यास के प्रथम दृश्य के पश्चात उस घटनाक्रम की ओर बढते हैं जो इस कहानी का मूल है।
 एक पात्र है बलदेव सहाय और बलदेव सहाय डॉक्टर राजवैद्य राजनारायण वाचस्पति के घर पहुंचता है । राजवैद्य राजनारायण वाचस्पति वैज्ञानिकों के प्रयोग के लिए उन्हें जानवर सप्लाई करने का कार्य करते हैं । 
नौकरानी ने बलदेव सहाय को बताया की राजवैद्य घर पर नहीं हैं ।
उसने कहा, "राजवैद्य एक-दो घंटे बाद आएंगे । अगर आप उस समय तक प्रतीक्षा करना चाहें तो बरामदे में सोफे पर तशरीफ रखिए।"
बलदेव सहाय इतनी देर तक राजवैद्य की प्रतीक्षा नहीं करना
चाहता था; लेकिन फिर भी वह बरामदे में सोफे पर जा बैठा । वह दस-पंद्रह मिनट सुस्ताकर उस बगीचे के वातावरण से परिचित होना चाहता था। उसने सिगरेट सुलगाया और उस सुन्दर स्त्री और अधेड़ आयु के पुरुष की ओर देखने लगा। उस समय वह स्त्री बड़े-बड़े सफेद चूहों का पिंजरा खोल रही थी ।

      चूहों का पिंजरा जैसे ही खुला एक विचित्र बात हुई । पिंजरे के खुलते ही एक चूहा जोर से उछला । अधेड़ आयु का पुरुष बड़ी तेजी से पीछे हट गया, लेकिन चूहा उसकी छाती पर पंजे रख-कर अपना मुंह उसके हलक से जोड़ चुका था। एक कराह उस आदमी के होंठों से निकली। उसने हाथ का जोर लगाकर उस चूहे को हलक से अलग कर दिया और उसे दूर फेंक दिया। उस आदमी के हलक से खून की धार बह निकली थी। वह अभी संभलने न पाया था कि दो और चूहों ने पहले चूहे की तरह उसपर आक्रमण कर दिया। यह आक्रमण इतनी तेजी से हुआ था कि वह आदमी गिरते-गिरते बचा ।
     सुन्दर स्त्री हतबुद्धि-सी खड़ी थी। उसकी समझ में न आ रहा था कि इन चूहों को क्या हो गया है। वे भूखे न्योलों की तरह उस आदमी पर टूट पड़े थे। बलदेवसहाय भी इस दृश्य को देखकर जैसे अपनी चेतना खो बैठा था। वह निश्चय नहीं कर पाया था कि उस आदमी की किस तरह सहायता करे कि दोनों चूहों को अपनी गर्दन से अलग करते हुए उस अधेड़ आदमी ने चीखना शुरू कर दिया, "टैक्सी मंगवाओ- या कोई कार लाओ-मुझे डाक्टर कार्वे के पास ले चलो !"

 
          उसकी यह पुकार सुनकर बलदेवसहाय ने देखा, उस आदमी की आवाज़ बहुत ही कमजोर होती जा रही थी। वह कह रहा था, "क्या कोई विश्वास कर सकता है कि चूहे भी आदमी पर ऐसा भयानक आक्रमण कर सकते हैं ? ओह मेरे भगवान, यह मेरी गलती थी कि मैंने इन चूहों जैसे खूंख्वार जीवों को साधारण जीव समझा, ये तो बौने थे खूंख्वार बौने !"   
यहां से उपन्यास में प्रवेश होता है डाक्टर कार्वे का। जिस व्यक्ति पर हमला हुआ वह डाक्टर कार्वे का व्यक्ति था। और जब यह खबर डाक्टर कार्वे तक पहुंची तो वह चकित रह गये ।
डाक्टर कार्वे के माथे पर पसीने की बूंदें छलक आईं। उसके असिस्टेंट कैलाशचन्द्र ने मरने से पहले जिस रहस्य का उद्घाटन किया था वह इस बात का प्रमाण था कि संसार पर एक बहुत भयंकर विपत्ति आने वाली है। इस विपत्ति को रोकने में पुलिस उसकी अधिक सहायता नहीं कर सकती थी। कोई कुशल जासूस ही उसका हाथ बंटा सकता था ।
इस विचार के आते ही मेजर बलवन्त का चेहरा उसकी आँखों के सामने आया ।
 "मेजर साहब, मैं डाक्टर कार्वे बोल रहा हूं।"
डाक्टर कार्वे का नाम सुनकर मेजर हंस पड़ा। वह डाक्टर कार्वे के नाम और उसकी प्रसिद्धि से भलीभांति परिचित था। उसने पूछा, "डाक्टर साहब, आजकल दुनिया को कौन-सा भारी खतरा है?"
"मेजर साहब, आपने मेरे मुंह की बात छीन ली। आज हमारी दुनिया के सामने एक बहुत ही भयंकर खतरा मुंह बाये खड़ा है। और इस बार बिना आपकी सहयता के मैं दुनिया को इस भयानक खतरे से नहीं बचा सकता। आपके परिश्रम का आपको भारी पारिश्रमिक दिया जाएगा ।"
"क्या मुझे अन्तर्राष्ट्रीय हत्यारों के गिरोह का पता लगाना होगा ?" मेजर ने पूछा ।
"अन्तर्राष्ट्रीय हत्यारों का नहीं, बल्कि समूची मानव-जाति के हत्यारों का पता लगाना होगा। मेरा असिस्टेंट कैलाशचन्द्र इस खतरे का शिकार हो चुका है।"
यह कहकर डाक्टर कार्वे ने मेजर बलवन्त को बताया कि कैलाशचन्द्र की मृत्यु किस प्रकार हुई ।
मेजर बलवन्त ने डाक्टर कार्वे की बात सुनकर जोरदार कहकहा लगाया और फिर कहा, "चूहे न हुए, शेर हो गए ! आप वैज्ञानिक और दार्शनिक हैं। आप विचित्र-विचित्र विचारों और संदेहों की दुनिया में रहते हैं। अगर आप मुझे मेरे हाल पर छोड़ दें तो बड़ी कृपा होगी।"
"आप मेरी बात को मजाक में टाल रहे हैं मेजर साहब ! मैं आपको कैसे विश्वास दिलाऊं कि संसार के सामने एक बहुत बड़ा खतरा फिर पैदा हो गया है। ठहरिए आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर दीजिए। क्या आप नियमित रूप से अखबार पढ़ते हैं ?"
"जो हां।"
"फिर तो आपने यह जरूर पढ़ा होगा कि दुनिया में एक ऐसी नस्ल भी रहती थी जिसके लोगों को कभी बौने, कभी बालिश्तिए, कभी बिल्लियां, कभी खरगोश और कभी चूहे कहा जाता था। वह नस्ल फिर पैदा हो गई है।"
"हां, मैंने पढ़ा है।" मेजर बलवन्त ने कहा ।
"लेकिन आपने यह नहीं पढ़ा होगा कि संसार के कुछ भागों में छोटे चूहे, मकड़ियां, कीड़े-मकोड़े और छोटे जानवर बिलकुल नष्ट हो गए हैं। वास्तव में इन भागों में इन सबको मार डाला गया है। और इसी खूंखार बौनी नस्ल ने इनको मारा है।"
"इस खूंखार बौनी नस्ल ने ?" मेजर ने आश्चर्य से पूछा ।

  डाक्टर कार्वे मेजर बलवंत को इन चूहों की बस्ती खोजने और दो जिंदा चूहे पकड़कर लाने का कार्य सौंपते हैं। और मेजर बलवंत अपनी टीम के साथ इस कार्य पर लग जाते हैं।
   यहां यह उपन्यास विचित्र और खतरनाक चूहों से संबंधित था। लेकि‌न जैसे ही मेजर बलवंत अपनी कार्यवाही आगे बढाते हैं उपन्यास मर्डर ‌मिस्ट्री भी बन जाता है। एक तरफ खतरनाक बौने चूहे और दूसरी तरफ हत्या पर हत्या का होना अत्यंत चिंता का विषय है।
   डाक्टर कार्वे के अनुसार यह बौनों का खतरा संपूर्ण विश्व के लिए है और मानव जाति को बचाने के लिए इस से निपटना अत्यंत आवश्यक है। 
मेजर बलवंत और उसकी टीम किस प्रकार इन बौनों के रहस्य को खोलती है और किस प्रकार विश्व को बचाती है यह पठनीय है।
    मेजर बलवंत सीरीज का यह उपन्यास अपने आरम्भ से एक अलग और रोचक विषय के साथ आरम्भ होता है लेकिन अंत तक आते-आते यह मर्डर मिस्ट्री भी बन जाता है। इसका यह अर्थ कदापि न ले की इसमें बौनों का रहस्य खत्म हो जाता है, बौनों की कहानी साथ में ही समाहित है। अगर लेखक महोदय प्रयास करते तो इस उपन्यास को पूर्णतः एक अलग विषय पर निर्मित कर सकते थे और यह उपन्यास और भी ज्यादा रोचक बनता।
   अनिल मोहन जी का उपन्यास  'किंबो' एक ऐसे ही अलग किस्म के जीव पर आधारित उपन्यास है। अगर आपने ऐसे कोई और उपन्यास पढें है तो कमेंट कर अवश्य बतायें ।।
   कर्नल रंजीत के उपन्यासों में लगातार एक विशेषता देखने को मिल रगी है और वह विशेषता है इनके पात्रों द्वारा किसी अन्य पात्र का वर्णन करना । एक झलक देखे गये पात्र का भी जीवंत वर्णन यहाँ मिलता है ।
मेजर ने मालती से पूछा, "मालती, तुमने जो चेहरा देखा था उसके नाक-नक्श और बनावट के बारे में कुछ बता सकती हो ?"
मालती ने कुछ याद करते हुए कहा, "उसके सिर पर सफेद बाल थे, भौंहें गुच्छेदार थीं। बालों की दशा कुछ विचित्त-सी थी । सिर के दायीं और बायीं ओर बाल थे और बीच में सिर सफाचट था ।"

 कर्नल रंजीत के उपन्यासों में 'विचित्र' शब्द/ शब्दों का विशेष महत्व होता है। यहा कार्य और हत्या भी विचित्र हो सकती है।
अब आप स्वयं मेजर बलवंत से ही सुन लीजिए-
विचित्र सुझाव तो मैं अब देने वाला हूं। इंस्पेक्टर साहब, आज आपको शहर में गली-गली घूमकर कम से कम पांच सौ मोटी-ताजी बिल्लियां और बिल्ले इकट्ठे करके शाम तक गुप्त रूप से मेरे बंगले में पहुंचा देने होंगे ।"
   
हमने विचित्र बातों की जब चर्चा की है तो कर्नल रंजीत साहब विचित्र तरीके से हत्या करवाने में भी सिद्धहस्त थे। इनके द्वारा प्रस्तुत हत्याओं के तरीके भी विचित्र होते थे।
"... यह लाल धब्बा वास्तव में कार्बोलिक साबुन का बुलबुला है । एक पिचकारी द्वारा साबुन के बुलबुले बनाए गए । उन बुलबुलों में जहरीली गैस भरी गई और रोशनदान के द्वारा चौधरी के मुंह पर फेंकी गई। हत्यारे का एक वार खाली गया इसलिए चौधरी के मुंह से आठ इंच दूर यह लाल धब्बा बन गया । दूसरा लाल धब्बा चौधरी के मुंह पर गिरा और उसकी मृत्यु हो गई ।"
'ओह, हत्या करने के लिए लोग कैसे-कैसे उपाय काम में लाते हैं !" इंस्पेक्टर सूरी के मुंह से निकला ।

मेजर बलवंत अपने सहयोगियों को अक्सर शे'र सुनाया करता है। प्रस्तुत उपन्यास में भी तीन शे'र हैं।
शे'र का आप भी आनंद लीजिए-
- आपकी फुरकत में मैं कल रात भर सोया नहीं, 
लेकिन इतनी बात थी गाता रहा, रोया नहीं।"

 

- हुजूमे-आशिकां देखा जो दरवाज़े पै वो बोले, 
हमें ये टीम तो आल इंडिया मालूम होती है ।"

 

-वेटलिफ्टर कोई मुझसा न हुआ जो पैदा, 
कौन उठाएगा तेरे नाज बता मेरे बाद ।"

       सफल जासूस का सच्चाई की तह तक पहुंचने का तरीका बहुत पेचीदा होता है । लोग उसके सहज अर्थ तक ही खोकर रह जाते हैं पर उसकी पैठ बहुत गहरी होती है। मेजुर बलवन्त अपनी इस पैनी दृष्टि से, मानवता के शत्रु वैज्ञानिकों के षड्यन्त्र का भंडाफोड़ करके, मानव-जाति के प्राणलेवा विषैले खूंख्वार बौनों का अंत कर देता है। इस तरह वह दुनिया को घोर संकट से बचाता है। जासूसी साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक कर्नल रंजीत का नया सनसनी-भरा उपन्यास
  कर्नल रंजीत का मेजर बलवंत शृंखला का प्रस्तुत उपन्यास 'भयानक बौने' धरती पर सक्रिय खतरनाक चूहों की कहानी है जो मनुष्य के लिए जानलेवा और खाद्यान्न के लिए खतरा हैं।
   उपन्यास एक अलग विषय पर आधारित होते हुये भी अंत में मर्डर मिस्ट्री बन जाती है।  
उपन्यास अपनी कुछ कमियों के पश्चात भी रोचक और पठनीय है। 

उपन्यास- भयानक बौने
लेखक-    कर्नल रंजीत
संस्करण-  1971
प्रकाशक- हिंद पॉकेट बुक्स, दिल्ली

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