Friday, 10 October 2025

शूटर- अनिल सलूजा

एक मंत्री की हत्या का मामला
शूटर- अनिल सलूजा
- बलराज गोगिया- राघव सीरीज - 05

   आज हम चर्चा कर रहे हैं अनिल सलूजा जी और बलराज गोगिया सीरीज के पांचवें उपन्यास शूटर की। यह एक एक्शन-थ्रिलर उपन्यास है। बलराज गोगिया एक महिला की सहायता के लिए मंत्री की हत्या करने मैदान में उतरता है और एक गहरी साजिश में फंस जाता है।
     आपने पिछले दो भागों में विभक्त उपन्यास 'बारूद की आंधी' और 'खूंखार' में पढा होगा की बलराज गोगिया और राघव का पासपोर्ट और वीजा तैयार है और दोनों शांति का जीवन जीने के लिए देश छोड़ने के लिए एयरपोर्ट पहुंचते हैं लेकिन वहां की विक्टर बनर्जी के धोखे के चलते पुलिस पहुँच जाती है और दोनों जान बचाकर दिल्ली छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।
एक लम्बे समय पश्चात दोनों आगरा से दिल्ली पहुंचते हैं और वह भी सीधे विक्टर बनर्जी के दरवाजे पर दस्तक देते हैं।

"खट... खट... खट।"
दरवाजे पर दस्तक पड़ी।
विक्टर बनर्जी फोल्डिंग पलंग से नीचे उतरा... चप्पल पहनी और चश्मा उतारकर उसे अपनी मैली शर्ट के पल्लू से साफ करते हुए दरवाजे की तरफ बढ़ा।
"कौन...?"
दरवाजे के पास पहुंचकर उसने आवाज लगाई और बिना कोई उत्तर सुने साँकल हटाकर दरवाजा खोल दिया।
उस वक्त हालांकि अंधेरा फैलने लगा था... फिर भी विक्टर बनर्जी, सामने खड़े शख्स को पहचान गया था... तभी तो उसके चेहरे की रंगत उड़ गई थी।
"त...तुम...?" उसके मुंह से अस्फुट स्वर निकला।
आंगुतक जो कि बलराज गोगिया था होठों पर जहर भरी मुस्कान नाच उठी।
"बड़ी जल्दी पहचान लिया...।" वह बोला- "वह भी बिना चश्मे के... वो भी उस वक्त जब अंधेरा छा रहा हो... लगता है यह चश्मा तुम सिर्फ लोगों को धोखा देने के लिए पहनते हो।"
"विक्टर बनर्जी ने झटके से चश्मा आंखों पर चढ़ा लिया।"
"त...तुम... यहां...?"
"हां... मैं... यहां..."
"ल... लेकिन तुम...।"
'हैरानी हो रही है हमें यहां अपने सामने देखकर । चल... अन्दर चलकर बात करते हैं... कुछ सुनेंगे... कुछ सुनायेंगे ।"
(उपन्यास 'शूटर' का प्रथम पृष्ठ)

        और आज-पूरे बारह दिन बाद बलराज गोगिया पुनः दिल्ली में गांधी नगर स्थित विक्टर बनर्जी के घर में उसके सामने खड़ा था । (पृष्ठ- 09)
     विक्टर बनर्जी की हत्या के पश्चात दोनों की मुलाकात मालती नामक एक महिला से होती है जो धमकी, ब्लैकमेल, दुख, इमोशन ब्लैकमेल इत्यादि प्रपंच रच कर और अपनी दुखभरी कहानी द्वारा बलराज गोगिया को मत्री किशोर साहू की हत्या के लिए सहमत कर लेती है।
     "एक मंत्री का कत्ल करना हैं... जाहिर है कि बहुत मुश्किल काम होगा... उसके चारों तरफ सिक्योरिटी का पूरा बंदोबस्त होगा यहां तक कि उसकी गाड़ी भी बुलेट प्रूफ होगी... और सबसे बड़ी बात तो यह है कि ऐसे आदमी के करीब पहुंचना भी बहुत मुश्किल होता है।"
  मालती अनुसार किशोर साहू और उसके पति मित्र थे। कमल ने किशोर की चुनाव में मदद की, तीन में से दो फैक्ट्रिया गिरवी रखी लेकिन चुनाव जीतने के पश्चात किशोर साहू ने उनकी न कोई मदद की, फैक्ट्रियों पर कर्जा और चढ गया और एक दिन किशोर साहू के गुर्गा ने मालती के साथ कुकर्म कर उसकी तस्वीरें ली ।
   कर्जे, खत्म होती फैक्ट्रियां और मालती के साथ घटित घटना ने कमल को विकलांग कर दिया, वह शारीरिक रूप से असक्षम हो गया।
तब मालती ने कसम खायी की वह किशोर साहू को बरबाद कर के ही दम लेगी।
और अंत में मालती, बलराज गोगिया और राघव की मीटिंग चालीस लाख पर खत्म गुयी।
"चालीस लाख... "
"ठीक है...।" तुरन्त बोली मालती- "मैं तुम्हें चालीस लाख
दूंगी...।"
         अब चौंकने की बारी राघव की थी... मालती इतनी जल्दी हां कर देगी... उसे उम्मीद नहीं थी। वर्ना वह सोचे बैठा था कि वह तीस लाख तक हां कर देगा।
"हैरान हो रहे हो...।" मालती उसकी तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान मुस्कुराई - "अगर तुम एक करोड़ मांगते... अगर तुम एक करोड़ के साथ मुझे भी मांग लेते तो भी मैं अपने पति की खातिर हां कर देती।"

     मेरे विचार से यह पहला केस है जहां बलराज गोगिया किसी मजबूरी में नहीं बल्कि की और की दयनीय स्थिति और रुपये के लिए काम करता है। किशोर साहू मंत्री है उस तक पहुंचना आसान नहीं है। तो बलराज गोगिया और राघव पहला टारगेट चुनते हैं मंत्री जी की प्रेयसी कोमल को।       
किशोर साहू ।
सत्तारूढ़ पार्टी में मंत्री के पद पर आसीन...
साठ की उम्र के करीब पहुंचा किशोर साहू मोटे भारी जिस्म का मालिक था... उसकी गालों का मांस काफी ज्यादा लटका हुआ था... लेकिन आंखों में अभी वैसी ही चमक थी जैसी किसी जवान की आंखों में होती है। इस वक्त वह सफेद रंग का नाईट सूट पहने -आराम कुर्सी पर बैठा आगे-पीछे झूल रहा था। उसके चेहरे पर इस वक्त गहरी सोचों के भाव थे।
(पृष्ठ-56)
   सोचों के भाव हो भी क्यों ना ? आखिर उसकी जिंदगी का प्रश्न था ।‌ कोमल और स्वयं के गुर्गों से मिली जानकारी यह दर्शाती थी की उसकी जिंदगी में बलराज गोगिया का प्रवेश हो चुका है।  वैसे भी कुछ दिन पूर्व बलराज गोगिया ने दिल्ली के डाॅन सतपाल डोंगिया और कैलाशनाथ ढींगडा का जो सफाया किया था उसके चर्चे आज भी हैं। (उपन्यास बारूद की आंधी, खूंखार)
     वहीं इंस्पेक्टर शिंदे विक्टर बनर्जी की लाश देखकर समझ गया था कि दिल्ली में एकबार फिर बलराज गोगिया पहुँच गया है। और बलराज गोगिया अब पुलिस और किशोर साहू के निशाने पर है।
   वहीं बलराज गोगिया और राघव दोनों पहुंच गये कलवा के पास ।
कलवा करीब पैंतालीस साल का गैंडे जैसे जिस्म का मालिक था, चेहरे से ही वह बेहद खतरनाक नजर आने वाला शख्स था ।(पृष्ठ-78,79)
    कलवा किशोर साहू का खास था, उसके लिए बूथ कैप्चर, हत्या आदि कार्य करता था। बलराज का अनुमान था की कलवा के माध्यम से किशोर साहू तक पहुंचने का रास्ता आसान हो सकता है। लेकिन वहीं कलवा कोई हलवा तो था नहीं की कोई आये और खा जाये।
"कलवा नाम है मेरा ।"- पीछे से कलवा की आवाज आई "तेरे जैसे कई बलराज गोगिया मैं अपनी लुंगी की गांठ में बांध कर रखे हुए हूं ।"
     और जब कलवा राघव से फाइट में हार गया तो बलराज गोगिया को भी प्रतिउत्तर देने का वक्त मिला-
''कलवा-" मुस्कुराया बलराज गोगिया- "जरा अपनी लुंगी की गांठ तो खोलना बेटा जिसमें तुने कई बलराज गोगिया बांध रखे हैं।"(81)
        बलराज गोगिया और राघव विभिन्न वेश बनाकर किशोर साहू तक पहुंचने की कोशिश में रहते हैं । कभी उसके P.A. अरविन्द गोखले के माध्यम से तो कभी किशोर साहू की कार पर विस्फोट हमला कर, पर उन्हें हर बार नाकामी ही हाथ लगती है।
    और जब बलराज गोगिया किशोर साहू तक पहुंचता है तो मात्र एक खबर और बलराज गोगिया का अनुमान ही उसे सफलता प्रदान करता है।
      और यह कहानी यहीं से एक ऐसा मोड़ लेती है की बलराज गोगिया और पाठक दोनों हैरान रह जाते हैं। यही कहानी का एक मात्र और महत्वपूर्ण ट्विस्ट भी है। किस्मत और कहानी कब और कैसे पलट जाती है यह इस उपन्यास के समापन/ क्लाइमैक्स में पता चलता है।
हमने उपन्यास के आरम्भ में बात की थी की बलराज गोगिया उपन्यास 'बारूद की आंधी' और 'खूंखार' के पश्चात दिल्ली छोड़ देता है। ऊपर एक कथन के अनुसार वह बारह दिनों पश्चात पुन: दिल्ली लौटता है।
यहां वह आगरा और सलमा का ज़िक्र करता है।
"मैं तुमसे पूछ रहा हूं... आगरा में भी नाकामी ही हाथ लगी... अगर ऐन वक्त पर सलमा को गोली न लगती तो हम अब तक हिन्दुस्तान की सरहदों को पार कर चुके होते। मजबूर हो कर हमें दिल्ली वापिस लौटना पड़ा...।" (पृष्ठ- 13)

   जबकी वहीं लेखकीय के अनुसार 'खूंखार' के पश्चात 'शूटर' उपन्यास ही आया है। तो फिर आगरा और सलमा वाला किस्सा क्या है? कहीं स्पष्ट नहीं हो रहा ।
वहीं लेखकीय में वर्णित है- उपन्यास 'खूंखार' के पश्चात् 'शूटर' आपके हाथॊं में है ।
           उपन्यास सूची में भी इस उपन्यास का क्रम 'फंदा,  मर्द का बच्चा, बारूद की आंधी, खूंखार' के पश्चात् आता है और क्रमानुसार यह अनिल सलूजा जी का पांचवां उपन्यास है। वहीं शूटर पढते वक्त यह बलराज गोगिया का आगरा केस का जिक्र आता है, वहां सलमा की हत्या का जिक्र आता है, वहां बलराज गोगिया को शूटर नाम मिला इसका जिक्र आता है।
    तो आगरा केस वाला उपन्यास कौनसा है ? यह कहीं कोई स्पष्ट नहीं है।  इसी बात को फिर कहीं आगे हल करेंगे । एक बार पुन: हम शूटर पर लौटते हैं और आनंद लेते हैं 'शूटर' के संवादों का -
संवाद-
"जिन्दगी बहुत प्यारी होती है बलराज... अपनी जिन्दगी के लिए इंसान सारी दुनिया को आग लगाने को तैयार हो जाता जाता है...। (पृष्ठ- 17)
- इंतकाम में डूबी हुई औरत किसी भी हद तक जा सकती है । पृष्ठ-141)

  अब कुछ चर्चा उपन्यास के महत्वपूर्ण पात्रों की हो जाये। उपन्यास के मुख्य पात्र बलराज गोगिया और राघव हैं।
यहां पहली बार जिक्र आया है की बलराज गोगिया के अथ पर ओम खुदा हुआ है और इस से वह पहचाना भी जाता है।
आओ, बलराज गोगिया के विषय में बहुत कुछ जानें-

सहसा ही बलराज गोगिया गम्भीर हो गया-"अभी तक मैंने जितने भी. कत्ल किये... जितनी भी डकैतियां डालींचे सभी काम मैंने अपने दिल की आवाज पर नहीं किये. घरन वे सभी मेरी मजजूरियां थीं. जिन छः कत्लों के जुर्म में मुझे फांसी की सजा हुई थी... वे खून मेरा इंतकाम थे...उन हरामजादों ने मेरी आंखों के सामने मेरी बहन की इज्जत लूट कर उत्ते मार डाला था... फांसी के फंदे से निकला तो अवतार सिंह ने मुझे हिन्दुस्तान से बाहर भेजने का लालच देकर मेरे अंगेस्ट ऐसा जाल बिछाया कि मैं उस मूर्ति को अपने बाप की मिल्किीयत समझकर उसे चुराने का मन बना बैठा... गंगा नगर में भी मैं भारत की सरहदों को पार करने के इरादे से ही गया था... वहां भी मैं मजबूरी में फंस गया और मुझे राघव के लिए राठौर से सौदा करना पड़ा... जिसके तहत् मुझे पच्चीस करोड़ से लदी वैन लूटनी पड़ी... फिर वहां से मुझे कैलाश नाथ ढींगड़ा के आदमी दिल्ली ले आये... यहां से मैं शायद भाग भी जाता... लेकिन ऐन वक्त पर विक्टर बनर्जी ने अपनी औकात दिखा दी और मुझे आगरा भागना पड़ा... वहां भी मेरे साथ कुछ ऐसा -ही घटा। लोगों ने मुझे शूटर... दिमागदार डकैत... खतरनाक दरिन्दा... पता नहीं क्या-क्या उपाधियां दे दी हैं... लेकिन मेरा रब्ब जानता है कि मैं अमन-चैन की जिन्दगी बसर करना चाहता हूं... तुम्हारी पत्नी मालती की भी ऑफर मैंने सिर्फ इसलिए कबूल की कि मैं पैसे से कंगाल हूं... जबकि भागने के लिए पैसा सबसे पहले जरूरत है...।"(पृष्ठ- 69

यहां हम राघव के विषय में थोड़ा पढ लेते हैं-
"बेशक तेरा कद... तेरा रंग रूप... तेरी काया दस बारह साल के बच्चे से ज्यादा नहीं है... लेकिन जब तेरा जिन्न अपना कमाल दिखाता है तो नीचे पड़ी औरत को समझते देर नहीं लगेगी कि तू वास्तव में तीस से ऊपर का है... बशर्ते कि औरत तजुर्बेकार हो...।"(पृष्ठ-44)
   राघव का कद लगभग दो फिट का है और उम्र लगभग तीस वर्ष है। राघव एक खतरनाक अपराधी है बलराज गोगिया का परम मित्र है। राघव के एक्शन इतने खतरनाक है वह भारी भरकम दुश्मन को मार कर ही दम लेता है।
- अजीब पकड़ थी राघव की-एक बार किसी की गर्दन उसकी बांहों में आई नहीं कि वह लाख कोशिश कर ले-खुद को आजाद न करा पाये। तब तो बस मौत ही उसे राघव की पकड़ से निजात दिला सकती थी ।(94)
उपन्यास में बलराज गोगिया अपने अनुमान पर चलता है वह अनुमान सत्य साबित होता है।। यह उपन्यास के अनुसार उचित नहीं है। अगर बलराज गोगिया के परिश्रम, दिमाग द्वारा समस्या हल होती या तथ्यों का पता चलता तो ज्यादा अच्‍छा रहता ।
एक पंक्ति देखें-
बलराज गोगिया का अंदाजा गलत नहीं होता मालती

उपन्यास के पात्र-
बलराज गोगिया- एक अपराधी
राघव- बलराज गोगिया का मित्र
मालती- एक बेबस महिला
कमल कपूर- मालती का पति
विक्टर बनर्जी- मेक अप मैन, फर्जी पासपोर्ट बनाने वाला
इंस्पेक्टर शिन्दे- इंस्पेक्टर
किशोर साहू- एक मंत्री
सुप्रिया- किशोर साहू की पत्नी
अरविन्द गोखले- किशोर साहू का P.A. और मित्र
कोमल- किशोर साहू की प्रेयसी
राजनारायण दत्त- वकील
कलवा- एक मवाली
गौतम पुरी- सब इंस्पेक्टर
बशीर खाँ- एक पात्र
फातिमा-बशीर खाँन की पत्नी
नागेश- सिक्योरिटी चीफ
  प्रस्तुत उपन्यास 'शूटर' बलराज गोगिया और राघव सीरीज का एक्शन उपन्यास है। यह उपन्यास एक साजिश है। एक ऐसी साजिश जिसे स्वयं बलराज गोगिया भी नहीं समझ पाता और जब समझ पाता है तब तक बहुत कुछ घटित हो चुका होता है।
  दूसरा एक अनिल सलूजा जी के तय पैटर्न का उपन्यास है। एक ताकतवर आदमी से टक्कर (इस बार यहां कोई डाॅन नहीं है) और उसके आदमियों को मारते हुये अंत में असली व्यक्ति क पहुंचना और उसे मारना।
एक्शन- रोमांच और रोमांस वाला यह उपन्यास अपनी क्षेणी के उपन्यासों जैसा उपन्यास है जिसके अंत में, जी हां, बिलकुल अंत में एक ट्विस्ट कहानी को बदल देता है।
  कहानी एक बार पढी जा सकती है।
उपन्यास- शूटर
लेखक-    बलराज गोगिया
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बलराज गोगिया सीरीज के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

फंदा ।। बारूद की आंधी ।। खूंखार ।।

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