Thursday 1 December 2022

546. फंदा- अनिल सलूजा

बलराज गोगिया शृंखला का प्रथम उपन्यास
फंदा- अनिल सलूजा

"अभी नहीं बल्लू.... कुछ देर और, तब जाओ।”
मुस्करा पड़ा बलराज गोगिया- “लगता है अभी दिल नहीं भरा तेरा।"
“इतने अर्से बाद मिले हो, एक....एक दिन का हिसाब लूंगी।" बड़ी शोख अदा से बोली रजनी।
उसकी शोख अदा ने ही बलराज गोगिया के दिल में खलबली मचा दी, खुद उसका दिल एक बार फिर वही खेल खेलने को मचलने लगा ।
“ठीक है....।” -मुस्कराया बलराज गोगिया और रजनी के उभारों पर अपने हाथ फेरने लगा-“हम यह खेल दोबारा खेलेंगे, मगर, तुझे मेरे यहां आने का पता कैसे चला....?” और फिर
“रूक जा रजनी.... ।”-  दहाड़ उठा बलराज गोगिया ! लेकिन, रजनी ने रूकने का कोई उपक्रम नहीं किया-पूरी रफ्तार से वह गन्ने के खेत की तरफ भाग रही थी, जिसमें से कि पुलिस वाले बाहर निकल रहे थे-पहले तो बलराज का दिल किमा, शूट कर दे उस नागिन को, लेकिन फिर कुछ सोच कर उसने जीप के एक्सीलेटर पर पैर का दबाव बढ़ा दिया।
तोप से निकले गोले की तरह छूटी जीप । पीछे से पुलिस ने फायरिंग कर दी !
                      फन्दा - अनिल सलूजा
खून के सैलाब में लिपटी बलराज गोगिया की ऐसी गाथा जिसमें प्रतिशोध में डूबा गोगिया एक बार फांसी के फंदे से भी नीचे उतर आया। ग्रिल, एक्शन, सस्पेंस और एडवेंचर युक्त यह कहानी एक जलजला है, तूफान है।     लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में अनिल सलूजा जी का एक विशिष्ट स्थान है। उनके द्वारा रचित पात्र बलराज गोगिया, रीमा राठौर, भेड़िया और अजय जोगी पाठकों के बेहद पसंद हैं। अनिल सलूजा जी के नाम से प्रकाशित होने वाला प्रथम उपन्यास फंदा है, जो बलराज गोगिया शृंखला का है।
    छः लोगों के कत्ल में फांसी सजा पाये हुए बलराज गोगिया के जीवन का आज अंतिम दिन था। लेकिन किस्मत का धनी बलराज गोगिया सरकारी फंदे बचा लिया गया। लेकिन सरकारी फंदे से बचा वह लुधियाना के खतरनाक गैंगस्टरों में ऐसा उलझा की उसे पता ही न चला सत्य और असत्य क्या है। वहीं गैंगस्टरों द्वारा तैयार फांसी का फंदा उसके गले को आ लगा।
      
  लुधियाना का एक गैंगस्टर है इकबाल सिंह जो बलराज गोगिया से सौदा करता है गैंगस्टर अवतार सिंह को मारने का और दुष्यंत चौधरी से साठ करोड़ के हीरे प्राप्त करने का।   
            लुधियाना एक और प्रसिद्ध गैंगस्टर है अवतार सिंह।
       अवतार सिंह एक लम्बे कद का मजबूत कद काठी का करीब पैंतालीस वर्ष का आदमी था। इतना कुछ हो जाने के बावजूद भी वह चेहरे मोहरे से वला का फुर्तीला नजर आ रहा था। अपनी दहशत भरी आंखों से वह बड़े-बड़े मजबूत दिल वालों के कलेजे दहला देने की कुव्वत रखता था। गोरे चेहरे पर सिर्फ आंखें ही ऐसी थी अवतार सिंह की जो कि उसके चेहरे से कतई मेल नहीं खाती थीं। अगर अवतार सिंह अपनी आंखें बंद कर लें तो उसके सामने आने वाला शख्स, जो कि उससे अंजान हो उसे न जानता हो, वह यही समझेगा कि अवतार सिंह एक शरीफ किस्म का इंसान है। (पृष्ठ-)
           वहीं अवतार सिंह बलराज गोगिया को उसके पिता देसराज गोगिया की हत्या का कारण बताता है तो बलराज गोगिया आश्चर्यचकित रह जाता है। वहीं एक पांच सौ वर्ष पुरानी कृष्ण मूर्ति है जिसे बलराज गोगिया को चुराना है। उस मूर्ति का महत्व सब के‌ लिए अलग- अलग है। जहाँ बलराज गोगिया के लिए वह एक 'वसीयत' का अंग है तो अवतार सिंह के लिए उसका महत्व 'दो अरब' मूल्य के रूप में है।
   इन दो गैंगस्टरों के अतिरिक्त तीसरा अपराधी है दुष्यंत चौधरी। वह उन सात व्यक्तियों में एक है जिन्होंने बलराज गोगिया के पिता की हत्या की थी। दुष्यंत चौधरी शूटर राघव को बलराज गोगिया की सुपारी देता है। जब यह सूचना अवतार सिंह तक पहुंचती है तो उसे लगता है उसका सब बना बनाया खेल खत्म हो जायेगा। वह बलराज गोगिया को बचाने का प्रयास करता है।
      बलराज गोगिया के सामने लक्ष्य है चण्डीगढ़ म्यूजियम की अभेद्य सुरक्षा में रखी मूर्ति को चुराना और अपने पिता- बहन के हत्यारे को मारना। लेकिन वह नहीं जानता था की वह एक चक्र में उलझ गया है। जहाँ इंस्पेक्टर लखनपाल और गैंगस्टर उसकी जान के दुश्मन बन बैठे हैं।
  घात- प्रतिघात पर आधारित बलराज गोगिया का प्रथम उपन्यास एक तेज रफ्तार थ्रिलर है। जिसकी कहानी पाठक को बांधकर रखती है।
उपन्यास का विशेष डायलॉग-
- अण्डरवर्ल्ड का यह असूल है किसी पर रहम न किया जाये। और जिसने भी रहमदिली दिखाई , वह गया। (पृष्ठ-43)
             यह बलराज गोगिया का प्रथम उपन्यास है। उपन्यास का आरम्भ बलराज गोगिया को फांसी अवसर से होता है। वहां लेखक महोदय ने जो बलराज गोगिया का चित्रण किया है वह एक सामान्य आदमी के दर्द- डर को व्यक्त करता है। जब बलराज गोगिया को यह लगता है की उसका मृत्यु का दिन तय हो गया है उसके चेहरे का रंग ही बदल जाता है।
एक दृश्य और देखें-
         प्रथम चोरी करते वक्त बलराज गोगिया के हृदय पर डर सवार था-
पहली चोरी थी यह बलराज गोगिया की सो  उसके दिल का धड़कना स्वाभाविक ही था। (पृष्ठ-151)
  इस उपन्यास में बलराज गोगिया की राघव से पहली बार मुलाकात होती है जो दोस्ती में परिवर्तित हो जाती है। हालांकि उपन्यास में राघव का किरदार बहुत कम दर्शाया गया है। राघव बलराज गोगिया को मारने की दो लाख में सुपारी लेता है लेकिन बदली परिस्थितियों में राघव भी बदल कर बलराज गोगिया का मित्र बन जाता है।
उपन्यास के मुख्य पात्र
उपन्यास के विशेष पात्रों का यहां संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है। हालांकि उपन्यास में पात्र और भी हैं।
बलराज गोगिया- उपन्यास का मुख्य पात्र
रजनी- बलराज की प्रेयसी ( संक्षिप्त भूमिका)
अवतार सिंह- लुधियाना शहर का गैंगस्टर
राजवीर- अवतार सिंह का साथी
इकबाल सिंह - लुधियाना शहर का गैंगस्टर
निरंजन सिंह- इकबाल सिंह का साथी
दुष्यंत चौधरी- एक अपराधी व्यक्ति
राघव- दुष्यंत चौधरी का साथी
लखन पाल- पुलिस इंस्पेक्टर
पुष्पा- एक विशेष पात्र
फंदा उपन्यास मूलतः एक चक्रव्यूह है जिसमें बलराज गोगिया को इतनी सफाई से फंसाया जाता है की वह कुछ भी नहीं समझता। कब दोस्त दुश्मन हो जाता है, और कब दुश्मन दोस्त बन जाता है कुछ पता नहीं चलता। क्योंकि बलराज गोगिया को जो दिखाई देता है वह होता नहीं और  जो होता है वह दिखाई नहीं देता। ऐसे चक्रव्यूह में उलझा बलराज गोगिया दुश्मनों के चलाये राह पर चलता रहता है। लेकिन अंत में जब उसे वास्तविकता का पता चलता है तो वह हैरान रह जाता है की उसके साथ एक खेल खेला जा रहा है और वह मात्र मोहरा है। मात्र वह ही नहीं सब पात्र मोहरे हैं खिलाड़ी तो कोई और ही है।
     
उपन्यास-  फंदा
लेखक-    अनिल सलूजा
प्रकाशक- धीरज पॉकेट बुक्स, मेरठ
पृष्ठ-          218
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1 comment:

  1. उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता आलेख। आभार।

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