डबल रोल- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज- 19 शम्भुदयाल एक दुस्साहस लुटेरा था, जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर ना सिर्फ दिन-दहाड़े बैंक लूट डाला था, बल्कि तीन सिपाहियों को भी गोली से उड़ा डाला था। (Kindle से)
मैंने इन दिनों सतत सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के सुनील सीरीज के कुछ उपन्यास पढे हैं। सुनील सीरीज के इन आरम्भिक उपन्यासों का सफर रोचक रहा है। कुछ उपन्यासों की कथा बहुत अच्छी लगी तो कुछ उपन्यास सामान्य स्तर के भी निकले। इन अच्छे और सामान्य उपन्यासों का विवरण समीक्षा के माध्यम से यहाँ प्रस्तुत करने का एक अल्प प्रयास भी किया है, हालांकि सभी पाठको का पढने और मनन का तरीका अलग-अलग होता है।
सुनील सीरीज के ये उपन्यास मुझे कैसे लगे वह मेरा दृष्टिकोण है, आपका अलग हो सकता है।
अब चर्चा सुनील सीरीज के 19 वे उपन्यास 'डबल रोल' की।
सुनील ने सिर से पांव तक उस लड़की को देखा जिसे चपरासी उस केबिन में छोड़ गया था। वह बेहद सुन्दर थीं।
“बैठो।” - वह बोला।
लड़की बैठ गई।
सुनील उसके बोलने की प्रतीक्षा करने लगा।
“मेरा नाम रचना है।” - वह बोली।
रचना का पति शम्भूदयाल एक बैंक डकैती के पश्चात, अपने साथियों से धोखा कर के, लूट की पचास लाख की दौलत रचना के पास छोड़ गया था। और रचना के कथनानुसार शम्भू के वह दोस्त उस से दौलत छीन कर ले गये थे।
एक अंतराल पश्चात लौटा शम्भू जब रचना की इस बात को सुनता है तो वह रचना पर दौलत हड़पने का आरोप लगाता है। रचना को अपने पति से जान का खतरा है। और शम्भू को पुलिस का डर है।
वहीं मुरारी नामक एक व्यक्ति रचना से डील करता है, जिस से रचना अपने पति से सुरक्षित रह सकती है। लेकिन रचना किसी पर विश्वास नहीं कर पाती। तब उसे सहायक के रूप में 'ब्लास्ट' का पत्रकार सुनील चक्रवर्ती नजर आता है। और वह सुनील से मदद मांगती है।
देखने में यह एक सीधा-सादा मामला था। रचना के लिए सुनील को मुरारी से डील करनी थी, बस...।
लेकिन समस्या तब आ खड़ी हुयी जब एक और पार्टी शम्भूदयाल का पता जानने के लिए सुनील के पीछे पड़ गयी।
“देखिये, सुनील साहब !” - गंजा उसे समझाने लगा - “आप समझदार आदमी हैं। कोई बच्चे तो नहीं हैं आप जो अभी तक इतनी मामूली-सी बात न समझ सकें कि आप झूठ बोलने या एकदम न बोलने की स्थिति में नहीं हैं । चन्दन केवल पांच मिनट आपकी सेवा करेगा और उसके बाद आप हमारे बिना पूछे ही हमें सब कुछ बताने के लिये उत्सुक हो उठेंगे। इसलिये क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आप पहले ही वह काम कर डालें जो आप चन्दन द्वारा सेवा करवाने के बाद करेंगे।”
सुनील को अब इस नयी पार्टी से भी जूझना था। रचना की डील भी पूर्ण करनी थी। लेकिन तभी एक कत्ल हो गया और वह कत्ल रचना के लिए फंदा बन गया।
सुनील को अब कई समस्याओं को निपटाना था और इस कार्य में उसकी मदद करता है उसका सदाबहार यार यूथ क्लब का मालिक रमाकांत। रमाकांत एक सदाबहार पात्र है, जो हर समय सुनील की मदद के लिए उपस्थित रहता है।
इस केस में भी जब उसे लगता है कि सुनील की जान को खतरा हो सकता है तो वह जिद्द करके सुनील के साथ चलता है। और अंततः दोनों मित्र इस केस को हल करते हैं।
उपन्यास की कहानी एक डील से आरम्भ होकर एक कल्त के केस तक जा पहुंचती है। जहां रचना फंस जाती है लेकिन तीक्षण बुद्धि का मालिक सुनील चक्रवर्ती अपने बुद्धि कौशल से प्रत्येक समस्या का हल निकलता है और असली अपराधियों को पकड़वा देता है।
उपन्यास में इम्पीरियल होटल का एक दृश्य है। जहाँ सुनील, रचना, मुरारी और उसका डाॅक्टर साथी एकत्र होते हैं। यह दृश्य बेहद पेचीदा प्रतीत होता है, लेकिन तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। क्योंकि होटल के कमरे में चुनिंदा व्यक्ति हैं, उसमें सड कोई चाल चले, गायब हो जाये तो यह संभव नहीं की किसी को पता न चले।
- उपन्यास में एक डाॅक्टर एक व्यक्ति के घर में जाकर उसे लगी गोली निकालता है। और फिर वहाँ से जाते वक्त उस गोली को एक खाली प्लाॅट में फेंक देता है।
यह दृश्य भी मुझे अतार्किक लगा।
- पहली बात डाॅक्टर वहाँ से गोली उठाकर क्यों लाया। वहाँ तो सभी अपराधी थे, उनके घर पर गोली पड़ी होना विशेष बात न थी। दूसरा जब डाॅक्टर गोली ले ही आया तो उसी घर के पास ही क्यों फेंक दी।
पाठक जी के उपन्यासों में कुछ दृश्य बहुत बार मिल जाते हैं। जैसा की इस उपन्यास में है- होटल के अगल-बगल के दो कमरों के मध्य बाथरूमों के मध्य एक दरवाजा होना। यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
उपन्यास का कथानक सामान्य है। उपन्यास की कुछ घटनाएं विशेष कर शम्भू के 'डबल रोल' वाली आपको कर्नल रंजीत और इब्ने सफी के उन तरीकों की याद दिलायेगी, जहाँ बतख को पकड़ने के लिए पहले उस के सिर पर मोम डाला जाता है, और जब मोम पिघल कर उसके आँखों में चला जाये, बतख को दिखना बंद हो जाये तो बतख को पकड़ लो।
यहाँ भी कुछ ऐसा ही है जो कहानी को कमजोर बनाता है और अनावश्यक विस्तार पैदा करता है। उपन्यास- डबल रोल
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1968
सुनील सीरीज- 19
फॉर्मेट- eBook on kindle
in
सुनील सीरीज- 19 शम्भुदयाल एक दुस्साहस लुटेरा था, जिसने अपने साथियों के साथ मिलकर ना सिर्फ दिन-दहाड़े बैंक लूट डाला था, बल्कि तीन सिपाहियों को भी गोली से उड़ा डाला था। (Kindle से)
मैंने इन दिनों सतत सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के सुनील सीरीज के कुछ उपन्यास पढे हैं। सुनील सीरीज के इन आरम्भिक उपन्यासों का सफर रोचक रहा है। कुछ उपन्यासों की कथा बहुत अच्छी लगी तो कुछ उपन्यास सामान्य स्तर के भी निकले। इन अच्छे और सामान्य उपन्यासों का विवरण समीक्षा के माध्यम से यहाँ प्रस्तुत करने का एक अल्प प्रयास भी किया है, हालांकि सभी पाठको का पढने और मनन का तरीका अलग-अलग होता है।
सुनील सीरीज के ये उपन्यास मुझे कैसे लगे वह मेरा दृष्टिकोण है, आपका अलग हो सकता है।
अब चर्चा सुनील सीरीज के 19 वे उपन्यास 'डबल रोल' की।
सुनील ने सिर से पांव तक उस लड़की को देखा जिसे चपरासी उस केबिन में छोड़ गया था। वह बेहद सुन्दर थीं।
“बैठो।” - वह बोला।
लड़की बैठ गई।
सुनील उसके बोलने की प्रतीक्षा करने लगा।
“मेरा नाम रचना है।” - वह बोली।
रचना का पति शम्भूदयाल एक बैंक डकैती के पश्चात, अपने साथियों से धोखा कर के, लूट की पचास लाख की दौलत रचना के पास छोड़ गया था। और रचना के कथनानुसार शम्भू के वह दोस्त उस से दौलत छीन कर ले गये थे।
एक अंतराल पश्चात लौटा शम्भू जब रचना की इस बात को सुनता है तो वह रचना पर दौलत हड़पने का आरोप लगाता है। रचना को अपने पति से जान का खतरा है। और शम्भू को पुलिस का डर है।
वहीं मुरारी नामक एक व्यक्ति रचना से डील करता है, जिस से रचना अपने पति से सुरक्षित रह सकती है। लेकिन रचना किसी पर विश्वास नहीं कर पाती। तब उसे सहायक के रूप में 'ब्लास्ट' का पत्रकार सुनील चक्रवर्ती नजर आता है। और वह सुनील से मदद मांगती है।
देखने में यह एक सीधा-सादा मामला था। रचना के लिए सुनील को मुरारी से डील करनी थी, बस...।
लेकिन समस्या तब आ खड़ी हुयी जब एक और पार्टी शम्भूदयाल का पता जानने के लिए सुनील के पीछे पड़ गयी।
“देखिये, सुनील साहब !” - गंजा उसे समझाने लगा - “आप समझदार आदमी हैं। कोई बच्चे तो नहीं हैं आप जो अभी तक इतनी मामूली-सी बात न समझ सकें कि आप झूठ बोलने या एकदम न बोलने की स्थिति में नहीं हैं । चन्दन केवल पांच मिनट आपकी सेवा करेगा और उसके बाद आप हमारे बिना पूछे ही हमें सब कुछ बताने के लिये उत्सुक हो उठेंगे। इसलिये क्या यह अच्छा नहीं होगा कि आप पहले ही वह काम कर डालें जो आप चन्दन द्वारा सेवा करवाने के बाद करेंगे।”
सुनील को अब इस नयी पार्टी से भी जूझना था। रचना की डील भी पूर्ण करनी थी। लेकिन तभी एक कत्ल हो गया और वह कत्ल रचना के लिए फंदा बन गया।
सुनील को अब कई समस्याओं को निपटाना था और इस कार्य में उसकी मदद करता है उसका सदाबहार यार यूथ क्लब का मालिक रमाकांत। रमाकांत एक सदाबहार पात्र है, जो हर समय सुनील की मदद के लिए उपस्थित रहता है।
इस केस में भी जब उसे लगता है कि सुनील की जान को खतरा हो सकता है तो वह जिद्द करके सुनील के साथ चलता है। और अंततः दोनों मित्र इस केस को हल करते हैं।
उपन्यास की कहानी एक डील से आरम्भ होकर एक कल्त के केस तक जा पहुंचती है। जहां रचना फंस जाती है लेकिन तीक्षण बुद्धि का मालिक सुनील चक्रवर्ती अपने बुद्धि कौशल से प्रत्येक समस्या का हल निकलता है और असली अपराधियों को पकड़वा देता है।
उपन्यास में इम्पीरियल होटल का एक दृश्य है। जहाँ सुनील, रचना, मुरारी और उसका डाॅक्टर साथी एकत्र होते हैं। यह दृश्य बेहद पेचीदा प्रतीत होता है, लेकिन तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता। क्योंकि होटल के कमरे में चुनिंदा व्यक्ति हैं, उसमें सड कोई चाल चले, गायब हो जाये तो यह संभव नहीं की किसी को पता न चले।
- उपन्यास में एक डाॅक्टर एक व्यक्ति के घर में जाकर उसे लगी गोली निकालता है। और फिर वहाँ से जाते वक्त उस गोली को एक खाली प्लाॅट में फेंक देता है।
यह दृश्य भी मुझे अतार्किक लगा।
- पहली बात डाॅक्टर वहाँ से गोली उठाकर क्यों लाया। वहाँ तो सभी अपराधी थे, उनके घर पर गोली पड़ी होना विशेष बात न थी। दूसरा जब डाॅक्टर गोली ले ही आया तो उसी घर के पास ही क्यों फेंक दी।
पाठक जी के उपन्यासों में कुछ दृश्य बहुत बार मिल जाते हैं। जैसा की इस उपन्यास में है- होटल के अगल-बगल के दो कमरों के मध्य बाथरूमों के मध्य एक दरवाजा होना। यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
उपन्यास का कथानक सामान्य है। उपन्यास की कुछ घटनाएं विशेष कर शम्भू के 'डबल रोल' वाली आपको कर्नल रंजीत और इब्ने सफी के उन तरीकों की याद दिलायेगी, जहाँ बतख को पकड़ने के लिए पहले उस के सिर पर मोम डाला जाता है, और जब मोम पिघल कर उसके आँखों में चला जाये, बतख को दिखना बंद हो जाये तो बतख को पकड़ लो।
यहाँ भी कुछ ऐसा ही है जो कहानी को कमजोर बनाता है और अनावश्यक विस्तार पैदा करता है। उपन्यास- डबल रोल
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1968
सुनील सीरीज- 19
फॉर्मेट- eBook on kindle
रोचक। आपकी बात से सहमत की एक रचना को देखना का नजरिया अलग अलग पाठकों के लिए अलग अलग होता है। ऐसे में एक लेख को केवल उस व्यक्ति के विचार के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। उपन्यास का कन्सेप्ट तो रोचक लग रहा है। भविष्य में पढ़ने की कोशिश रहेगी।
ReplyDelete