Friday, 12 November 2021

472. दास्तान ए पाकिस्तान- प्रवीण कुमार झा

जब डंडे की मार पड़ी, तब जाकर मुल्क रास्ते पर आया
दास्तान - ए- पाकिस्तान- प्रवीण कुमार झा

    पाकिस्तान के इतिहास पर लिखी गयी प्रस्तुत रचना आपको बहुत से नये तथ्यों से अवगत कराती है। यह बहुत ही रोचक ढंग से लिखी गयी पुस्तक है। जो सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं अन्य देशों की यात्रा भी करवाती है। 
     पाकिस्तान का इतिहास अक्सर विभाजन के इर्द-गिर्द भटक कर रह जाता है। जबकि यह एक देश के बनने की शुरुआत ही थी। 1947 के बाद पाकिस्तान का सफ़र कैसा रहा? किन-किन मील के पत्थरों से गुजरा? उन रास्तों में क्या-क्या मुश्किलें आयी? भारत में पढ़ाए जा रहे इतिहास, और पाकिस्तान में पढ़ाए जा रहे इतिहास में जो स्वाभाविक अंतर है, उस से अलग एक तीसरा बिंदु भी ढूँढा जा सकता है। वह बिंदु, जहाँ से शायद वह चीजें भी नज़र आए, जो इन दोनों देशों के रिश्तों के सामने धुंधली पड़ जाती है।
         यूँ तो मेरी इतिहास पढने में रूचि कम ही है। वैसे भी इतिहास को नीरस विषय कहा जाता है। अगर बात हो पाकिस्तान के इतिहास की तो, हम क्यों पढें? हम से तो अपने देश का भी इतिहास नहीं पढा जाता। 
   लेकिन जब 'दास्तान-ए- पाकिस्तान' रचना के लेखक का नाम देखा और लेखक का कथन‌ पढा तो इच्छा हुयी कि चलो पाकिस्तान का इतिहास भी पढ ही लिया जाये, देखते हैं लेखक महोदय ने क्या रोचक लिखा है।
मैं इस से पूर्व प्रवीण झा जी की दो रचनाएँ पढ चुका हूँ। दोनों ही रोचक हैं। बस इसी रोचकता के  चलते, पाकिस्तान का इतिहास भी पढ लिया।
   जब पाकिस्तान के इतिहास की बात होती है तो तय है उसके साथ भारत का वर्णन होगा ही होगा, क्योंकि बिना भारत के पाकिस्तान का अस्तित्व भी न था।
      पाकिस्तान का इतिहास, राजनीति और स्वयं पाकिस्तान हमेशा उलझन में रहा है। कभी अस्पष्ट रणनीति को लेकर और कभी अपने शासक को लेकर तो कभी अन्य देशों के साथ संबंधों को लेकर। लेखक महोदय ने हर एक बात को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है‌।
पंजाब की राजनीति और विशेष कर सन् 84 के घटनाक्रम को पढने की मेरी हमेशा इच्छा रही है। इस विषय पर दो किताबें मेरे पास उपलब्ध हैं, अभी पढना बाकी है।
    'दास्तान-ए- पाकिस्तान' में भी उक्त घटनाक्रम का वर्णन है, क्योंकि यह स्थापित तथ्य है 'खालिस्तान' का जन्म एक भारतीय पार्टी विशेष ने दिया था और फिर उसे पोषित पाकिस्तान ने किया।
उक्त घटना का वर्णन देखें-
इंदिरा गांधी की हत्या से पहले ही राजीव गांधी एक ‘पंजाब थिंक टैंक’ का हिस्सा थे, जो ख़ालिस्तानी आंदोलन और पाकिस्तान के सूत्र तलाश रहे थे। यह कोई रहस्य नहीं कि जिया-उल-हक़ और आइएसआइ भिंडरावाले को न सिर्फ समर्थन, बल्कि हथियार भी मुहैया करा रहे थे।
         पाकिस्तान की राजनीति लगता है जैसे मजाक हो। क्योंकि वहाँ जो घटित हो रहा था वहाँ की जनता को तो क्या स्वयं राजनेताओं को भी नहीं पता था। कब कौन वहाँ का शासक बन जाये कुछ कहां नहीं जा सकता था। कब सेना तख्ता पलट कर दे, कब किसकी हत्या करवा दे यह पाकिस्तान की राजनीति में सामान्य बात हो गयी थी। लेखन ने क्या खूब लिखा है- वहाँ की जनता को नहीं पता की उनके कितने राष्ट्रपति हैं और कितने प्रधानमंत्री।
   प्रस्तुत पुस्तक में न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि भारत, अफगानिस्तान, अमेरिका, चीन और बांग्लादेश का वर्णन भी है।
कुछ रोचक दृश्य देखें-
अमेरिका के नेताओं का एक वार्तालाप देखें-
निक्सन ने किसिंगर से कहा, “चीन से कहो, आगे बढ़े। वे बैठे-बैठे क्या कर रहे हैं?”
“उन्होंने कहा है कि ठंड बहुत है। नहीं बढ़ सकते।”
“ठंड? ये बेवकूफ़ हमसे लड़ने कोरिया युद्ध में तो यालू नदी पार कर आ गए थे। अब ठंड लग रही है?”

एक रोचक घटनाक्रम और देखें-
       आसिफ़ के पिता ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के धुर-विरोधी रहे थे। जेल से छूटने के बाद मुर्तज़ा ने अपने कराची आवास के शौचालय में आसिफ़ की तस्वीर लगवायी थी, और मेहमानों से कहते कि एक बार शौचालय ज़रूर जाएँ।
        प्रवीण झा द्वारा लिखित 'दास्तान-ए- पाकिस्तान' तथ्यों पर आधारित एक रोचक पुस्तक है। पुस्तक के अंत में संदर्भ ग्रंथों की सूची इसे प्रामाणिक बनाती है।
     इस पुस्तक को मात्र एक बार पढकर इस पर लिखना संभव नहीं है। मेरा प्रयास यही रहेगा इस पुस्तक को पुनः पढा जाये। यहाँ मेरे द्वारा लिखे गये विचार इस पुस्तक का एक अल्प अंश ही प्रदर्शित कर रहे हैं। अभी बहुत कुछ कहना शेष है।
   अगर बात करें पुस्तक के आवरण चित्र की तो विश्व में सबसे ज्यादा ट्रको पर सजावट पाकिस्तान में ही की जाती है। इस मामले में पाकिस्तान की कोई बराबरी नहीं कर सकता।
    अगर आप इतिहास को नीरस विषय मानते हैं तो इस पुस्तक को आप एक बार अवश्य पढें, आपका पूर्वाग्रह खत्म हो जायेगा।
 अंत में एक पाकिस्तान बुजुर्ग का कथन देख लीजिए- जब डंडे की मार पड़ी, तब जाकर मुल्क रास्ते पर आया।
पुस्तक-  दास्तान ए पाकिस्तान
लेखक-   प्रवीण झा
संस्करण- अगस्त- 2021
फॉर्मेट -   EBook on Kindle


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