ब्लू स्टार- प्रवीण झा
धर्म और योद्धाओं के राज्य पंजाब की भारतीय इतिहास में एक विशिष्ट पहचान है। सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं बल्कि साधन सम्पन्नता और व्यापारिक दृष्टि से भी पंजाब अग्रणी राज्य है।
लेकिन एक ऐसा भी समय आया जब हँसते-खेलते पंजाब को मानों किसी की नजर लग गयी हो। जिंदा पंजाबी लोग आतंक के साये में सहमें-सहमें से रहने लगे। सूर्य अस्त और पंजाबी मस्त वाली कहावत का अर्थ ही बदल गया। अब तो सूर्य अस्त होते ही लोग अपने घरों में सहमें से दुबक जाते थे।
इस का सिर्फ एक ही कारण था - कथित संत जरनैल सिंह भिण्डरावाला।
अब बात करते हैं पुस्तक 'ब्लू स्टार' की। यह रचना तात्कालिक घटनाक्रम को तथ्यों के साथ प्रस्तुत करती है।
सन् 70 के दशक में केन्द्र में कांग्रेस का शासन था।श्रीमती इन्द्रा गाँधी प्रधानमंत्री थी। वहीं पंजाब में अकाली दल का प्रभाव था। अकाली दल पर तीन लोगों का वर्चस्व था— मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, संत हरचंद सिंह लोंगोवाल और गुरचरण सिंह तोहरा। लेकिन, इन्हें तोड़ना कठिन था। ज्ञानी जैल सिंह और संजय गांधी ने योजना बनायी कि एक नया सिख नेता खड़ा करना होगा, जो इन तीनों पर भारी पड़े। दमदमी टकसाल की स्थापना शिक्षण संस्थान के रूप में बाबा दीप सिंह ने की थी। कालांतर में जिसका प्रधान जरनैल सिंह नामक एक नौजवान बना। जरनैल सिंह धार्मिक प्रवृत्ति का उग्र विचारधारा वाला युवक था।
वहीं एक और घटना घटित होती है, जो जरनैल सिंह को चर्चित कर देती है और पंजाब में आतंक की नीव रखती है।
सिखधारा में अमृतधारी नामक एक समुदाय है। जो कुछ विषयों पर सिखधर्म से अलग मत रखता है। यही अलग मत जरनैल सिंह को स्वीकृति नहीं होते और वह अमृतधारी समुदाय से जा टकराता है। पंजाब में एक ही धर्म के लोगों के मध्य विवाद होता है और कुछ लोग मारे जाते हैं। यहीं से जरनैल सिंह चर्चित होता है लेकिन तत्कालीन सरकार के आशीर्वाद के चलते कानून उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता।
कम्युनिस्ट नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने संसद में कहा, “भिंडरावाले को शह कौन लोग दे रहे हैं? कांग्रेस और अकाली दल! बस अपने फायदे के लिये ये पंजाब में सांप्रदायिक माहौल ला रहे हैं।”
कांग्रेस से आशीर्वाद प्राप्त जरनैल सिंह के साथ एक ऐसा समय भी आता है जब वह कांग्रेस का विरोधी बन जाता है।
यही विरोध केन्द्र सरकार सहन नहीं कर पाती। वहीं जरनैल सिंह भिण्डरावाला अब पंजाब का प्रसिद्ध धार्मिक नेता बन चुका था। लोगों ने उसका नेतृत्व स्वीकार कर लिया, हालांकि कुछ लोग उसके विरोध में थे।
अब जरनैल सिंह की मांग पंजाब की स्वायत्तता से हटकर पंजाब को एक अलग देश 'खालिस्तान' बनाने की थी। जिसके लिए वह हथियारबद्ध था, युद्ध को तैयार था। और उसने सिख धर्म के पवित्र स्थल हरिमंदिर साहिब, अमृतसर (Golden Temple) में अपना ठिकाना बनाया। हालांकि इसका विरोध हुआ पर, विरोधी जिंदा न बचे।
भिंडरावाले ने स्वर्ण मंदिर में प्रवचन देते हुए कहा, “हमारे देश में खेल हुआ। दुनिया भर से लोग आए। लेकिन, सिखों को खेल देखने की इजाजत नहीं मिली। अब बताओ कि सिखों को हिन्दू अपना गुलाम समझते हैं या नहीं? ये पंडिताईन, जो प्रधानमंत्री बनी बैठी है, कान खोल कर सुन ले! यह गुलामी हम कभी बरदाश्त नहीं करेंगे।”
जनवरी, 1983 से भिंडरावाले की फौज बे-लगाम घूमने लगी। कभी शिक्षा-मंत्री के घर पर बम फेंक रही है, तो कभी मुख्यमंत्री पर हमला। गणतंत्र दिवस आयोजन पर भी बम फेंक दिया गया। अमृतसर का सिंडीकेट बैंक लूट लिया गया।
भिंडरावाले को यह आशंका हो रही थी कि सरकार चुप नहीं रहेगी। कम से कम चुनाव से पहले आक्रमण जरूर करेगी। इसलिए अकाल तख्त में क़िलाबंदी शुरू कर दी गयी। रेत की बोरियाँ लगा कर घेर लिया गया। अब अकाल तख्त की छत पर बंदूकें लिये लोग तैनात रहते। अकाल तख्त के दोनों तरफ के मकान में भी बंदूकधारी लगा दिये गये। ग्रेनेड की एक पूरी फ़ैक्टरी ही तैयार कर ली गयी थी। ताज्जुब की बात है कि स्वर्ण-मंदिर अब भी आध्यात्मिक माहौल के साथ यथावत था। दूर-दूर से माथा टेकने यहाँ लोग आ रहे थे। उनको इन बंदूकधारियों से कोई फर्क नहीं पड़ता।
पंजाब का हाल बहुत बुरा हो रहा था। सज्जन सहमे हुये थे और बदमाश सक्रिय थे। शांति गायब थी। पवित्र स्थल पर कथित धर्मगुरु के वेश में आतंकवाद गुरुघर में थे। गुरुघर की मर्यादा खण्डित हो रही थी। वहीं पंजाब में धार्मिक मद में चूर व्यक्ति पंजाब को एक अलग देश बनाने पर जोर दे रहे थे। ऐसे समय में आवश्यक हो जाता है किसी भी तरह से इस आतंकी संगठन का खात्मा हो। पर एक धार्मिक स्थल पर आक्रमण करना भी उचित न था। सरकार विवश थी।
अब एक नजर पंजाब की तात्कालिक हत्याओं पर।
- 23 अप्रेल, 1983 को DIG ए. एस. अटवाल एक धर्मनिष्ठ सिख की तरह स्वर्ण मंदिर पहुँचे। उन्होंने पवित्र सरोवर की परिक्रमा की। अकाल तख्त के सामने झुक कर आराधना की। वहाँ से दर्शन ड्योढ़ी की पंक्ति में लग गए। हरमंदिर साहिब में प्रसाद लेकर वापस मुख्य-द्वार की ओर जाने लगे। वह सीढ़ीयाँ चढ़ ही रहे थे कि तभी गोलियों की आवाज आयी, और सिखों के सबसे पवित्र सीढ़ियों पर यह सिपाही ढेर हो गया। उनके अंगरक्षक भाग लिये। सामने की पुलिस चौकी ने भी कुछ नहीं किया। इतने वरिष्ठ पुलिसकर्मी की लाश दो घंटे तक पड़ी रही, जब तक मंदिर प्रशासन ने उसे पुलिस को नहीं दिया।
- 18 नवंबर, 1983 को एक बस रोक कर चार हिन्दुओं को बेरहमी से गोली मार दी गयी।
- स्वर्ण-मंदिर के बाहर पुलिस चौकी से छह पुलिस कॉन्स्टेबलों को खींच कर अकाल तख़्त ले आए, और एक को गोली मार दी। आखिर एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को भिंडरावाले के सामने गिड़गिड़ाना पड़ा, तब जाकर उन्हें छोड़ा गया। लेकिन भिंडरावाले ने सभी स्टेन-गन और वाकी-टॉकी पर कब्जा कर लिया।
- पंजाब में भी पवन कुमार नामक एक अपराधी नेता के नेतृत्व में हिन्दुओं ने सिखों पर आक्रमण किया और दंगों में चौदह लोग मारे गये।
- 28 मार्च, 1984 को दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी के जत्थेदार एच. एस. मनचन्दा को दिन-दहाड़े दिल्ली के केंद्र में ITO चौराहे पर गोली मार दी गयी। उन्हें इंदिरा गांधी का मित्र समझा जाता था, और भिंडरावाले की हिट-लिस्ट में थे।
- भिंडरावाले ने कहा, “कोई बात नहीं। मुझसे माफी माँग ली। अब मंदिर जाकर वहाँ भी दरबार में माफी माँग लो।” भाटिया खुश होकर मंदिर चले गए, और प्रसाद लेकर वापस भिंडरावाले के पास लौटने लगे। लेकिन जैसे ही अकाल तख्त की सीढ़ियाँ चढ़ने लगे, उन पर तलवार से वार किया गया। उनके कंधे कट गए, पगड़ी गिर गयी और वह मंदिर से बाहर लोंगोवाल के गुरु रामदास हॉस्टल की ओर भागे। हॉस्टल के दरवाजे पर पहुँचते ही उनकी पीठ पर गोली लगी, और भाटिया ने वहीं दम तोड़ दिया।
- जब 29 सितंबर, 1981 को इंडियन एयरलाइंस का एक हवाई जहाज हाइजैक कर लाहौर ले जाया गया। यह जहाज श्रीनगर से दिल्ली जा रहा था, और पाँच खालिस्तान समर्थक सिखों ने चाकू की नोक पर हाइजैक कर लिया। उनकी माँग थी कि भिंडरावाले को छोड़ दिया जाए।
- सिर्फ मार्च-अप्रेल, 1984 के दौरान अस्सी हत्याएँ की गयी।
इस आतंकवाद को खत्म करने के लिए सेना को आगे आना पड़ा।
लेफ्टिनेंट जरनल कुलदीप सिंह बराड़ ने कहा, “हम किसी भी धर्म-स्थल को अपवित्र करने नहीं जा रहे। वहाँ जो खून बह रहा है, जो हिंसा हो रही है, उसे खत्म करने जा रहे हैं। हम वह गंदगी साफ करने जा रहे हैं, और हरमंदिर की सेवा करने जा रहे हैं। अगर आप में से किसी को भी लगता है कि यह उनके धर्म के ख़िलाफ़ है, तो आप बेशक पहले कह दें। आप पर कोई कार्रवाई नहीं की जायेगी। निश्चिंत रहें।” पहली तीन बटालियन में किसी ने मना नहीं किया। चौथे में एक सिख खड़े हुए। लेफ़्टिनेंट जनरल ने कहा, “कोई बात नहीं जवान। आप बेशक इस ऑपरेशन से मुक्त हो सकते हैं।” लेकिन, उस सिख ने कहा, “नहीं! मैं बस यह कहने खड़ा हुआ हूँ कि मैं इस ऑपरेशन में आगे जाना चाहता हूँ। आप बस हुक्म करिये।”
5 जून, 1984 “जवानों! यह ध्यान रहे कि यह मंदिर हम सबके लिये एक पूजा करने की जगह है। लड़ने की नहीं। लेकिन, अब हमारे पास कोई चारा नहीं बचा। आज हमें इसे शत्रु-कैम्प की तरह देखने की नौबत आ गयी है। अंदर हमारे देश का दुश्मन भिंडरावाले बैठा है। हमारा टारगेट वही है, मंदिर को हम बिल्कुल क्षति नहीं पहुँचाएँये। मैं दुबारा कह रहा हूँ। स्वर्ण मंदिर और अकाल तख्त को हमें नुकसान नहीं पहुँचाना है!” - लेफ़्टिनेंट जनरल बरार अपने बटालियनों से कहा।
1984 में कुछ ऐसा हुआ जिसने देश को टूटने के कगार पर ला दिया।
सिख समुदाय और सम्पूर्ण भारत के पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना के प्रवेश और उसके कारण देश के भविष्य में कभी भी उत्पन्न ना हो, इसके लिए इस इतिहास को जानना आवश्यक है।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसा ऑपरेशन एक अंतिम विकल्प था या ऐसे हालात बनाए गए?
- क्या सियासी पैंतरों की बलि देश के नागरिक और हमारे सांस्कृतिक स्थल चढ़ गए?
- क्या यह पंजाब के हृदय में सदा के लिए एक ज़ख़्म दे गया?
- क्या यह कांग्रेस पार्टी पर एक धब्बा बन कर रह गया? क्या यह भारत में पहली बार एक प्रधानमंत्री की हत्या का कारण बना?
- क्या यह देश के भिन्न भिन्न क्षेत्रों में एक साथ पनप रहे अलगाववाद का हिस्सा थी?
-क्या इसमें 1971 के युद्ध से बिखरे पाकिस्तान की साज़िश थी?
- आख़िर क्या और क्यों था ऑपरेशन ब्लू स्टार?
प्रवीण झा द्वारा रचित 'ब्लू स्टार' न केवल तात्कालिक घटनाक्रम को व्यक्त करती है बल्कि यह तात्कालिक सरकार पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करती है। कैसे एक सरकार ने अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए पंजाब को आग में झोंक दिया।
अगर आप पंजाब के आतंकवाद, 1984 और आप्रेशन ब्लू स्टार को जानना चाहते हैं तो यह रचना पढें।
पुस्तक- ब्लू स्टार
लेखक - प्रवीण झा
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